दिल्ली की साहिबी नदी को लेकर एक कोशिश : साहिबी नदी का मैप जारी
दिल्ली की साहिबी नदी को लेकर एक कोशिश : साहिबी नदी का मैप जारी

साबी नांव कहाऊं : दिल्ली की साहिबी नदी की सत्यकथा 

यमुना के सहायक साहिबी नदी के लुप्त होने की कहानी 
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राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (NGT) का  सुझाव नजफगढ़ नाले का नाम बदलकर "साहिबी नदी" हो

“नाम में क्या रखा है?” यह वाक्य अक्सर सुनने को मिलता है, पर भारतीय संदर्भ में नाम का महत्व किसी भी व्यक्ति, वस्तु, या प्रक्रिया के लिए एक गहरी पहचान और महत्व का प्रतीक होता है। इस वर्ष ‘नाला’ शब्द विशेष रूप से चर्चा में रहा। चर्चा का केंद्र बनी यमुना नदी, जो अब नाला बन चुकी है, और नजफगढ़ नाला, जो दिल्ली के गंदे पानी को यमुना तक पहुंचाने का माध्यम बन गया है।

राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (NGT) ने इस पर ध्यान दिया और यह सुझाव दिया कि क्यों न नजफगढ़ नाले का नाम बदलकर "साहिबी नदी" कर दिया जाए, ताकि लोगों में जागरूकता फैले और वे नदी और पानी के महत्व को समझ सकें। इस सुझाव के बाद कई कानूनी प्रक्रियाओं की शुरुआत हो चुकी है, और संभावना है कि नजफगढ़ नाले का नाम साहिबी नदी कर दिया जाएगा। बिना कोई ठोस बदलाव किए, केवल नाम बदलने से, ‘नाला’ शब्द से जुड़ी गंदगी और बदबू की दुर्भावना मिट जाएगी, और ‘नदी’ शब्द से जुड़ी पवित्रता और सम्मान की भावना जागेगी।

हालांकि, यह समझना जरूरी है कि नाला शब्द का मूल अर्थ गंदगी से नहीं जुड़ा है। असल में, नाला प्राकृतिक रूप से बना ऐसा ढांचा होता है, जो बरसात के पानी की निकासी के लिए उपयोग में आता है। लेकिन हमारे विकास के नाम पर की गई लापरवाहियों और जल संसाधनों के दुरुपयोग ने इस शब्द के अर्थ को बदलकर गंदगी और बजबजाती स्थिति का प्रतीक बना दिया है। यह केवल भाषा का परिवर्तन नहीं, बल्कि हमारी सोच और क्रियाओं का भी दर्पण है।

यमुना नदी की दुर्दशा पर चर्चा का एक महत्वपूर्ण पहलू नजफगढ़ नाले से जुड़ा है, जो वास्तव में यमुना की एक प्राचीन सहायक नदी, साहिबी नदी का मुहाना है। साहिबी का उल्लेख हमारे इतिहास और सभ्यता से भी जुड़ा हुआ है। यह नदी राजस्थान के सीकर जिले से निकलती थी, हरियाणा से होते हुए दिल्ली में प्रवेश करती और यमुना में मिल जाती थी। वर्तमान में यह नदी अपने अधिकांश प्रवाह क्षेत्र से लुप्त हो चुकी है। अब यह केवल अपने मुहाने पर ही बहती हुई दिखाई देती है। दिल्ली में, साहिबी नदी के मार्ग को आज नजफगढ़ नाले के नाम से जाना जाता है। जब यह नदी हरियाणा से दिल्ली के ढांसा गांव के पास प्रवेश करती है, तब से इसे नजफगढ़ नाले के रूप में पहचाना जाने लगता है। नजफगढ़ नाला, यमुना नदी में मिलने से पहले, लगभग 57 किलोमीटर की दूरी तय करता है। इस दौरान, यह दिल्ली के किनारे बसे कई रिहायशी इलाकों का गंदा पानी और मलमूत्र, 122 छोटे-बड़े नालों के माध्यम से इसमें गिरता है, अपने साथ समाहित करता जाता है।

साहिबी नदी का परिचय

अपने प्राकृतिक स्वरूप में यमुना में मिलने से पहले साहिबी नदी, हरियाणा और दिल्ली के बड़े निम्न-भूमि में फैल कर एक व्यापक वेटलैंड प्रणाली का निर्माण करती थी, जो न केवल जल संग्रहण और पुनर्भरण के लिए महत्वपूर्ण थी, बल्कि क्षेत्र की पारिस्थितिकी को भी बनाए रखती थी। साहिबी नदी का यह रूप अब केवल एक इतिहास बनकर रह गया है, और इसका वर्तमान स्वरूप, नजफगढ़ नाला, हमारी उपेक्षा और लापरवाही का प्रतीक है। दिल्ली और हरियाणा क्षेत्र में साहिबी नदी के बहाव क्षेत्र में निम्न भूमि के निर्माण के पीछे स्थानीय इतिहासकार सोहेल हाशमी मुगल काल में आए भूकंप का हवाला देते हैं, जिसके कारण नजफगढ़ झील का निर्माण हुआ और परिणामस्वरूप साहिबी नदी का दिल्ली की ओर प्रवाह कम हो गया। यह घटना साहिबी नदी के प्राकृतिक मार्ग को प्रभावित करने वाली महत्वपूर्ण घटना रही, और नदी का प्रवाह अब उस पुराने वेटलैंड से बाहर निकलकर नजफगढ़ नाले के रूप में यमुना में मिलता था।

असल में, नजफगढ़ नाले का निर्माण साहिबी नदी के पानी को, जो कभी एक बड़े भू-भाग पर फैलकर वेटलैंड का रूप ले लिया था, यमुना में धकेलने के लिए उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में किया गया। यह कदम खेती के लिए भूमि प्राप्त करने के उद्देश्य से उठाया गया था, ताकि वेटलैंड को सुखाकर उसे कृषि योग्य बनाया जा सके। आज भी नजफगढ़ झील, भिंडरवास झील और बसई वेटलैंड साहिबी नदी के मार्ग में स्थित हैं, हालांकि इन क्षेत्रों का आकार काफी सिकुड़ चुका है और नजफगढ़ झील विशेष रूप से प्रदूषण का शिकार हो गई है। यह स्थिति इस बात का प्रमाण है कि साहिबी नदी और इसके आसपास के वेटलैंड्स के पारिस्थितिकी तंत्र का लगातार शोषण और प्रदूषण, मानव गतिविधियों के परिणामस्वरूप भी हो रहा है।

साहिबी नदी : बस नाम ही बाकी

आज भले ही यह बात सामान्य स्मृति से मिट चुकी हो, लेकिन एक सदी पहले तक साहिबी नदी का दिल्ली और हरियाणा का यह निम्न भूमि भारत में नमक उत्पादन का एक बड़ा केंद्र था। साहिबी नदी एक बरसाती नदी थी, जो अरावली पहाड़ से बहकर यमुना से मिलने से पहले लवण की काफी मात्रा घुलाकर इसी निम्न भूमि के विशाल क्षेत्र पर फैला देती थी, जो सालों भर वाष्पीकृत होता रहता था। इस प्रक्रिया के कारण यह इलाका नमक उत्पादन का प्रमुख केंद्र बन गया, जिसे उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध  में विशेष ख्याति प्राप्त हुई।

आधुनिक समय में यह सुनकर शायद ही कोई विश्वास करेगा, लेकिन अंग्रेजों ने नमक के उत्पादन और व्यापार को सुचारू रूप से सुनिश्चित करने के लिए दिल्ली से गढ़ी हासरू तक पहली व्यावसायिक रेल लाइन बिछाई थी। यह रेल लाइन नमक उत्पादन के बंद होने के बाद भी लंबे समय तक अस्तित्व में रही और विश्व की सबसे पुरानी व्यावसायिक रेल लाइन होने का गौरव भी प्राप्त किया।

सांभर झील मे पिछली सदी के तीसरे दशक में नमक उत्पादन में वृद्धि के साथ, साहिबी नदी के इस क्षेत्र से नमक उत्पादन धीरे-धीरे बंद हो गया। आज भी साहिबी नदी बेसिन के इस निम्न क्षेत्र में कई खारे पानी वाली झीलें पाई जाती हैं, जिनमें गुड़गांव के किनारे का बसई वेटलैंड प्रमुख है। ये झीलें और वेटलैंड्स इस क्षेत्र के ऐतिहासिक और पारिस्थितिकीय महत्व को दर्शाती हैं, जो कभी नमक उत्पादन का प्रमुख केंद्र हुआ करता था।

साहिबी नदी की दुर्दशा

साहिबी नदी की आज जो दुर्दशा है, वैसी कभी नहीं थी। डाउन टू अर्थ में छपे एक लेख में 1960 के दशक तक नजफगढ़ नाले के पानी के साफ होने का जिक्र मिलता है। सर्दी में, जखीरा स्थित एक वनस्पति तेल की फैक्ट्री से गलती से बड़ी मात्रा में वनस्पति तेल का रिसाव पास के नजफगढ़ नाले में हो गया, और नाले का पानी इतना साफ था कि आस-पास के लोग जमे वनस्पति तेल  को इकट्ठा करने लगे थे। लेकिन अब स्थिति पूरी तरह बदल चुकी है। आज, लगभग 300 किलोमीटर लंबी साहिबी नदी, जो कभी राजस्थान और हरियाणा से होकर बहती थी, लगभग विलुप्त हो चुकी है। जो बची हुई है, उसे नजफगढ़ नाला कहा जाता है, जो अब केवल एक सीवर लाइन से अधिक कुछ भी नहीं है। वह नदी, जो 1845, 1873, 1917, 1930, 1933, 1960, 1963, 1972 और 1977 में राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली में भयंकर बाढ़ का कारण बनी, उस नदी को आज सैटेलाइट इमेजरी में भी ढूंढ़ना मुश्किल है। साहिबी नदी का पाट पहले कई जगहों पर किलोमीटर तक चौड़ा हुआ करता था, खासकर बरसात के मौसम में, जब यह नदी पूरे क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती थी।नदी के चौड़े पाट का अनुमान आज भी कई लम्बे लम्बे पुराने रेल पुलों से लगाया जा सकता है, जो नदी के विशाल पाट के ऊपर बनाए गए थे।

ऐसा कहा जाता है कि बादशाह अकबर के शासनकाल में साहिबी नदी पर एक बांध बनाने की कोशिश की गई थी, ताकि नदी का पानी रेवाड़ी की तरफ मोड़ा जा सके। लेकिन नदी के प्रचंड प्रवाह के कारण यह प्रयास सफल नहीं हो पाया। साहिबी की यह प्रवृति आज भी लोक समृति में जिन्दा है: 

"अकबर बांधी ना बंधू ना रेवाड़ी जाऊं,

कोट तला कर नीकसूं साबी नांव कहाऊं"

यह लोकगीत साहिबी नदी की शक्तिशाली धारा का एहसास दिलाने के लिए काफी है।

साहिबी नदी का उद्गम राजस्थान के नीम का थाना में स्थित सेवर पहाड़ियों की पूर्वी ढलान से होता है। यह नदी पास के कई छोटे नालों और नदियों से पोषित होती है, जैसे अडा नाला, बुज गंगा, सोटा, सुरखनली और बनगंगा। इन धाराओं का मिलकर बहना साहिबी नदी को एक विशेष प्रवाह शक्ति प्रदान करता था। इनमें से सोता और सुरखनली दो प्रमुख धाराएं साहिबी नदी में मिलती हैं, और फिर ये तीनों धाराएं मिलकर एक साथ बहती थी। इन तीनों धाराओं के संयुक्त प्रवाह के बारे में एक क्षेत्रीय कहावत भी प्रचलित है:

"सबी, सोता, सुरख्नाली, तीनूं चाले एक गली"

इसके बाद, साहिबी नदी में कई अन्य बरसाती नाले भी मिलते थे, जिनमें इन्दौरी, बादशाहपुर, धरमपुर नाले प्रमुख हैं। हालांकि आज कई नाले नदी के साथ विलुप्त हो चुके हैं, फिर भी गुरुग्राम की तरफ से आने वाले बादशाहपुर और धरमपुर जैसे नाले अब नदी में केवल शहर का गंदा पानी समाहित करते हैं। आज, साहिबी नदी में बहाव की शुरुवात ही गुरुग्राम के गंदे पानी से होता है, जो नजफगढ़ नाले में जाकर मिल जाती है। 

अपने मार्ग को बदलने की प्रवृत्ति के लिए चर्चित साहिबी बाढ़ के दौरान 3 मीटर या उससे अधिक गहरी और नदी का पाट 400 मीटर से लगभग 3 किमी (उफनाने पर) तक भी हो जाती थी। मॉनसून के मौसम में यह नदी ऊंचे भूभाग पर बसे गांवों को टापू में बदल देती थी। कुछ गांवों, जैसे कोटकासिम में, बाढ़ के बचाव के लिए चारों तरफ तटबंध के अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं।

साहिबी नदी विलुप्त

हालांकि अब साहिबी नदी विलुप्त हो चुकी है, फिर भी राजस्थान में नदी के किनारे बसे गांवों में नदी का विकराल स्वरुप लोकस्मृति में जिन्दा है। नदी के किनारे बसे सोड़ावास, माजरी खोला, करनीकोट, मुण्डंवाडा, बीजवाड़, भजनवास, क्यारा, नालपुर, दूनवास सहित अनेक गांवों के लोग आज भी साबी माता की नौती मांगते और नारियल चढ़ाते है। ये रिवाज इस बात का प्रतीक हैं कि नदी के इतिहास, उसकी ताकत और विकराल रूप का आज भी लोगों की यादों में गहरा असर है, जो कभी उनके जीवन का एक अहम हिस्सा हुआ करती थी।

साहिबी नदी अधिकांशतः समतल क्षेत्र से होकर बहती थी, और राजस्थान से लेकर हरियाणा, विशेषकर अलवर, रेवाड़ी, और झज्जर जिलों में यह खेती-किसानी की रीढ़ मानी जाती थी। पहले नदी के आसपास भूमिगत जल लगभग 3 मीटर की गहराई पर उपलब्ध था, जो विभिन्न प्रकार की खरीफ (जैसे बाजरा, ज्वार, ग्वार, मूंग और मटकी) और रबी (जैसे गेहूं, सरसों, चना और तरबूज) फसलों का आधार था। रबी फसलों को नदी के किनारे की मिट्टी की उच्च नमी से विशेष लाभ मिलता था, जिससे इन्हें सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती थी। नदी किनारे उगते झुंडा या सरकंडा घास मिट्टी के कटाव रोकते थे।

भूजल दोहन ने साहिबी नदी को सुखा दिया

हालांकि, भूजल के बड़े पैमाने पर दोहन और नदी के सुखने के बाद वनस्पति और खेती मुख्य रूप से गेहूं और बाजरा तक ही सीमित हो गई। अब साहिबी नदी से सटे इलाकों में भूजल स्तर 30 मीटर से लेकर 67 मीटर तक गिर चुका है, और कुछ स्थानों पर तो यह बेडरॉक (आधार-शैल) के करीब तक पहुंच गया है। 

सूखी हुई साहिबी नदी की पेटी पर अब खेती किसानी होने लगी है, गाँव बसने शुरू हो गए है और सड़क, रेलवे लाइनों जैसे बुनियादी ढांचे के काम भी आ रही है। माजरी खोला में गाँव वाले पारंपरिक ज्ञान के अनुसार, ऊंचाई पर बने अपने घरों को छोड़ नदी तल पर बस गए हैं। वहीं कोटकासिम में घर और सड़कें नदी के ऊपर ही बन गई हैं।

रेवाड़ी शहर और धारूहेड़ा औद्योगिक क्षेत्र में अनुपचारित अपशिष्ट जल मसानी बराज के पास साहिबी नदी की सुखी पेटी में बहाया जा रहा है, जिसके नतिजे में आसपास भूजल स्तर में वृद्धि भी देखी गई है। पर यह भु-जल के संदूषण और जनस्वास्थ्य के एक बड़े खतरे का संकेत है।  

साहिबी नदी : भारत के सभी नदियों की कहानी

साहिबी नदी की कहानी विकसित होते भारत की लगभग हर एक नदी की कहानी है, जिसमें मुख्य किरदार हमारी नदियों का शोषण कर फसल उगाने, बेतरतीब निर्माण कार्य और अंधाधुंध औधोगीकरण की प्रवृत्तियों के साथ-साथ नई तकनीकों की ठसक का है। साहिबी की दुर्दशा की शुरुवात बाढ़ से बचाव के लिए नदी पर नकेल कसने के लिए बनायीं गयी मसानी बराज के साथ शुरू होती है, जिसके साथ साथ भू-जल का दोहन ने भी अपना कमाल दिखाया। कहते है कि मसानी बराज के बनने के बाद से साहिबी कभी ठीक से बह ही नहीं पाई!

हालांकि साहिबी नदी अब विलुप्त हो चुकी है, लेकिन इसके स्मृति चिन्ह के रूप में कई वेटलैंड और प्राकृतिक रहवास आज भी मौजूद हैं, जो आज भी साहिबी नदी की पुरानी धारा की याद दिलाते हैं। इनमें मसानी बैराज वेटलैंड, मातनहेल वन, छुछकवास-गोधरी, खापरवास वन्यजीव अभयारण्य, भिंडावास वन्यजीव अभयारण्य, सरबशीरपुर, सुल्तानपुर राष्ट्रीय उद्यान, बसई वेटलैंड, नजफगढ़ झील और नजफगढ़ ड्रेन पक्षी अभयारण्य शामिल हैं। ये सभी प्राकृतिक स्थल उस पुरातन नदी साहिबी की याद दिलाते हैं, जिसकी पहचान वैदिक काल  की  दृषद्वती नदी से है और भारतीय सभ्यता के साथ सहचर रही थी।

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