दशकों पहले 'बायलॉजिकली डेड' घोषित की जा चुकी फ्रांस की राजधानी पेरिस में बहने वाली सीन नदी को करीब सौ साल बाद लोगों केा तैरने व नहाने के लिए एक बार फिर से खोल दिया गया है।
दशकों पहले 'बायलॉजिकली डेड' घोषित की जा चुकी फ्रांस की राजधानी पेरिस में बहने वाली सीन नदी को करीब सौ साल बाद लोगों केा तैरने व नहाने के लिए एक बार फिर से खोल दिया गया है।स्रोत: france24.com

जानिए कैसे सौ साल बाद 'ज़िंदा' हो उठी एक 'मुर्दा' नदी

रंग लाया दशकों तक चला सफाई अभियान, एक सदी बाद तैराकी के लिए फिर से खोली गई सीन नदी, इससे पहले 1924 के ओलंपिक में इस नदी में हुआ था तैराक प्रतियोगिताओं का आयोजन।
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फ्रांस की राजधानी पेरिस सीन नदी के किनारे बसी हुई है। इस नदी को 1923 के बाद पहली बार 5 जुलाई 2025 को सार्वजनिक रूप से तैराकी व नहाने के लिए खोल दिया गया। सौ साल से भी ज़्यादा के अंतराल के बाद जनता के लिए खोली गई सीन नदी को तीन नियंत्रित ज़ोन, ब्रास मारी, आइफ़ल टावर के पास और पूर्वी पेरिस ज़ोन में बांट कर प्रत्‍येक ज़ोन में प्रतिदिन 1,000 से अधिक लोगों को नदी में तैरने की अनुमति दी गई है और यह व्यवस्था 31 अगस्त तक चलेगी ।

ओलंपिक की प्रेरणा से सफाई ने पकड़ी रफ्तार

सौ साल बाद सीन नदी को लोगों के लिए फिर से खोले जाने के पीछे ओलंपिक खेलों ने एक मज़बूत प्रेरणा का काम किया, क्‍योंकि इसका इतिहास ओलंपिक से जुड़ा हुआ है। सीन नदी का आखिरी सार्वजनिक इस्‍तेमाल 1924 के ओलंपिक खेलों में हुआ था, जब इस नदी में तैराकी प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया था। ठीक सौ साल बाद जब 2024 में पेरिस ओलंपिक का आयोजन तय हुआ, तो फ्रांस की सरकार ने इसे साफ करने के लिए कमर कस ली थी। 

हालांकि, नदी को साफ करने के प्रयास 1990 के दशक से ही चल रहे थे, जब यूरोपीय संघ ने शहरी अपशिष्ट जल से निपटने के लिए कानून पारित किया था। इसके तहत ग्रेटर पेरिस सैनिटेशन अथॉरिटी ने सीवर सिस्टम को अपडेट करने का काम शुरू किया। काम की प्रगति अच्‍छी रही। नतीजतन, 2015 में फ्रांस सरकार ने 1924 के ओलंपिक तक सीन को तैरने के लिए सुरक्षित बनाने की घोषणा की। 

ओलंपिक खेलों ने सीवर सिस्टम के नवीनीकरण में तेजी लाने के लिए अतिरिक्त प्रोत्साहन दिया और नदी की सफाई के काम में अभूतपूर्व तेजी आई। ओलंपिक खेलों से पहले नदी को 'पुनर्जीवित' करने के लिए सरकार ने खजाना खोल दिया। नई मशीनरी और नई तकनीकों के इस्‍तेमाल में काई आर्थिक बाधा नहीं आने दी गई। 

काम में तेज़ी लाने के लिए नदी की सफाई में लगे विभिन्‍न निकायों के बीच बेहतरीन समन्‍वय स्‍थापित किया गया। इन प्रयासों के चलते 31 जुलाई 2024 को ओलंपिक खेलों के लिए तैराकी के ट्रायथलॉन और मैराथन स्विमिंग प्रतियोगिताएं सीन में आयोजित की जा सकीं। नतीजे सार्थक रहे और कैरन व विक्टोरिया जैसे विश्‍व स्‍तरीय तैराकों ने पानी की सफाई, ग्रीन फ्लैग सिस्टम, लाइफगार्ड सुविधाओं की प्रशंसा की। 

हालांकि, कुछ लोगों ने एल्गी और रेतयुक्त परिस्थितियों के बारे में आशंकाएं भी व्यक्त की, जिसके बाद इस दिशा में काम करते हुए पानी की गुणवत्‍ता को और सुधार कर इस स्‍तर पर लाया गया कि इसे आमजन के लिए खोला जा सके।

राजनीतिक व आर्थिक इच्छाशक्ति

किसी भी नदी को फिर से जीवन देने की प्रक्रिया केवल तकनीकी प्रयासों से पूरी नहीं होती, इसके लिए मजबूत राजनीतिक संकल्प और निरंतर आर्थिक निवेश चाहिए होता है। सीन नदी इसकी बेहतरीन मिसाल है, जिसे फिर से जीवित करने के लिए फ्रांस सरकार ने बीते एक दशक में 1.4 अरब यूरो यानी करीब 1.3 खरब रुपये खर्च किए गए।

इतनी बड़ी रकम खर्च करके हजारों घरों को सीवर लाइन से जोड़ा गया, वेस्टवाटर प्लांट अपग्रेड किए गए और स्टॉर्म वाटर बेसिन बनाए गए। इतना बड़ा बजट तभी सम्भव है जब नीति-निर्माता इसे केवल पर्यावरणीय मसला न मानकर जनस्वास्थ्य, पर्यटन, संस्कृति और आर्थिक विकास से जोड़कर देखें।

दशकों तक चले सफाई अभियान के बाद आखिरकार फ्रांस सरकार ने विश्‍व प्रसिद्ध सीन नदी को प्रदूषण मुक्‍त करने में कामयाबी हासिल कर ली है।
दशकों तक चले सफाई अभियान के बाद आखिरकार फ्रांस सरकार ने विश्‍व प्रसिद्ध सीन नदी को प्रदूषण मुक्‍त करने में कामयाबी हासिल कर ली है। स्रोत: rivieratravel.co.uk

इतिहास पर एक नज़र : कैसे 'डेड' हुई सीन नदी, कैसे हुआ उद्धार

सीन नदी की बायोलॉजिकल मौत का सबसे बड़ी वजह बना औद्योगिक कचरा। 19वीं सदी के मध्य से सीन नदी औद्योगिक और मानव अपशिष्ट की कब्रगाह बनती चली गई। औद्योगिक प्रदूषण के शुरुआती वर्षों में नदी के सीवेज युक्‍त पानी का इस्‍तेमाल जलापूर्ति के बजाय खेतों की सिंचाई में करके काम चलाया गया। पर सीवेज को रोकने या ट्रीटमेंट के इंतज़ाम न किए जाने के कारण सीन नदी धीरे-धीरे एक 'खुला नाला' बन कर रह गई और कुछ ही वर्षों बाद इसका पानी खेती के इस्‍तेमाल लायक भी नहीं रह गया।

एनबीसी की ए‍क रिपोर्ट के मुताबिक 1970 के दशक में लगभग 60% सीवेज बिना ट्रीटमेंट नदी में छोड़ा जाता था। इससे 1970–75 के दौरान सीन का ऑक्सीजन स्तर जीवित रहने की न्यूनतम सीमा तक पहुंच गया। इसमें मछली की केवल 3 प्रजातियां रूटस रूटिलस / स्कॉल्डर इरिथ्रोफ्थाल्मस (रॉच / चेरी रोच), एबरना ब्रामा (कॉमन ब्रीम), एंगेविला एंगुइला (ईल) ही बचीं। क्‍योंकि ये प्रजातियां ऑक्सीजन की कमी को बर्दाश्त कर सकती थीं। इनके अलावा अधिकांश मछलियां, जलीय जीव और वनस्‍पतियां नष्‍ट हो गईं।

लगभग डेढ़ दशक तक यह स्थिति बनी रहने के बाद 1990 के आसपास यूरोपियन यूनियन (EU) के निर्देशों के बाद ट्रीटमेंट संयंत्रों का पुनर्निर्माण शुरू हुआ । नतीजतन, 2020 के दशक की शुरुआत तक नदी में मछली की 32 प्रजातियां दिखने लगीं।

सरकारी व प्राइवेट साझेदारी यानी पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP), तकनीकी नवाचार, सामुदायिक सहभागिता और सतत़ निगरानी के कुशलतापूर्ण संयोजन ने नदी को साफ करने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई। स्वास्थ्य बोर्डों, एनजीओ, कॉर्पोरेट सेक्‍टर (मैकिन्से कंसल्‍टेंसी परामर्श) और स्थानीय भागीदारों ने मिलकर हर स्तर पर कार्य किया ।

BASF, बायर, होस्ट (Hoechst) जैसी कंपनियों ने अकसर कानूनी सीमा से भी आगे बढ़कर स्वेच्छा से अपने इंडस्ट्रियल सीवेज में कटौती की। इन समन्वित प्रयासों के ज़रिये दशकों से जड़ें जमाए प्रदूषण को खत्‍म कर सीन नदी को तैराकी योग्य बनाने के लिए उन्नत वेस्टवॉटर ट्रीटमेंट प्लांट, स्टॉर्म वाटर रिटेंशन टैंक और E.coli जैसी जीवाणु जांच की रियल-टाइम मॉनिटरिंग प्रणाली लागू की गई। लंदन में टाइडवे टनल जैसे मेगाप्रोजेक्ट और बर्लिन के इंटरसेप्टर सीवर सिस्टम की मदद से इस मुश्किल काम को अंजाम दिया गया।

मौजूदा जल गुणवत्ता और निगरानी व्यवस्था

सीन नदी को तैराकी के लिए खोलने के लिए इसमें ICPR और EU दिशा-निर्देशों के तहत, मौसम आधारित फ्लैग सिस्टम (ग्रीन/रेड) और e‑DNA व रिमोट-सेंसिंग जैसी उन्‍नत तकनीकों पर आधारित आधुनिक निगरानी प्रणालियों को शामिल किया गया, जिसे "ग्रीन/रेड फ्लैग सिस्टम" कहा जाता है। इस प्रणाली में प्रतिदिन पानी में ई कोलाई (E.coli) और एंटेरोकोक्कस जैसे हानिकारक जीवाणुओं की जांच कर उनके स्तर के आधार पर ही सार्वजनिक तैराकी की अनुमति तय की जाती है।

यदि पानी की गुणवत्ता सुरक्षित सीमा के भीतर पाई जाती है, तो "ग्रीन फ्लैग" के ज़रिए लोगों को तैराकी की अनुमति दी जाती है। यदि प्रदूषण स्तर बढ़ा हुआ होता है, तो "रेड फ्लैग" के तहत तैराकी अस्थायी रूप से रोक दी जाती है। हालांकि, भारी वर्षा के दौरान सीवर ओवरफ्लो होने की समस्या अब भी बनी हुई है, क्‍योंकि भारी बारिश होने पर सीवर प्रणाली अतिरिक्त जल की मात्रा नहीं संभाल पाती और गंदा पानी सीधे नदी में मिल जाता है।

इसका प्रभाव पानी की गुणवत्ता पर तुरंत पड़ता है और संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। उदाहरण के लिए, जून 2024 में पेरिस में आयोजित ट्रायथलॉन प्रतियोगिता को इसी कारण एक दिन के लिए स्थगित करना पड़ा था, क्योंकि भारी बारिश के बाद नदी का जल स्तर और उसमें मौजूद बैक्टीरिया की मात्रा खतरनाक सीमा तक पहुंच गई थी।

ऐसी चुनौततियों से निपटने के लिए पेरिस प्रशासन ने व्यापक इंफ्रास्ट्रक्चर सुधार किए। हजारों घरों और सैकड़ों हाउसबोट्स को नए सीवर नेटवर्क से जोड़ा गया, ताकि उनका गंदा पानी सीधे नदी में न जाने पाए। इसके अलावा कई स्टॉर्मवॉटर रिटेंशन बेसिन बनाए गए हैं, जो बारिश के समय अतिरिक्त पानी को जमा करके धीरे-धीरे ट्रीटमेंट यूनिट्स में पहुंचाते हैं। इससे वर्षा-जनित प्रदूषण पर काफी हद तक नियंत्रण पाया गया है, हालांकि 100% समाधान अभी भी चुनौती बना हुआ है।

सीन नदी को सार्वजनिक उपयोग के लिए दोबारा खोले जाने के बाद अब इसमें एक बार फिर से लोगों की चहल-पहल देखने को मिल रही है।
सीन नदी को सार्वजनिक उपयोग के लिए दोबारा खोले जाने के बाद अब इसमें एक बार फिर से लोगों की चहल-पहल देखने को मिल रही है। स्रोत: prakharkhabar.com

दुनिया भर में नदियों को मिल रही नई ज़िंदगी

फ्रांस की सीन नदी की तरह ही दुनिया के विभिन्‍न देशों में कई नदियों को पुनर्जीवित करने के अभियान चलाए जा चुके हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक ‘बॉयोलॉजिकली डेड' घोषित होने के दशकों बाद इन नदी को पुन: 'लाइव' किया जा चुका है-

1. थेम्स नदी (लंदन) : साल 1957 में थेम्स बायोलॉजिकली डेड घोषित हुई, लेकिन 1960 के बाद सीवेज ट्रीटमेंट और ऑक्सीनेटर तकनीकों से इसे पुनर्जीवित किया गया। आज इसमें मछलियों की लगभग 125 प्रजातियां और साफ पानी मौजूद है ।

2. स्प्री नदी (बर्लिन) : जर्मनी की इस नदी में प्रदूषण के चलते 1925 के बाद से तैराकी पर प्रतिबंध लगा था। लेकिन, कई वर्षों तक चलाए गए गहन सफाई अभियान और मॉनिटरिंग के कारण इसे प्रदूषण मुक्‍त कर लिया गया है। अब इसमें तैराकी फिर शुरू करने की योजना है ।

3. डेन्यूब (वियना) : 1980 के दशक में डेन्यूब नदी के कुछ हिस्सों में अत्यधिक प्रदूषण के कारण "डेड ज़ोन" घोषित किया गया था, खासकर पूर्वी यूरोप के औद्योगिक क्षेत्रों में। सफाई के बाद स्विमिंग ज़ोन बनाए जाने और तट सुधार के बाद अब यहां नियमित तैराकी की जा रही है ।

4. रुहर नदी (जर्मनी) : भारी प्रदूषण के कारण 1973 बाद से ही इसमें तैराकी प्रतिबंधित थी। लगभग एक दशक तक चली बेहतर सफाई के बाद 2017 में मैन मेड बीच और लाइफगार्डिंग के साथ फिर से तैराकी शुरू की गई ।

5. नेकर नदी (हैडलबर्ग, जर्मनी) : नेकर नदी को 1970 के दशक में जर्मनी में स्थानीय स्तर पर "बायोलॉजिकली डेड" माना गया, जब उसमें ऑक्सीजन स्तर खतरनाक रूप से गिर गया था। बाद में नदी की सफाई करके इसमें स्विमिंग ज़ोन विकसित किए गए और नदी के किनारे पारिस्थितिक तंत्र को बहाल कर जलीय जीवन वापस आया ।

6. राइन नदी (पश्चिमी यूरोप) : साल 1986 में हुए सैंडोज़ रासायनिक कांड के बाद राइन नदी में भारी विषाक्तता फैली और यह एक “मृत नदी” में बदल गई थी। साल 1987 में शुरू हुए राइन एक्शन प्रोग्राम (RAP) और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की मदद से इसे पुनर्जीवित किया गया। अब नदी में सैमन जैसी मछलियाँ लौट आई हैं और इसके किनारे कई जगहों पर सुरक्षित तैराकी संभव है।

सीन नदी के उदाहरण से प्रेरणा लेकर भारत में भी गंग-यमुना और अन्‍य नदियों को प्रदूषण मुक्‍त करने के अभियानों को अंजाम तक पहुंचाया जा सकता है।
सीन नदी के उदाहरण से प्रेरणा लेकर भारत में भी गंग-यमुना और अन्‍य नदियों को प्रदूषण मुक्‍त करने के अभियानों को अंजाम तक पहुंचाया जा सकता है।स्रोत: thewirehindi.com

भारत के नदी सफ़ाई कार्यक्रमों के लिए सबक

सीन नदी का यह मॉडल भारत के नदी सफाई अभियानों के लिए एक प्रेरणादायक उदाहरण है। भारत में गंगा और यमुना जैसी प्रमुख नदियों को प्रदूषण मुक्‍त करने के लिए दशकों से राष्ट्रीय स्‍तर पर नमामि गंगे और यमुना एक्‍शन प्‍लान जैसी योजनाएं चलाई जा रही हैं। नमामि गंगे के तहत 100+ सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) बनाए गए हैं और नदियों में सफाई अभियान चलाए गए और नदियों के तटबंधों के मरम्मत कार्य हुए। इसी तरह यमुना की सफाई के तहत दिल्ली-एनसीआर में STP यूनिट्स के जरिये ट्रीटमेंट व स्टॉर्म वॉटर इंटरसेप्टर सिस्टम के जरिये प्रदूषण नियंत्रित करने का प्रयास किया गया।

परन्तु औद्योगिक रसायनों और घरेलू सीवेज की अत्‍यधिक मात्रा के चलते ये प्रयास नकाफी साबित हुए हैं। भारत में तकनीकें अकसर अधूरी क्षमता पर चलती हैं या नियमित रख-रखाव के अभाव में निष्क्रिय हो जाती हैं जिससे करोड़ों-अरबों रुपये खर्च करने के बावजूद स्थिति तकरीबन जस की तस बनी रहती है।

इसके अलावा, हमारा निगरानी तंत्र भी बुरी तरह से बिखरा हुआ है। कुछ स्थानों पर डेटा संग्रह होता है, लेकिन वह एक्शन-ओरिएंटेड नहीं होता। इस समस्‍या के समाधान के लिए जल संस्थानों, नगर निकायों और नागरिक संगठनों के बीच समन्वय से एक स्थायी निगरानी ढांचा विकसित किया जा सकता है, जो केवल आंकड़े इकट्ठा न करे, बल्कि निर्णयों का आधार भी बने।

नदियों की सफाई के काम में जन सहभागिता भी महत्‍वपूर्ण है। सीन नदी के सफाई के प्रोजेक्ट को फ्रांस के लोगों ने अपने जीवन से जोड़कर देखा। इसके लिए जरूरी है कि नदी के आसपास रहने वाले लोगों को प्रदूषण के कारणों, उसके असर और पुनर्जीवन की प्रक्रिया के बारे में शिक्षित किया जाए। जागरूकता पैदा होने पर लोग स्‍वयं आगे आकर अपनी नदी के संरक्षक बन सकते हैं।

स्कूल पाठ्यक्रम, सामाजिक मीडिया अभियान और स्थानीय नदी महोत्सव जैसे माध्यमों से हम नागरिकों को नदी की सेहत से जोड़ सकते हैं। इन चीजों को शामिल करते हुए भारत में नदियों की सफाई के कई प्रयास हुए हैं, जिन्‍होंने सफलता की मिसाल पेश की है। बड़ी परियोजनाओं की विफलता के बीच कई स्थानों पर ग्राम स्तरीय सहभागिता से छोटी नदियों को पुनर्जीवित किया गया है, जिसके कुछ प्रमुख उदाहरण इस प्रकार हैं-

अरुणा नदी (देहरादून) : 2020–23 में एनजीओ, ग्राम समाज और भू-जल संरक्षण के सरकारी प्रयासों से नदी पुनः स्वच्छ हुई और स्थानीय तटों पर साफ पानी दिखने लगा है।

विठ्ठल नदी (महाराष्ट्र) : महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले में विठ्ठल नदी में चलाए गए ग्रामीण सफाई कार्यक्रम, जैविक चारकोल फ़िल्टर, वृक्षारोपण और तट संरक्षण के चलते पर्यटक व स्नान का स्थल बन गई।

बीदर नदी (कर्नाटक) : कर्नाटक के बीदर जिले में बारिश जल संचयन, STP, तट बागान निर्माण से बीदर नदी के जल प्रवाह में हो रहा भूमि अवरोध कम हुआ और नदी का पानी भी साफ हुआ। इन प्रयासों के नदी में एक बार फिर से प्रवासी पक्षियों का आना शुरू हुआ है।

खाम नदी (औरंगाबाद, महाराष्ट्र) : 2016–2022 के बीच नागरिक समूहों, औरंगाबाद नगर निगम और औद्योगिक इकाइयों के सहयोग से नदी की सफाई, अतिक्रमण हटाने और जलधारा पुनर्स्थापन का काम हुआ। बायो-रिमेडिएशन, तटवर्ती हरियाली और अवजल पुनर्चक्रण से नदी का जल प्रवाह बहाल हुआ और आसपास के इलाकों की भूजल स्थिति में सुधार आया।

मटुका नदी (भदोही, उत्तर प्रदेश) : 2021–24 के बीच स्थानीय ग्राम पंचायतों, स्वैच्छिक संगठनों और प्रशासन के सहयोग से अतिक्रमण हटाकर, जलधारा की सफाई और वर्षा जल संग्रह के जरिये मटुका नदी की धारा को फिर से गतिमान किया गया। इससे नदी में गंदगी और बदबू में कमी आई, स्थानीय लोग दोबारा घाटों का उपयोग करने लगे और प्रवासी पक्षियों की वापसी देखी गई।

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