जल निकाय क्या हैं, जल निकायों की गणना (भाग 2)
जल शक्ति मंत्रालय ने पूरे भारत में जल निकायों की प्रथम जनगणना की है। जनगणना तालाबों और झीलों जैसे प्राकृतिक और मानव निर्मित जल निकार्यों सहित भारत के जल संसाधनों की एक सूची प्रदान करती है। जनगणना के तहत 24.24 लाख से अधिक जल निकायों की गणना की गई है, जिनमें 23 लाख से अधिक ग्रामीण क्षेत्रों में और लगभग 69,000 शहरी क्षेत्रों में हैं। जल निकार्यों की संख्या के मामले में पांच राज्य पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और असम शीर्ष पर हैं, जिसमें उपलब्ध जल निकायों की संख्या देश के कुल जल निकायों का लगभग 63 प्रतिशत है।
जल शक्ति मंत्रालय ने पूरे भारत में जल निकायों की प्रथम जनगणना की है। जनगणना तालाबों और झीलों जैसे प्राकृतिक और मानव निर्मित जल निकायों सहित भारत के जल संसाधनों की एक सूची प्रदान करती है। जनगणना के तहत 24.24 लाख से अधिक जल निकायों की गणना की गई है, जिनमें 23 लाख से अधिक ग्रामीण क्षेत्रों में और लगभग 69,000 शहरी क्षेत्रों में हैं। जल निकायों की संख्या के मामले में पांच राज्य पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और असम शीर्ष पर हैं, जिसमें उपलब्ध जल निकायों की संख्या देश के कुल जल निकायों का लगभग 63 प्रतिशत है। जनगणना ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच असमानताओं और अतिक्रमण के विभिन्न स्तरों पर प्रकाश डालती है। जनगणना देश के जल संसाधनों पर महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करती है।
केन्द्रीय जल आयोग द्वारा संकलित एक रिपोर्ट के आंकड़ों का हवाला देते हुए सरकार ने कहा कि देश में जल की प्रति व्यक्ति उपलब्धता 2021 में 1,486 घन मीटर से गिरकर 2031 तक 1,367 घन मीटर होने का अनुमान है। 1951 की, जनगणना के अनुसार प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता 5,000 घन मीटर से अधिक थी। इस प्रकार, प्रदूषण रोकने और जल निकायों के संरक्षण और बहाली के लिए प्रभावी योजना और नीति तैयार करने के लिए जल निकायों पर एक ठोस और विश्वसनीय आंकड़ा बेस तैयार करने अनिवार्य है। आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय उद्देश्यों की पूर्ति के लिए इन निकायों की गणना, संरक्षण, परिरक्षण और नवीनीकरण महत्वपूर्ण होता जा रहा है।
जल निकायों की गणना की आवश्यकता जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग द्वारा सिंचाई जनगणना के लिए केन्द्र द्वारा प्रायोजित योजना के अंतर्गत पंचवर्षीय आधार पर लघु सिंचाई संरचनाओं की गणना की जा रही है। इसके अंतर्गत राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों को शत-प्रतिशत केन्द्रीय सहायता प्रदान की जाती है। देश के इतिहास में पहली बार, जल शक्ति मंत्रालय ने 2018-19 में देश भर में प्रथम बार जल निकायों की गणना की। गणना ने भारत के जल संसाधनों की एक व्यापक सूची प्रदान की, जिसमें तालाब, टैंक, झील आदि जैसे प्राकृतिक और मानव निर्मित जल निकाय शामिल हैं। इनमें जल निकायों के अतिक्रमण पर आँकड़ों को एकत्र किया गया तथा ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों के बीच असमानताओं, अतिक्रमण के विभिन्न स्तरों पर प्रकाश डाला गया तथा देश के जल संसाधनों में महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि को पहचाना गया।
जल शक्ति मंत्रालय ने जल की कमी वाले क्षेत्रों की पहचान करने, जल संरक्षण की योजना बनाने, अतिक्रमण रोकने और जल के विवेकपूर्ण उपयोग एवं संरक्षण के बारे में नीतियों बनाने के लिए जल निकायों की गणना की। यह गणना छठी लघु सिंचाई गणना के साथ समन्वय करते हुए नियोजित की गई थी। लघु सिंचाई गणना और जल निकाय गणना दोनों से प्राप्त जानकारी अटल भूजल योजना को लागू करने में अत्यधिक उपयोगी सिद्ध होगी। इस योजना के अंतर्गत, आंकड़ों का उपयोग ग्राम-पंचायत-वार जल बजट का आंकलन करने, वास्तविक जल सुरक्षा कार्यक्रम तैयार करने और जारी योजनाओं के बीच समन्वय के माध्यम से विभिन्न आपूर्ति मांग पक्ष उपायों की योजना बनाने के लिए किया जा सकता है। लघु सिंचाई संरचनाओं और जलनिकायों से सम्बन्धित ब्लॉक ग्राम पंचायत स्तर के आंकड़े, योजना कर्मियों को स्थानीय स्तर पर समुदाय को वास्तविक भूजल स्थितियों के बारे में जानकारी देने में सहायक सिद्ध होंगे।
तालाब, पोखर, जलाशय, झीलें और अन्य जल निकाय
औद्योगिक, मत्स्य-पालन, पेयजल और भूजल पुनर्भरण जैसे प्रयोजनों के लिए जल के भंडारण के वास्ते उपयोग किए जा रहे ऐसे सभी प्राकृतिक या मानव निर्मित जल निकाय इस गणना में शामिल किए जाने योग्य हैं, जिन्हें चारों ओर चिनाई करके या अन्यथा परिबद्ध करके निर्मित किया गया हो। जल निकाय से अभिप्राय उन संरचनाओं से है, जहाँ आवासीय या अन्य क्षेत्रों से हिमगलन, धाराओं, झरनों तथा वर्षा जल निकासी से जल एकत्र होता है। इनमें किसी धारा, नाले या नदी से परिवर्तित करके भंडारित किया गया जल भी शामिल है, परन्तु महासागरों, नदियों, झरनों, स्विमिंग पूलों, व्यक्तियों द्वारा बनाए गए ढके हुए जल के टैंक, कारखानों और अस्थायी जल निकायों को इस जनगणना से बाहर रखा गया है।
परिगणना के दौरान जल निकायों के सभी महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में जानकारी एकत्र की गई जिसमें उनके प्रकार, स्थिति, अतिक्रमण की स्थिति आदि शामिल हैं। इसमें ग्रामीण और शहरी, दोनों ही क्षेत्रों में स्थित सभी जल निकायों को शामिल किया गया है, चाहे वे उपयोग में हैं या उपयोग में नहीं हैं। परिगणना में जल निकायों के सभी प्रयोजनों, जैसे; सिंचाई, उद्योग, मत्स्य पात्तन, घरेलू पेयजल, मनोरंजन, धार्मिक और भूजल पुनर्भरण आदि को भी ध्यान में रखा गया है। जल निकायों की प्रथम परिगणना के दौरान, देश में 24,24,540 जल निकायों की गणना की गई है, जिनमें से 59.5 प्रतिशत (14,42,993) सरोवर, 15.7 प्रतिशत (2,92,280) जलाशय हैं, जबकि शेष 12.7 प्रतिशत (3,07,462) जल संरक्षण योजनाएं, चेक डैम, भूजल पुनर्भरण टैंक, झीलें और अन्य जल निकाय हैं।
जल निकायों की क्षेत्रीय भिन्नताएं
विभिन्न प्रकार के जल निकायों से सम्बद्ध अग्रणी राज्य अलग-अलग हैं, जिसके लिए राज्यों की भिन्न स्थलाकृतियां उत्तरदायी हैं। परिगणना के अनुसार जल संरक्षण योजनाओं के अंतर्गत जल निकायों के निर्माण में महाराष्ट्र सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में अग्रणी है, इसके लगभग 93 प्रतिशत जल निकाय चेक डेम के रूप में हैं, जिससे पता चलता है कि राज्य के ग्रामीण भाग देश के किसी भी राज्य की तुलना में जल संरक्षण योजनाओं पर अधिक निर्भर हैं। महाराष्ट्र में 97,062 जल निकायों में से 96,343 ग्रामीण क्षेत्रों में और केवल 719 शहरी क्षेत्रों में स्थित हैं। पश्चिमी बंगाल में सबसे अधिक तालाब और जलाशय हैं, जबकि आंन्ध्र प्रदेश में सबसे अधिक तालाब और तमिलनाडु में सबसे अधिक झीलें हैं। देश में सबसे अधिक (0.35 मिलियन) जल निकाय पश्चिमी बंगाल के 24 जनपदों में हैं। इसके बाद आंध्र प्रदेश के अनंतपुर (50,537) और पश्चिमी बंगाल के हावड़ा (37,301) का स्थान है। व्यक्तियों के निजी स्वामित्व वाले जल निकायों की सबसे बड़ी संख्या वाला पश्चिमी बंगाल सूची में सबसे ऊपर है। इसके बाद असम, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और झारखंड का स्थान है। निजी स्वामित्व वाले अधिकांश जल निकाय या तो व्यक्तियों या किसानों के स्वामित्व में हैं, इसके बाद व्यक्तियों के समूहों और अन्य निजी निकायों का स्थान है। ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में, 45 प्रतिशत से अधिक मानव निर्मित जल निकायों की प्रति निकाय मूल निर्माण लागत 50 हजार रुपये तक है।
जल निकायों का अतिक्रमण
परिगणना में प्रथम बार जलाशयों के अतिक्रमण के बारे में जानकारी एकत्र की गई है। प्रतिवेदन में कहा गया है कि परिगणित जल निकायों के 1.6 प्रतिशत (38,496) निकायों का अतिक्रमण किया गया है, इनमें से 95.4 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में और शेष 4.5 प्रतिशत शहरी क्षेत्रों में हैं। उन सभी जल निकायों (अर्थात, 24,516 जल निकायों), जिनके अतिक्रमण क्षेत्र का मापन किया जा सकता है, के 62.8 प्रतिशत जल निकायों में 25 प्रतिशत से कम क्षेत्र अतिक्रमित हैं, जबकि 11.8 प्रतिशत में 75 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र अतिक्रमित है। जल निकायों में सबसे अधिक अतिक्रमण सरोवरों का हुआ है, इसके बाद कृत्रिम तालाबों का स्थान है। सभी अतिक्रमित जल निकायों में से 67.6 प्रतिशत (26,005) सरोवर हैं, 21 प्रतिशत (8,082) कृत्रिम तालाब हैं, 4.5 प्रतिशत (1,745) जल संरक्षण योजनाएं चेक डैम/भूजल पुनर्भरण टैंक हैं और शेष 6.9 प्रतिशत झीलें, जलाशय और अन्य जल निकाय हैं। जल उपयोगकर्ता संघ अतिक्रमणकारियों के प्रति सतर्क और सावधान रहकर अतिक्रमण को रोकने में सहायक रहे हैं।
भंडारण क्षमता, पुनर्भरण की स्थिति और गहराई
देश के 24,24,540 जल निकायों की भंडारण क्षमता की जानकारी एकत्र की गई। इनमें से 50 प्रतिशत (12,12,283) जल निकायों की भंडारण क्षमता 1,000 से 10,000 घन मीटर के क्षमता 1,000 से 10,000 घन मीटर के मध्य पाई गई है, 37.3 प्रतिशत (9,05,297) की भंडारण क्षमता से 1000 घन मीटर के बीच है और शेष 12.7 प्रतिशत (3,06,960) की भंडारण क्षमता 10,000 घन मीटर से अधिक है। संक्षेप में कह सकते हैं कि कुल जल निकायों में से लगभग आधे की भंडारण क्षमता 1,000 से 10,000 घन मीटर के मध्य है।
केवल 21,39,439 जल निकायों के बारे में पूर्ण भंडारण क्षमता और पुनर्भरण की स्थिति की जानकारी एकत्र की गई, जिनमें तालाब, टैंक, झील और जलाशय सम्मिलित हैं। इन जल निकायों में से 41.1 प्रतिशत (8,86,197) में पूर्ण जलाशय स्तर तक की भंडारण क्षमता थी, 28.5 प्रतिशत (6,08,879) में तीन-चौथाई स्तर तक की भंडारण क्षमता थी, 16.4 प्रतिशत (3,50,948) में भंडारण क्षमता आधे स्तर की थी, जबकि शेष 37.7 प्रतिशत (2,95,415) में भंडारण क्षमता कम थी। पिछले पांच वर्षों के दौरान 48 प्रतिशत (10,26,759) जलाशयों में भंडारण क्षमता का लगभग 50% पुनर्भरण प्रति वर्ष पाया गया, 31 प्रतिशत (6,62,415) जल निकाय सामान्यतः भरे हुए पाए गए, जबकि 15.9 प्रतिशत (3,39,941) शायद ही कभी भरे जाते हैं और 5.1 प्रतिशत (1,10,324) जलाशय कभी नहीं भरते हैं।
जल निकायों का अनुरक्षण और नवीनीकरण
जल निकायों का इष्ठतम उपयोग सुनिश्चित करने के लिए उनका उचित अनुरक्षण और रख-रखाव आवश्यक है परन्तु अधिकांश जल निकायों (45.2 प्रतिशत) का अनुरक्षण कभी भी नहीं किया गया। 2009 से पहले 15.7 प्रतिशत जल निकायों का और 2018 के बाद केवल 3.6 प्रतिशत जल निकायों का नवीनीकरण किया गया। जिन जल निकायों का अनुरक्षण किया गया, उनमें से 62.9 प्रतिशत की लागत 50,000 रुपये तक थी जबकि 21.7 प्रतिशत के मामले में पिछली नवीनीकरण लागत 50,000 रुपये से 1 लाख रुपये के बीच थी।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 2010 के दशक के पूर्वार्द्ध से मध्य तक वैश्विक जनसंख्या के लगभग 1.9 बिलियन लोग जल की गंभीर कमी वाले क्षेत्रों में निवास कर रहे थे। वर्ष 2050 तक यह संख्या बढ़कर 2.7-3.2 बिलियन तक पहुँच जाने का अनुमान है। केंद्रीय जल आयोग (CWC) द्वारा प्रकाशित जल एवं संबंधित आँकड़ों (2021) में उल्लेख किया गया है कि वर्ष 2025 तक प्रत्येक तीन में से एक व्यक्ति जल-तनावग्रस्त क्षेत्र में निवास कर रहा होगा। दुर्भाग्यजनक बात यह है कि तालाब, पोखर जैसे लघु जल निकाय जिन पर भारत में लंबे समय से लोग कृषि और घरेलू आवश्यकता के लिए निर्भर रहते थे, अब तेजी से लुप्त हो रहे हैं। इस परिदृश्य में, बढ़ते जल संकट को टालने के लिये जहाँ तक संभव हो जल निकायों में तत्काल वृद्धि करने की आवश्यकता है।
भारत की जल सुरक्षा में परम्परागत जलस्रोतों की महत्वपूर्ण मागीदारी रही है। गाँव और कस्बों में कुएं, तालाब, जोहड़, झील, नाले आदि जल के मुख्य साधन रहे हैं। यह बात और है कि विकास और मानवीय स्वार्थ की पूर्ति के लिए जल निकाय या तो अतिक्रमण की भेंट चढ़ते गए या फिर पूरी तरह विलुप्त हो चुके हैं। इन जल संरचनाओं को पुनर्जीवित करने के लिए केन्द्र सरकार ने जल संरक्षण और ग्रामीण विकास पर केंद्रित विभिन्न योजनाओं को इसके साथ समेकित किया है। केन्द्रीय जल शक्ति मंत्रालय ने वर्ष 2023 में भारत में प्रथम बार तालाबों, झीलों और दूसरे जलस्रोतों की गणना की है। इससे परम्परागत जलस्रोतों से जुड़ी नीतियों को प्रभावी रूप देने में सहायता मिलेगी। जल स्रोतों की प्रथम गणना के अनुसार पश्चिमी - बंगाल में सबसे अधिक जल निकाय हैं। यहाँ तालाब और जलाशय सबसे अधिक हैं। आंध्र प्रदेश टैंकों और तमिलनाडु झीलों की संख्या में सबसे अग्रणी है। जल संरक्षण योजनाओं की संख्या व क्रियान्वयन में महाराष्ट्र आदर्श राज्य है।