भूजल के स्रोत

6 Oct 2018
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water cycle
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भूजल स्रोत, जैसा कि इसके नाम से ही ज्ञात होता है, भूमि के नीचे पाया जाने वाला जल होता है। वर्षा के जल अथवा बर्फ के पिघलने से पानी का कुछ भाग भूमि द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है तथा इसका कुछ भाग गुरुत्व के प्रभाव के फलस्वरूप भूमि के नीचे स्थित परतों में एकत्र हो जाता है। इस पाठ में आप भूमिगत जल के स्रोतों के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे, जिसका प्रयोग कृषि, उद्योगों और दैनिक जीवन के कार्यों हेतु आवश्यक रूप से महत्त्वपूर्ण है।

जल चक्र जिसमें सतही जल, भूजल एवं जल तालिका दर्शाई गई है

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उद्देश्य

इस पाठ के अध्ययन के समापन के पश्चात आप-

1. सतही जल और भूजल में अन्तर को समझ पाएँगे ;
2. उन विविध तरीकों की सूची बना सकेंगे जिनसे भूजल प्राप्त किया जा सकता है ;
3. अपने घरों में जल के न्यूनतम उपयोगों के तरीकों के बारे में सुझाव दे पाएँगे ;
4. भूजल को प्राकृतिक रूप से तथा मानव एजेंसियों के द्वारा पुनः प्राप्त करने के विषय में वर्णन कर पाएँगे ; तथा
5. भूजल का यदि उपयुक्त तरीके से उपयोग नहीं कर पाये तो इसकी कमी से होने वाले जोखिम (Risk) पर प्रकाश डाल सकेंगे।

28.1 सतही जल और भूमिगत जल

जल एवं जलवाष्प (वाष्पीकरण) की क्रिया सूर्य एवं गुरुत्व द्वारा निरंतर संचालित होने वाली प्राकृतिक क्रिया है जिसे हाइड्रोलॉजिक (जल) चक्र कहते हैं। जिसके विषय में आपने पिछले पाठ में पढ़ा है। समुद्र एवं सतही भूमि से जल का वाष्पोत्सर्जन होकर यही जल पुनः पृथ्वी पर पानी की बूँदों के रूप में वापस आ जाता है। पृथ्वी पर समस्त अलवण जल का स्रोत वर्षा है। जब वर्षा होती है तो पृथ्वी पर गिरने वाला जल धारा के रूप में प्रवाहित होकर झरनों, तालाब अथवा झीलों में चला जाता है। यह जल सतही जल (Surface water) कहलाता है।

इस जल का कुछ भाग भूमि के अन्दर मृदा क्षेत्र (Soil Zone) में अवशोषित होकर एकत्र हो जाता है। जब मृदा क्षेत्र संतृप्त (भर जाता) होता है तो यह जल नीचे चला जाता है। संतृप्तता का यह क्षेत्र मृदा के उस स्थान पर होता है जहाँ मृदा के सभी छिद्र जल से भरे होते हैं। वर्षा के जल का कुछ भाग धीरे-धीरे संचारित होकर गुरुत्वाकर्षण के कारण भूमि के नीचे चला जाता है। अतः भूजल बनने की यह क्रिया जलभृत (Aquifer) कहलाती है और संचित जल भूजल (Ground water) कहलाता है। गुरुत्व प्रभाव के फलस्वरूप भूमिगत जल धीरे-धीरे मृदा के भीतर चला जाता है। निचले क्षेत्रों में यह झरनों एवं धारा के रूप में बाहर आ जाता है।

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सतही जल एवं भूजल दोनों अन्ततः महासागरों में पुनः वापस चले जाते हैं जहाँ से वायुमंडलीय जलवाष्प की आपूर्ति वाष्पीकरण द्वारा होती रहती है। हवायें नमी को भूमि पर लाती हैं जिससे अवक्षेपण होता है तथा जलचक्र निरन्तर चलता रहता है। अवक्षेपण की इस प्रक्रिया को जिसके द्वारा भूमिगत जल की आपूर्ति होती है, पुनःभरण (Recharge) कहा जाता है। सामान्य रूप से पुनःभरण उष्णकटिबन्धीय जलवायु में वर्षाऋतु के समय ही होता है अथवा यह बसन्त के मौसम में होता है। पृथ्वी पर गिरने वाला यह अवक्षेपण अक्सर 10 से 20 % तक होता है जो मृदा द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है एवं जल धारण करने वाले स्तर पर योगदान देता है, उदाहरण जलभृत (Aquifer)।

भूजल निरन्तर क्रियाशील रहता है सतही जल की तुलना में यह बहुत धीरे-धीरे बहता है। इस जल के संचरण की वास्तविक दर संचरण एवं जलभृत की संग्रहण क्षमता पर निर्भर करती है। कभी-कभी झरनों एवं नदियों में भूमिगत-जल का स्तर बढ़ने से इनमें उफान (बाढ़) आ जाता है। जल तालिका में भूजल के नवीकरण का समय एक वर्ष अथवा उससे कम हो सकता है परन्तु गहरे जलभृतों में इसकी अवधि हजारों वर्ष से भी अधिक समय तक लम्बी हो सकती हैं।

जल तालिका (Water table) को भूमिगल-जल तालिका भी कहा जाता है, यह भूमि की ऊपरी सतह होती है जिसमें मृदा या चट्टानें जल के साथ स्थायी रूप से संतृप्त होती हैं। उस गहराई तक जिसमें, मृदा के छिद्रों-स्थान की जल के साथ पूर्णतः तथा जिस स्तर पर यह पायी जाती हैं उसे जल तालिका कहा जाता है। जल-तालिका भूजल क्षेत्र को अलग करती है जो इससे नीचे होता है या केशिकत्व फ्रिन्ज वायुपूर्ण क्षेत्र जो इससे ऊपर होता है। जल तालिका में ऋतुओं एवं वर्ष दर-वर्ष उतार-चढ़ाव आता रहता है क्योंकि वर्षा एवं जलवायु में भिन्नता इस पर अपना प्रभाव डालते हैं। यह कुओं या कृत्रिम रूप द्वारा जल की मात्रा निकालने से भी प्रभावित होता है।

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भूजल का बहुतायत से प्रयोग घरेलू काम-काज, पशुओं एवं सिंचाई हेतु आदिकाल से किया जाता रहा है। भारत में एक बहुत बड़ी जनसंख्या भूजल पर निर्भर करती है। सतही जल एवं भूमिगत जल के मध्य मुख्य अन्तर इस प्रकार हैं:-

सतही जल

भूजल

सतही जल ऐसा जल होता है जो भूमि की सतह पर झरनों, नदियों, तालाबों अथवा झीलों के रूप में उपस्थित रहता है।

भूजल ऐसा जल है जो सामान्यतः भूमिगत रूप में पाया जाता है तथा इसे कुओं, ट्यूब-वैल अथवा हैंडपम्पों द्वारा खुदाई करके प्राप्त किया जाता है।

सतही पानी खुले रूप से पाया जाता है एवं आसानी से दूषित हो सकता है।

भूजल पृथ्वी के अंदर (छिपा) पाया है एवं इसे आसानी से दूषित नहीं किया जा सकता है।

सतही पानी को अक्सर किसी अन्य स्थान तक ले जाने में काफी खर्च आता है अतः यह काफी महँगा होता है।

भूजल केवल अपने प्रयोग के स्थान पर वहीं उपलब्ध होता है जहाँ इसकी आवश्यकता होती है एवं इसे किसी स्थान पर नहीं ले जाया जा सकता है। इस प्रकार यह सस्ता होता है।

सतही जल का परोक्ष रूप से उपयोग नहीं किया जा सकता

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