सिरपुर रामसर स्थल (फोटो - NAZAARAEY, साभार - विकिपीडिया)
सिरपुर रामसर स्थल (फोटो - NAZAARAEY, साभार - विकिपीडिया)

भारत भूमि के आभूषण : रामसर स्थल (भाग 1)

आर्द्रभूमियों में संचित जल, स्थानीय सूक्ष्म पर्यावरण एवं जैव-विविधता के संरक्षण और संपोषण के प्रमुख कारक हैं। आर्द्रभूमियां, भूजल पुनर्भरण व गुणवत्ता वृद्धि, प्राकृतिक जल भंडारण, पीने और सिंचाई के जल के मुख्य स्रोत, प्रदूषकों और भारी धातुओं को तलछट और जलीय वनस्पतियों में संग्रहित जल शुद्धिकरण एवं प्रदूषण नियंत्रण, बाढ़ शमन एवं क्षरण नियंत्रण, गाद संग्रहण व मृदा निर्माण, कार्बन पृथक्करण, पोषक तत्वों का पुनर्चक्रण, जलवायु विनियमन, सूखा नियंत्रण, औषधीय पौधों का उत्पादन, मत्स्य पालन, जल-विद्युत, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, मनोरंजन एवं पर्यटन अवसर जैसी अपरिहार्य एवं पारिस्थितिक तंत्र सेवाएं प्रदान करती हैं, तथा आजीविका भी सुनिश्चित करती हैं। प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण, प्रकृति के साथ सद्भाव की सीख तथा भारतीय संस्कृति में विरासत के रूप में अंतर्निहित है।
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प्रस्तावना 

अंतर्राष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमियों के रूप में नामित रामसर स्थल उनके अमूल्य संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग, संरक्षण एवं प्रबंधन के लिए प्रतिबद्ध हैं। भूमि और जल के अंतरापृष्ठ पर स्थित ये आर्द्रभूमियाँ विश्व के अत्यधिक उत्पादक तथा जलवायु परिवर्तन के प्रति अति संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में जल चक्र का अभिन्न अंग हैं, और समृद्ध जैव विविधता का समर्थन करती हैं। देश की पारिस्थितिकी और आर्थिक सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण इन आर्द्रभूमियों को 'मानव सभ्यता का पालना' एवं 'प्राकृतिक परिदृश्य के गुर्दे (किडनीज़ ऑफ द लैंडस्केप) भी कहते हैं। कच्छ भूमि या दलदल, वनस्पतियों से आच्छादित जलमग्न भूमि, लेगून, मैंग्रोव, पीटलैंड, मरुद्यान, तालाब, जलाशय, ऑक्सबो झीलें, लैकस्टारिन (झीलें), भूमिगत जलभृत, बाढ़कृत मैदान, डेल्टा, ज्वारीय समतल क्षेत्र व अन्य तटीय क्षेत्र और मूंगा चट्टानें आदि आर्द्रभूमि के मुख्य उदाहरण हैं। मुख्य नदी धारा, सिंचित कृषि भूमि तथा जलीय कृषि एवं कृत्रिम नमक पैन आदि आर्द्रभूमि में शामिल नहीं हैं। बाढ़ के परिणामस्वरूप आर्द्रभूमियों की मिट्टी में ऑक्सीजनमुक्त प्रक्रियाएँ प्रबल होती हैं। जलमग्न मिट्टी में पनपी जलीय पौधों की विशिष्ट प्रजातियाँ आर्द्रभूमियों को अन्य जल निकायों से अलग करती हैं। आर्द्रभूमि का जलस्रोत अक्सर भूजल होता है, परंतु यह सतही जल या समुद्री जल भी हो सकता है, जहाँ बड़े ज्वार आते हों।


अपनी उत्पत्ति, चरम जलवायु, भूवैज्ञानिक, रसायन विज्ञान, जैव विशेषताओं और स्थलाकृतिक विभिन्नताओं के कारणों से भारत आर्द्रभूमियों की समृद्ध विविधता से संपन्न है, जिसमें ऊँचाई वाली हिमालयीन झीलों से लेकर देश के 8,000 कि.मी. से अधिक लंबे समुद्रतट के समानांतर आपस में जुड़े हुए विस्तृत मैंग्रोव, दलदल और मूंगा चट्टान क्षेत्र आदि शामिल हैं। अधिकांश आर्द्रभूमियाँ प्रमुख भारतीय नदियों से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सम्बद्ध हैं। 


ट्रांस-हिमालय से लेकर भारतीय द्वीपों तक दस जैव-भौगोलिक क्षेत्रों में विस्तृत आर्द्रभूमियाँ प्रजातियों, और पारिस्थितिकी प्रणालियों की विविधता प्रदर्शित करती हैं। आर्द्रभूमियाँ संकट में पड़ी बायोम तथा लुप्तप्राय प्रजातियों के उच्चतम अनुपात का संरक्षण करती हैं इनमें घुमंतु पक्षी, स्तनपायी, सरीसृप, उभयचर, और मछलियों की विभिन्न प्रजातियों की उच्च विविधता पनपती है। आर्द्रभूमियाँ प्रवासी पक्षियों की हजारों मीलों की यात्रा के दौरान आश्रय, भोजन और प्रजनन के लिए ठहराव प्रदान करती हैं। प्रवासी पक्षी प्रजातियों की अनुमानित संख्या 1200 से 1300 के बीच है, जो भारत की कुल पक्षी प्रजातियों का लगभग 24% है। आर्द्रभूमियाँ विभिन्न पौधों और जीव-जंतुओं की 40% प्रजातियों (1200 से अधिक पौधों और 18000 जीव प्रजातियों) के लिए सम्पन्न आवास हैं। जिनमें स्थानीय, राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर संरक्षित प्रजातियाँ भी हैं।

आर्द्रभूमि द्वारा प्रदत्त सेवाएं और लाभ 

आर्द्रभूमियाँ, संचित जल, स्थानीय सूक्ष्म पर्यावरण एवं जैव-विविधता के संरक्षण और संपोषण के प्रमुख कारक हैं। आर्द्रभूमियाँ, भूजल पुनर्भरण व गुणवत्ता वृद्धि, प्राकृतिक जल भंडारण, पीने और सिंचाई के जल के मुख्य स्रोत, प्रदूषकों और भारी धातुओं को तलछट और जलीय वनस्पतियों में संग्रहित जल शुद्धिकरण एवं प्रदूषण, नियंत्रण, बाढ़ शमन एवं क्षरण नियंत्रण, गाद संग्रहण व मृदा निर्माण, कार्बन पृथक्करण, पोषक तत्वों का पुनर्चक्रण, जलवायु विनियमन, सूखा नियंत्रण, औषधीय पौधों का उत्पादन, मत्स्य पालन, जल-विद्युत, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, मनोरंजन एवं पर्यटन अवसर जैसी अपरिहार्य एवं पारिस्थितिक तंत्र सेवाएं प्रदान करती हैं, तथा आजीविका भी सुनिश्चित करती हैं। प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण, प्रकृति के साथ सद्भाव की सीख तथा भारतीय संस्कृति में विरासत के रूप में अंतर्निहित है। 

जलवायु परिवर्तन के प्रति प्राकृतिक लचीलापन 

जलवायु परिवर्तन जलवायुतात्त्विक प्रबंधों पर सीधे प्रभाव डालता है तथा तापमान, वर्षा, समुद्र जलस्तर और चरम जलवायु घटनाओं जैसेः हानिकारक कारकों में अप्रत्यक्ष रूप से वृद्धि करता है। जल का उच्च तापमान, जल प्रदूषण को बढ़ावा देता है। अनियमित वर्षा पद्धति तटीय आर्द्रभूमियों (डेल्टा और मुहाना) की लवणता और तलछट एवं पोषक तत्वों की आपूर्ति को भी प्रभावित करती है। तटीय मूंगा चट्टानें एवं मैंग्रोव, उष्णकटिबंधीय शुष्क और अर्धशुष्क वन, उप-आर्कटिक वन और आर्कटिक अल्पाइन आर्द्रभूमियाँ गंभीर खतरे में हैं। 

जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्री जलस्तर में 1 मीटर की संभावित वृद्धि होने पर भारत की लगभग 84% तटीय आर्द्रभूमि और 13% खारी आर्द्रभूमि नष्ट हो जाएंगी। आर्द्रभूमियाँ जल, जैव-विविधता पारिस्थितिकी तंत्र और स्थानीय समुदाय संरक्षण का एक अभिन्न अंग हैं। यद्यपि आर्द्रभूमियाँ जलवायु परिवर्तन के हानिकारक प्रभावों के प्रति प्राकृतिक लचीलापन प्रदान करती हैं। आर्द्रभूमियाँ नदियों के लिए मूलधाराएँ प्रदान करती हैं और हिमनदों के गलित होने पर बफर क्षेत्र के रूप में योगदान देती हैं। आर्द्रभूमि में मौजूद बोग्स और फेन्स (मायर्स) बाढ़ के पानी को अवशोषित कर बाढ़ की तीव्रता, गति एवं ज्वारीय प्रभाव को भी कम कर देते हैं। 

सितंबर, 2014 में कश्मीर घाटी और दिसंबर, 2015 में चेन्नई में आई बाढ़ इस बात का उदाहरण है कि कैसे आर्द्रभूमि का विनाश जीवन को असुरक्षित बना सकता है। 

मैंग्रोव, मूंगा चट्टानें और समुद्री घास के मैदान उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के प्रभाव को कम करने में तथा तटरेखा स्थिरीकरण में भौतिक बफर के रूप में सहायता करते हैं। 1999 के सुपर चक्रवात कलिंग, 2004 की हिंद महासागर सुनामी, और 2013 के फैलिन चक्रवात के साक्ष्य, तटीय आर्द्रभूमियों द्वारा समुदायों को बचाने में निभाई गई भूमिका को रेखांकित करते हैं। पीटलैंड में दीर्घावधि के लिए सर्वाधिक वैश्विक कार्बन भंडार उपलब्ध हैं जो वैश्विक वनस्पति जैव संसाधन में मौजूद कार्बन से दोगुने कार्बन का संचयन करती हैं, भूमि-आधारित कार्बन का लगभग 30% पीटलैंड तलछट में संग्रहीत होता है। आर्द्रभूमि की मृदा में इसमें पोषित वनस्पतियों की तुलना में 200 गुना अधिक कार्बन हो सकता है। इसके विपरीत आर्द्रभूमियाँ ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन का स्रोत भी हैं। यद्यपि, आर्द्रभूमियां वैश्विक मीथेन (CH.) उत्सर्जन में लगभग 40% का योगदान देती हैं, पीटलैंड, मैंग्रोव और नमक के दलदल, वायुमंडलीय ग्रीनहाउस गैसों के प्राकृतिक सिंक के रूप में कार्य करते हैं। पीटलैंड में जैविक मृदा के विकसित होने में हजारों वर्ष लग सकते हैं। 

विक्षुब्ध कार्बनिक मृदा के ऑक्सीकरण से वातावरण में पर्याप्त मात्रा में CO, का योगदान प्राप्त होता है। अबाधित आर्द्रभूमियां अन्य आर्द्रभूमियों की तुलना में लगभग दोगुना कार्बन संग्रहीत करती हैं। मैंग्रोव प्रति वर्ष प्रति हेक्टेयर लगभग 1.5 मीट्रिक टन कार्बन सोखने में सक्षम हैं। पुनर्जीवित आर्द्रभूमियों की कार्बन संग्रहण की क्षमता (50 वर्षीय अवधि के लिए) प्रति वर्ष लगभग 0.4 टन कार्बन/हेक्टेयर है। 

आर्द्रभूमियों हेतु अंतर्राष्ट्रीय 'रामसर कन्वेंशन' 

अतिसंवेदनशील आर्द्रभूमियों को 'आर्द्रभूमि पर रामसर कन्वेंशन' के तहत संरक्षित किया गया है। यह आर्द्रभूमियों के अद्वितीय पारिस्थितिक तंत्र को संरक्षित करने और संसाधनों के न्यायसंगत उपयोग को बढ़ावा देने के लिए की गई एक अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण संधि है, जो कि राष्ट्रीय क्रियावली और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए एक रूपरेखा प्रदान करती है। इस समझौते पर यूनेस्को द्वारा दिनांक 2 फरवरी, 1971 को ईरान के शहर 'रामसर' में हस्ताक्षर किए गये थे, तथा दिसंबर, 1975 में इसे अपनाया गया था। इस उपलक्ष में प्रत्येक वर्ष 2 फरवरी को में 'विश्व आर्द्रभूमि दिवस' मनाया जाता है। वर्तमान में रामसर कन्वेंशन के अनुबंध पक्षकार कुल 171 देश हैं। दुनिया के पहले रामसर स्थल (1974) की पहचान ऑस्ट्रेलिया के 'कोबोर्ग प्रायद्वीप' के रूप में की गई। विश्वभर में 25,61,926.02 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में 2471 से अधिक रामसर स्थल हैं। सर्वाधिक रामसर स्थलों की संख्या यूनाइटेड किंगडम (175) और मेक्सिको (142) में है। रामसर कन्वेंशन प्रभावी आर्द्रभूमि प्रबंधन पर जोर देता है और प्रबंधन उपायों की प्रभावकारिता का आंकलन और निगरानी करने के लिए उपकरणों एवं संरचना के अनुप्रयोग को प्रोत्साहित करता है।

रामसर स्थलों के रूप में नामांकन का उद्देश्य

रामसर स्थलों के रूप में नामांकन का उद्देश्य 'वैश्विक जैव विविधता एवं आर्द्रभूमियों के लाभों एवं पारिस्थितिकी, को अविरत रखते हुए मानव जीवन के कल्याण के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क का विकास और पुनःस्थापना करना है। रामसर सूची में भारतीय आर्द्रभूमियों की 'पारिस्थितिक तंत्र के रखरखाव' के प्रति प्रतिवद्धता की एक स्वीकृति है, जिसे बुद्धिमानीपूर्ण/विवेकपूर्ण/न्यायसंगत उपयोग भी कहते हैं। अनुबंधकर्ता के रूप में, भारत संवहन के तीन स्तंभोंः 

  1. (अ) आर्द्रभूमियों का न्यायसंगत उपयोग सुनिश्चित करने; 

  2. (व) रामसर सूची के लिए उपयुक्त आर्द्रभूमियों को नामित करने तथा उनका प्रभावी प्रबंधन करने एवं 

  3. (स) सीमांत साझा आर्द्रभूमि और साझा प्रजातियों पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग करने के लिए प्रतिबद्ध है। 

आर्द्रभूमियों के नामांकन हेतु मानदंड -

  • 1. आर्द्रभूमि को कमज़ोर, लुप्तप्राय या अत्यधिक संकटग्रस्त प्रजातियों अथवा धारित पारिस्थितिक समुदायों का आवास होना चाहिए। 

  • 2. आर्द्रभूमि को विशेष जैव-भौगोलिक क्षेत्र की विशिष्टता बनाऐ रखने के लिए महत्वपूर्ण पौधों जीव जन्तुओं की प्रजातियों का आश्रय स्थल होना चाहिए तथा उनके जीवन चक्र में सहायक होना चाहिए। 

  • 3. आर्द्रभूमि 20,000 या उससे अधिक जल पक्षियों की पनाहगार हो। 

  • 4. आर्द्रभूमि स्थानीय मछलियों की उप-प्रजातियों की कुल आबादी के पर्याप्त अनुपात का समर्थन करती हो तथा मछलियों के भोजन, प्रजनन नर्सरी या आवागमन का मुख्य स्थल हो। 

  • 5. आर्द्रभूमि भोजन और जल का महत्वपूर्ण स्रोत हो, तथा आजीविका, मनोरंजन एवं पर्यावरण-पर्यटन वृद्धि के लिए संभावनाएं बढ़ाती हो।

प्रस्तुत आलेख तीन भागों में है -

लेखकों से संपर्क करेंः डॉ. प्रविण रंगराव पाटील, डॉ. मनीष कुमार नेमा, डॉ. पी.के. मिश्रा एवं डॉ. ए.आर. सेन्थिल कुमार, राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, रुड़की (उत्तराखंड)

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