हिंदू कुश हिमालय में बर्फबारी घट रही है
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जलसंकट की आहट है हिंदू-कुश हिमालय के ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना

‘वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी’- डब्ल्यूआइएचजी के वरिष्ठ हिंदू-कुश हिमालय के ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने से 200 करोड़ लोगों को जल संकट का सामना करना पड़ सकता है। जलवायु परिवर्तन से ग्लेशियरों की स्थिति पर बड़ा असर पड़ रहा है। हिमनद विशेषज्ञ डा. मनीष मेहता की टिप्पणी अहम, साक्षात्कार में बोले- जलवायु परिवर्तन से दक्षिण एशिया के ग्लेशियर होंगे सर्वाधिक प्रभावित
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देहरादूनः जलवायु परिवर्तन अब केवल एक देश की नहीं, बल्कि वैश्विक चिंता का विषय बन चुका है। इसके कारण ग्लेशियरों के पिघलने की दर में तेजी आ रही है। वैज्ञानिक लगातार ग्लेशियरों की स्थिति पर नजर रख रहे हैं और उनके संरक्षण के प्रयास कर रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन से दक्षिण एशिया के ग्लेशियर सबसे अधिक प्रभावित होंगे। हिंदू-कुश हिमालय के ग्लेशियरों की स्थिति बिगड़ने से 200 करोड़ लोगों को जल संकट का सामना करना पड़ सकता है। देहरादून स्थित वांडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान (डब्ल्यूआइएचजी) के वरिष्ठ हिमनद विशेषज्ञ डा. मनीष मेहता ने 'दैनिक जागरण' से बातचीत में यह बात कही। संयुक्त राष्ट्र ने 22 मार्च को मनाए जाने वाले वर्ल्ड वाटर डे की थीम 'ग्लेशियर संरक्षण' रखी है। इस संदर्भ में डा. मेहता की टिप्पणी अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जा रही है।

ग्लेशियरों ग्ले के तेजी से पिघलने से उत्पन्न होने वाली विकट परिस्थितियों के बारे में बताते हुए डा. मेहता ने कहा कि ग्लेशियर और बर्फ की टोपियों में दुनिया के ताजे पानी का लगभग 68.7 प्रतिशत संग्रहित है। ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना एक गंभीर वैश्विक चिंता बन चुका है। इसका मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन है। अध्ययन बताते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियरों के पिघलने की गति पिछले कुछ दशकों में बढ़ गई है। यह न केवल समुद्र स्तर को बढ़ा रहा है बल्कि उन क्षेत्रों में भी जल संकट पैदा कर सकता है, जो ग्लेशियरों पर निर्भर हैं। यदि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी नहीं की गई, तो स्थिति और गंभीर हो सकती है।

डा. मेहता ने बताया कि दक्षिण एशिया में हिंदू-कुश हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने से एक गंभीर जल संकट उत्पन्न हो सकता है और इसका असर लगभग 200 करोड़ व्यक्तियों पर पड़ने की आशंका है। इस क्षेत्र के ग्लेशियर कृषि, उद्योग, बिजली उत्पादन और पीने के पानी के मुख्य स्रोत हैं। उनका तेजी से पिघलना दक्षिण एशियाई देशों के लिए कई चुनौतियां खड़ी कर सकता है। भारत, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, और बांग्लादेश की बड़ी आबादी सिंचाई, बिजली उत्पादन (विशेषकर पनबिजली) और पीने के पानी के लिए हिमालयी ग्लेशियरों पर निर्भर है। ग्लेशियरों का पिघलना इन आवश्यकताओं को बाधित कर सकता है और जल संकट को और बढ़ा सकता है। एक महत्वपूर्ण अध्ययन (2019 का आइपीसीसी और आइसीएमओडी रिपोर्ट) में चेतावनी दी गई थी कि यदि वर्तमान ग्लोबल वार्मिंग की प्रवृत्ति जारी रहती है, तो हिंदू-कुश हिमालयी क्षेत्र के ग्लेशियरों का लगभग एक तिहाई से तीन चौथाई हिस्सा इस सदी के अंत तक समाप्त हो सकता है।

ग्लेशियरों का महत्वपूर्ण हिस्सा भारत के हिस्से में

ग्लेशियरों का महत्वपूर्ण हिस्सा भारत के हिस्से में आता है, विशेषकर हिमालय और हिंदू-कुश क्षेत्र में। जियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया के अनुसार भारतीय भू-भाग में 9575 ग्लेशियर हैं। एशिया के हिमालय और हिंदू-कुश ग्लेशियरों को "तीसरा ध्रुव कहा जाता है, क्योंकि यहां वैश्विक ताजे पानी का लगभग 0.2% भंडार है। यह अंटार्कटिका और आर्कटिक के बाद ताजे पानी का सबसे बड़ा भंडार है।

  • वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान 10 ग्लेशियरों की निगरानी कर रहा है, जिनमें तीन ग्लेशियर मध्य हिमालय, छह ग्लेशियर पश्चिमी हिमालय और काराकोरम में स्थित है।

  •  उत्तराखंड व हिमाचल प्रदेश के लिए ग्लेशियर झील सूची तैयार की गई है, जिसमें उत्तराखंड में 1,266 झीलों और हिमाचल प्रदेश में 958 झीलों की पहचान की गई है।

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