साहिबी नदी कैसे बन गई दिल्ली का सबसे प्रदूषित नज़फगढ़ नाला
दिल्ली में में बहने वाली नदी के रूप में आज ज़्यादातर लोग केवल यमुना को ही जानते हैं। कम ही लोगों को पता है कि दिल्ली में एक और भी नदी बहती है, जिसमें 1977 में आई बाढ़ में दिल्ली डूब गई थी। लोगों को भला पता भी कैसे हो, क्योंकि आज यह नदी एक नाले में बदल चुकी है और इसे नाम दे दिया गया है नज़फगढ़ नाला। यह नाला वास्तव में एक नदी है, जिसका नाम है साहिबी।
लंबे समय से चली आ रही सरकारी अनदेखी और बदइंतज़ामी ने एक ज़माने में राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली के इलाकों को सींचने और पानी पिलाने वाली साहिबी नदी को नाला बना कर रख दिया। अच्छी बात यह है कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने अब इसपर सख्ती दिखाते हुए साहबी नदी को नाला मानने से इनकार कर दिया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक एनजीटी ने केंद्र और हरियाणा सरकार से इसकी दशा सुधार कर फिर से नदी के रूप में लाने का निर्देश दिया है।
एनजीटी ने दोनों सरकारों से इसके लिए एक ठोस कार्य योजना देने को कहा है। एनजीटी ने अपने आदेश में कहा कि साहबी एक नदी है और इसके पुनरुद्धार के लिए विस्तृत योजना की आवश्यकता है। एनजीटी के इस सख्त आदेश से नाला बन चुकी साहिबी नदी के संरक्षण की उम्मीद जगी है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक मसानी बराज से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए एनजीटी की प्रधान पीठ में शामिल न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी (न्यायिक सदस्य) और डाॅ. अफरोज़ अहमद (विशेषज्ञ सदस्य) ने सुनवाई के दौरान कहा कि साहिबी नदी का मूल स्वरूप ‘नजफगढ़ ड्रेन’ के नाम के पीछे दब गया है। यह इस नदी के साथ ही पर्यावरण के साथ भी एक बड़ी नाइंसाफी है।
साहिबी नदी एक स्वतंत्र प्राकृतिक जलधारा है। इसलिए इसे नाला या ड्रेन कहना एक नदी की आत्मा का अपमान है। सरकार को इस नदी के मूल नाम और स्वरूप को पुनर्स्थापित करना चाहिए। एनजीटी ने केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भी संबंधित पक्ष के रूप में शामिल करते हुए रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं।
एनजीटी ने अपने आदेश में कहा, ‘हरियाणा सरकार दो सप्ताह के भीतर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करे। साथ ही, केंद्र का पर्यावरण मंत्रालय भी साहिबी को नदी के तौर पर पुनर्स्थापित करने और उसके पुनरुद्धार पर अपना पक्ष रखे। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड नदी में प्रदूषण के स्रोतों की पहचान कर उसके समाधान की ठोस योजना पेश करे।’
कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 31 अक्टूबर 2025 को तय की है। राज्य और केंद्र सरकार को इससे पहले ही अपनी रिपोर्ट दाखिल करनी होगी। साहिबी नदी में प्रदूषण से पैदा हुए गंभीर पर्यावरणीय संकट को लेकर रेवाड़ी के गांव खरखड़ा के रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता प्रकाश ने याचिका दायर की थी। करीब तीन साल पहले 2022 में दायर इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए एनजीटी ने यह निर्देश जारी किए हैं।
मसानी बैराज बनने के बाद शुरू हुई बर्बादी
भयंकर प्रदूषण की चपेट में आकर आज नज़फगढ़ नाले के नाम से जानी जाने वाली साहिबी नदी को कभी दक्षिण हरियाणा की जीवनरेखा कही जाती थी। यह नदी अरावली की पहाड़ियों से निकलकर धारूहेड़ा और रेवाड़ी होते हुए मसानी बराज तक निर्मल जल लेकर बहती थी। पर, आज औद्योगिक कचरे और सीवरेज के जहरीले मिश्रण से भरने के कारण इसका पानी पूरी तरह से काला और भयंकर बदबूदार हो गया है।
जागरण की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस नदी की बर्बादी की कहानी दअरसल मसानी बैराज बनने के बाद ही शुरू होती है। दिल्ली और हरियाणा के बड़े हिस्से में वर्ष 1977 में आई बाढ़ के बाद रेवाड़ी के मसानी गांव के पास इस नदी पर बैराज बनाया गया। इस बैराज के बनने के बाद नदी में पानी का प्रवाह बुरी तरह प्रभावित बाधित हुआ। इससे नदी की रफ्तार थमने लगी और गाद का जमाव होने लगा, जिसने न केवल इसकी धारा को कमज़ोर कर दिया बल्कि नदी बेसिन के दायरे को भी समेट दिया है।
धारूहेड़ा के पास स्थित मसानी बैराज बनने से नदी का प्रवाह थम सा गया है। इसके चलते, बैराज के बाद नदी का मार्ग एक पतली और कमज़ोर सी धारा के रूप में दादरी तोए गांव से गुज़रता है। इसके बाद, हरियाणा सीमा पर बहने वाला नजफगढ़ ड्रेन सिस्टम का नाला आउटफॉल ड्रेन नंबर 8 साहिबी में पानी छोड़ता है।
नदी के दिल्ली में दाखिल होने से पहले गुरुग्राम के बादशाहपुर और धरमपुर नाले भी साहिबी में दूषित जल छोड़ते हैं। इसके बाद साहिबी दिल्ली में प्रवेश करती है और 126 छोटे-बड़े नालों के पानी से और भी मैली होकर वजीराबाद बैराज के पास यमुना में मिल जाती है।
गांवों में फैल रही बीमारियां, घट रही उर्वरता
रिपोर्ट के मुताबिक, साहिबी नदी में छोड़ा गया प्रदूषित जल, सीवरेज और औद्योगिक अपशिष्ट का ज़हर कई जगह आस-पास के गांवों तक फैल गया है। खासकर खरखड़ा, मसानी, भटसाना, ततारपुर खालसा, खलियावास, तितरपुर, जीतपुरा, आलावलपुर, जड़थल, खिजुरी, धारूहेड़ा आदि का भूजल नदी के रसायनिक प्रदूषण वाले दूषित जल के कारण ज़हरीला होता जा रहा है।
खतरनाक रासायनिक प्रदूषण वाला नदी का दूषित जल इन गांवों के भूजल से मिलकर लोगों में तरह-तरह की बीमारियां और स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर रहा है। लोगों को त्वचा एवं श्वसन संबंधी बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है। इन क्षेत्रों में टीडीएस, फ्लोराइड, आयरन और मैग्नीशियम की मात्रा खतरनाक स्तर तक पहुंचने के कारण खेती की जमीन की उर्वरता घट रही है और किसानों के मवेशी बीमार पड़ रहे हैं।
ज़मीन की उर्वरता घटने और उसमें रसायनों के जमाव के चलते इन इलाकों में अब खेती केवल गेहूं और बाजरा की कुछ प्रतिरोधक किस्मों तक सीमित हो गई है। पारंपरिक रूप से सर्दियों में नदी किनारे गीली मिट्टी में उगाया जाने वाला चना अब नदी के सूखने के कारण पनप नहीं पा रहा है। इस तरह साहिबी नदी के प्रदूषण से लोगों के स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए गंभीर संकट पैदा हो गया है।
नदी से झील और फिर नाला बनने की कहानी
साहिबी नदी राजस्थान के सीकर जिले की सूखी पहाड़ियों से निकलती है। राजस्थान में इसे सोथन नदी या साबी नदी भी कहा जाता है। अपने लगभग 300 किलोमीटर के सफ़र में यह जयपुर, अलवर, हरियाणा और दिल्ली से होकर गुजरती है। बुरी तरह प्रदूषित हो जाने के चलते हरियाणा में इसे ओटा नाला और दिल्ली क्षेत्र में नजफ़गढ़ नाला के नाम से जाना जाता है।
कुछ इतिहासकार साहिबी नदी को ऋग्वेद और मनुस्मृति जैसे प्राचीन हिंदू ग्रंथों में वर्णित दृषद्वती नाम की नदी से जोड़ कर देखते हैं। कुछ शोधकर्ता इसे “लुप्त सरस्वती की सहायक नदी” मानते हैं। इनके मुताबिक इस नदी के तट पर ही वैदिक सभ्यता के कुछ महत्वपूर्ण स्थल विकसित हुए थे।
एक पुरातात्त्विक रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक साहिबी नदी के आसपास जोधपुर, जदोपुरा के कुछ क्षेत्रों में हुई खुदाई में चाक पर बने बर्तन और हस्तशिल्प के नमूने पाए गए हैं, जिन्हें 3309--2384 इस्वी पूर्व का माना गया है। इसके आधार पर कुछ शोधकर्ता सिंधु घाटी सभ्यता की ही तरह साहिबी नदी घाटी में सिंधु-सरस्वती सभ्यता के होने की बात भी कहते हैं। हालांकि, यह बात पुख्ता पुरातात्विक प्रमाणों के आधार पर अभी तक स्थापित नहीं की जा सकी है।
इसके बावजूद इतना तो तय है कि साहिबी नदी कई शताब्दियों तक एक महत्वपूर्ण मौसमी नदी के रूप में एक बड़े इलाके में पशुपालन, खेती और पीने के पानी की जरूरतों को भी पूरा करती रही। कई तरह की मछलियों से भरी नदी न केवल पारिस्थितिक विविधता में इजाफा करती थी, बल्कि हज़ारों मछुआरों के परिवारों को आजीविका भी उपलब्ध कराती थी। इस पूरे इलाके के लिए यह नदी कितनी महत्वपूर्ण थी, इसे इलाके में प्रचलित एक कहावत के ज़रिये समझा जा सकता है-
अकबर बांधी ना बंधू, ना रेवाड़ी जाऊं,
कोट तला कर नीकसूं, साबी नांव कहाऊं।
इसका मतलब कुछ इस तरह है - साहिबी नदी कह रही है कि मैं बादशाह अकबर के बांधने (बांध बनाने) से नहीं बंधूंगी और न ही अपना रास्ता बदल कर रेवाड़ी जाऊंगी। मैं कोटकासिम के पास से निकलती हूं और साबी नाम से जानी जाती हूं। यह कहावत उस किंवदंति पर आधारित है, जिसके मुताबिक मुगल शासक अकबर साहिबी नदी पर बांध बना कर इसे रेवाड़ी शहर की ओर ले जाना चाहता था, पर उसको इसमें सफलता नहीं मिली।
एक रिपोर्ट के मुताबिक मुगल काल में आए एक शक्तिशाली भूकंप के कारण हुए ज़मीनी सतह में हुए भौगोलिक बदलाव से दिल्ली तक साहिबी का बहाव कम हो गया। इस कारण नदी का पानी नज़फगढ़ के पास एक जगह जमा होने लगा। इससे यहां नज़फगढ़ झील बन गई। यह करीब 300 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैली एक विशाल मौसमी झील थी, जो मानसूनी बारिश के पानी को सोख कर साफ पानी के एक स्रोत के रूप में काम करती थी। इसके आसपास एक बड़ा इलाका आर्द्रभूमि यानी वेटलैंड में बदल गया।
19वीं सदी ब्रिटिश काल में यहां शुरू हुई खेती-बारी और औद्योगिक गतिविधियों ने इस वेटलैंड को सुखाना शुरू कर दिया। इसके साथ ही आसपास के इलाकों में बसावटें होने से इस झील में घरों का मैला पानी आकर गिरने लगा। उद्योगों का सीवेज भी झील में गिराया जाने लगा। इससे झील में हुए ओवरफ्लो ने इसे फिर से एक धारा में बदल दिया। पर, उद्योगों के बढ़ते रासायनिक प्रदूषण ने आखिरकार इसे एक नाल बना कर रख दिया।
आज साहिबी अपने इसी विकृत स्वरूप में देखने को मिलती है और एक नाले के रूप में बहती हुई यमुना में मिल जाती है। इस नज़फगढ़ नाले को ही आज यमुना को सबसे ज़्यादा प्रदूषित करने वाला बताया जाता है।
पिछले साल इनटेक ने तैयार किया था सैटेलाइट मैप
साहिबी नदी के महत्वपूर्ण अतीत और इसके पर्यावरणीय महत्व को देखते हुए विरासतों के संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्था इनटेक (इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चर हैरिटेज) ने पूरे साहिबी नदी बेसिन का एक नक्शा तैयार किया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक करीब दो साल पहले 2023 में सैटेलाइट से प्राप्त तस्वीरों के जरिये पहली बार खोई हुई साहिबी नदी का नक्शा तैयार किया गया है।
इस मैपिंग के लिए उपग्रह से खींची गई तस्वीरों का जीआईएस सॉफ्टवेयर की मदद से विश्लेषण करके करीब 317 किलोमीटर लंबी नदी का मानचित्र तैयार किया गया था। इस नक्शें में राजस्थान के सीकर जिले नदी के उद्गम से लेकर हरियाणा में इसके बहाव और फिर दिल्ली इसके यमुना में समा जाने तक के पूरे रूट को दिखाया गया है।
इससे पता चलता है क किस तरह यह नदी पूरे इलाके का बारिश का पानी एकत्रित कर नजफगढ़ झील के रास्ते यमुना तक पहुंचती थी। इस नक्शे की मदद से साहिबी नदी को पुनर्जीवित करने के प्रोजेक्ट में मदद मिलने की उम्मीद है।
पहले भी हुए हैं पुनर्जीवित करने प्रयास
एनजीटी के इस सख्त निर्देश से पहले भी साहिबी नदी को ज़िंदा करने के कुछ प्रयास हुए हैं, पर दुर्भाग्यवश इनका कोई ठोस नतीजा निकलता नहीं दिखा। एक खबर के मुताबिक दिल्ली और हरियाणा दोनों राज्यों की सरकारों ने इसे लेकर सक्रियता दिखाई थी। दिल्ली सरकार ने नज़फगढ़ नाले को उसका ऐतिहासिक नाम साहबी नदी देकर पुनर्जीवित करने की योजना तैयार करना शुरू किया। उधर, हरियाणा सरकार भी मसानी बैराज से नीचे बहने वाली इस नदी की 11 किलोमीटर लापता धारा को खोजने को लेकर सक्रिय हुई।
दिल्ली के सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग ने एनजीटी को पिछले साल एक रिपोर्ट में सूचित किया था कि नज़फगढ़ नाले का नाम आधिकारिक तौर पर साहबी नदी करने का प्रस्ताव है, ताकि जनता को इसके प्रति जागरूक कर उनसे समर्थन और सहयोग से इसे पुनर्जीवित किया जा सके। इसमें कई तरह के कार्यक्रमों के आयोजन के अलावा साहिबी नदी पर कई सेल्फी प्वाइंट बना कर लोगों में इसके प्रति रुझान पैदा करने का उपाय भी शामिल था।
डाउन टू अर्थ की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2022-23 में बनी योजना के महत पहले दिल्ली में तिमारपुर और बसई दारापुर के बीच 12 किलोमीटर तक नदी को पुनर्जीवित किया जाना। इसके बाद राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) की सीमा के भीतर नदी के 57 किलोमीटर लम्बे हिस्से को पुनर्जीवित कर जलमार्ग के रूप में विकसित किया जाना था। इसके लिए नदी तल की सफाई से लेकर गाद निकालने और तटबंधों की बहाली तक की योजना बनाई गई थी।
गाद निकालने और तटबंधों की बहाली का काम सिंचाई विभाग को करना था, जबकि पूरे एनसीआर के इलाके में 126 नालों को नदी में गिरने से रोकने और नदी के पानी के ट्रीटमेंट का काम दिल्ली जल बोर्ड को सौंपा गया था।
इसके अलावा, पर्यटन विभाग को नदी पर यात्री और मालवाहक नौकाओं के संचालन की जिम्मेदारी निभानी थी। पर, दिल्ली में नदी का असली कायाकल्प दो पड़ोसी राज्यों राजस्थान और हरियाणा में इसके पुनरोद्धार पर निर्भर होने और इसे लेकर तीनों राज्यों की सरकारों के बीच पर्याप्त समन्वय न स्थापित हो पाने के कारण इस योजना को धरातल पर नहीं उतारा जा सका।