ऐसे मिलेगी गोमती की सहायक सरायन नदी को ज़िंदगी
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी ज़िले से निकल कर सीतापुर तक बहने वाली पौराणिक नदी सरायन को पुनर्जीवित करने के लिए पिछले पांच-छह साल से चल रही कोशिशें अगले चरण में पहुंच गई हैं। बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर वेंकेटेश दत्ता की अगुवाई वाली नदी जीर्णोद्धार समिति ने सीतापुर में नदी का रेस्टोरेशन प्लान बीते 6 अगस्त 2025 को प्रशासन को सौंप दिया है। इससे नदी को पुनर्जीवित करने की योजना के अंतिम दौर के काम को आगे बढ़ाने की राह खुल गई है।
जीर्णोद्धार समिति में क्षेत्रीय प्रशासक (सीडीओ, मनरेगा) की अध्यक्षता में विशेषज्ञ के तौर पर शामिल प्रोफेसर दत्ता के अलावा संबंधित प्रखंडों के बीडीओ, एसडीएम और तहसीलदार शामिल हैं। इसके अलावा, उन ग्राम पंचायतों के प्रधानों और सचिवों को भी सदस्य के रूप में शामिल किया गया है जिनसे यह नदी गुजरती है। साथ ही, गोला नगर पालिका के अध्यक्ष और अधिशासी अधिकारी और गोला चीनी मिल के प्रबंधक को भी समिति में शामिल किया गया है।
समिति के रेस्टोरेशन प्लान के तहत सरायन नदी को नया जीवन देने के लिए खीरी ज़िले में नदी के उद्गम स्थल से लेकर सीतापुर ज़िले में नदी के बहाव क्षेत्र में पड़ने वाले आसपास के तालाबों को नदी से जोड़ा जाएगा। इसके अलावा, नदी के आसपास के क्षेत्र में वृक्षारोपण भी किया जाएगा। इसके लिए स्थानीय परिवेश में तेज़ी से बढ़ने और लंबे समय तक टिके रहने वाले पौधों का चुनाव किया जाएगा। नदी के आसपास के इलाकों से अवैध कब्ज़ा और अतिक्रमण हटाने के काम में भी तेज़ी लाई जाएगी। नदी से हो रहे अवैध बालू उत्खनन पर पूरी तहर से रोक लगाने के उपाय करना भी प्लान में शामिल है।
रेस्टोरेशन प्लान सौंपे जाने से पूर्व सीतापुर में ज़िला प्रशासन ने नदी को अतिक्रमण मुक्त कराने के लिए अभियान चलाया था और नदी पुनरूद्धार कार्यों की समीक्षा करते हुए जिलाधिकारी ने लंबित कामों को तत्काल शुरू करने के निर्देश दिए थे। समीक्षा बैठक में डीएम ने नदी के आसपास के सभी चिन्हित तालाबों की सफाई और इनलेट कनेक्शन ठीक करने का कार्य मानसून से पहले पूरा कराने का निर्देश दिया था। उन्होंने नदी के आस-पास योजना के अनुरूप पौधारोपण कराने का भी निर्देश दिया था।
कई तालाबों में बारिश या आसपास के स्रोतों से पानी आने का रास्ता (इनलेट) टूट-फूट या बंद हो गया है। इनकी मरम्मत की जाएगी, ताकि पानी तालाब तक आ सके। डीएम ने नदी के ड्रोन सर्वे एवं रिमोट सेंसिंग सर्वे के लिए आवश्यक कार्यवाही को आगे बढ़ाते हुए ड्रेन खुदाई का काम जल्द पूरा कराने के निर्देश भी दिये। नदी और उसके आसपास की सही-सही स्थिति का आकलन करने के लिए ड्रोन और सैटेलाइट जैसी तकनीक से तस्वीरें व डेटा जुटाया जाएगा। इससे पता चलेगा कि कहां-कहां अतिक्रमण है और किस जगह नदी के पानी का बहाव कैसा है। इससे प्रशासन को पता चल सकेगा कि किन स्थानों पर अतिक्रमण हटाने और किन जगहों पर नदी की सफाई करने की ज़रूरत है।
नदी का रूट और लंबाई
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर और सीतापुर के मध्य बहने वाली सरायण नदी को अब सरायन नदी कहा जाने लगा है। गोमती की इस सहायक नदी का उद्गम स्थल लखीमपुर खीरी ज़िले के बांकेगंज ब्लाक के बिजोखर मजरे के एक तालाब को माना जाता है। नदी की कुल लंबाई लगभग 285 किलोमीटर है। लखीमपुर ज़िले के गोला ब्लॉक और मितौली ब्लाक के बीच लगभग 62 किलोमीटर तय करने के बाद यह हरगांव ब्लाक के हैदरपुर के पास सीतापुर ज़िले में प्रवेश कर जाती है। सीतापुर ज़िले में सरायन नदी 195.49 किलोमीटर की दूरी में बहती है।
यह हरगांव, ऐलिया, खैराबाद, मछरेहटा, कसमंडा, गोंदलामऊ होकर सिधौली ब्लाक के मनवा-कंटाइन गांव के पास गोमती नदी में मिल जाती है। इससे पहले लखीमपुर खीरी से निकलने वाली जमुआरी नदी भी सीतापुर में आकर सरायन नदी में मिलती है। हरगांव विधानसभा क्षेत्र के हैदरपुर के भवनापुर में जमुआरी नदी सरायन में विलीन होती है। खीरी ब्रांच शारदा नहर का स्केप जमुआरी नदी में ही गिरता है। इस तरह लखीमपुर खीरी से जमुआरी नदी सीतापुर जिले में आकर सरायन नदी में विलीन होती है। सरयू की तरह सरायन नदी का स्पष्ट उल्लेख तो पौराणिक ग्रंथों में नहीं मिलता, पर मान्यता है कि वनवास के समय भगवान राम ने इस नदी में स्नान किया था।
अतिक्रमण, प्रदूषण से लेकर जलकुंभी तक दुर्दशा के ज़िम्मेदार
कभी इसी सरायन से लोग अपनी प्यास बुझाते थे। यह वह दौर था, जब इसका पानी स्वच्छ हुआ करता था। इसे रीचार्ज करने वाले भूमिगत सोते (जलभृत) खुले हुए थे मगर धीरे-धीरे नदी के आसपास बस्तियां बढ़ीं और घरों-मोहल्लों के ड्रेनेज का पानी बिना किसी ट्रीटमेंट के नदी में गिराया जाने लगा। दर्जनों नाले दूषित पानी के साथ ही पॉलीथिन और कचरा नदी में गिराने लगे।
अतिक्रमण के चलते पहले तो नदी के सोते बंद हुए और प्रदूषण के कारण पानी बदबूदार और काला हो गया। इस तरह सरायन नाले जैसी दिखने लगी। आज स्थिति यह है कि रासायनिक प्रदूषण, सिल्ट के जमाव और जलकुंभी की समस्या के चलते सरायन नदी आज अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। गोला चीनी मिल और नगर पालिका अपना ब्लैक वाटर सरायन नदी में डालती है, जिसके कारण नदी में प्रदूषण और बढ़ जाता है। कई इलाकों में जलकुंभी के जमाव ने भी नदी के ईकोसिस्टम को बिगाड़ दिया है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक दस साल पहले तक नदी में पानी होने पर आसपास के इलाकों में भूजल स्तर 30 फीट के आसपास था, जो आज गिरकर 120 फीट से भी नीचे जा चुका है। कई इलाकों में तो 150 फीट बोरिंग करने पर भी पानी नहीं निकलता। ज़ाहिर है, अगर इस स्थिति को सुधारते हुए नदी को पहले के रूप में नहीं लाया गया तो आने वाले दस साल में शहर की साढ़े पांच लाख से अधिक की आबादी (2011 की जनगणना के आंकड़े के आधार पर अनुमानित जनसंख्या) को गंभीर जल संकट से जूझना पड़ सकता है।
नवभारत टाइम्स में 28 नवंब 2017 को प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक सरायन नदी के संरक्षण के लिए वर्षों से काम कर रहे सीतापुर नगर पालिका के पूर्व चेयरमैन आशीष मिश्र ने संवाददाता को बताया था कि 2010 में बाढ़ की वजह से तत्कालीन राज्य सरकार ने सरायन नदी में बनबसा बैराज और शारदा कैनाल का पानी छोड़ने पर रोक लगा दी थी। उसके बाद से ही नदी बारिश या नालों के पानी पर निर्भर रह गई है।
गोला चीनी मिल सहित कई अन्य औद्योगिक इकाइयों का दूषित जल और रासायनिक कचरा नदी में डाले जाने कारण यह अब नाले की तरह दिखने लगी है। उनका कहना था कि नदी में पानी का बहाव बढाने के लिए कैनाल से पानी छोड़े जाने और नालों पर रोक लगाने की ज़रूरत है। नदी को पुनर्जीवनत करने के लिए तटवर्ती इलाकों को भी अतिक्रमण मुक्त करना होगा। शहर के भूमाफिया नदी पर कब्जा करने के प्रयास में हैं। श्माशान घाट से लेकर शहर के दूसरे छोर तक नदी के दोनों तरफ सैकड़ों अवैध कब्जे हैं। कई जगह पर जमीन प्लॉटिंग कर बेच दी गई है, जिनपर लोगों ने मकान भी बनवा लिए हैं।
हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक सीतापुर के जिलाधिकारी अभिषेक आनंद ने कैंची पुल के पास नदी की सफाई काम का मुआयना किया। इस दौरान उन्होंने अपर जिलाधिकारी नीतीश कुमार सिंह को जल निगम से समन्वय कर वैकल्पिक निकासी की योजना बनाने का निर्देश भी दिया। उन्होंने अधिशासी अधिकारी वैभव त्रिपाठी को नदी से ठोस अपशिष्ट और प्लास्टिक कचरा हटाने के निर्देश दिए। साथ ही, प्रभागीय वनाधिकारी नवीन खंडेलवाल को नदी तटों पर सुरक्षात्मक फेंसिंग और पौधरोपण के निर्देश दिए गए।
लोगों को अहसास कराना होगा, नदी है ये, नाला नहीं : डॉ. दत्ता
रेस्टोरेशन प्लान तैयार करने वाले प्रो. वेंकेटेश दत्ता का कहना है कि दोनों शहरों में आबादी बढ़ी तो नालों को नदी में जोड़ दिया गया। नदी के फ़्लो से ज़्यादा अगर नाले का फ़्लो होगा, तो नदी नाला बन जाएगी। इसके लिए नालों का डायवर्जन करके पानी का उपचार करना होगा।
नदी को पुनर्जीवित करने के लिए सबसे बड़ा चैलेंज यही है कि ये नदी लोगों के ज़हन में नाले की शक्ल ले चुकी है। अब लोगों को ये कैसे अहसास कराएं कि ये नदी है नाला नहीं? हमने सरायन का बेसिन मैप बनाया तो पता चला कि इसकी भी कई सहायक नदियां हैं। सबसे बड़ी सहायक नदी गोन है, फिर तिरई, बेता, जमुआरी, अबगावन जैसी छोटी धाराएं है। इन सभी को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जाएगा। ड्रोन सर्वे कर लिया है, वाटरशेड बना लिया। सबसे पहले हम फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के साथ मिलकर नदी के आस-पास जंगल बनाया जा रहा है। इसके लिए करीब 5-5 हेक्टेयर की दस जगह चुनी हैं। ये वन विभाग की ज़मीनें हैं।
डॉ. वेंकटेश दत्ता, अध्यक्ष, सरायन नदी जीर्णोद्धार समिति
500 तालाबों को किया जाएगा बहाल, मुक्त कराएंगे ‘फ़्लड प्लेन ज़ोन’
रिपोर्ट के मुताबिक पुनरुद्धार की योजना के तहत सरायन नदी के दोनों तरफ 50-50 मीटर ‘फ़्लड प्लेन ज़ोन को चिह्नित कर उसे अतिक्रमणमुक्त कराया जाएगा, क्योंकि फ़्लड प्लेन ज़ोन नदियों के आसपास के भूगर्भ जल स्तर को बढ़ाने में मददगार होते हैं। फ़्लड प्लेन ज़ोन पर अतिक्रमण होने से बारिश का पानी नदी तक नहीं पहुंच पाता। ये ज़ोन नदी के वे किनारे होते हैं जहां बारिश व बाढ़ का पानी जमा हो जाता है। इस तरह, फ़्लड प्लेन ज़ोन का संरक्षण बाढ़ से होने वाले नुकसान को कम करने में भी मददगार होता है। यह प्राकृतिक वातावरण नदी के ईको-सिस्टम और जैव विविधता को संरक्षित करने में भी मदद करता है।
इसके अलावा, नदी के 500 मीटर के दायरे में आने वाले तालाबों और झीलों का प्राकृतिक स्वरूप बहाल किया जाएगा, ताकि नदी की रीचार्ज क्षमता बढ़े। एक सर्वे करा कर नदी के दोनों किनारों पर बसे 152 गांवों के 500 तालाबों को चिह्रित किया गया है। छोटे तालाबों की साफ-सफाई मनरेगा से होगी। बड़े तालाब और झीलों की सफाई के लिए केंद्र सरकार के ‘नमामि गंगे’ प्रोजेक्ट से सहयोग लिया जाएगा।
500 तालाबों को सरायन नदी से जोड़ने का मतलब नदी और उसके आसपास के तालाबों के आपसी जल प्रवाह (inflow–outflow) का कनेक्शन बहाल करने से है। इसके लिए पुराने प्राकृतिक जलमार्ग और नाले फिर से खोले जाएंगे, ताकि तालाब और नदी एक-दूसरे को पानी दे-ले सकें। इससे बरसात में नदी का अतिरिक्त पानी तालाबों में जाएगा और गर्मी में तालाबों का पानी धीरे-धीरे नदी में वापस आकर जल पुनर्भरण के जरिये उसके जल स्तर को बनाए रखेगा।
तालाबों को नदी से जोड़ने के लिए छोटे-छोटे नाले, पक्की नालियां बनाई जा सकती हैं या पाइपलाइन डाले जा सकते हैं, ताकि ग्रैविटी फ़्लो (ऊंचाई के फर्क) से पानी बह सके। पुराने समय में अकसर तालाब इस तरह बने थे कि बरसात का अतिरिक्त पानी नालों या छोटी नहरों से नदी तक पहुंचता था और जरूरत पड़ने पर नदी का पानी भी तालाब में आ जाता था। अब ये रास्ते या तो बंद हो गए हैं या पक्के निर्माण से टूट गए हैं। इन्हें दोबारा खोदकर या साफ करके नदी से जोड़ा जाएगा।
बनेगा एसटीपी, मिलेगा शारदा नदी का पानी
नदी में प्रदूषित पानी न जाए, इसके लिए किनारों पर दो सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) बनाने की भी योजना है। जल निगमों ने इसकी सहमति दी है। नदी के उद्गम स्थल के पास लखीमपुर के गोला में एक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) बनाने की सिफारिश की गई है।
नदी में पानी का प्रवाह बढ़ाने के लिए उद्गम स्थल से महज पांच सौ मीटर दूरी पर शारदा नहर की खरी ब्रांच केनाल (शाखा नहर) से नदी में पानी छोड़ने का निर्णय लिया गया है। नदी के प्रवाह में तेज़ी आने से, ठहरे हुए पानी में होने वाला प्रदूषक तत्वों के जमाव कम होगा। खासकर गोला क्षेत्र में गोला शुगर मिल के दूषित जल के उपचार में मदद मिलेगी। दुर्गंध और बीमारी फैलाने वाले जलीय जीवों के पनपने की समस्या का समाधान हो सकेगा। साथ ही, नदी में नहर का पानी छोड़े जाने से नदी के आसपास के इलाकों में किसानों को खेतों की सिंचाई के लिए भी पानी उपलब्ध हो सकेगा।
नदी को प्रदूषित करने वाले दो बड़े हॉटस्पॉट हैं। दोनों हॉटस्पॉट पर 35-40 एमएलडी का एक-एक एसटीपी बनाने की योजना है। पहला हॉटस्पॉट तो गोला की चीनी मिलें हैं। वे मानते ही नहीं कि वे नदी में प्रदूषित पानी और कचरा गिरा रहे हैं। दूसरा हॉटस्पॉट सीतापुर शहर है। यहां छोटे बड़े 36 नाले नदी में गिरते हैं। बड़े नालों को मिलाकर इंटरसेप्टर ड्रेन बनाया जाएगा। छोटे नालों के लिए बायो रीमेडिएशन किया जा सकता है, जिसमें सूक्ष्म जीवों की मदद से प्रदूषण खत्म किया जाएगा। बाकी नदी का 90 फीसदी कैचमेंट गांवों में है, जहां प्रदूषण की इतनी समस्या नहीं है।
डॉ. दत्ता
जंगल उगाकर नदी के पारिस्थितिकी को किया जाएगा मज़बूत
नदी के किनारों पर पेड़-पौधे लगाकर उसके तटबंधों को सुरक्षित और संरक्षित करने का काम भी रेस्टोरेशन प्लान के तहत किया जाना है। एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक इसकी शुरुआत 9 से 11 जुलाई 2025 तक सीतापुर जिले में वन विभाग की ओर से ‘एक पेड़ मां के नाम - 2.0' अभियान चलाकर की जा चुकी है।
इस अभियान में सरायन नदी के किनारे करीब सौ हेक्टेयर भूमि पर पौधरोपण की योजना है। प्रभागीय निदेशक वन नवीन खंडेलवाल के मुताबिक इससे न केवल नदी के सौंदर्य में वृद्धि होगी, बल्कि नदी के पारिस्थितिकी तंत्र को भी लाभ मिलेगा। भूमि कटाव रुकेगा और नदी के जल स्तर को बनाए रखने में भी मदद मिलेगी। वन विभाग की कोशिश पौधरोपण अभियान को महज़ एक सरकारी क़वायद न बनाए रखकर समाज के विभिन्न तबकों को इससे जोड़ने की कोशिश की जा रही है।
इसके लिए पौधारोपण अभियान को नदी की सफाई के लिए चलाए जा रहे ‘पवित्र धारा' अभियान के साथ जोड़ा गया है। इससे ज़्यादा से ज़्यादा संख्या में पौधे लगाए जाने के साथ ही लोगों को नदी के किनारे पेड़-पौधे होने का महत्व भी समझ में आ सकेगा। विभाग नदी के आसपास ऐसे विशिष्ट वनों का निर्माण करना चाहता है, जो स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूत करके नदी की जैव विविधता को बनाए रखने और बढ़ावा देने में सहायक साबित हों। इसके लिए स्थानीय परिवेश के अनुकूल देसी पौधों को प्राथमिकता दी जा रही है।
इस सबके अलावा योजना का फोकस ‘नो कॉस्ट इंटवेंशन’ पर भी है, जिसमें हॉस्पिटल से निकलने वाले वेस्ट या इंडस्ट्रियल वेस्ट जैसे प्रदूषकों के लिए प्रशासन इन इकाइयों को नियम पालन करने के लिए बाध्य करेगा। अतिक्रमण हटाने के लिए ड्राइव भी ज़िला प्रशासन करा ही रहा है। नदी के प्राकृतिक बहाव के लिए इसके कट ऑफ चेनल (नदी के पुराने, छोड़े गए रास्ते), राइपेरियन वेटलैंड, नदी के रास्ता बदलने से बने तालाब आदि की पहचान करके इन्हें वापस नदी से जोड़ा जाएगा, ताकि नदी और इन संरचनाओं के बीच पानी का आदान-प्रदान होता रहे।
किसको होगा फ़ायदा
सरायन नदी के साफ़ होने का सीधा फ़ायदा लखीमपुर खीरी और सीतापुर की एक बड़ी आबादी को मिलेगा। नदी के आसपास के इलाकों में भूजल स्तर बढ़ने से इन इलाकों में रहने वाले लोगों की पानी की समस्या का समाधान हो सकेगा। नदी के प्रदूषण मुक्त होने और पानी में प्रवाह लौटने से लोगों को गोला गंदे जल से फैलने वाली बीमारियों से मुक्ति मिलेगी और पर्यावरण का संरक्षण भी होगा। इसके साथ ही हज़ारों किसानों को भी अपने खेतों की सिंचाई के लिए पानी मिल सकेगा। पशुपालकों को भी अपने मवेशियों को पिलाने और नहलाने-धुलाने के लिए पर्याप्त पानी मिल सकेगा।