ग्लेशियर पर मंडरा रहा अस्तित्व का संकट।
ग्लेशियर पर मंडरा रहा अस्तित्व का संकट।

विश्व ग्लेशियर दिवस पर विशेष: कम बर्फबारी से बिगड़ रही गंगोत्री ग्लेशियर की सेहत

विश्व ग्लेशियर दिवस पर जानें कैसे कम बर्फबारी से गंगोत्री ग्लेशियर की सेहत बिगड़ रही है और जानें कैसे भविष्य में गंगा नदी के जलस्तर में कमी आ सकती है और इसके परिणाम।
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उत्तरकाशीः सदानीरा गंगा (भागीरथी) नदी के उद्गम गंगोत्री ग्लेशियर की सेहत शीतकाल में कम हो रही बर्फबारी से बिगड़ रही है। यह तथ्य वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान की ओर से की जा रही गंगोत्री ग्लेशियर की निगरानी में सामने आया है। संस्थान के वैज्ञानिकों का कहना है कि यही स्थिति रही तो भविष्य में गंगा नदी में पानी की कमी हो सकती है। इसका असर सिंचाई से लेकर जल विद्युत उत्पादन तक पड़ेगा।

वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान की ओर से पिछले 11 वर्ष से गंगोत्री ग्लेशियर के पीछे खिसकने की गति की निगरानी की जा रही है। इसके साथ ही संस्थान उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के साथ मिलकर विगत तीन वर्ष से ग्लेशियर क्षेत्र में वर्षा, बर्फबारी, तापमान आदि के आंकड़े जुटाकर उनका अध्ययन भी कर रहा है। इसके लिए संस्थान ने गोमुख से चार किमी दूर भोजवासा व नौ किमी दूर चीड़बासा में ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन स्थापित किए हैं। साथ ही भोजवासा व मनेरी में एक-एक ब्रॉडबैंड सिस्मिक स्टेशन भी स्थापित किया है। रिमोट सेंसिंग से भी ग्लेशियर की निगरानी की जा रही है। संस्थान ने गंगोत्री ग्लेशियर क्षेत्र में ऑटोमेटिक वाटर लेवल रिकार्डर भी लगाया था, जो बाढ़ के चलते बह गया, इसे दोबारा लगाया जाएगा।

इस अध्ययन से जुड़े संस्थान के ग्लेशियोलाजी विभाग के विज्ञानी डा. अमित कुमार ने बताया कि अब तक प्राप्त आंकड़ों से ग्लेशियर क्षेत्र में वर्षा और बर्फबारी के पैटर्न में बदलाव देखने को मिल रहा है। उनका कहना है कि पहले ग्लेशियर क्षेत्र में बहुत कम वर्षा होती थी, लेकिन अब कम समय में बहुत ज्यादा वर्षा देखने को मिल रही है।

पहले नवंबर, दिसंबर व जनवरी में अच्छी बर्फबारी होती थी, लेकिन अब शीतकाल में देरी से और बहुत कम बर्फबारी हो रही है। जो थोड़ा-बहुत बर्फबारी होती भी है, वह टिक नहीं पाती। बर्फ के न टिकने से ग्लेशियर के स्वास्थ्य पर असर पड़ना स्वाभाविक है। इसका प्रभाव गर्मी के मौसम में ग्लेशियर से निकलने वाली नदी के जलस्तर पर भी पड़ता है। नदियों पर निर्मित जल विद्युत परियोजनाओं में पानी की कमी से बिजली उत्पादन आदि प्रभावित होता है।

बड़े अध्ययन के लिए 20 से 30 वर्ष का डाटा जरूरी

डा. अमित कुमार ने बताया कि पहले कभी गंगोत्री ग्लेशियर क्षेत्र में मौसमी आंकड़ों की निगरानी नहीं हुई। पिछले तीन वर्ष से इसकी निगरानी की जा रही है। इससे आने वाले समय में ग्लेशियर क्षेत्र से आने वाली नदियां कितना पानी लेकर आ रही हैं, उसका भी पता चल सकेगा। इसके लिए विभिन्न तरह के मौसमी आंकड़ों को जोड़कर अध्ययन किया जा रहा है। बताया कि ऐसे बड़े अध्ययन के लिए 20 से 30 वर्षों का डाटा जरूरी है, जिसे जुटाने के लिए प्रयास जारी है।

वर्ष 1935 से 2023 तक 1,700 मीटर पीछे खिसका ग्लेशियर

वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान से मिली जानकारी के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण गंगोत्री ग्लेशियर लगातार पीछे खिसक रहा है। वर्ष 1935 से 2023 तक गंगोत्री ग्लेशियर करीब 1,700 मीटर पीछे खिसक चुका है।

गंगोत्री से गोमुख की दूरी करीब 18 किमी बताई जाती है, लेकिन गत वर्ष जब गंगोत्री नेशनल पार्क के वन क्षेत्राधिकारी प्रदीप बिष्ट ने पार्क की टीम के साथ यहां का दौरा किया तो उनका कहना था कि यह दूरी 18 किमी से कहीं ज्यादा है।

ग्लेशियर टूटने से बदल रहा गोमुख का स्वरूप

डा. अमित कुमार ने बताया कि कुछ वर्ष पूर्व गोमुख क्षेत्र में ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटकर गोमुख के सामने गाद के रूप में जमा हो गया था। इस कारण भी गंगा के उद्गम स्थल गोमुख का स्वरूप बदल रहा है। यह गाद हर वर्ष नदी के साथ बहकर आती है। संस्थान इसकी भी निगरानी कर रहा है। संस्थान की टीम उपकरणों के माध्यम से आंकड़े जुटाने के साथ ग्राउंड पर जाकर भी स्थिति का जायजा लेती है।

विश्व ग्लेशियर दिवस क्या है (What is World Glacier Day?)

विश्व ग्लेशियर दिवस (World Glacier Day) हर साल 21 मार्च को मनाया जाता है। इस वर्ष यह दिन यानी विश्व ग्लेशियर दिवस पहली बार मनाया जा रहा है। यह दिन ग्लेशियरों के महत्व और उनके संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए समर्पित है। विश्व ग्लेशियर दिवस (World Glaciers Day) हर साल 21 मार्च को मनाया जाएगा। इसकी शुरुआत इसी वर्ष यानी 2025 में हुई है, यानी पहली बार इसे 21 मार्च 2025 को मनाया जा रहा है। यह दिन संयुक्त राष्ट्र द्वारा ग्लेशियर संरक्षण और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर जागरूकता बढ़ाने के लिए स्थापित किया गया है। 2025 को संयुक्त राष्ट्र ने "अंतर्राष्ट्रीय ग्लेशियर संरक्षण वर्ष" (International Year of Glaciers’ Preservation) भी घोषित किया हुआ है। और इसी संदर्भ में विश्व ग्लेशियर दिवस की शुरुआत हुई है। यह निर्णय 2022 में 36वीं UN-Water बैठक में लिया गया था, जिसका उद्देश्य ग्लेशियरों की जल चक्र और पर्यावरण में महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर करना है।

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