भारत में जल प्रदूषण के मुख्य स्रोत और इसके स्वास्थ्य और पर्यावरणीय प्रभाव
परिचय
भारत में जल प्रदूषण एक गंभीर पर्यावरणीय चुनौती है । यह न केवल एक प्रमुख पर्यावरणीय मुद्दा है, बल्कि यह राष्ट्र के स्वास्थ्य और समृद्धि से भी सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है । विभिन्न स्रोतों से होने वाला यह प्रदूषण, जिसमें औद्योगिक निर्वहन, कृषि अपवाह, अनुपचारित सीवेज और कचरे का अनुचित निपटान शामिल हैं, देश की जल गुणवत्ता को लगातार कम कर रहा है । इस रिपोर्ट का उद्देश्य उपलब्ध शोध सामग्री के आधार पर भारत में जल प्रदूषण के प्रमुख कारणों, इसके पर्यावरणीय और स्वास्थ्य प्रभावों और इस समस्या के समाधान के लिए किए जा रहे प्रयासों का संक्षिप्त अवलोकन प्रदान करना है।
जल प्रदूषण के प्रमुख कारण
भारत में जल प्रदूषण के कई कारण हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं:
अ. अनुपचारित सीवेज और घरेलू अपशिष्ट जल:
भारत में जल प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत अनुपचारित सीवेज है । प्रमुख शहरों में प्रतिदिन लगभग 38,354 मिलियन लीटर सीवेज उत्पन्न होता है, लेकिन शहरी सीवेज उपचार क्षमता केवल 11,786 मिलियन लीटर प्रतिदिन है । अधिकांश सरकारी स्वामित्व वाले सीवेज उपचार संयंत्र अनुचित डिजाइन, खराब रखरखाव, बिजली की अविश्वसनीय आपूर्ति, कर्मचारियों की अनुपस्थिति और खराब प्रबंधन के कारण ज्यादातर समय बंद रहते हैं । शहरी क्षेत्रों में उपयोग किए गए लगभग 80% पानी को अपशिष्ट जल के रूप में बाहर निकाल दिया जाता है, जिसे अक्सर ठीक से उपचारित नहीं किया जाता है, जिससे सतही स्तर के ताजे पानी का भारी प्रदूषण होता है । गंगा नदी के किनारे रहने वाले लगभग 500 मिलियन लोगों से निकलने वाला सीवेज सीधे नदी में डाल दिया जाता है, जिसमें साबुन, डिटर्जेंट और मानव मल जैसे रसायन होते हैं । वर्तमान में, उत्पन्न अपशिष्ट जल का केवल लगभग 10% ही उपचारित किया जाता है; शेष सीधे हमारे जल निकायों में छोड़ दिया जाता है । अनियंत्रित शहरीकरण भी सीवेज जल के उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान देता है ।
ब. औद्योगिक निर्वहन और अपशिष्ट जल:
कई उद्योगों से निकलने वाला अपशिष्ट जल नदियों में छोड़ दिया जाता है । 2016 से 2017 तक, यह अनुमान लगाया गया था कि औद्योगिक संयंत्रों द्वारा 7.17 मिलियन टन खतरनाक कचरा उत्पन्न हुआ था । इस अपशिष्ट जल में सीसा, कैडमियम, तांबा, क्रोमियम, जस्ता और आर्सेनिक जैसे भारी धातु होते हैं, जो जलीय जीवन और मानव स्वास्थ्य दोनों पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं । इन धातुओं का जैव संचय स्वास्थ्य पर कई प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है, जैसे कि संज्ञानात्मक कार्य में कमी, जठरांत्र संबंधी क्षति या गुर्दे की क्षति । गंगा नदी के किनारे स्थित इलाहाबाद, कानपुर और वाराणसी जैसे कई औद्योगिक शहर विभिन्न कारखानों जैसे रासायनिक संयंत्रों, चमड़ा कारखानों, शराब भट्टियों, रासायनिक संयंत्रों, अस्पतालों और बूचड़खानों से निकलने वाले अपशिष्टों को नदी में डालते हैं, जिससे जल प्रदूषण होता है । औद्योगिक कचरा मानव कचरे की तुलना में कम मात्रा में होता है, लेकिन यह अधिक हानिकारक होता है, जिसमें गैर-बायोडिग्रेडेबल जहरीले पदार्थ और हानिकारक रसायन होते हैं ।
स. कृषि अपवाह:
कृषि गतिविधियाँ, जैसे सिंचाई और उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग, पास के जल निकायों में अपवाह का कारण बन सकती हैं । इस अपवाह में नाइट्रेट, फॉस्फेट और कीटनाशक जैसे प्रमुख प्रदूषक होते हैं । दुनिया भर में, कृषि जल प्रदूषण का प्रमुख कारण है । हर बार जब बारिश होती है, तो खेतों और पशुधन संचालन से उर्वरक, कीटनाशक और पशु अपशिष्ट पोषक तत्वों और रोगजनकों जैसे बैक्टीरिया और वायरस को हमारे जलमार्गों में बहा ले जाते हैं । पोषक तत्व प्रदूषण, जो पानी या हवा में अतिरिक्त नाइट्रोजन और फास्फोरस के कारण होता है, दुनिया भर में पानी की गुणवत्ता के लिए नंबर एक खतरा है और शैवाल प्रस्फुटन का कारण बन सकता है । फसलों की गहन खेती से उर्वरकों (जैसे नाइट्रेट) और कीटनाशकों के रसायन भूजल में रिस जाते हैं, जिसे आमतौर पर लीचिंग के रूप में जाना जाता है ।
द. कचरे का अनुचित निपटान:
ठोस और खतरनाक कचरे को जल निकायों में फेंकने से जल प्रदूषण हो सकता है । प्रमुख प्रदूषकों में प्लास्टिक, रसायन और भारी धातु शामिल हैं । गंगा जैसी नदियों में पशुओं के शव और बचा हुआ भोजन भी फेंका जाता है । औद्योगिक और घरेलू कचरे का अंधाधुंध निपटान जल प्रदूषण का एक महत्वपूर्ण स्रोत है । त्योहारों के समय बड़ी संख्या में लोग गंगा के किनारे इकट्ठा होते हैं और मानते हैं कि पवित्र जल में डुबकी लगाने से सभी पाप धुल जाते हैं। कुछ व्यक्ति नदी के किनारे मरने को स्वर्ग जाने का एक छोटा रास्ता मानते हैं, जिससे मृत शरीर पानी में तैरते हुए दिखाई देते हैं ।
य. अन्य कारक:
वायुमंडलीय निक्षेपण (एसिड वर्षा) और तेल रिसाव भी जल प्रदूषण के महत्वपूर्ण कारण हैं । जहाजों या अपतटीय ड्रिलिंग प्लेटफार्मों से तेल रिसाव से जलीय जीवन की मृत्यु हो सकती है और पानी के स्रोत दूषित हो सकते हैं । खनन गतिविधियों से अपशिष्ट उत्पादों और खनन स्थलों से अपवाह के कारण जल प्रदूषण हो सकता है, जिसमें भारी धातु और एसिड माइन ड्रेनेज जैसे प्रदूषक शामिल हैं । जलवायु परिवर्तन भी वर्षा के बदलते पैटर्न और तापमान में वृद्धि के माध्यम से जल गुणवत्ता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है । बिजली संयंत्रों और औद्योगिक सुविधाओं से उच्च तापमान वाले पानी को सीधे प्राकृतिक जल स्रोत में छोड़ने से भी जल प्रदूषण माना जाता है, क्योंकि यह ऑक्सीजन के स्तर को कम करता है । भूमि आधारित पेट्रोलियम प्रदूषण वर्षा जल अपवाह द्वारा जलमार्गों में चला जाता है, जिसमें कारों और ट्रकों से तेल, ईंधन और तरल पदार्थ की बूंदें, गैसोलीन स्टेशनों पर जमीन पर फैला हुआ गैसोलीन और औद्योगिक मशीनरी से टपकना शामिल है ।
तालिका 1: जल प्रदूषण के प्रमुख कारण और उनके प्रमुख प्रदूषक
प्रदूषण का कारणप्रमुख प्रदूषकस्रोत स्निपेटअनुपचारित सीवेजमानव अपशिष्ट, सफाई उत्पादों से रसायन, फार्मास्यूटिकल्स, रोग पैदा करने वाले रोगाणुऔद्योगिक निर्वहनभारी धातुएँ (सीसा, कैडमियम, तांबा, क्रोमियम, जस्ता, आर्सेनिक), रसायन, तेल, गैर-बायोडिग्रेडेबल जहरीले पदार्थ, खतरनाक कचराकृषि अपवाहनाइट्रेट, फॉस्फेट, कीटनाशक, पशु अपशिष्ट, रोगजनक (बैक्टीरिया और वायरस)कचरे का अनुचित निपटानप्लास्टिक, रसायन, भारी धातुएँ, पशु शव, बचा हुआ भोजन, ठोस कचरा, खतरनाक कचरा, सांस्कृतिक कचरा (मृत शरीर)वायुमंडलीय निक्षेपणएसिड वर्षा, वायुजनित प्रदूषकतेल का रिसावतेल, सफाई प्रक्रिया में उपयोग किए जाने वाले रसायनखनन गतिविधियाँभारी धातुएँ, एसिड माइन ड्रेनेज, तलछट, मेटालॉइड और अवशेष मिश्रित पानी, रेडियोधर्मी कचराजलवायु परिवर्तनवर्षा के बदलते पैटर्न, तापमान में वृद्धि (जिससे पोषक तत्वों का अपवाह और पानी की उपलब्धता में परिवर्तन होता है)तापीय निर्वहनउच्च तापमान वाला पानी (ऑक्सीजन का स्तर कम करता है)पंपिंग स्टेशन और बांध(अप्रत्यक्ष रूप से जल प्रवाह और जलीय जीवन को प्रभावित करके प्रदूषण को प्रभावित करता है)
जल प्रदूषण के पर्यावरणीय और स्वास्थ्य प्रभाव
जल प्रदूषण के गंभीर पर्यावरणीय और स्वास्थ्य संबंधी परिणाम होते हैं:
अ. स्वास्थ्य प्रभाव:
दूषित पानी हैजा, टाइफाइड और हेपेटाइटिस जैसी जलजनित बीमारियों का एक महत्वपूर्ण कारण है, जिससे बीमारी, अस्पताल में भर्ती और यहां तक कि प्रदूषित जल स्रोतों के संपर्क में आने वाली आबादी में मृत्यु भी हो जाती है । भारी धातुओं की उपस्थिति से संज्ञानात्मक कार्य में कमी, जठरांत्र संबंधी क्षति और गुर्दे की क्षति जैसे कई प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभाव हो सकते हैं । अनुपचारित घरेलू अपशिष्ट जल से जलजनित रोग हो सकते हैं । प्रदूषित पानी से रोग पैदा करने वाले रोगाणु अंततः हमारे घरों तक पहुँचते हैं । भारत में लगभग 40 मिलियन लोग हर साल जलजनित बीमारियों से पीड़ित होते हैं, जिससे लगभग 400,000 मौतें होती हैं ।
ब. पर्यावरणीय क्षरण:
भारी धातुएँ, कीटनाशक और औद्योगिक रसायनों जैसे प्रदूषक जलीय पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुँचाते हैं । वे पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन को बाधित करते हैं, जिससे मछली और अन्य जलीय जीवों की संख्या में कमी आती है, जैव विविधता का नुकसान होता है और आवास का क्षरण होता है । औद्योगिक निर्वहन से जलीय जीवन के लिए विषाक्तता होती है, और कृषि अपवाह (सुपोषण, शैवाल प्रस्फुटन) और तेल रिसाव से जलीय जीवन का नुकसान होता है । खनन गतिविधियों से जल स्रोतों का प्रदूषण, जलीय जीवन का नुकसान और आवासों का विनाश होता है । अत्यधिक जैव निम्नीकरणीय पदार्थ के कारण ऑक्सीजन की कमी से एरोबिक जीव मर जाते हैं, और एनारोबिक जीव हानिकारक विष जैसे अमोनिया और सल्फाइड पैदा करने के लिए अधिक बढ़ते हैं । सीवेज से कार्बनिक पदार्थों के अपघटन के कारण ऑक्सीजन की कमी से कई जलीय प्रजातियां मर जाती हैं, और यदि ऑक्सीजन का स्तर शून्य तक गिर जाता है, तो पानी सेप्टिक हो जाएगा । अत्यधिक कार्बनिक पदार्थों और पोषक तत्वों के कारण शैवाल का तेजी से विकास होता है, जिससे पानी ऑक्सीजन की कमी से ग्रस्त हो जाता है और दुर्गंधयुक्त हो जाता है । कीटनाशक ताजे पानी को दूषित करते हैं और मछलियों को नुकसान पहुँचाते हैं । पारिस्थितिकी तंत्र के विघटन से पारिस्थितिक असंतुलन, प्रजातियों का विलुप्त होना और खाद्य श्रृंखलाओं में व्यवधान हो सकता है ।
स. पीने के पानी का संदूषण:
औद्योगिक निर्वहन और कृषि अपवाह के कारण भूजल संदूषण लाखों लोगों को प्रभावित करता है जो पीने के लिए इस पर निर्भर हैं । भारत के कई हिस्सों में आर्सेनिक और फ्लोराइड जैसे संदूषकों का उच्च स्तर दर्ज किया गया है, जिससे गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं । औद्योगिक निर्वहन, अनुचित कचरा निपटान और वायुमंडलीय निक्षेपण से पीने के पानी के स्रोत दूषित हो जाते हैं । अनुपचारित अपशिष्ट जल से प्रदूषक भूजल, नदियों और अन्य जल निकायों में प्रवेश करते हैं, जो अंततः घरों तक अत्यधिक दूषित पानी के रूप में पहुँचते हैं । पीने योग्य भूजल और सतही जल सीवेज से प्रदूषित हो रहा है ।
द. कृषि पर प्रभाव:
कीटनाशकों और उर्वरकों युक्त कृषि अपवाह जल स्रोतों को दूषित करता है और मिट्टी की उर्वरता को प्रभावित करता है, जिससे फसल की पैदावार कम होती है और खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव पड़ता है । सिंचाई के लिए उपयोग किए जाने वाले पानी में संक्रामक बैक्टीरिया और बीमारियों के कारण फसलें खराब हो जाती हैं ।
य. आर्थिक लागत:
जल प्रदूषण के आर्थिक प्रभाव में स्वास्थ्य सेवा से जुड़े खर्च, आजीविका का नुकसान (विशेषकर मछली पकड़ने वाले समुदायों के लिए), और जल उपचार और शुद्धिकरण के खर्च शामिल हैं । यह अनुमान लगाया गया है कि 2022 में हीटवेव, जो पानी की कमी और प्रदूषण से जुड़े हैं, के कारण भारत को अपने सकल घरेलू उत्पाद का 8% नुकसान हुआ । वायु प्रदूषण (अक्सर साझा स्रोतों के माध्यम से जल प्रदूषण से जुड़ा होता है) के कारण 2019 में भारत को 36.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ ।
जल प्रदूषण के समाधान और पहल
भारत में जल प्रदूषण से निपटने के लिए कई समाधान और पहलें मौजूद हैं:
अ. अपशिष्ट जल उपचार:
सीवेज और औद्योगिक अपशिष्टों को जलीय निकायों में छोड़ने से पहले ठीक से उपचारित करने के लिए अपशिष्ट जल उपचार संयंत्रों को स्थापित करना महत्वपूर्ण है । यमुना नदी के किनारे ग्यारह उपचार संयंत्र स्थापित किए जा रहे हैं, और गुड़गांव में एक उपचार संयंत्र स्थापित किया गया है । अपशिष्ट जल उपचार संयंत्रों के उन्नयन और विस्तार की आवश्यकता है, साथ ही पोषक तत्वों, भारी धातुओं और खतरनाक यौगिकों जैसे संदूषकों को कुशलतापूर्वक हटाने के लिए अत्याधुनिक उपचार तकनीकों का उपयोग करने की आवश्यकता है । भारत की नमामि गंगे पहल ने सीवेज उपचार संयंत्रों में अरबों रुपये का निवेश किया है । अपशिष्ट जल उपचार के उचित संचालन को सुनिश्चित करने के लिए उपकरणों का नियमित रखरखाव आवश्यक है, जिसमें जल उपचार सेंसर जैसे अनुप्रयोग शामिल हैं । औद्योगिक अपशिष्ट जल के उपचार को एक आकर्षक व्यवसायिक प्रस्ताव बनाना भी एक संभावित समाधान है ।
ब. टिकाऊ कृषि:
हानिकारक रसायनों के उपयोग को कम करने के लिए जैविक कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना चाहिए । एकीकृत कीट प्रबंधन, फसल चक्रण और सटीक कृषि जैसी प्रथाओं को अपनाना चाहिए । कृषि अपवाह को जलीय निकायों तक पहुँचने से पहले पकड़ने के लिए आर्द्रभूमि और बफर जोन बनाना चाहिए । किसानों को जैविक खेती की ओर बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना न केवल नदियों के लिए आवश्यक है, बल्कि मिट्टी, किसानों की आय और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा है ।
स. सरकारी पहलें और नियम:
यमुना एक्शन प्लान और राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) के तहत परियोजनाएं यमुना नदी के संरक्षण के लिए योजनाबद्ध हैं । उद्योगों और अस्पतालों द्वारा नदी में कचरा न डालने के लिए नियमों का कड़ाई से कार्यान्वयन आवश्यक है । प्रदूषण को रोकने के लिए नियामक उपायों और रणनीतियों की आवश्यकता है । नमामि गंगे पहल ने सीवेज लाइनों को बिछाने और अपशिष्ट जल उपचार संयंत्रों के निर्माण में महत्वपूर्ण प्रगति की है । शहरी नदी प्रबंधन के मुद्दों पर सहयोग के लिए भारत और अमेरिका ने समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं ।
द. सामुदायिक भागीदारी और जागरूकता:
लोगों को जैव निम्नीकरणीय पेंट का उपयोग करने और नदियों में कचरा डंप करने से रोकने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए शैक्षिक कार्यक्रमों की आवश्यकता है । उद्योगों द्वारा अपशिष्ट निपटान पर निगरानी रखने में अधिकारियों की मदद करने के लिए स्थानीय लोग नियमित रूप से जमीनी परिणाम और गतिविधियां रिपोर्ट कर सकते हैं । सीवेज प्रणाली और अपशिष्ट निपटान विधियों के उचित रखरखाव को सुनिश्चित करने के बारे में लोगों को प्रशिक्षित और शिक्षित करना आवश्यक है । समुदायों को कचरा प्रबंधन प्रणाली बनाने में मदद करना जो रीसाइक्लिंग और अपसाइक्लिंग के माध्यम से आजीविका प्रदान कर सके, महत्वपूर्ण है । वर्षा जल संचयन को अपनाने से घरेलू और अन्य जरूरतों के लिए पूरे वर्ष बिना दूषित पानी की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता है ।
य. तकनीकी और नवीन समाधान:
स्वचालित नदी गुणवत्ता निगरानी और जल के प्रभावी और कुशल आवंटन और उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए निजी क्षेत्र, स्थानीय समुदायों और गैर सरकारी संगठनों को जोड़कर जल प्रबंधन का एकीकरण आवश्यक है । मौजूदा जल उपचार के लिए नई रणनीतियाँ, जैसे स्वचालित नदी गुणवत्ता निगरानी, विकसित की जानी चाहिए । नदी के किनारे फव्वारों या घास के मैदानों, तालाबों, वृक्षारोपण आदि के साथ पार्क विकसित करना चाहिए ताकि पानी को कृत्रिम वातन से गुजरने का अवसर मिल सके जिससे नदी का स्व-शुद्धि हो सके । उपग्रह आधारित जल निगरानी का उपयोग किया जा सकता है । अपशिष्ट जल उपचार में जल उपचार सेंसर महत्वपूर्ण हैं । तूफान के पानी के प्रबंधन के लिए रिवर्स ऑस्मोसिस (RO), उन्नत ऑक्सीकरण और रेत निस्पंदन जैसी तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है । अपशिष्ट जल को औद्योगिक और कृषि उद्देश्यों के लिए आवश्यक स्तर तक उपचारित करके "गंदगी से धन" बनाने के लिए आवश्यक तकनीकें पहले से ही उपलब्ध हैं ।
चुनौतियाँ और आगे की राह
भारत में जल प्रदूषण से प्रभावी ढंग से निपटने में कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं। कई सरकारी स्वामित्व वाले सीवेज उपचार संयंत्र अनुचित डिजाइन, खराब रखरखाव या बिजली की अविश्वसनीय आपूर्ति के कारण ज्यादातर समय बंद रहते हैं । भारत में सीवेज उपचार क्षमता की कमी है । देश में लागू कानूनों के बावजूद, तकनीकी विशेषज्ञता, राजनीतिक इच्छाशक्ति और आवश्यक संसाधनों की कमी के कारण उनका कार्यान्वयन आसान नहीं है । अधिकांश भारतीय शहरों में अपशिष्ट जल उपचार की सुविधाएँ अपर्याप्त हैं । भारत में उत्पन्न सीवेज का केवल 28% ही उपचारित किया जाता है । तेजी से शहरीकरण के कारण उत्पन्न भारी मात्रा में नगरपालिका ठोस कचरे का प्रबंधन एक बड़ी चुनौती है ।
इन चुनौतियों का सामना करने के लिए कई कदम उठाए जा सकते हैं। अपशिष्ट जल उपचार अवसंरचना में निवेश बढ़ाना और मौजूदा संयंत्रों के उचित संचालन और रखरखाव को सुनिश्चित करना आवश्यक है । टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए और उन्हें प्रोत्साहित किया जाना चाहिए । नियामक ढांचे को मजबूत करने और प्रभावी प्रवर्तन सुनिश्चित करने की आवश्यकता है । प्रदूषण की निगरानी और रोकथाम में जन जागरूकता और सामुदायिक भागीदारी को बढ़ाया जाना चाहिए । नवीन और लागत प्रभावी जल उपचार प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान और विकास में निरंतर निवेश महत्वपूर्ण है । विभिन्न हितधारकों को शामिल करते हुए एकीकृत जल प्रबंधन दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए । अनियंत्रित शहरीकरण और अनुचित अपशिष्ट प्रबंधन जैसे प्रदूषण के मूल कारणों को संबोधित करना भी आवश्यक है ।
निष्कर्ष
भारत में जल प्रदूषण एक गंभीर समस्या है जिसके कई कारण और व्यापक पर्यावरणीय और स्वास्थ्य प्रभाव हैं। अनुपचारित सीवेज, औद्योगिक निर्वहन, कृषि अपवाह और कचरे का अनुचित निपटान जल निकायों को दूषित करने वाले प्रमुख कारक हैं, जिससे जलजनित बीमारियाँ, पारिस्थितिक तंत्र का क्षरण और पीने योग्य पानी की कमी होती है। इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए अपशिष्ट जल उपचार, टिकाऊ कृषि, मजबूत सरकारी पहल, सामुदायिक भागीदारी और तकनीकी नवाचार सहित बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। जनसंख्या के स्वास्थ्य और कल्याण और पर्यावरण की स्थिरता के लिए इस महत्वपूर्ण पर्यावरणीय मुद्दे को संबोधित करना आवश्यक है। जल प्रदूषण को कम करने के लिए सभी हितधारकों के निरंतर और Concerted प्रयासों की आवश्यकता है।