नैनीताल में पहाड़ों की सुरक्षा और विकास
नैनीताल में पहाड़ों की सुरक्षा और विकास

नैनीताल में पहाड़ों की सुरक्षा और विकास

जानिए नैनीताल में पहाड़ों की सुरक्षा और विकास कितनी बड़ी चुनौती है
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1895 में सर एंटोनी पेट्रिक मैकडॉनल नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस के लेफ्टिनेंट गवर्नर बने। उनके गवर्नर बनने के बाद नैनीताल के विकास को एकाएक पंख लग गए। सर एंटोनी पेट्रिक मैकडॉनल ने नैनीताल के अधिसंरचनात्मक सुविधाओं के विकास में व्यक्तिगत तौर पर दिलचस्पी दिखाई। उनके कार्यकाल के दौरान नैनीताल में उच्च तकनीकी से लैस एक नया और नायाब नालातंत्र विकसित हुआ। घरों में नलों द्वारा पीने के साफ एवं स्वच्छ पानी की आपूर्ति की व्यवस्था कायम हुई। नगर की साफ-सफाई की प्रणाली में सुधार आया।  

सर मैकडॉनल ने नगर पालिका को "स्वच्छता समितियों" के जरिए उस दौर की लाइलाज और संक्रामक बीमारियों से लड़ने के गुर सिखाए। नैनीताल का भव्य और आलीशान राजभवन, सचिवालय तथा कलक्ट्रेट भवन आदि सर मैकडॉनल के प्रयासों का ही प्रतिफल है। सर एंटोनी पेट्रिक मैकडॉनल 1895 से 1901 तक नार्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस एण्ड अवध के लेफ्टिनेंट गवर्नर रहे। कार्यकाल पूरा होने के बाद जब सर मैकडॉनल ने 1901 में नैनीताल को अलविदा कहा तो नगर पालिका बोर्ड ने उनका जोरदार नागरिक अभिनंदन किया। किसी लेफ्टिनेंट गवर्नर का नगर पालिका द्वारा किया गया यह पहला नागरिक अभिनंदन था।

1895 में पहाड़ों की सुरक्षा, पीने के पानी की पर्याप्त आपूर्ति और साफ-सफाई की व्यवस्था को दुरुस्त करना बड़ी चुनौतियां थीं। स्नोव्यू पहाड़ी पर स्थित राजभवन की सुरक्षा को लेकर कई विशेषज्ञ समितियां बन चुकी थीं। पर इस मामले में कोई अंतिम निर्णय नहीं हो पा रहा था। बार्नसडेल में सचिवालय के कुछ भवन बन गए थे। सचिवालय का वित्त विभाग बार्नसडेल के नव निर्मित भवन से काम करने लगा था। ये भवन सचिवालय के लिए अपर्याप्त थे। सर एंटोनी पेट्रिक मैकडॉनल ने लेफ्टिनेंट गवर्नर का कार्य संभालते ही पुराने राजभवन को खाली करा कर नया राजभवन बनाने को कहा। भारत सरकार ने उनके प्रस्ताव को मंजूरी दे दी।

नया राजभवन बनने तक डायोसेजन बॉयज स्कूल को अस्थाई राजभवन बनाने तथा डायोसेजन बॉयज स्कूल को बार्नसडेल (सचिवालय) में भेजने का प्रस्ताव बना। पर डायोसेजन बॉयज स्कूल प्रबंधन अपने स्कूल भवन को अस्थाई राजभवन को देने पर राजी नहीं हुआ। तब लेफ्टिनेंट गवर्नर सर मैकडॉनल ने यह इरादा त्याग दिया। ग्रीष्मकालीन राजधानी को मसूरी ले जाने पर विचार किया जाने लगा। इस प्रयोजन के लिए मसूरी में बाकायदा जमीन खोजी गई। पर वहाँ भी उपयुक्त स्थान नहीं मिल पाया। अंततः राजभवन को अस्थाई तौर पर डायोसेजन बॉयज स्कूल भवन में स्थानांतरित कर दिया। स्कूल को बार्नसडेल स्थित सचिवालय भवन में भेज दिया गया।

1895 में कैलाखान में सेना का नया कब्रिस्तान बना। यहाँ सेना के जवानों को ही दफनाया जाता था। 1895 से पहले नगर की सभी सड़कें और नालों की देख-रेख का दायित्व नगर पालिका का था। 11 जनवरी, 1896 को नार्थ वेस्टर्न प्रोविन्सेस एवं अवध की सरकार ने नगर पालिका की सीमाओं के पुनर्निर्धारण को स्वीकृति प्रदान की।

अप्रैल 1896 में एफ.ई.जी. मैथ्यूज और दूसरे भवन स्वामियों ने शेर-का-डांडा पहाड़ी के नालों तथा सुरक्षा दीवारों की गुणवत्ता और व्यवहारिकता पर गंभीर सवाल उठाए। कहा कि पुराने प्राकृतिक जल धाराओं को ही नालों का रूप दिया जा रहा है। सरकार ने इन शिकायतों का संज्ञान लिया। कहा कि जल्दी ही मिस्टर वाइल्डब्लड नालों के काम को नए सिरे से अंजाम देंगे। इसी वर्ष नैना पीक की पहाड़ी पर भी दरारें देखी गई। 1896 में जियोलॉजिकल सर्व ऑफ इंडिया के तत्कालीन कार्यवाहक सुपरिटेंडेंट थॉमस एच. हॉलैंड की अध्यक्षता में जाँच कमेटी बना दी गई। मिस्टर थॉमस एच. हॉलैंड ने अपनी जाँच रिपोर्ट में एजहिल के नाले से स्टाफ हाउस तक के क्षेत्र को खतरनाक बताया। बाद में मिस्टर थॉमस एच. हॉलैंड की यह जाँच रिपोर्ट भारत सरकार के प्रेस से बाकायदा प्रकाशित भी हुई।

1896 के अप्रैल के महीने में बार्नसडेल स्थित सचिवालय की एक पुरानी इमारत में आग लग गई। यह इमारत आग में जल कर स्वाहा हो गई। इस अग्निकाण्ड के बाद डायोसेजन बॉयज स्कूल को खुर्पाताल स्थित सेना की छावनी में भेज दिया। स्वास्थ्य की दृष्टि से खुर्पाताल को उपयुक्त नहीं समझा गया। फिर इसे आल्मा हिल के तीन घरों में स्थानांतरित कर दिया गया। आखिरकार 1899 में स्कूल अपनी मूल जगह में वापस आ गया।

10 अगस्त, 1896 को लेफ्टिनेंट गवर्नर सर मैकडॉनल के आदेश पर नैनीताल की साफ-सफाई की जाँच के लिए एक विशेष जाँच कमेटी बना दी गई। इस जाँच कमेटी में डिप्टी एडजुटेंट जनरल ऑफ बंगाल कमाण्ड के ब्रिगेडियर जनरल जी.एफ. यंग, सर्जन मेजर ए.ई. टाटे, इंस्पेक्टर जनरल ऑफ सिविल हॉस्पिटल, सेनीटरी कमिश्नर, लेफ्टिनेंट कर्नल एस. जे. थॉमसन शामिल थे। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में पीने के पानी की आपूर्ति में सुधार लाने, बाजार क्षेत्र की नालियों  को पक्का किए जाने तथा बाजार क्षेत्र की सीवर लाइन की मौजूदा मोटाई छह इंच को बढ़ाकर आठ इंच करने आदि सुझाव सुझाए।

नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस एण्ड अवध सरकार ने शासनादेश संख्या-6333 दिनाँक 15 अगस्त, 1896 को नए राजभवन के लिए गिवाली विला स्टेट और उसके आसपास की जमीन देने के आदेश जारी कर दिए। इसके बाद नैनीताल के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर मिस्टर सी.एच. रॉबट्स की ओर से मिस्टर डब्ल्यू, बी. कॉकबर्न में 'भूमि अधिग्रहण एक्ट-1894' की धारा-4 के तहत नए राजभवन के लिए गिवाली पार्क, गिवाली विला स्टेट और डायोसेजन बॉयज स्कूल की कुछ जमीन अधिगृहीत करने की अधिसूचना जारी कर दी। 01 सितम्बर, 1897 को शासनादेश संख्या-3677/7बी-3 डब्ल्यू द्वारा नए राजभवन के लिए शेरवुड तथा इसके आस-पास की भूमि अधिगृहीत करने का नोटिफिकेशन जारी हो गया।

1896 में नैनीताल में हैजा फैल गया। सरकार तुरंत हरकत में आ गई। सफाई व्यवस्था की निगरानी के लिए यूरोपियन स्वास्थ्य इंस्पेक्टर और असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर तैनात कर दिए गए। लेफ्टिनेंट गवर्नर सर मैकडॉनल की सलाह पर 'स्वच्छता समितियों" का गठन किया गया। हैजा फैलने के लिए नगर पालिका को जिम्मेदार माना गया और उसे बर्खास्त करने की माँग उठी। पर लेफ्टिनेंट गवर्नर सर मैकडॉनल के निर्देशन में नगर पालिका द्वारा तत्काल उठाए गए सुरक्षात्मक कदमों से इस संक्रामक बीमारी का खतरा जल्दी ही टल गया। नगर पालिका बर्खास्त होने से बच गई। 1896 में जन स्वास्थ्य संबंधी उपायों के तहत नैनीताल में 110 मर्दाना, 50 जनाना शौचालय और अलग-अलग स्थानों में 26 सार्वजनिक मूत्रालय बनाए गए।

1895-96 में शेर-का-डांडा नाला सिस्टम में 6 मील तथा बड़ा नाला सिस्टम में तीन मील नाले और बने। इन नालों के निर्माण में 97,630 रुपये खर्च हुए। इस दौर में नगर पालिका बोर्ड ने नैनीताल में नागरिक सुविधाओं के विकास के लिए ईमानदारी और जज्बे के साथ काम किया। नगर के विकास की खातिर नगर पालिका के तत्कालीन अधिकारियों को कई बार व्यक्तिगत स्तर पर भी जूझना पड़ा। मिडिल अयारपाटा माल रोड के निर्माण के लिए नगर पालिका को उच्च न्यायालय तक कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी। तत्कालीन कानूनों के तहत जब अदालतों के फैसले नगर पालिका के खिलाफ गए तो नगर की एक सड़क बनाने के लिए लेफ्टिनेंट गवर्नर ने कानून को ही संशोधित कर दिया। दो साल तक चली लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार मिडिल अयारपाटा मालरोड बन पाई।

हुआ यूँ कि नगर पालिका का मिडिल अयारपाटा मालरोड बनाने की इरादा था। इसके लिए नगर पालिका को 'ईस्ट लैगून कॉटेज' की कुछ जमीन अधिगृहीत करने की जरुरत थी। पालिका ने 'भूमि अधिग्रहण एक्ट-1894' तहत सड़क निर्माण के प्रयोजनार्थ जनहित में ईस्ट लैगून कॉटेज की कुछ भूषि अधिगृहीत कर ली। इस भवन के स्वामी मेजर जनरल थॉमस और उनके सम्पति एजेन्ट एफ.ई.जी. मैथ्यूज को नगर पालिका की यह कार्रवाई नागवार गुजरी। संपत्ति के एजेंट मैथ्यूज ने ईस्ट लैगून कॉटेज' का कोई एक हिस्सा अधिगृहीत करने के बजाय संपूर्ण संपत्ति को ही खरीद लेने का प्रस्ताव दे दिया। एजेंट मैथ्यूज ने 2.706 वर्ग फीट में निर्मित ईस्ट लैगून कॉटेज की कीमत तीन रुपये आठ आना प्रति वर्ग फीट निर्माण लागत के हिसाब से 9,471 रुपये, 726 वर्ग फीट में निर्मित गाय घर के निर्माण लागत दो रुपये प्रति वर्ग फीट की दर से 1452 रुपये 4.90 एकड़ जमीन की कीमत 4,000 रुपये और स्टोर तथा वहाँ उपलब्ध समस्त सामान की कीमत 1,077 रुपये समेत कुल 18 हजार रुपये कीमत आंकी। 
उन्होंने कुल 15 हजार रुपये में संपूर्ण संपत्ति नगर पालिका को बेचने का प्रस्ताव दिया।

नॉर्थ वेस्टर्न प्रोर्विसेस के सचिव जे.ओ. मिलर ने 26 अक्टूबर, 1896 को इस संपत्ति में से 0.405 एकड़ जमीन अधिगृहीत करने का नोटिफिकेशन जारी कर दिया। लेकिन संपत्ति स्वामी भूमि अधिग्रहण के खिलाफ थे। मामले की गंभीरता को देखते हुए लेफ्टिनेंट गवर्नर ने इस प्रकरण की सुनवाई के लिए जिला जज, बरेली को नियुक्त कर दिया। इस बारे में सरकार द्वारा 12 मार्च, 1897 को बकायदा नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया। सरकार ने नगर पालिका, नैनीताल की सीमा के अंतर्गत 'भूमि अधिग्रहण अधिनियम-1894' के वादों की सुनवाई के लिए जिला जज, बरेली को अधिकृत कर दिया था। मेजर जनरल थॉमस ने भूमि अधिग्रहण अधिसूचना के खिलाफ जिला न्यायालय, बरेली में सिविल मुकदमा दायर कर दिया।

सिविल जज, बरेली ने 3 जून, 1897 को मामले में अपना फैसला दिया, जो कि मेजर जनरल थॉमस के खिलाफ गया। यह मामला विभिन्न न्यायालयों से गुजरते हुए अंततः उच्च न्यायालय तक जा पहुँचा। हाईकोर्ट के तत्कालीन जज एच.एफ. ब्लेयर एवं आर.एस. आईकमेन की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई की। 18 मई, 1898 को उच्च न्यायालय ने आंशिक रूप से मेजर जनरल थॉमस के हक में फैसला सुनाया। 3 जून, 1898 को जिला जज, बरेली ने हाईकोर्ट के फैसले के आधार पर मेजर जनरल थॉमस के पक्ष में डिक्री जारी कर दी।

नतीजतन भूमि अधिगृहीत करने का प्रस्ताव रुक गया। मामले को उलझता देख आखिरकार सरकार को भूमि अधिग्रहण एक्ट 1894' को संशोधित करना पड़ा। संशोधन के जरिए एक्ट में न्यायालय को अधिकार देने वाली घारा को ही निकाल दिया गया। अंततः दो साल बाद मिडिल अयारपाटा मालरोड का काम प्रारंभ हो पाया।1896 में जिला कोर्ट की मुख्य इमारत का काम प्रारंभ हुआ। इसके निर्माण में दो साल लगे। 1898 में यह भवन बनकर तैयार हुआ। गौथिक शैली में बने जिला कोर्ट के इस भवन के निर्माण में एक लाख 35 हजार 26 रुपये खर्च आया। 1897 में जिला कोर्ट के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के लिए 587 रुपये की लागत से भोजन बनाने का शेड बना।

नगर पालिका की सफाई कमेटी ने 1896 में नैनीताल में बंगला बनाने के लिए न्यूनतम चार एकड़ भूमि को घटाकर न्यूनतम दो एकड़ करने का प्रस्ताव पास किया। 30 सितंबर, 1897 को नगर पालिका के सभासद एफ.जी.ई. मैथ्यूज ने पत्र के जरिए नगर पालिका बोर्ड को 'टू एकड़ रुल' का प्रारूप भेजा। 13 अक्टूबर, 1897 को हुई नगर पालिका बोर्ड की बैठक में प्रस्ताव संख्या- चार में मैथ्यूज द्वारा प्रस्तुत 'टू एकड़ रुल' पर चर्चा हुई। 31 दिसंबर, 1897 को नगर पालिका बोर्ड ने भवन बनाने के लिए चार एकड़ जमीन के बजाए न्यूनतम दो एकड़ जमीन आवंटित करने संबंधी प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। 'फोर एकड़' से 'दो एकड़' योजना पर मिस्टर टी. डब्ल्यू, टैली आदि ने आपत्ति की। उन्होंने तर्क दिया कि दो एकड़ में छोटे घर बनेंगे। नैनीताल में सुविधाएं बढ़ रही है। नैनीताल की सफाई व्यवस्था इंग्लैंड के किसी भी शहर के मुकाबले की है। रेल आने वाली है, रेल आने के बाद यहाँ व्यापार बढ़ेगा। इससे बेशक नगर पालिका की आय भी बढ़ जाएगी। इसके जवाब में नगर पालिका ने कहा कि दो एकड़ में से एक एकड़ को कवर कर एक बड़ा घर बनाया जाये। मौजूदा नियमों के तहत कम से कम सौ वर्ग गज में दो अच्छे कॉटेज बनाए जाए। 

22 फरवरी, 1898 को नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस एण्ड अवध के सचिव जे.ओ. मिलर ने नगर पालिका बोर्ड के 'टू एकड़ रुल' के प्रस्ताव को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि नैनीताल में मौजूदा वक्त में लागू भूमि आवंटन संबंधी नियमों के चलते नए नियम बनाने की फिलहाल कोई आवश्यकता नहीं है। कहा कि नैनीताल में भूमि आवंटन संबंधी पुराने नियम बहुत सोच-विचार कर बनाए गए हैं। लिहाजा सरकार ने भूमि आवंटन नियमावली में बदलाव करने संबंधी प्रस्ताव को निरस्त कर दिया।] 897 में फ्लैट्स का प्रबंधन नगर पालिका को सौंप दिया गया। 1897 में शेर-का-डांडा पहाड़ी के सभी नालों और सड़कों का काम पूरी तरह पी.डब्ल्यू. डी. के हवाले कर दिया गया। इसी साल पी.डब्ल्यू.डी. के इंजीनियर मिस्टर एफ.ओ. ऑएरटेल ने 1896 में आग में स्वाहा हुए सचिवालय भवन के स्थान पर नई इमारत का नक्शा बनाया। नए सचिवालय के निर्माण में ज्यादातर पत्थर स्नोव्यू स्थित पुराने राजभवन से लाए गए।

1900 में वर्तमान सचिवालय भवन बन कर तैयार हो गया था। 1897 में डायोसेजन बॉयज स्कूल के नए भवन की नींव डाली गई। इस भवन का निर्माण कार्य पी.डब्ल्यू.डी. के तत्कालीन अधिशासी अभियंता एच.एफ. वाइल्डब्लड ने कराया था। नैनीताल के नाला तंत्र के निर्माण तकनीकी की नए सिरे से समीक्षा की गई। अब नैनीताल के नालों के निर्माण का कार्य उच्च तकनीकी से लैस विशेषज्ञों को सौंप दिया गया। इसके बाद नैनीताल के नालों के तल में पत्थरों से सीढ़ीदार खड़ंजे बिछाए गए। एक निश्चित दूरी पर कैचपिट और 'वेड वार' यानी-'बांधा तल' बनाए गए। पत्थरों के सीढ़ीदार खड़ंजों में बरसाती पानी प्राकृतिक रूप से छन कर स्वच्छ जल में तबदील हो जाता था। पहाड़ियों से नालों के द्वारा आने वाला मलबा कैचपिटों तथा 'बैडवारों' में आकर ठहर जाता था। इस मलबे को तयसुदा तिथियों में निकाल लिया जाता था।
साफ सफाई की व्यवस्था और पेयजल आपूर्ति सहित अन्य नगरीय सेवाओं के मामले में नैनीताल 1897 में इंग्लैंड के कई शहरों से आगे निकल गया था। एक रिपोर्ट में कहा गया कि नैनीताल में पेयजल आपूर्ति और साफ-सफाई इंग्लैंड के किसी भी शहर से कहीं बेतहर है। तब यहाँ मौजूद मकानों की संख्या और स्थिति भी इंग्लैंड जैसी ही बताई गई।

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