तेलंगाना के संगारेड्डी ज़िले की नल्लाकुंटा झील का पानी रासायनिक प्रदूषण के चलते लाल होने से झील से खेतों की सिंचाई करने वाले दर्ज़नों किसानों की फसल खराब हो गई है। हाल ही में किसानों ने इसके खिलाफ़ प्रदर्शन किया।
तेलंगाना के संगारेड्डी ज़िले की नल्लाकुंटा झील का पानी रासायनिक प्रदूषण के चलते लाल होने से झील से खेतों की सिंचाई करने वाले दर्ज़नों किसानों की फसल खराब हो गई है। हाल ही में किसानों ने इसके खिलाफ़ प्रदर्शन किया। स्रोत: तेलंगाना टुडे

क्या फिर से नल्लाकुंटा झील को प्रदूषित कर रही है दवा कंपनी?

तेलंगाना के संगारेड्डी ज़िले की झील में ज़हरीले प्रदूषण का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने से चर्चा में आया मामला। एक दवा कंपनी पर 22 एकड़ में फैली झील को प्रदूषित करने का आरोप, किसानों की 300 एकड़ फसल पर पड़ रहा बुरा असर।
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तेलंगाना के संगारेड्डी ज़िले की नल्लाकुंटा झील का पानी लाल हो गया है। नतीजतन, इस झील से खेतों की सिंचाई करने वाले दर्ज़नों किसानों की खेती पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। झील का प्रदूषित पानी खेतों में जाने के कारण उनकी फसल भी खराब हो रही है। इसका एक वीडियो बीते दिनों सोशल मीडिया पर वायरल होने पर यह मामला सुर्खियों में आ गया। 

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, किसानों का आरोप है कि दवा फैक्‍ट्री से छोड़े गए खतरनाक केमिकल 22 एकड़ में फैली इस झील को प्रदूषित कर रहे हैं। झील का पानी इतना प्रदूषित हो गया कि झील के आसपास दम घोंटने वाली बदबू आ रही है। 

इस स्थिति पर वायरल हुए एक वीडियो की सच्चाई जानने के लिए बीबीसी की टीम ने दोमडुगु गांव का दौरा किया। रिपोर्ट के मुताबिक, टीम जब झील पहुंची, तो वहां इतनी भयंकर बदबू थी कि दो मिनट भी रुकना मुश्किल था। टीम ने नाक पर रुमाल बांधकर किसी तरह स्थिति का जायज़ा लिया। स्थानीय किसान स्वेच्छा रेड्डी ने बीबीसी टीम से कहा, "हवा और पानी दोनों की स्थिति बहुत खराब है. पर्यावरण को बिगाड़ने का अधिकार किसी को नहीं है।।

दवा कंपनी पर आरोप

स्‍थानीय किसानों का सीधे तौर पर आरोप है कि नल्लाकुंटा झील का पानी पास की फैक्ट्री के केमिकल वेस्ट से गंदा हुआ है। करीब पांच एकड़ में धान की खेती करने वाले किसान स्वेच्छा रेड्डी ने बीबीसी टीम को बताया, "प्रदूषित पानी दवा कंपनी हेटेरो ड्रग्स की यूनिट-1 से एयरफोर्स एकेडमी में आता है और वहां से नल्लाकुंटा झील तक पहुंचता है।"

हालांकि, हेटेरो ड्रग्स ने इन आरोपों से इनकार किया है। कंपनी प्रबंधन का कहना है कि हमारी यूनिट से कोई गंदा पानी बाहर नहीं जाता। हमारे पास ज़ीरो लिक्विड डिस्चार्ज सिस्टम है, जिसमें पानी साफ़ करके फैक्ट्री के अंदर ही इस्तेमाल कर लिया जाता है।"

300 एकड़ फसल हो गई बर्बाद

किसान बता रहे है कि नल्लाकुंटा झील पूरी तरह गंदी हो गई है। इस झील का गंदा पानी खेतों से होते हुए करीब 2 किलोमीटर दूर राजनाला झील में चला जाता है। इन झीलों के बीच करीब 300 एकड़ ज़मीन है, जहां किसान धान और सब्ज़ियां उगाते हैं। लाल रंग का गंदा पानी खेतों में जाने से धान की फ़सल खराब हो गई है। धान में दाना बनने का वक्त है, लेकिन दाना नहीं बन रहा। सिर्फ़ पत्ते आ रहे हैं। पूरी फसल बर्बाद हो गई है। इसके बारे में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भी बताया जा चुका है। 

साल 2013 में झील से हटाया गया था गंदा पानी

इससे पहले भी साल 2012 में भी नल्लाकुंटा झील हेटेरो से निकले पानी के कारण प्रदूषित हो गई थी। तब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से इस बात की शिकायत की गई थी, जिसकी जांच के बाद मार्च 2013 में हेटेरो कंपनी को नोटिस दिया गया था और उसे झील से दूषित पानी हटाने का आदेश दिया गया। उस वक्‍त भी कंपनी अपना पल्‍ला झाड़ रही थी, पर किसानों के आंदोलन के बाद सख्‍ती किए जाने पर कंपनी ने टैंकरों से अक्तूबर 2013 में झील से सारा गंदा पानी निकाला था।

किसान जयपाल रेड्डी के मुताबिक कई बार यह समस्या आ चुकी है। तकरीबन हर साल-दो साल में यह दिक्कत होती है, लेकिन इस बार हालात ज़्यादा खराब हैं। झील के पानी का रंग पूरी तरह लाल हो गया है।"

नल्लाकुंटा झील का पानी लाल होने को लेकर एक फार्मा कंपनी पर किसान आरोप लगा रहे हैं। उनका कहना है कि कंपनी के सीवेज से ही झील का पानी लाल हुआ है।
नल्लाकुंटा झील का पानी लाल होने को लेकर एक फार्मा कंपनी पर किसान आरोप लगा रहे हैं। उनका कहना है कि कंपनी के सीवेज से ही झील का पानी लाल हुआ है। स्रोत : तेलंगाना टुडे

क्‍या शैवाल और  बैक्टीरिया के कारण बदला झील का रंग?

हेटेरो ड्रग्स कंपनी के इंजीनियर नागराजू का कहना है कि झील का पानी सिर्फ़ प्रदूषण से लाल नहीं हुआ है। वह कहते हैं कि इसका कारण बैक्टीरिया, शैवाल और फंगस भी हो सकते हैं। लाल रंग बस झील के ऊपर की सतह पर दिख रहा है। झील के पानी से तेज़ बदबू आने और झाग के बारे में उन्होंने कहा कि यह घरों का गंदा पानी मिलने से भी हो सकता है। उन्होंने दोहराया कि उनकी कंपनी से झील में कोई रासायनिक गंदगी नहीं जाती है।

उधर, संगारेड्डी ज़िला प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के इंजीनियर कुमार पाठक ने कहा कि '’झील को लेकर पहले भी शिकायतें आई हैं। टास्क फोर्स ने जाकर जांच की है और झील की स्थिति देखी है। मामले की सुनवाई पूरी हो चुकी है, रिपोर्ट आनी बाकी है। पानी में बैक्टीरिया, फंगस या शैवाल होने को लेकर अभी कहना मुश्किल है। इसके लिए किसी बड़े संस्थान से अलग से जांच करानी होगी। झील के पानी को लेकर आगे की कार्रवाई टास्क फोर्स की रिपोर्ट आने के बाद तय की जाएगी।'’

बोंथापल्ली, इस्नापुर के तालाब भी हुए लाल

तेलंगाना टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, संगारेड्डी में कई दवा और रासायनिक कंपनियां कथित तौर पर भारी बारिश का फायदा उठाकर स्थानीय जल निकायों में बिना उपचार के अपशिष्ट (अनट्रीटेड सीवेज) छोड़ रही हैं। ऐसी ही एक घटना में बोंथापल्ली और इस्नापुर में तालाब लाल हो गए और उनका दूषित पानी धान के खेतों में बहने से किसानों की फसलें खराब हो गईं। साथ ही, किसानों में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी दखने को मिल रही हैं। 

प्रदूषित खेतों का वीडियो बनाने वाले एक किसान एम मंगैया के मुताबिक प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) के अधिकारियों ने उनकी शिकायतों को नज़रअंदाज़ कर दिया। किसानों और ग्रामीणों का आरोप है कि दवा और रसायन बनाने वाली कई कंपनियां पटनचेरु की झीलों, मंजीरा की एक सहायक नदी नक्का वागु और अन्य जलाशयों में प्रदूषित सीवेज छोड़ रही हैं।

साल 2020 में महाराष्‍ट्र की लोनार झील भी हुई थी लाल

एक रिपोर्ट के मुताबिक महाराष्ट्र के बुलढाना ज़िले की लोनार झील के पानी का रंग भी साल 2020 में अचानक बदल गया था। झील में पहली बार लाल रंग का पानी देखकर लोग हैरान हो गए थे। वैज्ञानिकों ने झील की जांच कर बताया था कि हैलोबैक्टीरिया और ड्यूनोनिला सलीना नाम के कवक (फंगस) की वजह से पानी का रंग लाल हुआ। 

उस वक्‍त आए निसर्ग तूफ़ान की वजह से हुई बारिश के कारण हैलोबैक्टीरिया और ड्यूनोनिला सलीना कवक झील की तलहटी में बैठ गए और पानी का रंग लाल हो गया। हालांकि, वैज्ञानिकों का यह भी कहना था कि लोनार झील का पानी लाल होने के पीछे और भी कई कारण हो सकते हैं। 

लोनार भारत की एकमात्र क्रेटर झील झील है। गोल आकार की इस झील का व्यास करीब 7 किलोमीटर और गहराई करीब 150 मीटर है। अनुमान है कि पृथ्वी से किसी करीब 10 लाख टन वज़न का उल्का पिंड के टकराने की वजह से यह झील बनी थी। खारे पानी वाली इस झील के बारे में स्‍थानीय ग्रामीण बताते हैं कि 2006 में यह सूख गई थी। उस वक्त गांव वालों ने झील की सतह में नमक का जमाव देखा था साथ ही अन्य खनिजों के छोटे-बड़े चमकते हुए टुकड़े भी देखे गए थे। हालांकि, कुछ ही समय बाद बारिश होने पर झील फिर से भर गई थी।

झील का प्रदूषित पानी आसपास के खेतों में बहकर जाने से करीब 10 हज़ार किसानों की फसलें बर्बाद हुई हैं।
झील का प्रदूषित पानी आसपास के खेतों में बहकर जाने से करीब 10 हज़ार किसानों की फसलें बर्बाद हुई हैं। स्रोत: तेलंगाना टुडे

विदेशी झीलों में भी हुई हैं ऐसी घटनाएं

तेलंगाना में नल्लाकुंटा झील की तरह विदेशों में भी झीलों का पानी लाल होने की घटनाएं देखने को मिल चुकी हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, हाल ही में इज़राइल की मशहूर ताज़े पानी की झील ‘सी ऑफ गैलीली’ अचानक लाल हो गई थी। करीब ढाई महीने पहले अगस्‍त 2025 में हुई इस घटना ने लोगों को हैरान और चिंतित कर दिया था। 

हालांकि, इस बदलाव का कारण कोई रासायनिक प्रदूषण नहीं, बल्कि एक प्रकृतिक घटना थी। बोट्रियोकोकस ब्राउनी नाम के शैवाल के कारण यह घटना हुई थी। इस शैवाल ने झील के पानी में बड़ी मात्रा में लाल रंग के प्राकृतिक पिगमेंट का निर्माण किया। यह शैवाल कुछ खास स्थितियों में सूरज की रोशनी में इस रंग को पैदा करता है, जिससे पानी का रंग लाल दिखने लगता है। 

शैवाल पानी में नाइट्रोजन और फॉस्फोरस जैसे पोषक तत्‍वों की मात्रा बढ़ने पर उनकी की मदद से बहुत तेज़ी से बढ़ने लगाता है। ऐसी स्थिति में इसका लाल रंगीन पिगमेंट पानी की सतह पर जमा होकर झील को रंगीन कर देता है। गैलीली झील में भी यही हुआ था। 

दक्षिण अमरीका महाद्वीप के देश आर्जेंटीना में करीब चार साल पहले एक विशाल झील के पानी के गुलाबी होने की घटना सामने आई थी। जुलाई 2024 के अंतिम सप्‍ताह में दक्षिणी पटागोनिया इलाके में स्थित कोर्फो झील के पानी का रंग अचानक बदल गया था। इस झील के गुलाबी होने की वजह सोडियम सल्‍फेट केमिकल को बताया गया था। 

सोडियम सल्‍फेट एक ऐंटी-बैक्टिरियल प्रॉडक्‍ट है, जिसका इस्‍तेमाल मछलियों की फैक्‍ट्री में पैकेजिंग के दौरान मछलियों और झीगों को सड़ने से बचाने और उनकी शेल्‍फ लाइफ बढ़ाने के लिए किया जाता है। विशेषज्ञों के मुताबिक झील से कुछ दूरी पर स्थित मछलियों की प्रोसेसिंग फैक्‍ट्री से निकलने वाले अपशिष्‍ट पदार्थ को चूबूत नदी में छोड़ने के कारण यह घटना हुई थी। इस नदी का पानी कोर्फो झील में जाता है, जिसके चलते यह घटना हुई।

अफ्रीका के देश तंज़ानिया में केन्या सीमा के पास स्थित लेक नैटरॉन भी अपने लाल रंग के पानी के लिए मशहूर है। इस झील का पानी इतना ज्‍़यादा क्षारीय और गर्म है कि अधिकांश जीव-जंतु यहां जीवित नहीं रह पाते। एक रिपोर्ट में बताया गया है कि नैटरॉन झील में ज्वालामुखीय खनिजों और सोडियम कार्बोनेट की मात्रा बहुत अधिक है, जो इसे अत्यधिक क्षारीय (एल्कलाइन) बना देते हैं। 

लेक नैटरॉन के पास स्थित ओल दोइन्यो लेंगई दुनिया का इकलौता कार्बोनटाइट ज्वालामुखी है, जिसके सोडियम कार्बोनेट और अन्‍य खनिज झील में घुलते हैं, तो झील का पानी अत्यधिक क्षारीय बन जाता। इस क्षारीय पानी में साइनोबैक्टीरिया नाम के सूक्ष्म जीवाणु पनपते हैं। झील के लाल-गुलाबी रंग की असली वजह यह जीवाणु ही हैं। 

बहुत ज़्यादा नमक वाले पानी में पैदा होने वाले ये बैक्‍टीरिया रंगीन पिगमेंट छोड़ते हैं, जिससे झील का पानी खून जैसा लाल दिखने लगता है। लेक नैटरॉन का पानी इतना क्षारीय है कि जो पक्षी या छोटे जानवर गलती से इसमें गिर जाते हैं, उनकी त्वचा जल जाती है और शरीर सूखकर ममी जैसा हो जाता है। इस वजह से इसे “जानलेवा झील” कहा जाता है। हालांकि, दिलचस्‍प बात यह है कि यह घातक झील पूर्वी अफ्रीका के लेसर फ्लेमिंगो पक्षियों का एकमात्र प्रमुख प्रजनन स्थल है। हर साल लाखों फ्लेमिंगो यहां अंडे देते हैं। झील के खारे पानी में पनपने वाली स्पिरुलिना नाम की काई उनका मुख्य आहार है, जो इन पंछियों को उनकी गुलाबी रंगत देती है।

इसी तरह रूस के साइबेरिया इलाके में स्थित बरलिंस्कोई झील का रंग भी कई बार लाल या गुलाबी हो जाता है। इस कारण इसे का पिंक लेक भी कहा जाता है। 18 मई 2023 को प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक झील का वीडियो इंटरनेट पर खूब वायरल हुआ था। इस वीडियो में एक ट्रेन खून की तरह लाल रंग के पानी वाली उथली झील के बीच बनी पटरियों पर चलती नजर आ रही थी। लेक बरलिंस्कोई रूस और कज़ाकिस्तान की सीमा पर स्थित है।

गर्मी के दिनों में इस झील का रंग आर्टेमिया सलीना नाम के सूक्ष्‍म जीवों की संख्या काफ़ी बढ़ जाने के कारण लाल हो जाता है। इन बैक्‍टीरिया द्वारा छोड़े जाने वाले लाल रंग के पिगमेंटेशन की वजह से झील के पानी का रंग बदल जाता है।

इन लाल रंग की झीलों की तरह ही जॉर्डन और इज़राइल के बीच स्थित लाल सागर, जिसे मृत सागर या डेड सी और सॉल्‍ट सी के नाम से भी जाना जाता है, में भी पानी पूरी तरह से लाल होने की घटना समय-समय पर देखने को मिलती है। यह सागर वास्‍तव में एक झील ही है, जिसे इसके विशाल आकार के कारण लाल सागर का नाम दे दिया गया है।

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