माइक्रोप्लास्टिक : एक उभरता हुआ भूजल प्रदूषक।
माइक्रोप्लास्टिक : एक उभरता हुआ भूजल प्रदूषक।

माइक्रोप्लास्टिक पर्यावरण में एक उभरता हुआ प्रदूषक (भाग 2)

माइक्रोप्लास्टिक्स विभिन्न पर्यावरणों में प्रचलित हैं, जिनमें महासागर, स्वच्छ जल के स्रोत, मिट्टी, और हवा शामिल हैं। इनका पारिस्थितिक तंत्र और मानव स्वास्थ्य पर पड़ता प्रभाव एक बढ़ती हुई चिंता का विषय है। 
Author:
5 min read

भारत में माइक्रोप्लास्टिक्स का प्रभाव 

भारत में प्लास्टिक उद्योग एक तेजी से बढ़ता हुआ उद्योग है, जिसमें पश्चिमी भारत प्लास्टिक का सबसे बड़ा उपभोक्ता (47%) है। पश्चिमी भारत के गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, दमन और दीव, छत्तीसगढ़, और दादरा और नगर हवेली राज्यों में प्लाटिक का सर्वाधिक उपयोग किया जाता है। इस प्लास्टिक कचरे की पारदर्शिता और इसके सूक्ष्म भागों में टूटने के कारण अंततः माइक्रोप्लास्टिक उत्पन्न होता है। और इसकी उपस्थिति का अध्ययन भारतीय पर्यावरण के विभिन्न क्षेत्रों में कई वैज्ञानिकों द्वारा किया जा रहा है। 

भारत में माइक्रोप्लास्टिक्स पर एम. श्रीनिवास रेड्डी प्रतिवेदन, केंद्रीय नमक और समुद्री रसायन अनुसंधान संस्थान, गुजरात, 2006 द्वारा किए गए शोध में दर्शाया गया है कि गुजरात तट के समुद्री अवसादों में प्लास्टिक कचरे (81 मिग्रा/किग्रा) जैसे पॉलीयूरीथेन, नायलॉन, पॉलीस्टाइरीन, पॉलीएस्टर कणों की उपस्थिति पायी गयी है। केंद्रीय मात्स्यिकी शिक्षा संस्थान, पंच मार्ग, मुंबई के अनुसार, मुंबई के समुद्री तट पर, प्लास्टिक कचरे की अधिकता (7.49 ग्राम/वर्ग मी और 68.83 कण/वर्ग मी) पाई गई है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, नई दिल्ली 2014 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत दुनिया के प्रमुख प्लास्टिक उपभोक्ताओं में से एक है, जो वार्षिक औसतन 5.6 मिलियन टन प्लास्टिक का उत्पादन करता है। 

वेम्बनाड झील, केरल में माइक्रोप्लास्टिक्स की अधिकता पाई गई, जिसका अधिकतम माध्य मान 252.80 ± 25.76 कण/वर्गमी पाया गया है। मुख्य पॉलिमर यौगिक निम्न घनत्व वाला पॉलीइथाइलीन था। 

भारतीय समुद्री तटों का तलछट माइक्रोप्लास्टिक्स से प्रदूषित हो गया है। मई 2021 में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गुवाहाटी द्वारा कर्नाटक राज्य के पांच विभिन्न समुद्री तटों (अरब सागर तट) से माइक्रोप्लास्टिक कणों की उपस्थिति की रिपोर्ट प्रस्तुत गई थी। उनकी रिपोर्ट के अनुसार, समुद्र तट के रेतीले भाग में माइक्रोप्लास्टिक की अवस्थिति 264 ± 62 कण/किग्रा से 1002 ± 174 कण/किग्रा तक थी, और पांचों समुद्री तटों में माइक्रोप्लास्टिक की औसतन मात्रा 664± 114 कण/किग्रा तक थी । 

अन्य देशों में माइक्रोप्लास्टिक्स का प्रभाव 

न्यूयॉर्क राज्य विश्वविद्यालय द्वारा हाल ही में किए गए एक विश्लेषण में प्लास्टिक की जल की बोतलों पर एक चौंकाने वाली रिपोर्ट दी गई है, जिसमें बोतलबंद जल में दोगुने माइक्रोप्लास्टिक्स पाए गए। इस विश्लेषण के लिए जल के नमूने भारत, ब्राजील, चीन, केन्या, लेबनान, मेक्सिको, थाईलैंड, अमेरिका और इंडोनेशिया सहित विभिन्न देशों के 19 स्थानों से एकत्र किए गए थे। अध्ययन में यह पाया गया कि एकत्र किए गए 93 प्रतिशत जल के नमूनों में 0 से 10,000 तक के माइक्रोप्लास्टिक्स कण जल की बोतल में उपस्थित थे।

एफसीए, ईयूएफए आदि सहित सभी उन्नत विकसित देशों के खाद्य सुरक्षा प्राधिकरणों के पास वर्तमान में माइक्रोप्लास्टिक के लिए कोई अवशेष सीमा नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने प्लास्टिक प्रदूषक के संभावित जोखिमों की समीक्षा प्रारंभ कर दी है जिससे प्लास्टिक के उपयोग को कम किया जा सके। 

बिजनेस स्टैंडर्ड में 17.03.2018 को दिए गए एक हालिया साक्षात्कार में, भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्री पवन कुमार अग्रवाल ने कहा कि भारतीय बोतलबंद जल के मानक, कीटनाशकों और सूक्ष्म जीवों के कारण होने वाले संदूषण पर केंद्रित हैं। उन्होंने कहा, माइक्रोप्लास्टिक्स के परीक्षण के लिए कोई पैरामीटर उपलब्ध नहीं हैं। हमें नए मानक तैयार करने या मौजूदा मानकों को अपडेट करने से पहले इस मुद्दे को और अधिक विस्तार से समझने की आवश्यकता है।”

माइक्रोप्लास्टिक्स का आकार 5 मिमी से कम होता है और इसे पूरी दुनिया में समुद्री पर्यावरण के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक माना जाता है। वे इतने हल्के होते हैं कि आसानी से जल में तैर सकते हैं और कई जलजीवों को यह भोजन जैसे प्रतीत होते हैं, जिससे वे इसका सेवन कर लेते हैं। परिणामतः यह प्लास्टिक, जीव-जन्तुओं के पेट में जमा हो जाता है। हेरियट-वाट विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध प्रोफेसर हेनरी ने बताया है, कि ये माइक्रोप्लास्टिक्स अन्य विषैले तत्व जैसे डी.डी.टी. और हेक्साक्लोरोबेंजीन के लिए एक परिवहन माध्यम के रूप में भी कार्य कर सकते हैं और अंततः जीवित जीवों द्वारा उसका सेवन किये जाने पर उनके शरीर में ही समाप्त हो जाते हैं। 

माइक्रोप्लास्टिक को नियंत्रित करने के उपाय 

  • 1 - पर्यावरण में प्लास्टिक और माइक्रोप्लास्टिक के प्रभाव को कम करने के लिए विभिन्न देशों और संगठनों द्वारा मजबूत और प्रभावी नीतियां और कानून बनाए जाने चाहिए। 

  • 2 - प्लास्टिक कचरे को नियंत्रित करने के लिए एक उचित निगरानी निकाय का गठन किया जाना चाहिए। 

  • 3 - यदि कोई नीतियों का उल्लंघन करता है तो कानून में उसके लिए उचित दंड का प्रावधान किया जाना चाहिए। 

  • 4 - सरकार और गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से बायोडिग्रेडेबल बैग और गैर-प्लास्टिक सामग्री के उपयोग के लिए सार्वजनिक जागरूकता और सार्वजनिक जागरूकता और सार्वजनिक प्रेरणा को बढ़ावा देना सबसे महत्वपूर्ण है। प्रोफेसर राजगोपालन वासुदेवन, रसायन विभाग, थिआगराजार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, मदुरै, को भारत में पर्यावरण से प्लास्टिक कचरे के प्रभाव को कम करने में उनके व्यापक योगदान के लिए "प्लास्टिक मैन ऑफ इंडिया" के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने कॉलेज सीमा के अंदर एक सड़क का निर्माण किया जो प्लास्टिक कचरे और बिटुमेन यौगिक के मिश्रण से बनी थी। उनके द्वारा किये गये इस कार्य का परिणाम अत्यधिक सफल रहा और उन्होंने उपयोग की गई तकनीक में पेटेंट प्राप्त किया। अब भारत सरकार सड़कों के निर्माण में प्लास्टिक कचरे के उपयोग को अनिवार्य बना रही है क्योंकि इस कार्य में कम प्लास्टिक का उपयोग, सामग्री का सुदृढ़ बंधन, सड़क जीवन की दीर्घकालिक स्थिरता, अनुकूल पर्यावरण और रख-रखाव की कम लागत पाई जाती है। भारत के जमशेदपुर, में किये गए एक अन्य प्रयोग में बिटुमेन और प्लास्टिक कचरे को मिलाकर सड़कों का निर्माण किया गया था। 

दुनिया भर में प्लास्टिक कचरे की वर्तमान स्थिति और प्लास्टिक और माइक्रोप्लास्टिक कचरे को नियंत्रित करने के उपाय संलग्न चित्र में दर्शाए गए हैं। 

निष्कर्ष 

माइक्रोप्लास्टिक एक ऐसा प्रदूषक है जिसकी मात्रा में हो रही निरन्तर वृद्धि पूरे विश्व को प्रभावित कर रही है। यह मुख्य रूप से शहरी और उपनगरीय क्षेत्रों में प्लास्टिक प्रदूषण का मुख्य स्रोत हैं, जो अंततः नदियों, झीलों, समुद्रों और महासागरों जैसे जल निकायों में जा मिलते हैं। अपने आकार और जल निकायों में उपलब्धता के कारण, अक्सर समुद्री जीवों द्वारा तथा अप्रत्यक्ष रूप से मानव द्वारा समुद्री भोजन के रूप में इसका उपभोग किया जाता है। 

माइक्रोप्लास्टिक विषैले तत्वों जैसे DDT और हेक्साक्लोरोबेंजीन के वाहक या परिवहन के माध्यम होते हैं। दीर्घावधि तक माइक्रोप्लास्टिक का सेवन हमारे मानव गुणसूत्रों में परिवर्तन कर सकता है और यह बांझपन, मोटापा और यहां तक कि कैंसर का भी कारण बन सकता है। 

पर्यावरण में माइक्रोप्लास्टिक की उपस्थिति का पता लगाने के लिए ऑप्टिकल माइक्रोस्कोपी, इलेक्ट्रॉनिक माइक्रोस्कोप, एनएमआर, एफटीआईआर, रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी उपकरणों का उपयोग किया जाता है।

विभिन्न देशों और संगठनों द्वारा प्लास्टिक और माइक्रोप्लास्टिक के प्रभाव को कम करने के लिए विभिन्न नीतियां और कानून बनाए गए हैं। प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम 2016 के अन्तर्गत, भारत सरकार ने 50 माइक्रोन से कम मोटाई वाले प्लास्टिक बैग के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है। इस क्षेत्र में सार्वजनिक जागरूकता और सरकार और गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से बायोडिग्रेडेबल बैग और गैर-प्लास्टिक सामग्री के उपयोग के लिए सार्वजनिक प्रेरणा को बढ़ावा देना अत्यंत आवश्यक है। कोई भी व्यक्ति प्लास्टिक के उपयोग सम्बन्धी कानून का उल्लंघन न करे, यह सुनिश्चित करने के लिए सख्त दंड प्रावधानों का लागू किया जाना परम आवश्यक एवं अपरिहार्य है।

यह आलेख दो भागों में है -

सपंर्क करेंः डॉ. प्रशान्त कुमार साहू राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, रुड़की।

India Water Portal Hindi
hindi.indiawaterportal.org