चिपको के योजनाकार, क्रांतिकारी प्रकृति वीर चण्डी प्रसाद भट्ट
चण्डी प्रसाद भट्ट का जन्म 23 जून 1934 को उत्तराखण्ड के जनपद चमोली के गोपेश्वर गाँव में क्रांतिकारी प्रकृति बीर परिवार में हुआ। बचपन में ही पिता की असामयिक मृत्यु से उन्हें बहुत आर्थिक संकटों से जूझना पड़ा। इन्होंने बहुत कठिनाइयों से शिक्षा ग्रहण की। भट्ट जी आर्थिक संकट के कारण वर्ष 1955 में गढ़वाल मोटर ऑनर्स यूनियन (जी०एम०ओ०यू०) में बुकिंग क्लर्क की नौकरी करने लगे। उन्होंने गोपेश्वर में पढ़ाने का कार्य भी किया। 1956 में जब जयप्रकाश नारायण बद्रीनाथ आये थे तो उस समय भट्ट पीपलकोटी में कार्यरत थे। उन्होंने जे०पी० का भाषण सुना और उनसे बहुत प्रभावित हुए। इसी कारण भट्ट श्रम, सामाजिक सद्भाव, शराबबंदी, महिलाओं और शोषितों, वचितों, दलितों की मजबूती हेतु संकल्पित हुए।
समाज सेवा की बलवती भावना से उन्होंने 1960 में विधिवत नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। उन्होंने महात्मा गाँधी, जे०पी० और विनोबा भावे के सिद्धान्तों को स्वयं भी अंगीकार करना शुरू किया और शराब बंदी, छुआछूत, सामाजिक असमानता, श्रम का सम्मान, श्रम के महत्व की स्थापना, समाज के कमजोर वर्गों, विशेषकर दलितों और महिलाओं को संगठित करना और उन्हें अन्याय और विभिन्न सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ना सिखाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।
भटजी ने 60 के दशक की शुरुआत में कामगार अधिकारों की रक्षा के लिए एक ग्राम स्तरीय श्रमिक सहकारी समिति का गठन किया। इसका मुख्य उद्देश्य श्रमिकों के शोषण में मुक्ति श्रम और गाँव के महत्व को स्थापना और आत्मनिर्भरता थी। श्रमिकों के कौशल को बढ़ाने और उनका बेहतरीन उपयोग करने के लिए 1964 में भटट जी ने दशोली ग्राम स्वराज्य मंडल (DGSM की स्थापना की। यह उनके ग्रामीण पुनर्निमाण की सोच थी। जिसमें ग्रामीण क्षेत्र के वनों का विकास, कटाव व संसाधनों का संरक्षण करना था। इसके साथ ही उन्होंने स्थानीय संसाधनों पर आधारित ग्रामोद्योग श्रृंखला भी स्थापित की। इस संस्था ने अलकनंदा बाढ़ के प्रभावों का आकलन किया। जिसमें ज्ञात हुआ कि बाढ़ का मुख्य कारण वन कटान था।
भट्ट जी ने हिमालय के पारिस्थितिकी तंत्र को समझने के लिए और हिमालय के पर्यावरण और विभिन्न भागों में लोगों को समस्याओं और उनकी सामाजिक, आर्थिक स्थिति का अध्ययन करने के लिए पूरे हिमालय की यात्रा की। चंडी प्रसाद भट्ट, सुन्दर लाल बहुगुणा के सिल्यारा आश्रम से निकले कार्यकर्ता हैं। उन्होंने रेणी के चिपको आंदोलन में अहम् भूमिका निभाई थी। ये शासन, प्रशासन की बीच बातचीत के सशक्त माध्यम थे। वन कटान के विरूद्ध उनके नेतृत्व में आंदोलन चला। उन्हें कई बार तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा ने बातचीत के लिए लखनऊ बुलाया। शराब बंदी, वन आंदोलन में वे एवं उनकी संस्था के कार्यकर्ता काफी सक्रिय रहे।
वन कटान के विरोध में जो भी आंदोलन हुये थे, उस आंदोलन में प्राण फूंकने, आंदोलन का स्वरूप तय करने, उसे अहिंसक बनाए रखने और उसे विस्तारित करने में चण्डी प्रसाद भट्ट को भूमिका ऐतिहासिक थी। दशोली ग्राम स्वराज्य मंडल उस समय के गतिविधियों का केन्द्र बिंदु होता था।
आंदोलनकारी के अलावा भट्ट जी साहित्य सृजक भी हैं। उनको निम्न रचनाएं सम्मुख आती हैं: 1. प्रतिकार के अंकुर (हिंदी उपन्यास), 2. अधूरे ज्ञान और काल्पनिक विश्वास पर हिमालय से छेड़खानी घातक, 3. हिमालय में बड़ी परियोजनाओं का भविष्य, 4. मध्य हिमालय का पारिस्थितिकी तंत्र, 5. चिपको के अनुभव, 6. पर्वत-पर्वत, बस्ती बस्ती, 7. गुदगुदी (आत्मकथा)।
चंडी प्रसाद भट्ट सुंदरलाल बहुगुणा के सिल्यारा आश्रम से निकले कार्यकर्ता थे। उन्होंने रेणी के चिपको आंदोलन में अहम भूमिका निभाई। वे शासन, प्रशासन के बीच बातचीत के सशक्त माध्यम बने। वन कटान के विरुद्ध उनके नेतृत्व में आंदोलन चला। उन्हें कई बार तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नन्दन बहुगुणा ने बातचीत के लिए लखनऊ बुलवाया। शराबबंदी, वन आंदोलन में वे सक्रिय रहे। उनके कार्यों हेतु उन्हें समय-समय पर सम्मानित भी किया गया।
1. उन्हें 1982 में रैमन मैग्सेसे पुरस्कार मिला, जो फीलीपीन के भूतपूर्व राष्ट्रपति रैमन मैगसेसे के नाम पर दिया जाता है।
2. 1986 में भारत सरकार ने उन्हें 'पद्मश्री' सम्मान से नवाजा।
3. 1987 में ग्लोबल 500 पुरस्कार जो संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा नामित
था, दिया गया।
4. 1991 में इन्दिरा गाँधी पर्यावरण पुरस्कार प्राप्त हुआ।
5. 2008 में जी.बी.पंत कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विज्ञान में डाक्टरेट की उपाधि दी गई।
6. 2010 में 'रीयल होरो लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड' मिला।
7. 2013 में गाँधी शांति पुरस्कार प्राप्त हुआ।
8. 31 अक्टूबर 2019 को 31 वां इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार
से सम्मानित किया गया।