कोलिफॉर्म जीवाणु
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जल का सूक्ष्म जैविक प्रदूषण: कोलिफॉर्म जीवाणु और पर्यावरण के साथ इसका संबंध

जल में कोलिफॉर्म जीवाणु: जानिए इसके प्रभाव और एंटीबायोटिक प्रतिरोध के कारण उत्पन्न हो रही चुनौतियाँ।
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जल जीवन का मूल आधार है, किंतु आज विश्वभर में बड़ी संख्या में लोगों को स्वच्छ और सुरक्षित पेयजल उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। WHO की एक रिपोर्ट के अनुसार, हर वर्ष लगभग 600 मिलियन लोग दस्त और पेचिश जैसी बीमारियों का शिकार होते हैं, जिनमें से 46,000 नवजातों की मृत्यु हो जाती है। जल में सूक्ष्मजीवों द्वारा होने वाला प्रदूषण (Microbial Pollution) विशेष रूप से विकासशील देशों के लिए एक गंभीर चुनौती बना हुआ है। इस शोध में विशेष रूप से कोलिफॉर्म जीवाणु (Coliform Bacteria) के माध्यम से जल प्रदूषण और उसके पर्यावरणीय प्रभावों का विश्लेषण किया गया है।

इस शोध पत्र की कुछ खास बातें -  

1. कोलिफॉर्म जीवाणु: जल प्रदूषण का प्रमुख सूचक

कोलिफॉर्म बैक्टीरिया (Coliform Bacteria), विशेष रूप से Escherichia coli (E. coli), जल में मलजनित सूक्ष्म जैविक प्रदूषण (Microbial Water Pollution) के प्रमुख संकेतक माने जाते हैं। यह जीवाणु मानव या पशु मल में पाए जाते हैं और जब यह किसी जल स्रोत में पाए जाते हैं, तो यह दर्शाता है कि वह जल मल से दूषित है। पीने के पानी में कोलिफॉर्म की उपस्थिति WHO और BIS मानकों के अनुसार 0 प्रति 100 मि.ली. से अधिक नहीं होनी चाहिए। कोलिफॉर्म की अधिक मात्रा से टाइफाइड, पेचिश, दस्त जैसे जलजनित रोग फैल सकते हैं, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरा हैं।

 2. जलीय जीवन और पर्यावरणीय असंतुलन पर प्रभाव

जल प्रदूषण के कारण पर्यावरणीय असंतुलन (Ecological Imbalance) तेजी से बढ़ रहा है। जब जल में Biochemical Oxygen Demand (BOD) और Total Suspended Solids (TSS) की मात्रा बढ़ जाती है, तो यह पानी में घुली ऑक्सीजन को कम कर देता है। इसका सीधा असर मछलियों और जलीय जीवन पर पड़ता है। गाद, मिट्टी और अन्य ठोस अवशेषों की अधिकता जल की पारदर्शिता और प्रकाश प्रवेश को भी बाधित करती है, जिससे जलीय पारिस्थितिकी तंत्र (Aquatic Ecosystem) बुरी तरह प्रभावित होता है।

3. एंटीबायोटिक प्रतिरोध और वैश्विक स्वास्थ्य संकट

हालिया शोधों में पाया गया है कि जल में पाए जाने वाले कोलिफॉर्म जीवाणु अब कई एंटीबायोटिक्स के प्रति प्रतिरोधक (Antibiotic Resistant Bacteria) हो चुके हैं। Ampicillin, Cefalotin, और Colistin जैसी सामान्य दवाएं अब इन पर असर नहीं करतीं। इससे जलजनित संक्रमणों का इलाज और जटिल हो गया है। यह स्थिति हमें जल की नियमित गुणवत्ता जांच (Water Quality Monitoring) और वाटर ट्रीटमेंट तकनीकों को मजबूत करने की ओर संकेत करती है। 

कोलिफॉर्म जीवाणु: जल प्रदूषण के संकेतक

कोलिफॉर्म समूह के जीवाणु, विशेषकर Escherichia coli (E. coli), को जल में मलमूत्र प्रदूषण का प्रमुख संकेतक माना जाता है। ये जीवाणु गर्म रक्त वाले जानवरों के मल में पाए जाते हैं और जब यह पानी में उपस्थित होते हैं, तो यह सूचित करते हैं कि जल स्रोत मानव या पशु मल से दूषित है।

जल की गुणवत्ता का मूल्यांकन Most Probable Number (MPN) तकनीक के आधार पर किया जाता है, जहाँ प्रति 100 मि.ली. पानी में कोलिफॉर्म की संख्या निर्धारित की जाती है। WHO और भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) के अनुसार, पीने योग्य पानी में कोलिफॉर्म की उपस्थिति 0/100 मि.ली. होनी चाहिए।

कोलिफॉर्म जीवाणुओं का परीक्षण: वैज्ञानिक पद्धतियाँ

  1. MPN विधि:

    • यह पारंपरिक विधि होती है जिसमें लैक्टोज ब्रॉथ में गैस उत्पादन से कोलिफॉर्म की उपस्थिति का अनुमान लगाया जाता है। इसके बाद Eosin Methylene Blue (EMB) एगर पर कालोनी विकसित कर E. coli की पहचान की जाती है।

  2. एंजाइम आधारित विधियाँ:

    • यह आधुनिक तकनीक β-गैलेक्टोसिडेज़ और β-ग्लूकुरोनिडेज़ की उपस्थिति पर आधारित है, जिससे पानी में कोलिफॉर्म या E. coli की पहचान 6 घंटे में संभव है।

  3. मॉलिक्यूलर तकनीक:

    • PCR और ELISA जैसी विधियों का उपयोग जल के नमूनों में रोगजनक ई.कोलाई के डीएनए जीन की पहचान के लिए किया जाता है, जिससे उच्च स्तर की संवेदनशीलता के साथ परीक्षण संभव होता है।

जल-जनित बीमारियाँ और वैश्विक परिदृश्य

कोलिफॉर्म, Shigella, Salmonella, Vibrio cholerae, Norovirus आदि के माध्यम से दस्त, टाइफाइड, पेचिश, हैजा जैसे गंभीर रोग फैलते हैं। मुंबई, चंडीगढ़, बांग्लादेश, केन्या और चीन में किए गए अध्ययनों में पाया गया कि दूषित जल के कारण महामारी जैसी स्थिति उत्पन्न हुई थी।

अन्य संकेतक सूक्ष्मजीव और पर्यावरणीय परीक्षण

  • फीकल स्ट्रेप्टोकॉकी: E. coli की तुलना में अधिक प्रतिरोधक क्षमता रखते हैं और जल में लंबे समय तक जीवित रह सकते हैं। ये भी जल प्रदूषण के संकेतक होते हैं।

  • Clostridium perfringens: विशेष रूप से पुराने मलमूत्र प्रदूषण का संकेतक होते हैं। इनकी पहचान SPS एगर पर काले केंद्र वाली कालोनियों के रूप में होती है।

  • Biochemical Oxygen Demand (BOD) और Total Suspended Solids (TSS) जैसे परीक्षण भी जल की जैविक गुणवत्ता का निर्धारण करते हैं। उच्च BOD का अर्थ है जल में जैविक अपशिष्ट की अधिकता, जो जलीय जीवन के लिए हानिकारक होती है।

कोलिफॉर्म में एंटीबायोटिक प्रतिरोध: उभरता संकट

इस शोध में यह भी दर्शाया गया है कि पीने के पानी में पाए जाने वाले कोलिफॉर्म जीवाणु अब बहु-औषधि प्रतिरोधक (MDR) हो चुके हैं। भारत सहित कई देशों में Ampicillin, Cefalotin, और Colistin जैसे एंटीबायोटिक्स के प्रति इन जीवाणुओं में प्रतिरोध पाया गया है। यह चिंता का विषय है क्योंकि यह जल जनित बीमारियों के उपचार को और जटिल बना देता है।

पर्यावरणीय परिप्रेक्ष्य में जल प्रदूषण और इसका समाधान

जल, ऊर्जा, और खाद्य सुरक्षा के बीच एक स्पष्ट नैक्सस (nexus) मौजूद है। कृषि, उद्योग, और शहरी विकास में जल का अत्यधिक उपयोग और दूषित जल का अनियंत्रित निर्वहन न केवल जल स्रोतों को प्रदूषित करता है बल्कि जैव विविधता, मछली पालन, और सार्वजनिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है।

इस शोध में यह भी सुझाव दिया गया है कि पुनः उपयोग योग्य जल संसाधनों का संरक्षण, एकीकृत जल प्रबंधन प्रणाली (Integrated Water Management Systems), और सतत कृषि (Sustainable Agriculture) की दिशा में कदम बढ़ाने होंगे।

आगे का रास्ता  - 

कोलिफॉर्म जीवाणु जल प्रदूषण का प्रभावशाली संकेतक है। जल स्रोतों की नियमित मॉनिटरिंग, मॉलिक्यूलर और एंजाइम-आधारित उन्नत परीक्षण विधियों का उपयोग, और सतत शहरी व कृषि प्रबंधन के ज़रिए हम जल जनित रोगों की रोकथाम कर सकते हैं। यह शोध न केवल जल गुणवत्ता के वैज्ञानिक मूल्यांकन की आवश्यकता को रेखांकित करता है, बल्कि मानव स्वास्थ्य और पर्यावरणीय असंतुलन के परिप्रेक्ष्य में इसे एक वैश्विक प्राथमिकता बनाने का आह्वान करता है।

लेखकगण सुदीप सोम, रितिक मंडल, देबाशीष मित्रा, दिव्या जैन, देवव्रत वर्मा, समन्विता दास के शोध 'जल का सूक्ष्मजीवी प्रदूषण: कोलिफॉर्म बैक्टीरिया के विशेष संदर्भ में और पर्यावरण के साथ उनके संबंध', पर आधारित

संदर्भ -

  1. Sudip Some et al. (2021), Microbial pollution of water with special reference to coliform bacteria and their nexus with environment, Energy Nexus, Elsevier.

  2. WHO Guidelines for Drinking Water Quality.

  3. Bureau of Indian Standards (IS 10500:2012).

  4. CDC, NRDC, UN-Water Reports (as cited in original document).

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