शब्दकोश: बांध क्या है? बैराज से कैसे है अलग?
बांध (डैम) एक अवरोध संरचना है, जिसे पानी को रोकने और जमा करने (भंडारण) के लिए नदी या अन्य जल स्रोत पर बनाया जाता है। बांध की ऊंचाई पानी को बहने से रोकती है। इस तरह बांध पानी का एक भंडार बनाता है, जिसे सिंचाई, जल आपूर्ति और बिजली उत्पादन जैसे कामों में इस्तेमाल किया जा सकता है।
बैराज और बांध को अकसर लोग एक ही चीज़ समझ लेते हैं, क्योंकि दोनों ही अवरोधक संरचनाओं को जल स्तर को नियंत्रित करने के लिए बनाया जाता है। लेकिन, वास्तव में इन दोनों की संरचना, निर्माण की प्रक्रिया और उपयोग अलग-अलग होते हैं। बांध और बैराज में मूल अंतर यह होता है कि बांध पानी को रोकने के साथ ही उसका भंडारण भी करता है, जबकि बैराज केवल पानी को रोकने या डायवर्ट करने के लिए बनाया जाता है।
किसी भी बांध में पानी रोकने, जलस्तर को नियंत्रित करने और पानी को सुरक्षित रूप से छोड़ने के लिए कुछ प्रमुख हिस्सों या ढांचों की ज़रूरत होती है। संक्षेप में बांध के मुख्य हिस्से इस प्रकार होते हैं:
1. बांध (मुख्य संरचना) : यह बांध का वह मुख्य दीवारनुमा हिस्सा है, जो नदी के प्रवाह को रोककर जलाशय बनाता है। इसे कंक्रीट, पत्थर, मिट्टी या रॉक-फिल से बनाया जाता है।
2. जलाशय (रिज़र्वायर): बांध से रोके गए पानी को एकत्र करने के लिए बनाया गया जल भंडारण क्षेत्र, जिसमें पानी को जमा कर उसका उपयोग सिंचाई, पेयजल, बिजली उत्पादन जैसे कामों में किया जाता है।
3. फ़्लड स्पिलवे: यह वह निकास संरचना है जिसके ज़रिये अतिरिक्त पानी या बाढ़ के पानी को नियंत्रित तरीके से नीचे छोड़ा जाता है, ताकि बांध पर दबाव न बढ़े।
4. गेट: बांधों में पानी को छोड़ने केे लिए कई गेट लगे होते हैं। बांध के स्पिलवे, नहरों और आउटलेट संरचनाओं पर लगाए जाने वाले नियंत्रक गेट कई प्रकार के होते हैं—
रेडियल गेट: यह घुमावदार स्टील फ्रेम वाला गेट होता है, जिसे ऊपर-नीचे घुमा कर बड़े स्तर पर पानी छोड़ने के लिए इस्ते माल किया जाता है।
वर्टिकल लिफ्ट गेट: यह सीधा ऊपर उठने वाला समतल गेट होता है, जिसे रेलिंग या गाइड पर स्लाइड करवाकर ज़रूरत के मुताबिक खोला या बंद किया जाता है।
नीडल गेट: लकड़ी या लोहे की पतली-पतली सुईनुमा पट्टियों से बना गेट, जिसमें पानी का प्रवाह अलग-अलग “नीडल” हटाकर नियंत्रित किया जाता है।
स्क्रू गेट / स्लूइस गेट: नीचे के आउटलेट या नहर में पानी छोड़ने वाला गेट, जिसे हाथों से घुमाए जाने वाले हैंड-व्हील या मोटर से ऊपर-नीचे किया जाता है।
5. इनटेक संरचना: यह बांध का वह हिस्सा होता है, जहां से सिंचाई नहर या टनल में पानी जाता है। जलाशय में एक निश्चित ऊंचाई तक पानी होने पर, जिसे बांध का 'ज़ीरो लेवल' कहा जाता है, पानी इस इनटेक में चला जाता है, जहां से उसे नहर में भेजने की व्यवस्था होती है।
6. पावर हाउस: जल विद्युत (हाइड्रो पावर) उत्पादन के उद्देश्य से बनाए गए बांधों में पावर हाउस भी होता है। यह बांध के पास स्थित टर्बाइन और जनरेटर वाला हिस्सा होता है, जहां पर तेज़ी से गिरते पानी की ताकत से बिजली बनाई जाती है।
7. आउटलेट / डिस्चार्ज टनल: बांध के ज़रिये निचले क्षेत्रों में आवश्यक मात्रा में पानी छोड़ने के लिए बनाई गई नियंत्रित टनल या पाइप लाइन आउटलेट या डिस्चार्ज टनल कहलाती है ।
8. एंबैंकमेंट/एपर्न: पानी के दबाव से बांध में कटाव हो सकता है। बांध को इस दबाव को झेलने लायक मजबूती दनेने के लिए बांध के निचले हिस्से में एंबैंकमेंट या एपर्न बनाए जाते हैं। इससे पानी के तेज़ बहाव से बांध को कोई नुकसान नहीं होता।
9. इंस्ट्रूमेंटेशन सिस्टम: इसमें बांध की स्थिति यानी जल स्तर और पानी की रफ्तार से बांध पर पड़ रहे दबाव जैसी चीज़ों पर नज़र रखने के लिए सीपेज मीटर, प्रेशर मीटर, लेवल सेंसर जैसे कई तरह उपकरण बांध के विभिन्न हिस्सों में लगे होते हैं।
बैराज क्या है?
बैराज पानी के बहाव को रोकने वाला एक अवरोधक ढांचा है, जिसके ऊपर से पानी नहीं बह सकता। पर, बैराज में बांध की तरह पानी को जमा करने के लिए जलाशय या रिज़र्वायर नहीं होता। यानी बांध बिना जलाशय वाली जल अवरोधक संरचना होती है। बांध के विपरीत, बैराज के ज़रिये रोके जाने वाले पानी की मात्रा उसके द्वारों की ऊंचाई पर निर्भर करता है, न कि पूरी दीवार की ऊंचाई पर।
बैराज में कई फाटक होते हैं, जिन्हें खोल और बंद करके बैराज से गुजरने वाले पानी की मात्रा को नियंत्रित किया जाता है। जितना पानी छोड़ना होता है उसी के हिसाब से बैराज के फाटकों को खोला जाता है। ऐसा करके पानी के प्रवाह को उसके उद्देश्य, जैसे सिंचाई या जलापूर्ति आदि के लिए स्थिर रखा जाता है।
बैराज का निर्माण तब किया जाता है जब पानी को संग्रहीत करने की आवश्यकता नहीं होती है, बल्कि उसे केवल मोड़ने (डायवर्ट), विभाजित करने (वायफरकेट) या नियंत्रित करने की आवश्यकता होती है। बैराज नौवहन के लिए भी उपयोगी होता है, क्योंकि यह पानी की ऊंचाई बढ़ा कर नदी की गहराई को बढ़ा देता है।
बांध और बैराज की संरचना में एक अंतर यह भी है कि बैराज में जहां पानी का स्तर या प्रवाह फाटकों के ज़रिये नियंत्रित किया जाता है, वहीं बांध कई स्पिलवे के साथ बनाया जाता है, जो निर्धारित मात्रा से अतिरिक्त पानी को नदी में प्रवाहित होने देते हैं। इस तरह बांध को पानी में डूबने या ओवरफ्लो से बचाया जाता है।
हालांकि, बैराजों की तरह बांधों में भी द्वार होते हैं, लेकिन अंतर यह है कि बांधों में जलद्वार सबसे ऊपर होते हैं, जो बाढ़ नियंत्रण और रिसाव को रोकने के लिए बनाए जाते हैं। जबकि, बैराज के द्वार नीचे होते हैं, जो नदी तल तक होते हैं। इससे जल प्रवाह नियंत्रित होता है।
दुनिया का सबसे बड़ा बांध: थ्री गॉर्जेस डैम
दुनिया का सबसे बड़ा बांध चीन में स्थित थ्री गॉर्जेस बांध है, जो यांग्त्ज़ी नदी पर बना है। चीन के हुबेई प्रांत में यांग्त्ज़ी नदी पर बना दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रोइलेक्ट्रिक बांध है। इसका निर्माण 1994 में शुरू हुआ और 2012 में पूरा हुआ, जो बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई और 22,500 मेगावाट बिजली उत्पादन के लिए बनाया गया है। इसकी चौड़ाई 1.4 मील और ऊंचाई 630 फीट है। यह बांध पांच ट्रिलियन गैलन से भी ज़्यादा पानी रोक सकता है।
थ्री गॉर्जेस डैम का नाम पास के वू शान पर्वत की तलहटी में स्थित तीन घाटियों के नाम पर पड़ा है। यह बांध कई वजहों से विवादों में रहा है। पहला कारण तो यह है कि 1992 में इसके निर्माण के कारण 244 वर्ग मील के उस क्षेत्र में रहने वाले 11.3 लाख लोग विस्थापित हो गए। बाढ़ के पानी ने पूरे के पूरे कस्बों, खेतों और यहां तक कि ऐतिहासिक स्थलों को भी अपनी चपेट में ले लिया था।
इतना ही नहीं, पानी के भारी भार ने कथित तौर पर नदी के किनारों को भी नष्ट कर दिया है। बांध के निर्माण के बाद से आसपास के इलाकों में भूस्खलन की घटनाओं में भी इज़ाफा हुआ है।
इसके अलावा, इस बांध को दुनिया भर में चर्चा में लाने वाली सबसे बड़ी वजह है अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का अध्ययन, जिसके मुताबिक इस बांध ने पृथ्वी के अपनी धुरी पर घूमने (घूर्णन) के समय को बढ़ा दिया है। हालांकि, यह बढ़ोतरी केवल 0.06 माइक्रो सेकंड है। यानी इस बांध के बनने के बाद एक दिवस (दिन और रात) का समय 0.06 माइक्रोसेकंड बढ़ गया है।
नासा के मुताबिक, यह बदलाव इस बांध के भारी-भरकम वज़न के कारण हुआ है, जोकि 39 ट्रिलियन किलोग्राम से ज्यादा है। इसके कारण उत्पन्न हुए जड़त्व आघूर्ण की वजह से पृथ्वी की गति प्रभावित हुई है। इसके अलावा इस बांध के कारण उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव भी अपनी-अपनी जगह से 2-2 सेंटीमीटर खिसक गए हैं, तो वहीं अन्य ध्रुवों पर पृथ्वी थोड़ी सी चपटी भी हुई है। हालांकि, इन सब चिंताओं के बावज़ूद चीन की सरकार और वहां के उद्योग जगत का कहना है कि चीन में बढ़ती ऊर्जा मांगों को पूरा करने के लिए यह ज़रूरी है।
भारत का सबसे बड़ा बांध: टिहरी डैम
भारत का सबसे बड़ा (ऊंचा) बांध टिहरी बांध है। यह उत्तराखंड राज्य के टिहरी में भागीरथी नदी पर बना है। यह एक बहुउद्देशीय बांध है, जो जलविद्युत उत्पादन, सिंचाई और पेयजल आपूर्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। टिहरी बांध के आकार की बात करें, तो यह 260.5 मीटर लंबा मिट्टी-भराव और चट्टान-भराव वाला बांध है, जिसके शिखर की लंबाई 575 मीटर है।टिहरी बांध 260.5 मीटर (855 फीट) ऊंचा है और दुनिया के सबसे ऊंचे बांधों में 13वें नंबर पर आता है।
टिहरी बांध की जलाशय क्षमता 3,540 मिलियन क्यूबिक मीटर (एमसीएम) है। यह 1,000 मेगावाट जलविद्युत ऊर्जा पैदा करता है। साथ ही, यह बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई और पेयजल आपूर्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह बांध 2005 में बनकर तैयार हुआ था। अपने पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों के कारण, भारत के सबसे बड़ा बांध टिहरी बांध एक विवादास्पद परियोजना है।
बांध के निर्माण से 100,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए और कई गांव जलमग्न हो गये। साथ ही बांध को उत्तराखंड में बढ़ती भूकंपीय गतिविधि से भी जोड़ कर देखा जाता है। इसके आकार और उपयोगिता के कारण, इसे भारत की इंजीनियरिंग क्षमता का प्रतीक माना जाता है।
भारत का सबसे लंबा बांध: हीराकुंड डैम
हीराकुंड बांध भारत सबसे लम्बा बांध है। ओडिशा राज्य के संबलपुर ज़िले में महानदी नदी पर निर्मित यह बांध 25.8 किलोमीटर लंबा है। मुख्य बांध की लंबाई 4.8 किलोमीटर है। इसे दुनिया का सबसे लंबा मिट्टी का बांध माना जाता है। सके पीछे एक विशाल जलाशय है, जिसे हीराकुंड झील के नाम से जाना जाता है।
यह एशिया की सबसे बड़ी मानवनिर्मित झील है। इसमें करीब 810 करोड़ घन मीटर पानी जमा होता है। हीराकुंड बांध एक बहुउद्देशीय परियोजना है, जिसका उपयोग बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई और बिजली उत्पादन के लिए किया जाता है। इसकी बिजली उत्पादन क्षमता 359.8 मेगावाट की है। यह भारत की स्वतंत्रता के बाद की पहली प्रमुख बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं में से एक है।
महान इंजीनियर एम विश्वेश्वरय्या ने इसकी रूपरेखा 1937 में ओडिशा में आई भयंकर बाढ़ के बाद तैयार की थी। इसका निर्माण 1947 में देश की आज़ादी के बाद शुरू हुआ था और यह एक दशक बाद 1957 में बनकर तैयार हुआ। उस समय इसकी लागत 100 करोड़ रुपये के करीब थी। हीराकुंड परियोजना के मुख्य बांध की ऊंचाई 60.96 मीटर है। बांध में कुल 98 गेट हैं।
हीराकुंड परियोजना में हीराकुंड के अलावा दो और बांध हैं, जिनके नाम हैं टिक्करपाड़ा बांध और नाराज बांध। हीराकुंड बांध परियोजना से मिलने वाली बिजली के कारण ही पश्चिम ओडिशा में कागज और धातु कारखानों समेत कई तरह के भारी उद्योगों का विकास तेजी से हुआ है। इसका जलाशय 436,000 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई करता है, जिससे क्षेत्र के किसानों को लाभ मिलता है।
भारत का सबसे पुराना बांध: कल्लनई डैम
भारत का सबसे पुराना बांध कावेरी नदी पर बना तमिलनाडु का कल्लनई बांध है, जिसे ग्रैंड एनीकट के नाम से भी जाना जाता है। इसका निर्माण दूसरी शताब्दी ईस्वी में चोल राजा करिकालन ने करवाया था। इसे बिना तराशे पत्थरों और एक विशेष इंटरलॉकिंग तकनीक का उपयोग करके बनाया गया था, जिसमें सीमेंट की आवश्यकता नहीं होती है। इस तरह यह बांध प्राचीन भारत के उन्नत इंजीनियरिंग विधियों को दर्शाता है।
यह इतना मजबूत है कि आज भी उपयोग में है। दुनिया के सबसे पुराने सिंचाई बांधों में गिना जाने वाला यह प्राचीन बांध तमिलनाडु के लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में शामिल है। कल्लनई बांध 300 मीटर से अधिक लंबा, 20 मीटर चौड़ा और 4.5 मीटर ऊंचा है। इसका डिज़ाइन सरल लेकिन प्रभावी है, जिससे यह पानी के प्रवाह को कुशलतापूर्वक नियंत्रित कर सकता है। इंटरलॉकिंग स्टोन निर्माण ने इसे समय की कसौटी पर खरा उतरने में मदद की है।
कल्लनई बांध का मुख्य उद्देश्य कावेरी नदी के पानी को सिंचाई के लिए रोकना और मोड़ना था। यह नदी की कावेरी शाखा से अतिरिक्त पानी को कोल्लिडम शाखा में निर्देशित करके बाढ़ का प्रबंधन करने में भी मदद करता है।

