मिर्ज़ापुर ज़िले में अहरौरा बांध से रिस कर नहर के ज़रिये किसानों के खेतों में जाता पानी और चिंतित किसान।
मिर्ज़ापुर ज़िले में अहरौरा बांध से रिस कर नहर के ज़रिये किसानों के खेतों में जाता पानी और चिंतित किसान।बृजेंद्र दुबे।

मिर्ज़ापुर : अहरौरा बांध से पानी का रिसाव, डूब गई 22 गांवों के किसानों की तैयार फसल

बांधों के रखरखाव में सिंचाई विभाग की लापरवाही से किसानों को उठाना पड़ रहा भारी नुकसान
Published on
13 min read

अहरौरा (मिर्ज़ापुर ) ।  सरकार बांध और नहरें बनवाती है किसानों को सिंचाई की बेहतर सुविधा उपलब्‍ध कराने के लिए। पर, सरकारी महकमे की लापरवाही के चलते अगर यही बांध और नहर किसानों की बर्बादी की वजह बन जाए तो इसे क्‍या कहेंगे? कुछ ऐसा ही हो रहा है उत्‍तर प्रदेश के मिर्जापुर ज़िले के अहरौरा में। अहरौरा बांध के मेन कैनाल गेट से पानी का रिसाव इलाके के करीब 10 हज़ार किसान परिवारों के लिए बड़ा सिरदर्द बन गया है। रिसाव के कारण खेतों में पानी भरने से इनकी फसलें बर्बाद हो गई हैं। साथ ही भारी मात्रा में पानी की बर्बादी भी हो रही है। 

अहरौरा बांध के मेन कैनाल गेट (स्लुइस) से पानी का रिसाव बंद नहीं होने से नाराज़ किसान 9 नवंबर 2025 को धरने पर बैठ गए। करीब तीन घंटे के प्रदर्शन के बाद भी सीपेज बंद कराने में सफलता नहीं मिली, तो  किसानों ने चक्का जाम का अल्टीमेट दे दिया। इसके बाद प्रशासन थोड़ी हरकत में आया और किसानों के बीच बातचीत की गई। प्रशासन से बातचीत के बाद किसानों ने निर्णय लिया कि अगले तीन दिनों के भीतर अगर सिंचाई विभाग सीपेज की समस्या दूर नहीं करेगा, तो किसान हाइवे जाम करेंगे। 

किसानों के लगातार चल रहे धरना प्रदर्शन को देखते हुए एसडीएम, चुनार, राजेश कुमार वर्मा मेन कैनाल गेट पर दो घंटे तक सीपेज को बंद कराने का प्रयास किया। पर, जलाशय में पानी की मात्रा अधिक होने की वजह से समस्या का समाधान नहीं हो पाया। एसडीएम ने सिंचाई विभाग को समस्‍या के समाधान के लिए टेक्निकल टीम को बुलाने के लिए निर्देश दिए हैं। सीपेज रोकने के लिए महाराष्ट्र से टेक्निकल टीम बुलाई गई है। भारतीय किसान यूनियन के जिलाध्यक्ष कंचन सिंह फौजी ने कहाकि," बांध का सीपेज बनाने के लिए महाराष्ट्र से बुलाए गए गोताखोरों की मदद से बांध के सीपेज का पानी बाहर की तरफ से रोकने का प्रयास किया गया है। इसके बावज़ूद पानी लीकेज पूरी तरीके से बंद नहीं हुआ है। लगभग 7-8 क्यूसेक पानी अभी भी बांध से रिस रहा है। बांध के मेन कैनल गेट के पानी में डूबने के कारण उसमें जंग लग गया है। गेट में लगी रबर सड़ चुकी है। फिलहाल बांध के बाहर नहर की तरफ से गेट लगाकर पानी को रोक दिया गया है। लेकिन, इससे बांध के पानी का रिसाव पूरी तरीके से बंद नहीं हुआ है। भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के प्रदेश उपाध्यक्ष सिद्धनाथ सिंह ने कहा कि सिंचाई विभाग के अधिकारियों की लापरवाही से मेन कैनाल गेट में खराबी आई है। इनकी वजह से किसानों की फसलों को नुकसान तो हो ही रहा है, साथ ही बेशकीमती पानी भी बर्बाद तो हो रहा है।

बांध का पानी को रोकने के लिए मरम्मत करते कर्मचारी और मौके पर मौज़ूद अधिकारी।
बांध का पानी को रोकने के लिए मरम्मत करते कर्मचारी और मौके पर मौज़ूद अधिकारी। स्रोत : बृजेंद्र दुबे

विंध्याचल की पहाड़ियों में बसा मिर्ज़ापुर ज़िला कुल 4521 वर्ग किलोमीटर में फैला है। स्थानीय कृषि विकास केंद्र के मुताबिक यहां की जलवायु अर्ध-शुष्क है और वार्षिक वर्षा 1100 मिलीमीटर है। यहां 85-90% वर्षा मानसून में जून के चौथे सप्ताह से सितंबर के आखिर तक होती है। यह उत्तर प्रदेश के सात सूखा-ग्रस्त ज़िलों में से एक है।  विंध्य क्षेत्र में आने वाले इस जनपद का अधिकतर हिस्सा चट्टानी और समतल है। खेती और पारिस्थितिकी के नज़रिए से देखा जाए, तो ज़िले के पास 40 फीसद खेती योग्य ज़मीन है। खेती के लिए यहां भूमिगत जल और बांधों से मिलने वाले नहरों के पानी का इस्तेमाल किया जाता है। इनमें प्रमुख रूप से अहरौरा बांध, जरगो बांध, ढेकवा बांध, अपर खजुरी बांध, सिरसी बांध,मेजा बांध, अदवा बांध शामिल हैं। इन सभी बांधों से निकली हुई नहरों के पानी से किसान अपने खेत की सिंचाई करते हैं। औद्योगिक विकास और व्‍यापारिक गतिविधियां न होने के चलते खेती ही यहां के लोगों का मुख्य व्यावसाय और ज्‍़यादातर परिवारों की आजीविका का साधन है। यहां की प्रमुख फसलों में चावल, अरहर, चना, बाजरा, गेहूं, आलू, प्याज़, ड्रैगन फ्रूट, केला, मसाले और सब्ज़ियां शामिल हैं। पर, अहरौरा बांध से हो रहा पानी का रिसाव इन दिनों हज़ारों किसानों के लिए मुसीबत बन कर खड़ा हो गया है। किसानों के लिए यह वक्त धान की फसल की कटाई और गेहूं की बुआई करने का होता है। पर, खेतों में बांध का पानी भर जाने के कारण न तो धान की कटाई हो पा रही है, न ही गेहूं की बुवाई। में लगे है। किसानों की मांग और धरना-प्रदर्शन के बावजूद सिंचाई विभाग ने अबतक अहरौरा मेन कैनाल के गेट की मरम्‍मत नहीं कराई है। अहरौरा बांध मेन कैनाल के गेट से हो रहे रिसाव के चलते लगभग 60 से 80 क्यूसेक पानी निकलकर करीब दो दर्ज़न गांवों के लगभग 10 हज़ार किसानों की फसलों को बर्बाद कर रहा है।

बांध में रिसाव से किसानों को हो रही समस्‍या का जायजा लेने पहुंचे किसान यूनियन के नेता।
बांध में रिसाव से किसानों को हो रही समस्‍या का जायजा लेने पहुंचे किसान यूनियन के नेता।स्रोत : बृजेंद्र दुबे

लगातार बह रहा है 80 से 90 क्यूसेक पानी 

धरने पर बैठे भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश सचिव प्रहलाद सिंह (52) ने इंडिया वाटर पोर्टल (आईडब्लूपी) से बातचीत में कहा, " 7 नवंबर को किसानों की पंचायत बुलाई गई थी। अहरौरा बांध के पानी का मेन गेट बंद होने के बाद भी लगातार 80 से 90 क्यूसेक पानी बह रहा है। यह किसानों के खेतों को बर्बाद कर रहा है। किसानों की धान की फसल पक गई है और काटने के कगार पर है। लेकिन, खेतों में इतना पानी भर गया है कि फसल की कटाई करने में परेशानी हो रही है। इसे लेकर 6 जून को भी  किसानों की पंचायत हुई थी, जिसमें सिंचाई विभाग से गेट की मरम्‍मत की बात कही गई थी, लेकिन गेट नहीं बनाया गया। इसकी वजह से किसानों की फसल बर्बाद हो रही है।'’

अहरौरा बांध का ‘ज़ीरो लेवल’ 310 फीट है। बांध का ‘ज़ीरो लेवल’ उस मानक ऊंचाई को कहते हैं, जिसे बांध के जलाशय या नहर तंत्र में पानी की न्यूनतम आधार-रेखा माना जाता है। यानी इस लेवल से ऊपर पानी का स्तर बढ़ना रिकॉर्ड किया जाता है। इसे सामान्यतः समुद्र तल से ऊपर की ऊंचाई के रूप में फीट या मीटर में मापा जाता है। अहरौरा बांध में जलस्‍तर ज़ीरो लेवल से 20 फीट ऊपर यानी 330 फीट पर पहुंचने पर मेन कैनाल में पानी जाना शुरू होता है। तकनीकी भाषा में इसे नहर का नहर का “इनटेक लेवल” या “कमान्ड लेवल” कहा जाता है। बांध में सिल्ट (गाद) जमा हो जाने पर यह पांच फीट और बढ़ जाता है यानी जलस्‍तर 335 फीट होने पर पानी बांध से नहर में जाता है। रिपोर्ट लिखे जाने तक  अहरौरा बांध में पानी का स्‍तर 357 फीट पर था। यह बांध लगभग 175 गांवों की सिंचाई करता है। लेकिन, जिस मेन कैनल गेट से रिसाव हो रहा है इस नहर से 42 गांवों की सिंचाई होती है। पानी के रिसाव से 22 गांव प्रभावित हो रहे हैं। कुल 10 हजार किसानों की फसल बर्बाद हो रही है। खेतों में पानी भरने से धान की पकी हुई फसल की कटाई नहीं हो पा रही है और खेतों में नए पौधों का अंकुरण शुरू हो गया है। इससे किसानों का बड़ा नुकसान हो रहा है। मुआवजे के लिए उपजिलाधिकारी से मांग की जा रही है।

अहरौरा डोंगिया बांध मेन कैनाल समिति के अध्यक्ष सिद्धनाथ सिंह (55) ने आईडब्लूपी से बातचीत में कहाकि, " कई वर्षों से अहरौरा बांध के मेन कैनाल और गड़ई कैनाल का स्लुइस (बांध का गेट) खराब था। अबतक संयोग अच्छा रहा कि बांध में इतना पानी नहीं भरता था। पिछले साल (2024) में गड़ई कैनाल का स्लुइस बन गया था, लेकिन मेन कैनाल का स्लुइस नहीं बन पाया है। इस साल ज्‍़यादा बारिश होने की वजह से बांध पूरी तरह भर गया है। इसके चलते अहरौरा बांध के मेन कैनाल से इतना पानी निकल रहा है कि 42 गांव के किसानों की फसल नष्‍ट हो रही है और भारी मात्रा में पानी भी बर्बाद हो रहा है। गेहूं की फसल लगने के 1 महीने बाद पानी की ज़रूरत होगी। 42 गांव की 6000 हजार हेक्टेयर जमीन की सिंचाई इस कैनाल पंप से की जाती है। पर, इस वक्‍त रिसाव के चलते पानी की बर्बादी दिन-रात हो रही है। 42 गांव की करीब 1 लाख की आबादी इससे प्रभावित हो रही है। इसमें 90% सीमांत कृषक यानी छोटे किसान हैं।'’

अहरौरा बांध की क्षमता 60.62 मिलियन क्यूबिक मीटर (एमसीएम) है, इसमें कुल 23 गेट लगाए गए है। जमालपुर ब्लॉक के 65 गांवों की सिंचाई अहरौरा बांध से की जाती है। बारिश के दौरान जरगो बांध से पानी ओवर फ्लो न होने पाए इसलिए बांध से बनी को निकाला जा रहा था। बांध को वर्ल्ड बैंक की परियोजना ड्रिप इरिगेशन के अंतर्गत योजना में लिया गया है। इसलिए बांध के गेट के मरम्मत के लिए विश्‍व बैंक से धन की मांग की गई है। उसमें थोड़ी सी देरी है, अगर उसका पैसा पहले आएगा तो वर्ल्‍ड बैंक के फंड से बन जाएगा, अगर उस योजना में देरी होगी तो हम शासन से मांग करके गेट की मरम्‍मत करवाने का प्रयास करेंगे। नहर के बगल के किसानों के खेत पानी के रिसाव से प्रभावित है। इस वक्त हम रिसाव के पानी को कलकलिया नदी में छोड़ रहे हैं।
हरिशंकर प्रसाद , अधिशाषी अभियंता, सिंचाई खंड चुनार
खेतों में पानी भरने से धान की पकी फसल में फिर से निकलने लगे अंकुर और खेतों में लगा चारा भी सड़ रहा है।
खेतों में पानी भरने से धान की पकी फसल में फिर से निकलने लगे अंकुर और खेतों में लगा चारा भी सड़ रहा है। स्रोत : बृजेंद्र दुबे

पशुओं को चारे की भी हो रही समस्या 

अहरौरा के मानिकपुर गांव के किसान सतीश कुमार यादव (45) ने आईडब्लूपी से कहा, " हम लोगों की धान की फसल खेत में गिर गई है। कलकलिया नदी का पानी खेत में घुस कर फसल को बर्बाद कर दिया है। 2.50 बीघा खेत में धान की फसल लगाए थे। खेत में जलभराव से हमारी फसल तो बर्बाद हुई ही साथ में पशुओं को चारे की समस्या भी खड़ी हो गई है। मजबूरन हमें अपने पशुओं को चारा खरीद कर खिलाना पड़ रहा है। 700 रुपया प्रति क्विंटल के भाव पर भूसा खरीद कर पशुओं को खिला रहे हैं।'’

इसी गांव के रहने वाले रमेश कुमार यादव (35) ने आईडब्लूपी से कहा ," मानिकपुर गांव में नहर का पानी हमारे खेतों में जा रहा है। इंसान को तो छोड़ दीजिए, पशुओं को चारे के लिए संकट उत्पन्न हो गया है। जो धान की फसल खेत में गिर गई है उसको काट कर भैंस को खिला रहे हैं। पर, खराब होने के कारण भैंस भी उस चारे को नहीं खा रही है। परिवार में कुल 10 लोग हैं 1.50 बीघा खेती और पशुपालन ही जीविका का साधन है। ऐसे में हमारे लिए रोज़ी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है।'’

जलभराव के कारण धान में फिर से निकल रहे अंकुर

अहरौरा के घमहापुर गांव के रहने वाले किसान पुरुषोत्तम यादव (60)  आईडब्लूपी से कहते हैं, " आठ बीघा खेती किए थे। पहले मुंथा चक्रवात से हुई बेमौसम बारिश ने फसल बर्बाद की उसके बाद अब नहर के पानी में हमारा पूरा खेत ही डूब गया है। धान की तैयार फसल में पानी भरने से पौधों में फिर से अंकुर निकलने लगे हैं। हमारी जीविका खेती पर ही टिकी हुई है। धान की फसल बर्बाद होने के बाद लेखपाल ने सर्वे किया। कागज मांगे थे। हम कागज लेकर लेखपाल को ढूंढ रहे हैं, लेकिन वह मिल नहीं पा रहे हैं। हम लोग बहुत परेशान हैं। दिल-दिमाग में बेचैनी है। रबी की खेती के लिए हमारी पूरी पूंजी खरीफ की फसल पर टिकी रहती है, लेकिन सब बर्बाद हो गया। गेहूं का फसल की बुवाई करनी है, लेकिन खेत में पानी भरा है। 

इसी गांव के बटाई किसान पंचम सोनकर (45) आईडब्लूपी से कहते हैं, " पट्टे या बंटाई पर खेती करने वाले भूमिहीन किसान 30 हजार रुपये प्रति बीघा की ऊंची दर पर ज़मीन मालिकों से खेत लेकर खेती किए हैं। लेकिन, जलभराव के कारण उनकी पूरी फसल बर्बाद हो गई है। कटाई के लिए तैयार धान की फसल पानी भरने के चलते खेत में लेट गई है। धान सड़ कर फिर से अंकुरित हो गया। हम लोग बर्बाद हो गए। हमारी पूरी ढाई बीघा खेती बर्बाद हो गई। 15 हजार रुपये प्रति बीघा फसल में लागत लग गई थी। नहर के पानी से किसान बर्बाद हो गए हैं। रिसाव इतना ज्‍़यादा हुआ है कि फसल बर्बाद हो गई है। पत्नी की मौत के बाद तीन बेटियों को पालने की जिम्मेदारी हम है। बेटियों के परवरिश और उनकी शादी करने की चिंता चैन से सोने नहीं देती है।'’

जलभराव के कारण खड़ी फसल बार्बाद होने से परेशान किसान।
जलभराव के कारण खड़ी फसल बार्बाद होने से परेशान किसान।स्रोत : बृजेंद्र दुबे

डोंगिया और अपर खजूरी बांध से भी हो रहा रिसाव

जय जवान जय किसान समित के अध्यक्ष शारदा प्रसाद मिश्रा ने आईडब्लूपी से कहा," अहरौरा बांध के साथ-साथ डोंगिया और अपर खजूरी बांध से भी पानी का रिसाव हो रहा है। सिंचाई विभाग की उदासीनता और समय से देखभाल नहीं करने की वजह से बांधों की हालत दिन-प्रतिदिन बद से बदतर होती जा रही है। बांधों में सिल्ट का जमा होना, रिसाव होना आम बात हो गई है। पानी की बर्बादी रोकने में सिंचाई विभाग नाकाम दिख रहा है। सिंचाई विभाग नहरों की देखभाल और साफ-सफाई नहीं रख पा रहा है। विभाग किसानों को नहरों से पर्याप्त पानी देने में असमर्थ दिख रहा है। किसान के पास खेती करने के लिए पानी का एकमात्र साधन बांध का पानी है, लेकिन जिस तरीके से बांध के पानी को बहाया जा रहा है, वह चिंताजनक है।'’

ब्लास्टिंग से बांध को खतरा 

मिर्जापुर की पत्‍थर खदानों पर वर्षों से हो रही ब्लास्टिंग से भी बांध को खतरे की आशंका है। इससे बांध में दरार आने की बातें समय-समय पर उठती रही हैं। इलाके में कई मकानों, दुकानों के क्षतिग्रस्त होने और कई लोगों के घायल होने पर भी ब्लास्टिंग पर अंकुश नहीं लग सका है। हालत ये है कि अब ब्लास्टिंग से ढेकवा बांध और स्कूल पर भी खतरा मंडरा रहा है। यह आरोप सिंचाई विभाग के चुनार खंड के अधिशासी अभियंता हरिशंकर सिंह का है। उन्‍होंने छह नवंबर को जिलाधिकारी को पत्र लिखकर ढेकवा बांध के पास से हो रहे अवैध खनन को तत्काल रोकने की मांग की है। उन्‍होंने पत्र में जिलाधिकारी को बताया है कि सहायक अभियंता व अवर अभियंता द्वारा ढेकवा बांध का स्थलीय निरीक्षण के दौरान पाया गया कि तहसील चुनार स्थित ग्राम लहौरा में ब्लास्टिंग की जा रही है। वहां से ढेकवा बांध की दूरी मात्र 150 मीटर है। गांव के लोगों ने उन्‍हें बताया कि ब्लास्टिंग होने पर घरों में तेज कंपन होता है। इससे ग्रामीणों में रोष है। ब्लास्टिंग से ढेकवा बांध को भी क्षति होने की प्रबल संभावना है। उनके इस पत्र  पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। खनन अब भी जारी है। 

मिर्जापुर ज़िले में 321 खदानें हैं। इनमें 200 से अधिक खदानों में ब्लास्टिंग की जाती है। अहरौरा, चुनार, मड़िहान क्षेत्र की खदानों में मानकों को दरकिनार कर हैवी ब्लास्टिंग की जाती है। इससे पहाड़ों को गहरी खाई में तबदील कर दिया गया है। ब्लास्टिंग के दौरान अकसर पत्थर उछल कर रिहायशी इलाकों में गिरते हैं। इन हादसों में लोगों के घायल होने और मौत की घटनाएं भी हुई हैं। कोई हादसा होने पर कुछ दिन विभाग मुश्‍तैदी दिखाता है, उसके बाद फिर से खदानों में ब्लास्टिंग शुरू हो जाती है।

फसल डूबने से किसान परिवारों के लिए कमाई के साथ ही अन्‍न का भी संकट खड़ा हो गया है।
फसल डूबने से किसान परिवारों के लिए कमाई के साथ ही अन्‍न का भी संकट खड़ा हो गया है।स्रोत : बृजेंद्र दुबे

देश में बांधों और नहरों की देखरेख की क्‍या है व्‍यवस्‍था

भारत में बांधों और नहरों की देखरेख (मेंटेनेंस) का काम मुख्य रूप से राज्य सरकारों के सिंचाई विभाग या जल संसाधन विभाग और केंद्रीय एजेंसियों द्वारा मिलकर की जाती है। जबकि केंद्रीय जल आयोग (सीडब्‍लूसी), बांध सुरक्षा संगठन और भाखड़ा–ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी), दामोदर घाटी निगम (डीवीसी) जैसे कुछ विशेष बोर्ड देश के विभिन्‍न भागों में बड़े या अंतर-राज्यीय प्रोजेक्ट्स की निगरानी और तकनीकी सहायता प्रदान करते हैं। संक्षेप में इसकी तीन स्‍तरीय व्यवस्था इस प्रकार है :

1. राज्य स्तर पर 

भारत में बांधों और नहरों की व्‍यवस्‍था में सबसे निचले स्‍तर पर राज्य सरकारों के अधीन होती हैं। इनके रखरखाव का जिम्मा होता है सिंचाई विभाग या जल संसाधन विभाग के पास होने के कारण इन महकमों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। कई राज्यों में इसे जल संसाधन विभाग (डब्‍लूआरडी) लोक स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग (पीएचईडी) या जल शक्ति विभाग कहा जाता है। ये विभाग बांधों की सुरक्षा, निरीक्षण और मरम्मत का काम करते हैं। इसके तहत समय-समय पर नहरों की सफाई, लाइनिंग यानी नहर की मिट्टी वाली सतह पर कंक्रीट, ईंट, पत्थर या किसी मजबूत सामग्री की परत बिछाने का काम किया जाता है, ताकि पानी का रिसाव कम हो और पानी का बहाव सुचारु रूप से होता रहे। इसके अलावा डी-सिल्टिंग यानी नहरों में जमा होने वाली गाद हटाने का काम भी इन विभागों द्वारा ही किया जाता है। रख-रखाव और मरम्‍मत से जुड़े इन कामों के अलावा बांधों/बैराज का गेट ऑपरेशन (गेटों को खोलना-बंद करना), नहरों के ज़रिये जल वितरण और पानी छोड़ने का शेड्यूल तय करने का जिम्‍मा भी इन्‍हीं के पास होता है। इसके साथ ही बाढ़ और आपदा प्रबंधन से जुड़ी शुरुआती तैयारियों में भी इन विभागों की महत्‍वपूर्ण भूमिका होती है।

2. केंद्र सरकार की भूमिका

बड़े आकार वाले और सामरिक रूप से महत्‍वपूर्ण बांधों और नहरों से जुड़े कुछ विशालकाय या अंतर-राज्यीय परियोजनाओं की देखरेख का जिम्‍मा केंद्रीय एजेंसियों के पास होता है। इनमें सबसे पहला नाम केंद्रीय जल आयोग का आता है, जो देशभर में बांधों और नहरों की सुरक्षा, निरीक्षण, रखरखाव की गाइडलाइन तैयार करने और देखरेख (मॉनिटरिंग) करने वाली मुख्य संस्था है। सीडब्‍लूसी इस सबके लिए राज्यों को तकनीकी सलाह व निर्देश देता है और सुरक्षा मानक तय करता है। इसके अलावा बांध केंद्रीय बांध सुरक्षा संगठन (सीडीएसओ) और राष्ट्रीय बांध सुरक्षा समिति (एनसीडीएस) जैसे केंद्रीय निकाय बांध सुरक्षा नियमों और निरीक्षण प्रक्रिया पर दिशा-निर्देश जारी करते हैं। इनके साथ समन्‍वय का काम राज्य डैम सेफ्टी ऑर्गनाइजेशन (एसडीएसओ) करता है। इसके अलावा अंतर-राज्यीय बांध/नहर परियोजनाओं के लिए इनकी अपनी समर्पित प्रबंधन संस्थाएं या बोर्ड होते हैं, जो संचालन (ऑपरेशन) और देखरेख (मेंटेनेंस) का काम करते हैं, जैसे भाखड़ा–ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी), दामोदर घाटी निगम (डीवीसी), टिहरी घाटी निगम (टीवीसी) आदि।

3. ग्राम और जिला स्तर पर

कुछ राज्यों में नहरों के निचले हिस्से और वितरण तंत्र की देखरेख का काम ग्राम और जिला स्तर पर किया जाता है। इसके लिए वाटर यूज़र एसोसिएशन (डब्‍लूयूए) और पंचायत समितियां या नहर समितियां गठित की जाती हैं। यह नहरों की नियमित सफाई, टूट-फूट की जानकारी, पानी के समान वितरण और खेतों तक जल प्रवाह की निगरानी जैसी जिम्मेदारियों को निभाती हैं। कई राज्यों में इन्हें नहर प्रबंधन में सहभागिता आधारित सिंचाई प्रबंधन यानी पार्टिसिपेटरी इरिगेशन मैनेजमेंट (पीआईएम) के मॉडल के रूप में जोड़ा गया है, जिससे स्थानीय स्तर पर जवाबदेही और रखरखाव दोनों बेहतर होते हैं।

सरदार सरोवर बांध।
सरदार सरोवर बांध।स्रोत : आईडब्‍लूपी

इस तरह काम करता है बांधों और नहरों का तंत्र

भारत में बांधों और नहरों की देखरेख की व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए कई स्तरीय तंत्र काम करते हैं। प्रत्येक बड़े बांध के लिए संचालन एवं रखरखाव (ऑपरेशन एंड मेंटेनेंस) मैनुअल अनिवार्य है, जिसके अनुसार राज्यों के जल संसाधन विभाग नियमित निरीक्षण, मरम्मत और आपूर्ति प्रबंधन करते हैं। राज्य डैम सेफ्टी ऑर्गनाइजेशन मानसून से पहले और बाद में वार्षिक निरीक्षण करते हैं, जबकि केंद्रीय जल आयोग तकनीकी निगरानी करता है। हाल के वर्षों में डैम सेफ्टी एक्ट, 2021 के तहत राष्ट्रीय और राज्य बांध सुरक्षा प्राधिकरणों की स्थापना ने जवाबदेही और मानकीकरण को और स्पष्ट किया है। इसके साथ ही हर बड़े बांध के लिए इमरजेंसी एक्शन प्लान (ईएपी) भी अनिवार्य कर दिया गया है। नहरों में डी-सिल्टिंग, लाइनिंग और मरम्मत का चक्र हर मानसून सीजन से पहले किया जाता है। कई राज्यों में पानी के वितरण और नहरों की स्थानीय देखरेख में वाटर यूज़र एसोसिएशन और पंचायत समितियां सहभागिता आधारित प्रबंधन के मॉडल पर काम करती हैं। इसके अलावा, भाखड़ा–ब्यास प्रबंधन बोर्ड, दामोदर घाटी निगम और विभिन्न राज्य जलविद्युत निगम जैसी संस्थाएं अपनी-अपनी बहुउद्देशीय परियोजनाओं का स्वतंत्र रूप से मेंटेनेंस करती हैं। आधुनिक समय में रीयल-टाइम हाइड्रोलॉजी, रिमोट सेंसिंग, डेटा-लॉगर्स और ऑटोमैटिक गेट ऑपरेशन जैसी तकनीकों का उपयोग भी बढ़ा है। इससे बांधों और नहरों की सुरक्षा और संचालन क्षमता दोनों में सुधार आया है। हालांकि इस सबके बावजूद अकसर स्‍थानीय स्‍तर पर बदइंतज़ामियां और लापरवाहियां सामनें आती रहती हैं, जिनके चलते बांधों और नहरों से लाखों क्‍यूसेक पानी की बर्बादी और जान-माल के नुकसान तक की घटनाएं तक देखने को मिलती हैं। मिर्जापुर के अहरौरा के बांध के गेट से हो रहे रिसाव की घटना इसका एक ताज़ातरीन उदाहरण है।

Also Read
शब्दकोश: बांध क्या है? बैराज से कैसे है अलग?
मिर्ज़ापुर ज़िले में अहरौरा बांध से रिस कर नहर के ज़रिये किसानों के खेतों में जाता पानी और चिंतित किसान।

संबंधित कहानियां

No stories found.
India Water Portal - Hindi
hindi.indiawaterportal.org