जल का अधिकार क्यों आवश्यक है ? (भाग 1)
जल पर अधिकारों से सम्बन्धित कानून में जल का इस्तेमाल कौन और किन हालात में कर सकता है, जैसे विषय समाहित होते हैं, और यहाँ तक कि यह कानून विशिष्ट परिस्थितियों में विशिष्ट प्रयोजनों के लिए पूर्व निर्धारित जल की मात्रा का आबंटन भी कर सकता है। जल का मानवाधिकार प्राथमिक मानवीय आवश्यकताओं के लिए जल की आवश्यक मात्रा पर केन्द्रित है, जो कि लगभग 50 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन है।
प्रस्तावना
जल एक प्राकृतिक और आर्थिक संसाधन है, जो अद्वितीय और अपूरणीय है। यह हमारे ग्रह पर असमान रूप से वितरित है, जो इसकी प्रतिस्पर्धात्मक और परस्पर विरोधी प्रकृति को रेखांकित करता है। बढ़ती हुई जनसंख्या पर इस दुर्लभ संसाधन के असमान वितरण के प्रभाव का भारत एक उपयुक्त उदाहरण है। विश्व की कुल आबादी में भारत की भागीदारी 18 प्रतिशत है। लेकिन इस आबादी के लिये जल की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये भारत के पास विश्व में उपलब्ध स्वच्छ जल संसाधनों का केवल 4 प्रतिशत हिस्सा मौजूद है, जो जल वितरण और पहुंच की चुनौती को दर्शाता है। भारत सरकार ने अपने जल जीवन मिशन (ग्रामीण एवं शहरी) के माध्यम से 'जल के अधिकार' को मान्यता प्रदान की है और पूर्णतः कार्यात्मक नल से जल कनेक्शन द्वारा जल का एकसमान वितरण प्रदान करने का लक्ष्य रखा है, परन्तु जल निकायों का कुप्रबंधन, संदूषण और भूजल का अत्यधिक उपयोग जल प्रबंधन से संबंधित प्रमुख चुनौतियों के साथ-साथ 'जल के अधिकार' के दुरुपयोग को प्रदर्शित करता है और स्थायी जल प्रबंधन की ओर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता को प्रकट करता है।
अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता
जल के अधिकार को अनेक बाध्यकारी अंतरराष्ट्रीय संधियों में स्वीकार किया गया है। अंतर्राष्ट्रीय नागरिक एवं राजनीतिक अधिकार प्रसंविदा ‘इंटरनेशनल कॉवनेन्ट ऑन सिविल एंड पॉलीटिकल राइट्स - 1966’ में सम्मिलित जीवन के अधिकार जैसे अन्य मानवाधिकारों के अभिन्न अंग के रूप में मान्यता प्रदान की गई है। अंतरराष्ट्रीय आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार प्रसंविदा (इण्टरनेशनल कॅवनेंट ऑन इकोनॉमिक सोशल एण्ड कल्चरल राइट्स, 1966) में शामिल स्वास्थ्य, भोजन, आवास और उपयुक्त जीवन के अधिकापरों में भी जल के अधिकार को बाध्यकारी अन्तर्राष्ट्रीय सन्धियों में स्वीकार किया गया है। ये अधिकार अनेक अन्य अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय संधियों में भी दिए गए हैं। इन संधियों का उन सभी भी देशों द्वारा पालन किया जाना आवश्यक है, जिन्होंने उस पर हस्ताक्षर किए हैं, इन मुख्य अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संधियों में महिलाओं के प्रति व्याप्त भेद-भाव के उन्मूलन पर सम्मेलन ‘कन्वेंशन आफ द एलिमिनेशन आफ डिस्क्रिमिनेशन अगेंस्ट वूमेन -1979’ और बाल अधिकारों पर सम्मेलन ‘द कन्वेंशन ऑफ़ द राइट्स ऑफ़ द चाइल्ड -1989’ तथा विश्व जल परिषद-2006 मुख्य संधियां हैं।
जल का अधिकार
जल के अधिकार का तात्पर्य जल पर अधिकार नहीं है। जल का अधिकार प्राथमिक मानवीय आवश्यकताओं के लिए आवश्यक जल की मात्रा पर केन्द्रित है, जबकि जल पर अधिकार किसी विशेष प्रयोजन के लिए जल के उपयोग अथवा जल की उपलब्धता से सम्बन्धित होता है। जल पर अधिकारों से सम्बन्धित कानून में जल का इस्तेमाल कौन और किन हालात में कर सकता है, जैसे विषय समाहित होते हैं, और यहाँ तक कि यह कानून विशिष्ट परिस्थितियों में विशिष्ट प्रयोजनों के लिए पूर्व निर्धारित जल की मात्रा का आबंटन भी कर सकता है। जल का मानवाधिकार प्राथमिक मानवीय आवश्यकताओं के लिए जल की आवश्यक मात्रा पर केन्द्रित है, जो कि लगभग 50 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन है।
पेयजल का अधिकार
पेयजल का अधिकार पर्यावरण संरक्षण अथवा संसाधनों के एकीकृत प्रबन्धन से जुड़े आम मुद्दों की ओर ध्यान नहीं देता। अधिकांश मामलों में, जल के मानवाधिकार के क्रियान्वयन के लिए जल लेने से, जल पर आम जनमानस के अधिकारों के तहत अन्य उपयोगों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। (विश्व जल परिषद्, 2006 द्वारा जारी 'जनरल कमेण्ट सं. 15')। जल का मानवाधिकार प्रत्येक व्यक्ति को उसके निजी और घरेलू उपयोग हेतु पर्याप्त, सुरक्षित, स्वीकार्य, भौतिक रूप से और कम मूल्य पर उपलब्ध जल का अधिकार प्रदान करता है। डिहाइड्रेशन से होने वाली मृत्यु को रोकने, जलजनित रोगों के खतरे को कम करने और उपभोग, खाना पकाने, निजी और घरेलू स्वच्छता की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए सुरक्षित जल की उपयुक्त मात्रा प्रदान करना आवश्यक है।
मानव अधिकार के रूप में जल का अधिकार
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने स्पष्ट रूप से जल और स्वच्छता के मानवाधिकार को मान्यता प्रदान की है और स्वीकार किया है कि मानवाधिकारों की पुष्टि के लिये स्वच्छ पेयजल और स्वच्छता आवश्यक है।
जीवन के अधिकार की परिधि के तहत भारत में जल के अधिकार को संविधान में मूल अधिकार के रूप में प्रतिष्ठापित नहीं किया गया है। यद्यपि संघ के साथ-साथ राज्य स्तरों के न्यायालयों ने सुरक्षित एवं आधारभूत जल के साथ ही स्वच्छता के अधिकार की व्याख्या की है, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) में निहित है।
सतत विकास लक्ष्य
एसडीजी 6 सभी के लिये जल और स्वच्छता की उपलब्धता एवं संवहनीय प्रबंधन सुनिश्चित करने का आह्वान करता है, जो वैश्विक राजनीतिक एजेंडे में जल और स्वच्छता के महत्व की पुष्टि करता है।
जल के मानवाधिकार के घटक
जनरल कमेण्ट सं. 15 में जल के मानवाधिकार की जो व्याख्या की गई है, उसमें निम्नलिखित घटक शामिल हैं: जल मानव अस्तित्व के लिए मौलिक आवश्यकता है और समुचित जीवन स्तर के लिए अपरिहार्य है। जल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार यह मात्रा लगभग 50 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन है। जिसमें न्यूनतम 20 लीटर प्रतिदिन प्रति व्यक्ति तो नितान्त आवश्यक है। जल उपभोग के लिए समुचित होना आवश्यक है। इसका अर्थ है कि हर कार्य के लिए जल की गुणवत्ता उपयुक्त होनी चाहिए। पेयजल रंग, गन्ध, स्वाद के हिसाब से स्वीकार्य होना आवश्यक है। उपभोग के लिए सुरक्षा के सर्वोच्च स्तर का पालन होना चाहिए।
यह आवश्यक है कि जल प्राप्त करना सभी लोगों की क्षमता में होना चाहिए और आवश्यक वस्तुओं के क्रय में किसी व्यक्ति की सामर्थ्य प्रभावित नहीं होनी चाहिए।
यह आवश्यक है कि जल लोगों की सहज पहुँच में हो तथा घर के अन्दर या फिर घर के आसपास ही उपलब्ध हो। जल के मानवाधिकार में स्वच्छता या अधिकार भी निहित है। जनरल कमेण्ट सं. 15 इस बारे में आगे कहता है कि राज्य सरकारों का यह दायित्व है कि सुरक्षित जल विशेषकर ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में महिलाओं और बच्चों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर प्रदान किया जाए।
सपंर्क करेंः डॉ. दीपक कोहली, 5/104, विपुल खंड, गोमती नगर लखनऊ-226 010 उत्तर प्रदेश मो. 9454410037
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