पशुधन में फ्लोराइड विष का प्रभाव
पशु के शरीर में फ्लोराइड कई तरह से पहुँचता है, जैसे पीने का पानी, फ्लोराइड युक्त मिट्टी में उगाया हुआ चारा, खनिज मिश्रण तथा कारखाने से निकलने वाली प्रदूषित हवाएं ! हवा में मौजूद धूलि कण आदि। जहाँ फसलों को रॉक फॉस्फेट, मोनो अमोनियम तथा डाय अमोनियम फॉस्फेट पूरक खाद डाली जाती है। वहां की भारी फ्लोराइड विषाक्तता पायी जाती है, पृथ्वी के परत में मौजूद पानी में फ्लोराइड रिसता है और जो पशु वह पानी पियेगा उसके शरीर में प्रवेश करता है। वह पशु के खून में और उससे बनने वाले दूध में प्रवेश करता है। इसके पश्चात् उस दूषित दूध से बने व्यंजनों में भी प्रवेश करता है और प्रवेश करने के बाद गौवंश में कुछ दुष्परिणाम पैदा करता है।
फ्लोराइड एक मूल तत्व है जो पृथ्वी के थर में पानी में खाने में, हवा में, प्रसाधन, दवाइयां तथा ओर्गनो फ्लोराइड युक्त कीटनाशी दवाइयों में, जैसे एमीडोफ्लूमेट, ब्रोमैथलीन, क्लोरफेनयापर, फ्लॉजोलेट, फ्लूरोसालन, हलफेनप्रोक्स ट्रालोपैरिल और थाईफ्लूजामाइड मौजूद होता है अगर फ्लोराइड शरीर में प्रवेश करें तो कुछ फायदे होते हैं लेकिन ज्यादा मात्रा में शरीर में प्रवेश करें तो कुछ नुकसान भी होते हैं सन् 1988 में स्लोफ तथा उनके साथी संशोधनकर्ताओं ने पाया की समुन्दर के पानी ने 1.3 मिलीग्राम प्रति लीटर फ्लोराइड होता है, भारत के राजस्थान, गुजरात तथा आंध्र प्रदेश इन राज्यों के पानी में इसकी मात्रा नुकसानदेह मात्रा में 0.1 से लेकर 12 मिलीग्राम प्रति लीटर पानी पायी जाती है।
गौवंश में फ्लोराईड विषाक्तता के लक्षण निम्नलिखित है:-
• फ्लोरोसिस लम्बे अर्से तक फ्लोराइड पशु के शरीर में जाता रहा तो वह उनके दांतों में जमा हो जाता है जिसके प्रभाव से उनका रंग ढल जाता है, वह पीले दिखते हैं और कमजोर होकर गिर जाते है। जिसके प्रभाव से पशु को चारा खाने तथा जुगाली करने में दिक्कत आती है।
• फ्लोराइड पशु के हड्डियों में जमा हो जाता है जिसके प्रभाव से उनमें विकृति पैदा होती है, वह टेढ़े हो जाते है। इससे वे ठीक से चल फिर नहीं सकते। उनके जोड़ो की ना लगना हलचल कम हो जाती है या रुक जाती है जिससे वे ठीक से चल फिर नहीं सकते और ठीक से चर भी नहीं सकते। इससे उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। उनकी किडनी तथा पेट में खराबी होती है, उनके खून पर भी विपरीत असर होता है ।
पशुधन में फ्लोराइड विष का प्रभाव
जैसे कैल्सियम, एल्युमिनिय , कुल प्रोटीन की कमी तथा फॉस्फेट और विम्लीय फास्फेटेज बढ़ता है। इन सबके संयुक्त असर से उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है।
कम अवधि में फ्लोराईड विषाक्तता के कारण गोवन्श के पेशियों में नुकसान होता है तथा लंबी दीर्घ अवधि तक फ्लोराईड विषाक्तता के कारण गोवन्शमें बार-बार दांतों तथा हड्डियों का विलंबित खनिजीकरण होता है उनके पैरों में अकड़न तथा लंगड़ापन पैदा होता है। खुरो की बढ़वार कम हो जाती है। घरेलू जानवरों में फ्लोराईड विषाक्तता के लक्षण निराशा, पेचिश, आंतड़ियों का दाह, सांस लेने में तकलीफ, लंगड़ापन, भूख ना लगना।
उपाय
• फ्लोराईड विषाक्तता से ग्रसित पशु को कैल्शियम ग्लुकोनेट मैग्नीसियम, हायड्रो ऑक्साइड का इंजेक्शन नस द्वारा देने से उनके शरीर में फ्लोराईड का शोषण कम हो जाता है
• कैल्शियम कार्बोनेट एल्युमिनियम लवण, मैग्नीसियम मेटा सिलिकेट या बोरॉन देने से उनके शरीर में फ्लोराईड का शोषण कम हो जाता है।
•पशु को फ्लोराईड युक्त पानी पिलाना बंद करे तथा कैल्शियम तथा जीवनसत्व सी युक्त तथा एंटी ऑक्सिडंट युक्त चारा खिलायें।
वैसे पानी से निम्लिखित प्रक्रियाओं से फ्लोराईड हटाया जा सकता है।
पानी से फ्लोराइड अलग करने हेतु चार मूल प्रकार की प्रक्रियाएं होती हैं। वे इस प्रकार है।
प्रेसिपीटशन एबजोर्शन मेम्ब्रेन सेपरेशन तथा आयन एक्सचेंज ।
• पुष्पेंद्र कोली, सुनील नीलकंठ रोकड़े भा.कृ.अ.प. भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान, झांसी (उ.प्र.) email : kolipushpendra@gmail.com