ब्रह्मपुत्र महानद का जलविज्ञानीय विश्लेषण (भाग 2) - ब्रह्मपुत्र बेसिन की जलवायु
ब्रह्मपुत्र बेसिन की जलवायु
200 किमी से 300 किमी तक की चौड़ाई वाली महान हिमालय पर्वत श्रृंखलाएं, तिब्बती पठार के ठीक दक्षिण में पूर्व-पश्चिम दिशा में स्थित हैं। ये पर्वत श्रृंखलाएं बेसिन को दो अलग-अलग जलवायु क्षेत्रों (अ) पर्वतीय जलवायु एवं (व) उष्णकटिबंधीय मानसून जलवायु में विभाजित करती हैं। उच्च तिब्बती पठार के अंतर्गत बेसिन का उत्तरी भाग, जो शीत और शुष्क है, पर्वतीय जलवायु के रूप में वर्गीकृत किया गया है। बेसिन के दक्षिणी भाग को उष्णकटिबंधीय मानसून जलवायु के रूप में वर्गीकृत किया गया है, इस क्षेत्र की जलवायु अपेक्षाकृत गर्म और आर्द्र है और दक्षिण-पश्चिम मानसून के प्रभाव के कारण इस क्षेत्र में विशेष रूप से जून से सितंबर के दौरान उच्च वर्षा होती है।
बेसिन में एक वर्ष में चार भिन्न ऋतुएं पाई जाती हैं: (अ) शीत ऋतु (सितंबर से फरवरी माह तक), ग्रीष्म या पूर्व मानसून ऋतु (मार्च से मई माह तक), वर्षा ऋतु (जून से सितंबर माह तक) और शरद ऋतु या पश्चिम-मानसून ऋतु (अक्टूबर और नवंबर माह में)। विभिन्न प्रचलित हवाओं के प्रभाव के कारण बेसिन के तापमान में व्यापक परिवर्तन पाया जाता है। बेसिन के मैदानी इलाकों और घाटी क्षेत्रों में न्यूनतम तापमान पश्चिमी भाग में 9°C से उत्तर-पूर्वी भाग में 4°C तक परिवर्तनशील होता है।
ब्रह्मपुत्र घाटी के पश्चिमी भाग और बांग्लादेश के मैदानी क्षेत्रों के उत्तरी भाग में अप्रैल और मई में भीषण गर्मी होती है। गर्मियों के दौरान, बेसिन के इस भाग में माध्य अधिकतम तापमान 35°C से अधिक जबकि अधिकतम तापमान 40°C तक होता है। बेसिन के कुछ चयनित स्थलों के माध्य मासिक अधिकतम एवं न्यूनतम तापमान को सारणी में दर्शाया गया है।
उष्णकटिबंधीय मानसून जलवायु क्षेत्र में ग्रीष्म ऋतु की अवधि के दौरान, उत्तर-पश्चिमी चक्रवात के कारण, माध्य वार्षिक वर्षा की 20% से 35% तक वर्षा होती है। कभी-कभी बेसिन के इस भाग में दो से तीन दिनों तक वृहत्त पैमाने पर भारी वर्षा होती है, जो बंगाल की खाड़ी के ऊपर विकसित होने वाले और बेसिन के ऊपर से गुजरने वाले गहरे अवसादों के परिणामस्वरूप होती है। सामान्य तौर पर, उष्णकटिबंधीय मानसून जलवायु क्षेत्र के अंतर्गत ब्रह्मपुत्र बेसिन क्षेत्र में आर्द्रता और वर्षा अपेक्षाकृत अधिक है।
दक्षिण-पश्चिम मानसून की वापसी के बाद अक्टूबर और नवंबर के महीने में शरद ऋतु या मानसूनोत्तर अवधि के दौरान मौसम अपेक्षाकृत साफ और मध्यम तापमान के साथ बहुत आरामदायक रहता है। सामान्यतः इन दो महीनों में माध्य वार्षिक वर्षा की, 3% से 6% तक वर्षा होती है।
बेसिन के तिब्बती भाग में मेघाछन्न (Cloudy) दिवसों की वार्षिक संख्या तुलनात्मक रूप से कम है; ल्हासा में यह 98 दिन है। ब्रह्मपुत्र घाटी के पूर्वोत्तर भाग और अरुणाचल प्रदेश तथा असम के पूर्वी भाग के निचले पर्वतीय क्षेत्र, वर्ष में 60% से अधिक दिनों तक मेघाच्छादित रहते हैं। डिब्रूगढ़ में घाटी के पूर्वी भाग में मेघाच्छादित दिवसों की औसत संख्या 241 दिन है, जबकि घाटी के पश्चिमी मध्य भाग में स्थित गुवाहाटी में यह 191 दिन है।
तिब्बती पठार में वर्षा दिवसों की संख्या कम है, यद्यपि सर्दियों के दौरान कुछ दिनों में हिमपात के साथ हल्की बूंदाबांदी होती है। ल्हासा में प्रतिवर्ष वर्षा के दिनों की संख्या 48 है। ब्रह्मपुत्र घाटी में, वर्षा के दिनों की संख्या पश्चिम से पूर्व की ओर बढ़ती है। असम राज्य की राजधानी गुवाहाटी में वर्षा दिवसों की संख्या 115 दिन है, जबकि घाटी के पूर्वी भाग में स्थित डिब्रूगढ़ शहर में वर्षों दिवसों की संख्या 172 दिन है।
मई के अंत में हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से दक्षिण-पश्चिम मानसून द्वारा लाए गए कम ऊंचाई वाले बादल उत्तर-पूर्व दिशा में आगे बढ़ते हैं और दक्षिणी (असम) पहाड़ी श्रृंखलाओं द्वारा अवरूद्ध हो जाते हैं और चेरापूंजी में भारी वर्षा का कारण बनते हैं। चेरापूंजी का सबसे आई शहर खासी पहाड़ियों में स्थित है, जी बेसिन की सीमा के ठीक दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी हवाओं की दिशा की ओर हैं। मेघालय (अर्थात बादलों का निवास) की गारो और खासी पहाड़ियों की, 1800 मीटर ऊँची पर्वत श्रृंखलाओं से होकर गुजरने वाले बादल ब्रह्मपुत्र बेसिन में प्रवेश करते हैं और ब्रह्मपुत्र घाटी और भूटान और अरुणाचल प्रदेश की पर्वत श्रृंखलाओं में व्यापक वर्षा होती है। चर्चा की तीव्रता और अवधि, हिमालय की तलहटी की और और उत्तर-पूर्व की ओर अधिक वढ़ जाती है। तिब्बती पठार में जुलाई और अगस्त के महीनों में अत्यधिक वर्षा होती है। जैसे-जैसे मानसूनी हवाएं उत्तर-पश्चिम की ओर बढ़ती हैं, वर्षा कम हो जाती है।
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार ब्रह्मपुत्र का अर्थ है ब्रह्मा का पुत्र। पौराणिक कथाओं में ब्रह्मपुत्र को ब्रह्मा व ऋषि शान्तनु की पत्नी अमोधा की सन्तान बताया गया है। वास्तव में ब्रह्मपुत्र नदी एक मात्र ऐसी नदी है जिसका नाम पुल्लिंग में है जबकि देश की समस्त नदियों का नाम स्त्रीलिंग में है अतः ब्रह्मपुत्र नदी को नदी के स्थान पर नद भी कहा जाता है।
ब्रह्मपुत्र नदी की बाढ़ः असम का शोक
ब्रह्मपुत्र नदी एक बारहमासी नदी है जिसका कुल आवाह क्षेत्रफल 5,80,000 वर्ग किलोमीटर तथा माध्य वार्षिक निस्सरण 19,820 घन मीटर सेकंड है। यह नदी अपने साथ प्रतिवर्ष 7,350 लाख मीट्रिक टन अवसाद बहाकर लाती है। ब्रह्मपुत्र नदी घाटी में प्रत्येक वर्ष मानसून ऋतु में आने वाली बाढ़ यहाँ की एक भयंकर समस्या है। मानसून आने के बाद देश के कई भागों में बाढ़ आती है. इसमें पूर्वोत्तर का असम राज्य एक प्रमुख राज्य है, जहां हर साल वर्षा ऋतु में भयंकर वर्षा होती है, तथा परिणामतः ब्रह्मपुत्र नदी में आने वाली बाढ़ से यहां के लाखों लोग प्रभावित होते हैं तथा करोड़ों रुपये की जन-संपदा को बाढ़ से हानि होती है। असम में काजीरंगा और मानस राष्ट्रीय उद्यान जैसे वैश्विक स्तर की धरोहर हैं और ये भी हर साल बाढ़ से बुरी तरह से प्रभावित होती हैं। यहां मौजूद कुछ वन्यजीव अभ्यारण्य में तो गैंडों की जनसंख्या दुनिया में सबसे ज्यादा है. जहां के 90 प्रतिशत भू-भाग 2020 की बाढ़ की चपेट में आ गए थे। बाढ़ की इसी विभीषिका के कारण ब्रह्मपुत्र नदी को 'असम का शोक' कहा जाता है।
प्रश्न यह है कि आखिर असम में क्यों आती है हर साल भीषण बाढ़, तथा क्यों नहीं है इसका इलाज? आखिर ऐसा क्यों है जो हर साल असम में भारी बारिश के साथ बाढ़ आती है? क्या इसके पीछे मानसून है या फिर यहां की भौगोलिक स्थिति? आखिर असम में हर साल लोग बाढ़ के आगे बेबस से क्यों नजर आते हैं? यहां गौर करने वाली बात यह है कि असम का बाढ़ प्रभावित भाग भारत के कुल बाढ़ प्रभावित भाग का दस प्रतिशत है। एक अनुमान के अनुसार असम में बाढ़ से लगभग दस लाख हेक्टेयर भूमि प्रभावित होती है। वास्तव में यदि देखा जाए तो ब्रह्मपुत्र घाटी में बाढ़ का संभावित प्रत्येक वर्ष समाधान अत्यधिक जटिल है। ब्रह्मपुत्र घाटी में बाढ़ की समस्या के लिए असम और उसके आसपास की भौगोलिक स्थिति और प्राकृतिक भू-भाग के साथ-साथ यहां की जलवायु भी उत्तरदायी है। 2006 में पर्यावरणविद् और गुवाहाटी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर दुलाल चंद्र गोस्वामी के शोधपत्र में बताया गया है कि ब्रह्मपुत्र नदी अमेजन के बाद विश्व की दूसरी ऐसी नदी है जो अपने साथ सबसे ज्यादा जल और अवसाद बहाकर लाती है जिससे निचले इलाके बाढ़ की चपेट में आ जाते हैं।
ब्रह्मपुत्र घाटी में बाढ़ का मुख्य कारण भारी वर्षा, संकरी घाटी, एवं बाढ़कृत मैदानी क्षेत्रों का अत्यधिक अतिक्रमण
किया जाना है। असम के निकटवर्ती क्षेत्र भी यहां बाढ़ के लिए जिम्मेदार होते हैं। इसके निकटवर्ती राज्योंः अरुणाचल प्रदेश और मेघालय में मानसून में भारी वर्षा होती है, जिसके कारण ब्रह्मपुत्र नदी में जल प्रवाह बढ़ जाता है जो असम में बाढ़ का कारण बनता है। इसके अतिरिक्त भूकंप संबंधी गतिविधियों इस क्षेत्र में एक नियमित घटना है। यहाँ नियमित रुप से रिक्टर पैमाने पर लगभग 5 तीव्रता के भूकंप आते रहते हैं। वर्ष 1897 एवं 1950 में इस क्षेत्र में रिक्टर पैमाने पर क्रमशः 8.7 एवं 8.6 तीव्रता के भूकंप एक ऐसी त्रासदी है जिसने ब्रह्मपुत्र घाटी के निकासी तंत्र को विक्षुब्ध कर दिया था। इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र के बाढ़ से प्रभावित होने के अन्य कारणों में ब्रह्मपुत्र नदी के जल प्रवाह में अत्यधिक ज्वार, नदी तटों की मृदा की बनावट, तीव्र प्रवणता, मृदा कटान तथा झूमिंग कृषि के कारण संयुक्त रुप से नदी में प्रवाहित होने वाले उच्च अवसाद भार प्रमुख हैं।
विगत कुछ दशकों में इस क्षेत्र में आने वाली बाढ़ ने यहाँ के जनमानस के जान-माल के लिए एक भयंकर त्रासदी का स्वरूप ले लिया है। वर्ष 1954, 1962, 1972, 1977, 1984, 1988, 1998, 2002, 2004, 2012, 2015, 2019 एवं 2022 की भयंकर बाढ़ को भूल पाना यहां के लोगों के लिए नितांत असंभव है। राजस्व एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग द्वारा दर्शाए गए आंकड़ों के अनुसार बाढ़ से प्रत्येक वर्ष लगभग 200 करोड़ की माध्य हानि का सामना करना पड़ता है। विशिष्ट रूप से वर्ष 1998, 2004, 2019 एवं 2022 के वर्षों में क्रमशः 500 करोड़, 771 करोड़, 3112 करोड़ एवं 1000 करोड़ की हानि आंकलित की गई। बाढ़ से हुई हानि के सम्बन्ध में असम सरकार के राजस्व एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग के वर्ष 1953 से 1995 की अवधि के लिए उपलब्ध आंकड़े निम्न सारणी 4 में दर्शाए गए हैं; जो इस क्षेत्र में बाढ़ से होने वाली विभीषिका का एक ज्वलंत उदाहरण हैं।
राष्ट्रीय बाढ़ आयोग (RBA) द्वारा किये गए मूल्यांकन के अनुसार राज्य का बाढ़ प्रभावित क्षेत्र 31.05 लाख हेक्टेयर है, जबकि राज्य का कुल क्षेत्रफल 78.523 लाख हेक्टेयर है अर्थात असम में कुल भूमि क्षेत्र का 39.58% बाढ़ से प्रभावित है। यह देश के कुल बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का लगभग 9.40% है। यह दर्शाता है कि असम का बाढ़ प्रभावित क्षेत्र देश के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र के चार गुणा से अधिक है। वर्ष 2001 से 2006 तथा वर्ष 2015 से 2022 के मध्य असम में बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में होने वाली क्षति को सारणी 5 में दर्शाया गया है।
एक यक्ष प्रश्न है कि असम में बाढ़ से बार बार हानि क्यों होती है? क्या इसे रोका नहीं जा सकता है? क्या कोई ऐसा तरीका नहीं है कि अनुमान होने पर भी बाढ़ से प्रत्येक वर्ष प्रदेश को होने वाले अरबों रूपए के नुकसान को रोका या कम किया जा सके? ऐसा क्यों है कि हम इस विभीषिका को झेलने के लिए एक तरह से अभिशप्त से लगते हैं? वास्तव में बाढ़ से निजात पाने का मार्ग है जनमानस को बाढ़कृत मैदान से दूर करना, जो कि नितांत असंभव कार्य है। जनमानस स्वतः ही बाढ़कृत मैदानी क्षेत्रों में नियमित रूप से विकास गतिविधियों के इच्छुक रहते हैं। वर्ष 1954 में बाढ़ नियंत्रण पर राष्ट्रीय नीति को लागू किये जाने के बाद बाढ़ नियंत्रण योजनाएं और तटबंधों के निर्माण कार्य तीव्रता से प्रारम्भ किए गए थे। जिसके परिणामस्वरूप उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार ब्रह्मपुत्र नदी पर निर्मित तटबंधों की लम्बाई वर्ष 1954 में 6000 किलोमीटर से बढ़कर वर्ष 1990 में 15,675 किलोमीटर हो गयी। इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र में लगभग 30,857 किलोमीटर जल निकासी वाहिकाओं के सुधार का कार्य भी किया गया। असम राज्य में प्रत्येक वर्ष ब्रह्मपुत्र नदी में बाढ़ के कारण होने वाली हानि से बचाव के लिए वर्ष 2017 में राज्य सरकार द्वारा राज्य सीमा के अंतर्गत ब्रह्मपुत्र नदी पर नदी मार्ग के साथ-साथ रूपए 40,000 करोड़ मूल्य के लगभग 5000 किलोमीटर लम्बे सड़क सहतटबंध को निर्मित करने की योजना स्वीकृत की गयी। इसके अतिरिक्त बांग्लादेश में - जमुना नदी के पश्चिम में दक्षिण तक बना तटबंध बाढ़ को नियंत्रित करने में सहायक सिद्ध होता है। तिस्ता बैराज - परियोजना, सिंचाई और बाढ़, दोनों की सुरक्षा योजना है।
भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण देश के विभिन्न भागों में अतिवृष्टि (बाढ़) एवं अनावृष्टि (सूखे) की समस्याओं के समाधान हेतु राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (NPP) के अंतर्गत नदियों को जोड़ने की योजना पर कार्य कर रहा है। इस योजना में नदियों में उपलब्ध अतिरिक्त जल को जल की कमी वाले बेसिनों में स्थानांतरित किए जाने की योजनाएं प्रस्तावित हैं। इन योजनाओं के पूर्ण हो जाने के बाद नदियों में उपलब्ध अतिरिक्त जल को जल की कमी वाले बेसिनों में स्थानांतरित जाने से देश को बाढ़ एवं सूखे की आपदाओं से मुक्ति मिल सकेगी। इसी परियोजना के अंतर्गत पूर्वोत्तर राज्यों में मानस-संकोश-तीस्ता गंगा (MSTG) लिंक राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (NPP) के हिमालयी घटक के तहत प्रस्तावित है। MSTG लिंक नहर में फरक्का में गंगा के प्रवाह को बढ़ाने और कृष्णा, पेन्नार और कावेरी बेसिन के जल की कमी वाले क्षेत्रों में जल स्थानांतरण और सिंचाई सुविधाएं प्रदान करने के लाभ के लिए मध्यवर्ती प्रमुख धाराओं से अनुपूरण के साथ मानस और संकोश नदियों के अतिरिक्त जल को स्थानांतरित किये जाने की परिकल्पना भी की गई है। लिंक की पूर्व-व्यवहार्यता रिपोर्ट तैयार की जा चुकी है और इसका जलविज्ञानीय अध्ययन प्रगति पर है।
इस योजना के निर्माण के बाद मानस और संकोश नदियों के अतिरिक्त जल को दक्षिण की नदियों में स्थानांतरित किये जाने से ब्रह्मपुत्र नदी की बाढ़ में कुछ हद तक कमी आने की संभावना है। ब्रह्मपुत्र बेसिन में बहुउद्देशीय परियोजनाओं का निर्माण सिंचाई, घरेलू उपयोग, बाढ़ सुरक्षा तथा जल विद्युत उत्पादन संबंधी उद्देश्यों के लिए किया जाता है। यद्यपि पूर्वोत्तर राज्यों के ब्रह्मपुत्र एवं बराक बेसिन में 60% भार गुणांक पर 34,920 MW की संभाव्य जल विद्युत संभाव्यता उपलब्ध है, जो देश की नदियों में उपलब्ध जल संभाव्यता का 41.5% है परन्तु जल विद्युत की इतनी विशाल संभाव्यता के बावजूद हम अभी तक इसका मात्र 2% ही उपयोग कर पाते हैं। इस क्षेत्र में बहुउद्देशीय परियोजनाओं की अनुपलब्धता के कारण जहाँ एक ओर हम इस संभाव्य जल विद्युत उत्पादन से वंचित हैं वहीं दूसरी ओर बांधों के निर्माण के अन्य उद्देश्यों जैसे बाढ़ सुरक्षा का लाभ भी प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं तथा बाढ़ जैसी विकराल समस्या से त्रस्त हैं।
भारत सरकार द्वारा इस क्षेत्र में जल विद्युत परियोजनाओं के विकास पर विशिष्ट ध्यान देते हुए अनेक नई परियोजनाओं को प्रस्तावित किया गया है जिससे भविष्य में इस क्षेत्र में उपलब्ध जल संभाव्यता का उपयोग किया जा सके।
विगत वर्षों से कई बार ऐसी खबरें सामने आती रही हैं कि चीन, तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी के जल प्रवाह को रोकने के उद्देश्य से बांध का निर्माण कर रहा है और यदि ऐसा होता है तो भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में जल की आपूर्ति बाधित हो सकती है, विशेषज्ञों के अनुसार, वास्तुंग जांग्यो नदी पर चीन द्वारा जलविद्युत परियोजनाओं के संभावित निर्माण तथा जल भंडारण किये जाने के कारण ब्रह्मपुत्र नदी एक मौसमी नदी में परिवर्तित हो सकती है, जिसका परिणाम भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में सूखे के रूप में सामने आ सकता है। एक अन्य खतरा यह है कि बांधों के निर्माण के पश्चात् जब चीन मानसून में बाढ़ का पानी छोड़ेगा तो इससे ब्रह्मपुत्र नदी के जल प्रवाह में वृद्धि होने की संभावना बढ़ जाएगी।
वास्तव में पूर्वोत्तर राज्यों में स्थित ब्रह्मपुत्र एवं बराक बेसिन में जल की विशाल मात्रा तथा जल विद्युत की वृहत्त संभाव्यता उपलब्ध हैं। आवश्यकता है, उपलब्ध जल संभाव्यताओं के उपयुक्त प्रबंधन की जिसके अभाव में जहां एक और हम उपलब्ध संभाव्यताओं का उपयोग करने में असमर्थ हैं वहीं दूसरी और इसके उपयुक्त प्रबंधन के अभाव में बाढ़ जैसी विकराल समस्याओं से ग्रस्त हैं। क्षेत्र में वहुउद्देशीय परियोजनाओं का निर्माण तथा नदियों का अंतयर्योजन जैसे उपायों द्वारा हम क्षेत्र की समस्याओं को काफी हद तक नियंत्रित कर उपलब्ध जल संभाव्यताओं का उपयोग करने में सक्षम हो सकते हैं।