हर साल लगभग 80 लाख टन प्लास्टिक समुद्रों में पहुंचता है।
हर साल लगभग 80 लाख टन प्लास्टिक समुद्रों में पहुंचता है।स्रोत: Tree Take

प्लास्टिक को खाकर महासागरों को साफ कर सकते हैं समुद्री कवक

समुद्रों में प्लास्टिक प्रदूषण वैश्विक पर्यावरणीय चिंता का विषय है। हवाई यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का एक हालिया अध्ययन उम्मीद देता है कि प्लास्टिक से निजात पाने के लिए जैविक तरीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है।
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हर साल करोड़ों टन प्लास्टिक कचरा महासागरों में पहुंच रहा है। यह कचरा समुद्री जीवों और समूचे समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के लिए तो खतरा है ही, अब व्‍यापक स्‍तर पर एक पर्यावरणीय आपदा का रूप लेता जा रहा है। इसी महीने फ़्रांस में हुए तीसरे संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन में जिस तरह एक वैश्विक प्लास्टिक संधि की ज़रूरत पर ज़ोर रहा, उससे इस आपदा की स्थित को समझा जा सकता है। 

हालांकि, हाल ही में इस बारे में एक अच्‍छी खबर सामने आई है, जिसे महासागरों को प्‍लास्टिक प्रदूषण से मुक्त करने की दिशा में प्रगति की तरह देखा जा सकता है। मनोआ स्थित हवाई विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने हवाई के निकट मिले ऐसे समुद्री कवक (Marine Fungi) का अध्ययन किया है जिसमें प्लास्टिक को तोड़ने की क्षमता है। इस क्षमता की बदौलत ये काफी तेज़ी से समुद्रों को प्‍लास्टिक प्रदूषण से मुक्‍त बनाने में मददगार हो सकते हैं।

किस तरह किया गया अध्ययन 

हवाई विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ़ ओशन एंड अर्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (SOEST) में मरीन बायोलॉजी विभाग के प्रोफेसर रोन्जा स्टीनबाक और प्रो. एंथनी एमेंड की टीम ने हवाई के तटीय पानी से कुल 68 प्रजातियों के कवक एकत्र कर इन्हें प्रयोगशाला में PU प्लास्टिक मीडिया के छोटे डिशों में उगाया। इन कवकों ने पारदर्शी क्लीयरेंस हेलो बनाए जिससे पता चला कि वे इस प्लास्टिक को विघटित कर रहे थे। 

PU यानी पॉलीयूरेथिन एक आम प्लास्टिक है, जिसे फोम, गद्दों, चिपकने खिलौनों आदि में उपयोग किया जाता है। इस प्रयोग में 60% से अधिक कवकों ने प्रदर्शित किया कि वे PU को खाकर उसे जैविक पदार्थ में परिवर्तित कर सकते हैं।

तीन महीने तक चले परीक्षण की “सेटिंग” प्रक्रिया (सीरियल इनऑक्युलेशन) के बाद कुछ कवकों की PU खपत दर बढ़ गई। सीरियल इनऑक्युलेश के दौरान एक ही कवक को बार-बार ताज़े मीडिया नमूनों पर उगाया जाता है, ताकि वह धीरे-धीरे उस पदार्थ को पहचानकर उसे तोड़ने की अपनी क्षमता बढ़ा सके।

इसे ‘setting’ इसलिए कहते हैं क्योंकि इस प्रक्रिया में कवक खुद को नए सब्सट्रेट यानी मीडिया के हिसाब से ढाल लेता है, जिसे कवक के एंजाइम तोड़ रहे हैं। प्रयोगशाला में जब कवकों को सामान्य प्लास्टिक उपलब्ध कराया गया, तो उन्होंने धीरे-धीरे उसका भी विघटन शुरू कर दिया।

तीन महीनों तक इन कवकों को प्लास्टिक सतहों पर उगाकर उनकी प्लास्टिक तोड़ने की क्षमता को और बढ़ाया गया, जिससे कुछ नमूनों की क्षमता में 15% तक की वृद्धि देखी गई। यह इस बात का संकेत है कि अनुकूलन की प्रक्रिया से इन जीवों में माइक्रोएडॉप्टेशन को बढ़ाकर इनको प्‍लास्टिक के अपघटन के लिए और अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है।

नदियों के जरिये समुद्र में पहुंचने वाला प्‍लास्टिक समुद्री जीवों और वनस्‍पतियों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है, जिससे पूरे मरीन इकोसिस्‍टम को खतरा है।
नदियों के जरिये समुद्र में पहुंचने वाला प्‍लास्टिक समुद्री जीवों और वनस्‍पतियों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है, जिससे पूरे मरीन इकोसिस्‍टम को खतरा है।स्रोत: Freepic

प्‍लास्टिक क्‍यों है खतरनाक?

प्लास्टिक में अधिकांश हिस्सा ऐसा होता है जो न तो प्राकृतिक रूप से विघटित होता है, न सड़ता है और न ही घुलता है। समय के साथ यह माइक्रोप्लास्टिक में टूटता जाता है और जलीय जीवों से लेकर वनस्‍पतियों तक समुद्री जीवन (Marine Life) के हर स्तर में प्रवेश कर जाता है। मछलियों से लेकर प्लवक तक इसकी चपेट में आकर इसके दुष्‍प्रभावों के शिकार होते हैं।

अपशिष्ट और पुनर्चक्रण से जुड़ी खबरें छापने वाली वेबसाइट वेस्‍ट डाइव में प्रकाशित एक व्यापक अध्ययन में पाया गया कि लगभग 90% समुद्री पक्षियों और गहरे समुद्र की मछलियों के पेट में प्लास्टिक मिल चुका है। इससे समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो रहा है। विश्व आर्थिक मंच की एक रिपोर्ट के अनुसार, अगर यही हाल रहा तो 2050 तक समुद्र में मछलियों से अधिक प्लास्टिक का वजन होगा। 

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की रिपोर्ट बताती है कि साल 2010 में करीब 8 मिलियन टन प्लास्टिक समुद्रों में पहुंचा था और यह हर साल बढ़ रहा है। अगर रफ़्तार यही रही तो 2040 तक प्लास्टिक प्रदूषण इसका तीन गुना हो सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक समुद्री जीवन में मौजूद यह माइक्रोप्लास्टिक खाद्य शृंखला के माध्यम से मनुष्‍यों के शरीर में भी पहुंच रहा है।

हवाई यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने प्रयोगशाला में समुद्री कवक से प्‍लास्टिक और पॉलीयूरेथिन को अपघटित करवाने की प्रक्रिया का परीक्षण पूरा कर लिया है।
हवाई यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने प्रयोगशाला में समुद्री कवक से प्‍लास्टिक और पॉलीयूरेथिन को अपघटित करवाने की प्रक्रिया का परीक्षण पूरा कर लिया है। स्रोत: Science Direct

सागरों की सफाई में कैसे मददगार होंगे समुद्री कवक?

शोध के मुताबिक हवाई के तटीय क्षेत्रों से इकट्ठे किए गए 68 कवकों में से 42 में प्लास्टिक को तोड़ने की स्पष्ट क्षमता है। प्रयोगशाला में किए गए अध्‍ययन में पाया गया कि ये कवक माइक्रोप्लास्टिक को धीरे-धीरे ‘खाते’ हैं और फिर उसे जैविक तत्वों में परिवर्तित कर अपने पोषण के रूप में ग्रहण कर लेते हैं। इससे, यह संभावना प्रबल हुई है कि भविष्य में ये जीव महासागर की सफाई में एक अहम भूमिका निभा सकते हैं। 

इस अध्ययन को हाल ही में अमेरिका की नेशनल लाइब्रेरी ऑफ़ मेडिसिन के पोर्टल पबमेड पर प्रकाशित किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक इन कवकों में यह अनोखी क्षमता उनके द्वारा उत्पादित किए जाने वाले कुछ खास एंजाइम की वजह से होती है। सामान्यतः समुद्री कवक लकड़ी, मृत समुद्री जीवों या अन्य कार्बनिक पदार्थों को विघटित करने के लिए विकसित हुए हैं, पर खोजे गए कवकों में मौजूद एंजाइम, पॉलीयूरेथेन जैसे सिंथेटिक पदार्थों के विघटन में भी प्रभावी पाए गए। 

कवकों द्वारा प्‍लास्टिक प्रदूषण और रसायनों को नष्ट करने की प्रक्रिया को माइकोरीमीडिएशन कहते हैं। यह प्रक्रिया रासायनिक विधियों के मुकाबले सस्ती, प्रभावशाली और पर्यावरण-अनुकूल साबित हुई है। यह हैवी मेटल्‍स, टेक्‍स्‍टाइल डाई और पेट्रोलियम पदार्थों जैसे जटिल और खतरनाक प्रदूषकों को प्रभावी ढंग से खत्‍म कर सकती है।

अन्य कवकों में भी मिली है ऐसी क्षमता

हवाई विश्वविद्यालय की खोज से पूर्व कुछ अन्य समुद्री कवकों की क्षमता पर अध्ययन हो चुका है। उदाहरण के लिए, नेदरलैंड्स की यूट्रेक्ट यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन में बताया गया है कि Parengyodontium album नामक एक समुद्री कवक प्रजाति पॉलीइथिलीन को धीरे-धीरे CO₂ में तोड़ने में सक्षम पाई गई है।

यह प्रजाति प्रशांत महासागर के कचरा-प्लास्टिक जमाव क्षेत्र (ग्रेट पैसिफ़िक गारबेज पैच) में पाई गई। हालांकि, इसकी दर बहुत धीमी (0.05% प्रतिदिन) थी, लेकिन यह सिद्ध करता है कि समुद्री कवक केवल प्रयोगशाला नहीं, बल्कि वास्तविक समुद्री परिस्थितियों में भी सक्रिय हो सकते हैं। 

अमेरिकन सोसाइटी ऑफ़ माइक्रोबायोलजी के अध्ययन के अनुसार, Pestalotiopsis microspora जैसे स्थलीय कवकों में भी प्लास्टिक तोड़ने की क्षमता विकसित होने की संभावना देखी गई है। ये कवक ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में भी प्लास्टिक को विघटित कर सकते हैं। ये सभी उदाहरण इस ओर संकेत करते हैं कि हमारे वैज्ञानिक प्‍लास्टिक प्रदूषण की समस्‍या के जैविक समाधान की दिशा में ठोस शुरुआत कर चुके हैं।

व्यावहारिकता और पारिस्थितिकी संतुलन को लेकर सवाल

जब हम पर्यावरणीय प्रदूषण को जैविक तरीके से साफ़ करने की बात करते हैं, तो इसे ‘बायोरीमीडिएशन’ कहा जाता है। जब इस प्रक्रिया में कवकों का उपयोग किया जाता है, तो इसे ‘माइकोरीमीडिएशन’ कहते हैं। यह काम सुनने में तो आसान लगता है, पर व्‍यापक स्‍तर पर इसे करने में कई तरह की व्‍यावहारिक दिक्‍कतों और चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। 

सबसे पहली चुनौती यह है कि ये प्रयोग अभी तक प्रयोगशाला तक सीमित हैं यानी इन्‍हें प्रयोगशाला के नियंत्रित माहौल में अंजाम दिया गया है। ऐसे में यह प्रयास वास्तविक समुद्री परिस्थितियों जैसे तापमान, लवणता, जल प्रवाह और अन्य जैविक घटकों जैसी जटिलताओं के बीच कितने कारगर तरीके से काम कर पाएगा, यह अभी पक्‍के तौर पर नहीं कहा जा सकता। वास्‍तविक स्थितियां कवकों की कार्यप्रणाली को प्रभावित कर सकती हैं। 

इसके अलावा, समुद्र के विशाल क्षेत्र में इन कवकों को फैलाना और उन्हें प्रभावी बनाए रखना एक बड़ी चुनौती होगी। शोधकर्ताओं को इसे लेकर मरीन इंजीनियरों, समुद्री वैज्ञानिकों और रसायन शास्त्रियों के साथ मिलकर काम करना होगा, ताकि एक ऐसी प्रक्रिया विकसित किया जा सके जिससे समुद्र में इन कवकों का सुरक्षित, नियंत्रित व असरदार ढंग से इस्तेमाल किया जा सके। 

साथ ही, यह भी देखना होगा कि यह प्रक्रिया समुद्री पारिस्थितिकी पर कोई प्रतिकूल असर तो नहीं डालती। खासकर, कवकों की मदद से प्लास्टिक को तोड़ने की प्रक्रिया में कार्बन डाईऑक्‍साइड (CO₂) और मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन जैसे पर्यावरणीय प्रभावों को ध्यान में रखना होगा। इसे लेकर इको-सेफ्टी स्टडी किया जाना अभी बाकी है। इस दिशा में एक विचार यह है कि समुद्र में कोई बड़ा प्रोजेक्‍ट शुरू करने से पहले प्लास्टिक से भरे इलाकों में इन कवकों के छोटे-छोटे ‘बायो-रिएक्टर’ लगा कर पहले इस प्रक्रिया नियंत्रित ढंग से चलाने की कोशिश की जाए। 

प्‍लास्टिक खाने वाले कवकों की बायोइंजीनियरिंग और जीन एडिटिंग से इनकी अपघटन क्षमताओं को और बेहतर बनाने की संभावना है।
प्‍लास्टिक खाने वाले कवकों की बायोइंजीनियरिंग और जीन एडिटिंग से इनकी अपघटन क्षमताओं को और बेहतर बनाने की संभावना है।स्रोत: pirbright-institute

बायोइंजीनियरिंग और जीन एडिटिंग से मिल सकता है समाधान

महासागरों को प्लास्टिक-मुक्त करने की दिशा में एक अच्‍छी बात यह भी है कि कवकों के अलावा बैक्टीरिया, शैवाल और एंजाइम्स भी प्लास्टिक को विघटित करने में उपयोगी साबित हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, साइंस डायरेक्‍ट में प्रकाशित एक रिसर्च के मुताबिक Ideonella sakaiensis नामक बैक्टीरिया PET प्लास्टिक को तोड़ने के लिए एक विशेष एंजाइम (PETase) का उत्पादन करता है। जापान में इसे PET बोतलों पर कार्य करते पाया गया। इसी तरह एनवायरनमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी जर्नल में प्रकाशित अध्‍ययन के मुताबिक, आर्कटिक महासागर में कुछ ऐसे शैवाल भी खोजे गए हैं जो माइक्रोप्लास्टिक को पचा सकते हैं। 

वैज्ञानिक बायोइंजीनियरिंग और जीन एडिटिंग तकनीकों (जैसे CRISPR-Cas9) की मदद से इन जीवों की क्षमताओं को अधिक प्रभावी बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं। लक्ष्य यह है कि इन कवकों के भीतर प्लास्टिक-पचाने वाले एंजाइमों के उत्पादन को तेज किया जाए और उन्हें विभिन्न समुद्री परिस्थितियों में टिकाऊ बनाया जाए। इस दिशा में माइक्रोबायोम मैनिपुलेशन और सिंथेटिक बायोलॉजी जैसी नवीनतम तकनीकों का इस्‍तेमाल किया जा रहा है। 

मल्‍टीडिसिप्लिनरी डिजिटल पब्लिशिंग इंस्‍टीट्यूट (MDPI) की एक हालिया समीक्षा में “PlastiCRISPR” नामक CRISPR‑Cas9 आधारित तकनीक के बारे में बताया गया। इसकी मदद से माइक्रोब (जैसे बैक्टीरिया और कवक) की क्षमता को जीन स्तर पर संशोधित करके सुधारा जा सकता है। 

यूनिवर्सिटी ऑफ़ इलिनॉय की टीम ने भी प्लास्टिक के बायोडिग्रेडेशन के लिए डिजाइन की गई एक नई प्रक्रिया तैयार की है, जो जैविक इंजीनियरिंग के जरिये समुद्र में प्लास्टिक की सफाई का समाधान पेश करती है।

अलग-अलग स्‍तर पर चल रहे इन वैज्ञानिक प्रयासों से एक आशाजनक संभावना यह उभरती है कि बायोटेक्‍नॉलजी के ज़रिए कवक, बैक्टीरिया और शैवाल जैसे सूक्ष्मजीवों की क्षमताओं को एक साथ जोड़ा जा सकता है। इससे, व्‍यापक स्‍तर पर एक संयुक्त जैविक अपघटन रणनीति (synergistic biodegradation) तैयार कर जैविक तरीके से सागरों को प्‍लास्टिक प्रदूषण से मुक्‍त करने की दिशा में कारगर कदम उठाए जा सकते हैं। यह भविष्य में एक टिकाऊ समाधान बन सकता है। 

हालांकि, इन प्रोजेक्‍ट को लेकर जैव विविधता और पर्यावरणीय संतुलन से संबंधित कुछ नैतिक (एथिकल) चिंताएं भी हैं, जिन्हें ध्यान में रखते हुए ही आगे की दिशा तय करनी होगी।

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