भोपाल के बड़े तालाब से रोज़ाना 2 मिलियन लीटर फ़ैक्ट्रियों को देने के नगर निगम के फ़ैसले ने शहर में  जल संकट की आशंका पैदा कर दी है।
भोपाल के बड़े तालाब से रोज़ाना 2 मिलियन लीटर फ़ैक्ट्रियों को देने के नगर निगम के फ़ैसले ने शहर में जल संकट की आशंका पैदा कर दी है। स्रोत: विकीमीडिया कॉमंस

दूसरे स्रोतों के होते हुए भी उद्योगों को क्यों दिया जा रहा है भोपाल के बड़े तालाब का पानी?

विशेषज्ञों का कहना है कि औद्योगिक ज़रूरतों के लिए वैकल्पिक जल स्रोत देखना चाहिए, भोपाल की 40% आबादी को पानी देने वाले तालाब पर अतिरिक्‍त बोझ डालना ठीक नहीं।
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भोपाल के बड़े तालाब से रोजाना 2 मिलियन लीटर (एमएलडी) यानी 20 लाख लीटर पानी बांदीखेड़ी स्थित फैक्ट्रियों को देने के नगर निगम के फैसले ने शहर में आने वाले दिनों में जल संकट की आशंका पैदा कर दी है। निगम के इस फ़ैसले ने नई बहस छेड़ दी है, जिसमें विशेषज्ञों का कहना है कि बड़ा तालाब, जिसे अपर लेक और भोज ताल के नाम से भी जाना जाता है, से अतिरिक्त पानी निकालने से घरेलू जलापूर्ति के लिए पानी की कमी पड़ सकती है।

यह फ़ैसला गर्मियों के दिनों में शहर के लिए बड़ा जल संकट खड़ा कर सकता है, क्‍योंकि उस समय तालाब का जलस्तर काफ़ी नीचे चला जाता है। दूसरी ओर, निगम के अधिकारियों का कहना है कि फ़ैक्ट्रियों को पानी देने से शहर वासियों को होने वाली पानी सप्लाई पर किसी तरह का असर नहीं पड़ेगा।

अमर उजाला की रिपोर्ट के मुताबिक बड़े तालाब से इतनी बड़ी मात्रा में पानी की अतिरिक्त निकासी न केवल भविष्य के लिए नुकसानदायक हो सकती है, बल्कि उसके अस्तित्‍व को ही संकट में डाल सकती है।

मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (मैनिट) के प्रो. जगदीश सिंह का कहना है कि भोपाल के पास 18 वैकल्पिक जल स्रोत हैं, जिनका उपयोग उद्योगों को पानी मुहैया कराने के लिए किया जा सकता है। शहर को जलापूर्ति करने वाले तालाबों और झीलों से उद्योगों को देना आखिरी विकल्प होना चाहिए।

अपर लेक फिलहाल भोपाल को 86.4 एमएलडी पानी सप्लाई कर रही है, जबकि इसकी अधिकतम क्षमता 99 एमएलडी तक ही है। यानी इससे करीब-करीब अधिकतम पानी लिया जा रहा है। इस झील पर पुराने भोपाल के करीब 6 लाख लोग पूरी तरह निर्भर हैं। ऐसी स्थिति में, औद्योगिक उपयोग के लिए अतिरिक्त पानी निकालना झील की क्षमता और शहर की ज़रूरतों के बीच असंतुलन पैदा कर सकता है। गर्मियों में तालाब का स्तर 3 से 4 फीट तक घट जाता है। ऐसे समय में हर बूंद कीमती होती है।

प्रो. जगदीश सिंह, मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान

अपर लेक यानी बड़ा तालाब से उद्योगों को पानी देने से गर्मियों में तालाब का जलस्तर काफ़ी नीचे जाने की आशंका जताई जा रही है।
अपर लेक यानी बड़ा तालाब से उद्योगों को पानी देने से गर्मियों में तालाब का जलस्तर काफ़ी नीचे जाने की आशंका जताई जा रही है।फ़ोटो: आर्यन जैन/Pexels

ज‍ल निकासी के साथ ही अतिक्रमण की भी मार 

बड़े तालाब को दोहरे संकट का सामना करना पड़ रहा है। ज़्यादा ज‍ल निकासी के साथ ही इसे अतिक्रमण की मार भी झेलनी पड़ रही है। इसके चारों ओर ज़मीन पर अवैध कब्जा बढ़ रहा है। जिसने इसकी स्थिति को गंभीर बना दिया है।

शहर के बढ़ते विस्तार के बीच तालाब के कैचमेंट क्षेत्र, तटों और जलग्रहण ज़ोन की भूमि पर अवैध निर्माण व कब्ज़े बढ़ते चले गए। इसका नतीजा यह हुआ कि पहले जिन इलाकों में बारिश का पानी तालाब में पहुंचता था, वे अब कंक्रीट की ऊंची इमारतों, कॉलोनियों और व्यावसायिक भवनों से भर गए हैं। इससे न केवल तालाब में आने वाला प्राकृतिक प्रवाह कमज़ोर हुआ है, बल्कि उसकी मात्रा भी काफ़ी घट गई है।

नतीजतन, यह विशाल जलस्रोत आज केवल नाम का 'बड़ा तालाब' रह गया है, जबकि उसकी वास्तविक क्षमता और पर्यावरणीय भूमिका में लगातार कमी आ रही है। यदि समय रहते संरक्षण, कैचमेंट बहाली और अतिक्रमण हटाने की ठोस कार्रवाई नहीं की गई, तो यह संकट भविष्य में शहर की जल सुरक्षा को सीधे प्रभावित कर सकता है।

अतिक्रमण पर एनजीटी ने मांगी रिपोर्ट

एक रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) की सेंट्रल ज़ोन बेंच, भोपाल ने बड़े तालाब वेटलैंड क्षेत्र में किए जा रहे अतिक्रमण पर कड़ा रुख अपनाते हुए 31 अक्‍टूबर 2025 को भोपाल नगर निगम (बीएमसी) को सख्त कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। एनजीटी ने बीएमसी को कड़ी फटकार लगाते हुए दो सप्ताह के भीतर कार्रवाई रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है।

न्यायाधिकरण ने कहा कि बड़ा तालाब के मामले में आर्द्रभूमि (वेटलैंड) नियमों का अक्षरशः पालन किया जाए और सभी अवैध निर्माणों और अतिक्रमणों को हटाया जाए। वेटलैंड से जुड़े नियमों के मुताबिक कोई भी निर्माण व अतिक्रमण वेटलैंड के “नो-कंस्ट्रक्शन ज़ोन” में नहीं होना चाहिए।

साथ ही, आर्दभूमि की ग्रीन बेल्ट को मजबूत करने के लिए यहां सघन वृक्षारोपण करवाया जाना चाहिए। इसपर बीएमसी ने ट्रिब्‍यूनल को बताया कि अतिक्रमण के आरोपितों को नोटिस जारी किए जा चुके हैं और सुनवाई की प्रक्रिया चल रही है।

ईको सिस्‍टम को भी खतरा

तालाब के लगातार सिमटते दायरे और बढ़ती जल-निकासी के दोहरे दबाव का सीधा असर न केवल शहर की जलापूर्ति पर पड़ेगा, बल्कि इसके पूरे पारिस्थितिक तंत्र के लिए भी गंभीर खतरा पैदा हो रहा है। उद्योगों को बड़ी मात्रा में पानी देने से तालाब का जल स्तर तेजी से नीचे जाएगा। इससे तालाब का जैविक संतुलन भी बिगड़ सकता है।

जल स्रोतों का पानी कम होने पर उसमें घुली ऑक्सीजन की मात्रा घट जाती है, जिससे मछलियों, प्लवक जीवों, घोंघों, मेंढकों से लेकर दर्जनों प्रकार के जलीय कीट-पतंगों तक की जीवित रहने और उनके बढ़ने की क्षमता कम होती जाती है। कई संवेदनशील प्रजातियां तो ऐसे बदलावों को लंबे समय तक झेल ही नहीं पातीं। साथ ही, जलीय पौधों का विकास भी प्रभावित होता है, जबकि यही वनस्पतियां तालाब की खुद को साफ रखने यानी स्व-शुद्धिकरण प्रक्रिया का काम करती हैं।

प्राकृतिक व्यवस्था में आए बदलाव के कारण झील की जलगुणवत्ता गिर सकती है। साथ ही, पानी में बदबू, काई की अधिकता और प्रदूषकों का संचय बढ़ सकता है। यदि यही स्थिति बनी रही, तो बड़ा तालाब के रूप में भोपाल केवल अपना एक जलस्रोत ही नहीं, बल्कि शहर का एक महत्वपूर्ण पारिस्थितिक क्षेत्र अपनी मूल पहचान भी खो देगा। 

इसकी जैव विविधता की बात करें, तो 210 पक्षियों की प्रजातियां, 223 जलीय पौधे और तितलियों की 86 प्रजातियां इसमें शामिल हैं। इसे देखते हुए 19 अगस्‍त 2002 को इसे ‘भोज वेटलैंड’ के नाम से राष्ट्रीय महत्व का वेटलैंड घोषित किया गया था।

जलस्‍तर बढ़ा, पर जलभराव क्षमता घटी

इस साल राहत की बात यह रही कि मानसून में अच्‍छी बारिश होने से बड़ा तालाब का जलस्तर बढ़ा है। हालांकि, बड़ी मात्रा में गाद जमने और सीवेज के कचरे के कारण तालाब की जलभराव क्षमता कम हुई है।

साल 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक अपर लेक (बड़ा तालाब) की कुल जल भंडारण क्षमता 101.6 अरब लीटर से घटकर 75.72 अरब लीटर हो गई है। इस तरह इसकी भंडारण क्षमता में कुल 25.88 अरब लीटर की कमी आई है। 

पत्रिका की एक हालिया रिपोर्ट भी इस बात की पुष्टि करती है कि मानसून में जलस्तर बढ़ने के बाद तालाब का फैलाव दूर-दूर तक दिख रहा है, लेकिन भारी मात्रा में गाद जमा होने के कारण तालाब की जलग्रहण क्षमता करीब 25.90 अरब लीटर कम हो गई है। 

सबसे ज़्यादा गाद तकिया टापू और वन विहार के बीच करीब तीन मीटर तक जमा हो चुकी है। वहीं बैरागढ़ और लहारपुर जैसे 50 से ज्यादा इलाकों में भी गाद की मोटी परत बन गई है। तालाब में जिन-जिन मुहानों से पानी आ रहा है, वहां अधिक गाद जमा हो रही है। रिपोर्ट बताती है कि भोज वेटलैंड प्रोजेक्ट के दौरान अनुमान लगाया गया था कि यदि 2 मीटर गाद निकाल दी जाए, तो तालाब की क्षमता 40 करोड़ लीटर बढ़ सकती है। लेकिन इसपर 400 करोड़ रुपये का बड़ा खर्च आएगा। साथ ही इस काम में करीब 20 साल का समय लगेगा।

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बड़े तालाब में गिर रहा शहर के करीब 40 नालों का गंदा पानी इसे तेज़ी से प्रदूषित कर रहा है।
बड़े तालाब में गिर रहा शहर के करीब 40 नालों का गंदा पानी इसे तेज़ी से प्रदूषित कर रहा है।फ़ोटो: आकांक्षा अग्रवाल/unsplash

नालों के गंदे पानी ने बिगाड़ी हालत

शहर के करीब 40 नालों का गंदा पानी सीधे तालाब में गिर रहा है। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) की रिपोर्ट के अनुसार रोजाना 24.50 करोड़ लीटर अनट्रीटेड सीवेज तालाब में पहुंच रहा है। साल 1950 में तालाब के पानी की गुणवत्ता ए-कैटेगरी की यानी बिना फिल्टर किए पीने लायक थी।

पर सीपीसीबी की रिपोर्ट के अनुसार यह गुणवत्‍ता अब गिरकर सी-कैटेगरी तक पहुंच गई है। यानी पानी नहाने, तैरने या जलक्रीड़ा के लायक तो है, लेकिन पीने लायक नहीं और जलीय जीवन के लिए भी पूरी तरह से उपयुक्त नहीं है। सी-कैटेगरी के पानी में अधिक प्रदूषण और कम घुली ऑक्सीजन (डीओ) होती है। इसलिए इसे केवल सीमित उपयोगों के लिए सुरक्षित माना जाता है।

11वीं सदी में राजा भोज ने बनवाया था तालाब

माना जाता है कि भोपाल के बड़े तालाब का निर्माण 11वीं सदी में परमार वंश के राजा भोज (भोजपाल) ने करवाया था। इन्‍हीं भोजपाल के नाम पर शहर का नाम भोपाल पड़ा। भारतकोश पर दी गई जानकारी में बताया गया है कि स्थानीय किंवदंति के अनुसार राजा भोज को एक बार गंभीर चर्म रोग हो गया था, जिसका कोई भी उपचार नहीं कर सका। तब एक संत ने उन्हें 365 सहायक नदियों को जोड़कर एक जलाशय बनाने और उसमें स्नान करने की सलाह दी ताकि वे स्वस्थ हो सकें।

इस सलाह पर अमल करते हुए, राजा ने अपने गोंड सेनापति कालिया की मदद से इस झील का निर्माण किया। यह विशाल जलाशय बड़ा तालाब के नाम से जाना गया। कहा जाता है कि कलियासोत नाम की एक गुप्त नदी की भूमिगत धारा से इसे पानी मिलता था।

पर्यावरणविद और लेखक अनुपम मिश्र ने अपनी किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’ में इस तालाब के बारे में अलग से एक अध्‍याय "लखरांव को भी पीछे छोड़े, ऐसा था भोपाल ताल’' लिखा है। इसमें उन्‍होंने बताया है कि इस तालाब की विशालता ने आस-पास रहने वालों के गर्व को कभी-कभी घमंड में बदल दिया था।

बड़े तालाब या भोजताल का दायरा काफ़ी सिमट जाने के बावजूद यह अपनी विशालता के लिए जाना जाता है। इसे लेकर भोपाल में एक कहावत भी प्रचलित है कि ‘’ताल तो भोपाल ताल, बाकी सब तलैया।'’ राजा भोज द्वारा बनवाया गया यह ताल कभी 365 नालों, नदियों से भरकर 250 वर्गमील में फैला था। 

एक समय इसका विस्तार करीब 65,000 हेक्टेयर में था और इसकी गहराई कुछ स्‍थानों पर 30 मीटर तक थी। यह भारत का सबसे बड़ा मानव-निर्मित जलाशय था। इस समय भोपाल तालाब का कुल भराव क्षेत्रफल 31 किलोमीटर है, पर अतिक्रमण एवं सूखे के कारण यह क्षेत्र 8-9 किलोमीटर में ही सिमट कर रह गया है।

भोपाल की लगभग 40% आबादी को यह झीलनुमा तालाब पानी देता है। इस बड़े तालाब के साथ ही एक 'छोटा तालाब' भी मौजूद है और यह दोनों जल क्षेत्र मिलकर एक विशाल 'भोज वेटलैंड' का निर्माण करते हैं। दशकों पहले इस तालाब के बीच में कुछ छोटे-छोटे द्वीप भी हुआ करते थे। जलाशय के चारों ओर खुबसूरत पहाड़ियां थीं। यह तालाब कभी प्रसिद्ध भोजपुर शिवालय से आज के भोपाल शहर तक फैला हुआ था। कहा जाता है कि 15वीं सदी में मालवा के सुल्तान होशंगशाह ने इसे तोड़ने की कोशिश की थी।

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