बंजर भूमि को उपजाऊ बनाकर कर रहे खेती
भारत 2030 तक 2.6 करोड़ हेक्टेयर बंजर भूमि को उपयोगी बनाने की दिशा में काम कर रहा है। देश की कुल 32 करोड़ 90 लाख हेक्टेयर भूमि में से 12 करोड़ 95 लाख सत्तर 70 हेक्टेयर भूमि बंजर है। भारत देश में बंजर भूमि के ठीक-ठीक आकलन के लिए अभी तक कोई विस्तृत सर्वेक्षण नहीं हुआ है, फिर भी केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय का अनुमान मुताबिक सर्वाधिक बंजर जमीन मध्यप्रदेश में है-2 करोड़ 1 लाख 42 हेक्टेयर। उसके बाद राजस्थान का नंबर आता है, जहां 1 करोड़ 99 लाख चौंतीस हेक्टेयर, फिर महाराष्ट्र में 1 करोड़ 44 लाख 1 हजार हेक्टेयर बंजर जमीन है। आंध्रप्रदेश में 1 करोड़ 14 लाख 16 हजार हेक्टेयर, कर्नाटक में 99 लाख 65 हजार, उत्तर प्रदेश में 80 लाख 61 हजार, गुजरात में 98 लाख छत्तीस हजार, ओड़ीशा में 63 लाख 84 हजार और 1985 में स्थापित राष्ट्रीय बंजर भूमि विकास बोर्ड के मुताबिक बिहार में 94 लाख 98 हजार हेक्टेयर जमीन बंजर है। बिहार की अर्थव्यवस्था में भूमि संसाधन का स्थान सर्वोपरि है। राज्य के सभी भागों में भूमि प्राय: उपजाऊ एवं कृषि योग्य है लेकिन सघन जनसंख्या के चलते भूमि पर दबाव अधिक है। कृषि योग्य कुल 93.6 लाख हेक्टेयर भूमि में से 56.03 लाख हेक्टेयर क्षेत्र पर शुद्ध रूप से खेती की जाती है। बाकी जमीन उर्वरता खो चुकी है। राज्य में 6764.14 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र है जो कुल भूमि का मान 7.1 प्रतिशत है। पश्चिम बंगाल में लगभग 25 लाख 36 हजार, हरियाणा में 24 लाख 18 हजार, असम में 17 लाख 30 हजार, हिमाचल प्रदेश में 19 लाख 18 हजार, जम्मू- कश्मीर में 15 लाख 65 हजार, केरल में 12 लाख 79 हजार हेक्टेयर जमीन अनुपजाऊ है। पंजाब सरीखे कृषि प्रधान राज्य में 12 लाख 30 हजार हेक्टेयर, पूर्वोत्तर के मणिपुर, मेघालय और नगालैंड में क्रमशः: 14 लाख 38 हजार, 19 लाख 18 हजार और 13 लाख 86 हजार हेक्टेयर भूमि बंजर है। सर्वाधिक बंजर भूमि वाले मध्य प्रदेश में भूमि के नष्ट होने की रफ्तार भी सर्वाधिक है। यहां पिछले दो दशकों में बीहड़ बंजर दो गुना होकर 13 हजार हेक्टेयर हो गए हैं।
धरती पर जब पेड़-पौधों की पकड़ कमजोर होती है, तो बरसात का पानी सीधा धरती पर पड़ता है और वहां की मिट्टी बहने लगती है। जमीन के समतल न होने के कारण पानी को जहां भी जगह मिलती है, मिट्टी काटते हुए वह बहता है। इस प्रक्रि या में नालियां बनती हैं और जो आगे चल कर गहरे होते हुए बीहड़ का रूप ले लेती हैं। एक बार बीहड़ बन जाए तो हर बारिश में वह और गहरा होता जाता है। ऐसे भूक्षरण से हर साल लगभग चार लाख हेक्टेयर जमीन उजड़ रही है। इसका सर्वाधिक प्रभावित इलाका चंबल, यमुना, साबरमती, माही और उनकी सहायक निदयों के किनारे के उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, राजस्थान और गुजरात हैं। बीहड़ रोकने का काम जिस गति से चल रहा है, उसके अनुसार बंजर खत्म होने में दो सौ वर्ष लगेंगे, तब तक ये बीहड़ ढाई गुना अधिक हो चुके होंगे।
वहीं हरित क्रांति के नाम पर जिन रासायनिक खादों द्वारा अधिक अनाज पैदा करने का नारा दिया जाता है, वे भी जमीन की कोख उजाड़ने के लिए जिम्मेदार रही हैं। रासायनिक खादों के अंधाधुंध इस्तेमाल से पहले कुछ साल तो दुगनी-तिगुनी पैदावार मिली, फिर भूमि बंजर होने लगी। यही नहीं, जल समस्या के निराकरण के नाम पर मनमाने ढंग से लगाए जा रहे नलकूपों के कारण भी जमीन कटने-फटने की शिकायतें सामने आई हैं। सार्वजनिक चरागाहों के सिमटने के बाद रहे-बचे घास के मैदानों में बेतरतीब चराई के कारण भी जमीन के बड़े हिस्से के बंजर होने की घटनाएं मध्य भारत में सामने आई हैं। सिंचाई के लिए बनाई गई कई नहरों और बांधों के आसपास जल रिसने से दलदल बन रहे हैं। जमीन को नष्ट करने में समाज का लगभग हर वर्ग और तबका लगा हुआ है, वहीं इसके सुधार का जिम्मा मान्य सरकारी कंधों पर है। बिहार में बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री सिंचाई योजना को लेकर तेजी से कार्य रही है। इसी का नतीजा है कि बिहार में बड़े पैमाने पर बंजर भूमि को उपजाऊ बनाया जा रहा है। वही जिले के किसानों ने भी बंजर भूमि को उपजाऊ बना कर खेती कर अपनी आय को दोगुनी करने में लगे हैं।
बंजर जमीन को उपजाऊ बनाने की योजना की गई तैयार
बिहार के कटिहार जिले में राज्य सरकार ने बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने तथा बंजर जमीन पर आंवला, ड्रैगन फ्रूट, सहित अन्य मौसमी फल, सब्जी एवं लकड़ी के महत्वपूर्ण पेड़ लगाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने की योजना तैयार की है। उद्यान विभाग द्वारा इस योजना पर कार्य किया जाएगा। इच्छुक किसानों को खेती के लिए अनुदान भी दिया जाएगा। राष्ट्रीय बागवानी क्षेत्र विस्तार योजना से बंजर भूमि को उपजाऊ बनाकर खेती लायक बनाने तथा कृषि योग्य भूमि कर करवा बढ़ाने के साथ ही किसानों को आत्मनिर्भर बनाया जाएगा। विभाग द्वारा कम उर्वरा शक्ति वाले व बंजर जमीन की पहचान कर किसानों को इस योजना से जोडने को लेकर जागरूक किया जा रहा है। आंवला व ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए किसानों को प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। अगस्त से जिले में इस योजना पर काम शुरू हो जाएगा।
45 एकड़ बंजर भूमि को हरे भरे खेतों में किया तब्दील
बिहार में रोहतास जिले के ग्राम बान्दु पोस्ट- दारानगर अंचल- नौहट्टा में रहनेवाले रितेश पाण्डेय ने टपक सिंचाई प्रणाली को अपनाकर अपनी 45 एकड़ बंजर भूमि को हरे भरे खेतों में तब्दील कर दिया है। इस युवा किसान ने जागो किसान जागो कृषि फार्म का निर्माण किया है। जहां वह करीब 18 एकड़ भूमि पर सब्जी की खेती और 25 एकड़ भूमि पर घृतकुमारी, अश्वगंधा एवं शतावर की खेती कर रहा है। जिस इलाके में इसने अपना कार्य शुरू किया है वह नक्सल प्रभावित एवं सूखाग्रस्त तथा गरीबी और पलायन का शिकार रहा है। रितेश का कहना था कि सन 2000 से मैंने वाटर डेकोर्स सूक्ष्म सिंचाई पद्धति का कार्य शुरू किया था। नवंबर 2012 में मैंने कृषि फार्म का निर्माण किया। लखनऊ में मैंने स्प्रिंकलर और टपक सिंचाई पद्धति को सिखा और वही पर काम करता रहा। लेकिन आखिर माँ के देहांत पर मैं अपने घर लौट आया। तभी से मैंने जागो किसान जागो मुहिम शुरू की और किसानों को सूक्ष्म सिंचाई पद्दती से होने वाले लाभ के बारे में बताने लगा और उद्धयान विभाग की योजना के तहत लाभ किसानों को दिलाने लगा। इस कार्य के शुरूवात में लोगों का इस पद्धति पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। मेरा मजाक उड़ाते थे। किसानों को पुराने पारंपरिक सिंचाई प्रणाली ही ज्यादा उपयुक्त प्रतीत होती थी। मैं लोगों के खेतों में फव्वारा सिंचाई प्रणाली का प्रयोग करके उन्हें बताता था। धीरे-धीरे लोगों का इसके प्रति विश्वास होने लगा और उन्होंने भी इस पद्धति को अपनाया। आज जिला उद्यान विभाग की मदद से 1000 वर्ग मीटर का पॉली हाउस निर्माण किया है। जिसमें बेमौसमी सब्जी की खेती होती है। 4 एकड़ जमीन में गेंदे की जम्मू वेराइटी लगाई है, जिसकी पैदावार अच्छी होती है।
वर्षा जल संग्रहण हेतु वॉटर-स्टोरेज टैंक का निर्माण तथा प्याज भंडारण हाउस का निर्माण भी कराया है। औषधीय पौधों एवं सब्जी की खेती के साथ साथ ड्रिप सिंचाई पद्धति देखने के लिए जिले के साथ साथ औरंगाबाद एवं पड़ोसी राज्य झारखंड और यूपी से लोग आते है। जागो कृषि फार्म पर करीब 16-17 महिला पुरुष लोग कार्य करते है। टमाटर, भिंडी, खीरा, लौकी, करैला, तरोई, हरी मिर्च एवं धनिया पत्ता आदि सब्जियों को रोज बेचकर 8 से 10 हजार रुपये आय होती है। रितेश ने जिला से प्राप्त अनुदान के सन्दर्भ में बताते हुए कहा कि जिला उद्यान पदाधिकारी मेरी मेहनत से प्रेरित होकर उन्होंने मुझे टपक सिंचाई प्रणाली एवं पॉली हाउस लगाने के लिए सरकारी अनुदान प्रदान कराया। समय समय पर वह स्वयं आकार किसानों संगोष्ठी करते हैं। और सिंचाई प्रणाली अपनाने हेतु प्रेरित भी करते है।
किसानों को मिलेगा अनुदान
बंजर जमीन पर खेती को बढ़ावा देने को लेकर विभाग द्वारा 50 प्रतिशत अनुदान किसानों को दिया जाएगा। किसान विभिन्न तरह के फल का उत्पादन कर अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं। किसानों को विभाग द्वारा वैशाली जिला स्थित सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के माध्यम से विभिन्न फलो के पौधे को उपलब्ध कराया जाएगा।