अचन लैंडफ़िल, जहां लगातार कचरा इकट्ठा तो हो रहा है, लेकिन इसका उपचार नहीं किया जा रहा है।
अचन लैंडफ़िल, जहां लगातार कचरा इकट्ठा तो हो रहा है, लेकिन इसका उपचार नहीं किया जा रहा है।चित्र: अस्मा भट

एनजीटी के आदेश के बावजूद जारी है श्रीनगर के अचन लैंडफ़िल में डंपिंग, खतरे में आंचार झील का पानी

'पूरब का वेनिस' कहा जाने वाला श्रीनगर पिछले कुछ सालों से एक गंभीर पर्यावरणीय संकट से जूझ रहा है। अचन लैंडफिल में पिछले चार दशकों से जमा हो रहे लाखों टन कचरे के कारण शहर की प्रसिद्ध आंचार झील सहित पानी के दूसरे प्राकृतिक स्रोत भी दूषित हो रहे हैं।
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श्रीनगर के लाल चौक से लगभग 5 किमी दूर सैदापुर में स्थित 123 एकड़ में फैला अचन लैंडफ़िल कभी एक जैव-विविधता से भरी आद्रभूमि (वेटलैंड) हुआ करता था। पर अब अनुपचारित कचरे के पहाड़ में तब्दील हो चुकी यह जगह नज़दीकी झील के पानी के लिए ज़हर और स्थानीय निवासियों के लिए बीमारी का स्रोत बन गई है।

साल 1986 में जम्मू और कश्मीर सरकार ने कैबिनेट की सिफ़ारिशों पर अमल करते हुए, अचन क्षेत्र को अस्थायी लैंडफ़िल साइट घोषित किया गया था। पर सरकारी अनदेखी के चलत यह अस्थायी इंतज़ाम स्थायी बन कर रह गया। वर्तमान में इस लैंडफ़िल में हर दिन लगभग 540 टन ठोस कचरा फेंका जाता है। जबकि यहां मौजू प्रोसेसिंग इकाई की कुल क्षमता मात्र 150 टन ही है।

डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट बताती है कि यहां अब तक लगभग 11.5 लाख टन “लेगेसी वेस्ट” (पुराना जमा हुआ कचरा) इकट्ठा हो चुका है। लगभग चालीस सालों से जमा हो रहे इस कचरे के विशाल ढेर के कारण अब आसपास के लोगों को नज़ला, ख़ासी, जुकाम, सांस लेने में तकलीफ़, लगातार छींक आना और त्वचा से संबंधित रोगों की शिकायत होने लगी है। इतना ही नहीं, इलाके के प्राकृतिक जल-स्रोत भी इस लैंडफ़िल से रिसने वाले विषैले तरल पदार्थ से दूषित हो रहे हैं।

अचन लैंडफिल और शहर का बदलता समीकरण

कभी लगभग 19 वर्ग किमी में फैली आंचार झील अब सिकुड़ कर केवल 6 -7 वर्ग किमी रह गई है, जिसमें से 3.6 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र दलदली है।
कभी लगभग 19 वर्ग किमी में फैली आंचार झील अब सिकुड़ कर केवल 6 -7 वर्ग किमी रह गई है, जिसमें से 3.6 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र दलदली है।चित्र: ग्रेटर कश्मीर

खत्म होती आंचार झील में लैंडफ़िल का भी हाथ

इस लैंडफ़िल से बिना उपचार वाला ज़हरीला तरल, जिसे लीचेट कहते हैं, अब आसपास के प्राकृतिक जल-स्रोतों के संपर्क में आने लगा है। अचन लैंडफ़िल, आंचार झील और अमीर खान नहर के बहुत पास है जो आगे जाकर डल झील से जुड़ती है। इस वजह से यह जगह श्रीनगर की झीलों की और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक गंभीर खतरा बन गई है।

कभी लगभग 19 वर्ग किमी में फैली आंचार झील अब सिकुड़ कर केवल 6 -7 वर्ग किमी रह गई है, जिसमें से 3.6 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र दलदली है। ऑक्सीडेशन, तलछट जमाव (siltation), लीचेट रिसाव और सीवेज ने इस झील के पानी की रासायनिक संरचना को बदल दिया है। ओरिएंट जर्नल ऑफ केमिस्ट्री (2023) की एक रिपोर्ट के अनुसार, झील के पानी में pH के स्तर में गिरावट, EC (पानी में घुलनशील लवण या आयनों की मात्रा) और TDS (पानी में मौजूद सभी घुले हुए ठोस पदार्थों की कुल मात्रा) की वृद्धि, तथा नाइट्रेट स्तर मानक से बहुत ज़्यादा पाए गए हैं।

यानी अब यह पानी न तो पीने लायक ही बचा है और न ही इसका उपयोग सिंचाई के लिए ही किया जा सकता है। इसके अलावा, जलीय पौधों और मछलियों की प्रजातियां भी लगातार कम हो रही हैं। शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में डिविज़न ऑफ इरीगेशन एंड ड्रेनेज इंजीनियरिंग विभाग के एसोसियेट प्रोफ़ेसर डॉ बशीर अहमद पंडित ने अपने लेख में बताया है कि अचन लैंडफ़िल और उसके आसपास की मिट्टी में कैल्शियम, मैग्नेशियम, सोडियम और DTPA-माइक्रोन्यूट्रिएंट का स्तर बहुत अधिक पाया गया है ,जो एक ख़तरनाक स्थिति है।

पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार लैंडफ़िल से रिसने वाले लीचेट में कार्बनिक और अकार्बनिक दोनों तरह के तत्व की मौजूदगी के साथ ही मिट्टी में उपस्थित पोषक तत्वों को ख़त्म करने वाले रसायन भी होते हैं। लंबे समय तक इसके उपचार के लिए उचित कदम नहीं उठाने और लगातार की गई अनदेखी के कारण यह प्राकृतिक और कृषि पारिस्थितिकी प्रणालियों के लिए एक गंभीर खतरा बन जाता है।

इसके अलावा, इसमें मौजूद ज़्यादा मात्रा में पोषक तत्व, भारी धातु कण और घुलनशील लवणीय तत्व मिट्टी की गुणवत्ता, पारिस्थितिकी, मानव और जीव-जंतुओं (जलीय जीवों समेत) के स्वास्थ्य को खराब करने में अहम भूमिका निभाते हैं। अचन लैंडफ़िल की भी स्थिति कमोबेश ऐसी ही है।

स्थानीय लोग इसकी हालत पर चिंता जताते हुए कहते हैं कि कभी यह झील नदरू (कमल ककड़ी), अच्छी किस्म की मछलियों, हरी सब्ज़ियों और छोटे आकार वाले अखरोट जिसे स्थानीय भाषा में शाहबलूत कहते हैं, के लिए प्रसिद्ध थी। लेकिन अब ये सभी चीज़ें या तो उपजनी बंद हो गई है या फिर उनमें पहले जैसा स्वाद और गुणवत्ता नहीं है। इसके अलावा इस वेटलैंड की मिट्टी की गुणवत्ता पर भी इसका बुरा असर पड़ा है।

पिछले कुछ दशकों में प्रशासनिक उपेक्षा, अनियंत्रित प्रदूषण, गाद और अतिक्रमण के कारण भी आंचार झील के आकार में कमी आई है और अब इसका क्षेत्रफल लगभग आधा रह गया है।

पांव पसारता स्वास्थ्य संकट

चालीस साल से लगातार जमा हो रहे कचरे ने अब लगभग एक पहाड़ का रूप ले लिया है। जहां एक तरफ़ इसके आसपास के इलाकों से हमेशा ही बदबू आती रहती है, वहीं दूसरी ओर पर्यावरण में लगातार बढ़ रहे प्रदूषण के कारण यहां के लोगों का स्वास्थ्य ख़राब रहने लगा है। इसका सबसे अधिक असर इस लैंडफ़िल के बिलकुल पास में रहने वाले जन-समुदायों पर पड़ा है। आए दिन यहां के लोग पेट से जुड़ी समस्याओं और सांस की तकलीफ़ की शिकायत करते रहते हैं।

लोगों का कहना है कि इस इलाक़े के लगभग हर घर में कोई न कोई इससे प्रभावित होता ही रहता है। काम की तलाश में यहां आकर बस गए बशीर अहमद बताते हैं कि उनके इस फ़ैसले का असर उनकी सेहत पर हुआ है। यहां आने के बाद उन्हें दमा की शिकायत हो गई और उनके बच्चे कभी पूरी तरह से स्वस्थ नहीं रहते। आए दिन उन्हें और उनके बच्चों को स्वास्थ्य से जुड़ी किसी न किसी समस्या का सामना करना ही पड़ता है। वे कहते हैं, “हमारी कमाई का एक बड़ा हिस्सा दवाइयों पर ही खर्च हो जाता है।”

वहां रहने वाले दूसरों का दुख भी ऐसा ही है। लैंडफ़िल के आसपास के इलाक़ों में रहने वाले लोगों में खांसी, त्वचा की समस्याएं, सांस लेने में दिक्क्त, लगातार आने वाली छींक, एलर्जी, उल्टी और दस्त की समस्याएं आम हो गई हैं।

इलाके में बढ़ते प्रदूषण के कारण घर के बाहर बैठना मुश्किल हो चुका है। यहां रहने वाले लोगों के घर मेहमानों और रिश्तेदारों का आना-जाना भी कम हो गया है। इन शिकायतों की पुष्टि इलाके के दो प्रमुख अस्पताल भी करते हैं। दरअसल, लैंडफिल से निकलने वाली दुर्गंध से दो नज़दीकी अस्पतालों, शेरे-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एसकेआईएमएस), सौरा और श्री महाराजा हरि सिंह (एसएमएचएस) अस्पताल पर मरीज़ों का भार बढ़ रहा है।

एसएमएचएस अस्पताल में एसोसिएट प्रोफेसर, मेडिसिन और कश्मीर के प्रमुख इन्फ्लूएंजा विशेषज्ञ डॉ. निसार-उल-हसन ने सिटिज़न मैटर्स से की गई अपनी बातचीत में, अपने पास उपलब्ध आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि इलाक़े में दस्त, उल्टी, पेट दर्द और इनफ़्लुएंज़ा की शिकायत वाले मरीज़ों की संख्या में इज़ाफ़ा हुआ है।

कचरे के ऐसे ढेर में कई प्रकार के जीवाणु और कीटाणु आसानी से पनपते हैं, जिसके कारण दस्त, उल्टी, पेट में लगातार दर्द का रहना, पेट में गैस बनने, सांस लेने में तकलीफ़ जैसे स्वास्थ्य से जुड़े गंभीर ख़तरे पैदा कर सकते हैं।

डॉ. निसार-उल-हसन, इन्फ्लूएंजा विशेषज्ञ - एसएमएचएस अस्पताल, कश्मीर - एसोसिएट प्रोफेसर,

तेज़ी से उभरता आर्थिक संकट

स्वास्थ्य की समस्याओं से जूझ रहे इन लोगों के सामने अब आर्थिक-संकट भी खड़ा हो गया है। लगातार बीमार रहने के कारण बशीर अहमद जैसे लोगों की नौकरियों और रोज़गार पर खतरा मंडरा रहा है। इसके अलावा, खराब पर्यावरण और दूषित जल के कारण इलाके में घरों और ज़मीनों की कीमत में भारी गिरावट की शिकायतें भी सामने आई हैं।

यहीं के निवासी फ़ैयाज़ अहमद कहते हैं, “यहां रहने वाले ढेर सारे लोग अपना घर और ज़मीन बेचकर कहीं दूसरी जगह जाना चाहते हैं, लेकिन उन्हें ख़रीददार नहीं मिल रहे।" इतना ही नहीं, अब यहां के निवासियों को शादी करने में भी दिक्क्त आ रही है, क्योंकि कोई भी इस इलाके में रहने वाले लोगों के साथ रिश्ते नहीं बनाना चाहता।

फ़रीदा बेगम इस बारे में कहती हैं, “यह झील कभी बिल्कुल साफ़ हुआ करती थी और इसका पानी पीने के लिए इस्तेमाल होता था। लेकिन अब यह बहुत गंदा हो गया है। जिसकी वजह से मछलियों और पानी के दूसरे जीवों की संख्या भी कम हो गई है। अब प्रवासी पक्षियों का भी यहां आना बंद हो गया है। वे लगभग गायब हो गए हैं, जिससे पर्यटकों की संख्या में कमी आई है।”

झील में होने वाले नदरू की पैदावार में आई कमी का सीधा असर इसी झील से मछली पकड़ कर अपनी रोज़ी-रोटी चलाने वाले मुहम्मद अशरफ़ जैसे लोगों की कमाई पर पड़ा है। अशरफ़ और उनके साथी इस बात से दुखी हैं कि बढ़ते प्रदूषण, दूषित होते झील के पानी और जमा हो रही गाद के कारण झील का आकार और उससे मिलने वाले उत्पादन, दोनों में गिरावट आई है और उनके लिए रोज़ी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है।

जारी है प्रशासनिक अनदेखी

साल 2007 में हाई कोर्ट ने एसएमसी को 18 महीनों के भीतर श्रीनगर में कचरा डंपिंग स्थान को बंद करने का आदेश दिया था। लेकिन साल 2023 की जनवरी तक इन आदेशों का पालन नहीं किया गया था। यहां अब भी लगातार कचरा डाला जा रहा है।

स्वास्थ्य, रोज़गार, पर्यावरण और आम-जीवन प्रभावित होने की शिकायतों के बावजूद सरकार इस स्थिति के प्रति उदासीन रवैया अपनाए हुए है। हालांकि, सरकार की तरफ़ से बीच-बीच में इस लैंडफ़िल को बंद करने और कचरे के विशाल भंडार के निपटान को लेकर सकारात्मक टिप्पणियां आती रहती हैं, पर उन पर अमल होता नहीं दिखाई देता।

श्रीनगर नगर निगम के आयुक्त फ़ज़ल उल हसीब ने इस बारे में ईटीवी भारत को बताया, “लैंडफ़िल बनाए जाने की वजह से यहां अब 11 लाख मीट्रिक टन से ज़्यादा कचरा जमा हो गया है। इसके निपटान के लिए नगर निगम ने एक कंपनी को नियुक्त किया है और बायोमाइनिंग के ज़रिए, वैज्ञानिक तरीके से कचरे के निपटान की एक परियोजना शुरू की गई है।”

एनजीटी को दी गई रिपोर्ट में मिली खामियां

अचन लैंडफ़िल में कचरे के विशाल ढेर के निपटान के लिए प्रसिद्ध आरटीआई कार्यकर्ता और पर्यावरणविद् डॉ राजा भट ने साल 2023 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) में याचिका दायर की थी। इस याचिका में उन्होंने अचन लैंडफ़िल साइट के अवैज्ञानिक अपशिष्ट प्रबंधन, पर्यावरणीय उल्लंघनों और स्थानीय निवासियों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों जैसे मुद्दों को शामिल किया है।

इस याचिका पर संज्ञान लेते हुए मई 2024 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने एक संयुक्त समिति गठित की। इसमें केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), राष्ट्रीय आर्द्रभूमि समिति, जम्मू-कश्मीर प्रदूषण नियंत्रण समिति और श्रीनगर के ज़िला मजिस्ट्रेट को शामिल किया गया। इस समिति ने जुलाई 2024 में श्रीनगर स्थित साइट के निरीक्षण के बाद एनजीटी को अपनी रिपोर्ट दी। इस रिपोर्ट में श्रीनगर नगर निगम (एसएमसी) की कई गंभीर कमियों की ओर संकेत किया गया है।

निरीक्षण के दौरान पाया गया कि प्रमुख अपशिष्ट प्रसंस्करण इकाइयां पूरी क्षमता से कार्य नहीं कर रही थीं। 100 टन प्रतिदिन क्षमता वाला मैकेनिकल सेग्रीगेटर बंद पड़ा था, जिसके कारण यहां काम करने वाले कर्मचारी असुरक्षित और अकुशल मैनुअल छंटाई पर निर्भर थे। इसके अलावा, 120 केएलडी संयुक्त क्षमता वाले तीनों लीचेट ट्रीटमेंट प्लांट (एलटीपी) भी ठप पड़े थे। साथ ही, भूजल गुणवत्ता की निगरानी के लिए लगाई गई बोरवेल भी काम नहीं कर रही थी।

रिपोर्ट में 130 किलोलीटर की क्षमता वाले एक मल उपचार संयंत्र और एक सेप्टेज उपचार संयंत्र के पूरी तरह बंद पड़ने का भी ज़िक्र किया गया। लीचेट को एक जगह जमा करने वाली व्यवस्था की कमी के कारण अनुपचारित लीचेट सीधे लैंडफिल से केवल 500 मीटर की दूरी पर स्थित एंकर झील से जुड़े नाले में बहाया जा रहा है।

खतरे के बावजूद बढ़ रही है लैंडफ़िल के पास की रिहाइश

आसपास की हवा और पानी के दूषित हो जाने के बाद भी इलाके में निर्माण कार्य थमने का नाम नहीं ले रहे। अचन के स्थानीय लोग बताते हैं कि 1990 में इस जगह को डंपिंग साइट बनाए जाने की घोषणा के समय, यहां केवल 30 मकान ही थे, लेकिन अब तीस साल बाद स्थिति बदतर होने के बाद भी घरों की संख्या लगभग ढाई सौ तक पहुंच गई है। इतना ही नहीं, ज़मीनों की कीमतों में भी बेतहाशा वृद्धि दर्ज की गई है।

स्थानीय निवासी अली मुहम्मद डार ने बताया कि वह एक गरीब परिवार से हैं और उन्होंने साल 2005 में अचन में ज़मीन का एक टुकड़ा खरीदने के लिए अपनी पत्नी के गहने बेच दिए थे। (यह ज़मीन जम्मू-कश्मीर सरकार की संपत्ति है और एसएमसी को आवंटित है)। डार ने बताया कि उस साल प्रति मर्ला (272 वर्ग फुट) दर 2.5 लाख रुपये (272 वर्ग फुट) थी, जो अब बढ़कर 9 से 10 लाख रुपये प्रति मर्ला हो गई है। वे पूछते हैं, “लेकिन कोई यहां ज़मीन क्यों खरीदेगा? यहां सिर्फ़ वही लोग घर और ज़मीन खरीदेंगे जो अपनी ज़िंदगी से तंग आ चुके हैं।” ऐसी स्थिति के बावजूद भी सरकार इस इलाक़े में होने वाले अवैध निर्माणों पर किसी तरह की रोक नहीं लगा रही है।

अचन के निवासियों का कहना है कि वे सरकार से बार-बार गुज़ारिश कर रहे हैं कि या तो कोई वैकल्पिक कूड़ा डंपिंग स्थल खोजा जाए या सभी निवासियों को किसी दूसरी जगह पर पुनर्वासित किया जाए। स्थानीय निवासी शफ़िया जान ने बताया, “कश्मीर के संभागीय आयुक्त कार्यालय ने पहले ही परिवारों को किसी दूसरी जगह पर पुनर्वासित करने की सिफ़ारिश की है, लेकिन कुछ नहीं हो रहा है।” उन्होंने कहा कि ज़्यादातर निवासी किसी भी दूसरी जगह पर जाने के लिए तैयार हैं, क्योंकि वे सभी किसी न किसी बीमारी से ग्रसित हो चुके हैं और परेशान हैं।

श्रीनगर नगर निगम (एसएमसी) के उप-महापौर परवेज कादरी मानते हैं कि शहर से निकलने वाला कचरा बिना किसी पृथक्करण के अचन डंपिंग साइट पर पहुंच जाता है। कादरी कहते हैं, “एसएमसी के पास पर्याप्त संख्या में न तो कर्मचारी हैं और न ही कूड़ा ढोने वाली गाड़ियां ही। ऐसे में, हम अपना काम ढंग से नहीं कर पा रहे हैं, वरना, हमारी योजना लोगों के घर-द्वार पर ही कचरे का पृथक्करण करवाने की थी।

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सरकारी पहलें

इस लैंडफ़िल की दुर्दशा को देखते हुए और इलाके में रहने वाले लोगों द्वारा लगातार की जाने वाली मांगों के बाद सरकार ने इसके प्रबंधन और निपटान के लिए कुछ कदम उठाए हैं। अचन में जमा कचरे से 5 मेगावाट बिजली बनाने के लिए एक अपशिष्ट-ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने की एसएमसी की योजना उनमें से एक है।

सेल-चार का निर्माण और मंज़ूरी

  • उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के नेतृत्व वाले प्रशासन ने सेल-चार (20 फीट गहरा, 100–200 मीटर लंबा, सीमेंट के ढक्कन वाला) के निर्माण की मंज़ूरी दी।

  • जल्द ही इसका निर्माण शुरू होने वाला है।

मौजूदा सेलों की स्थिति

  • इस स्थान पर पहले से ही तीन सेल मौजूद हैं।

  • सेल-चार के निर्माण के लिए आवश्यक कागज़ी कार्रवाई और औपचारिकताएं जल्द ही पूरी कर ली जाएंगी।

लीचेट नियंत्रण

  • नए सेल में गीले कचरे से निकलने वाला लीचेट एक ही जगह जमा होगा।

  • इस तरह, इसे झील या अन्य जल-स्रोतों तक पहुंचने से रोका जा सकेगा।

गंध और कीटाणु नियंत्रण

  • बंद और सीमेंटेड सेल होने से दुर्गंध और कीटाणु फैलाव नियंत्रित होगा।

कचरे का संगठित भंडारण और लैंडफिल जीवन अवधि

  • नए सेल के निर्माण से पुराने और नए कचरे का व्यवस्थित भंडारण संभव होगा।

  • लैंडफिल की अधिकतम उपयोग अवधि बढ़ेगी और शहर में कचरा जमा होने की समस्या कम होगी।

इतना ही नहीं, एसएमसी कमिश्नर अतहर आमिर ने सिटिज़न मैटर्स के साथ बातचीत में बताया कि अचन में एक बायो-माइनिंग प्लांट लगाने का प्रस्ताव राज्य प्रशासन को भेजा गया है। आमिर कहते हैं, “सेल-फोर और बायो-माइनिंग प्लांट लग जाने के बाद, अचन के आसपास रहने वाले लोग कचरे से संक्रमित हुए बिना रह सकेंगे, क्योंकि तब कचरे का रोज़ाना निपटान संभव हो जाएगा।”

हालांकि, स्थानीय लोगों का इन दावों पर भरोसा न के बराबर है। उनका कहना है कि वे कई सालों से एसएमसी और पिछली सरकारों के वादे सुनते आ रहे हैं। इन वादों और घोषणाओं पर शंका जताते हुए अचन निवासी रियाज़ अहमद कहते हैं, “देखते हैं कि एसएमसी अधिकारियों के नए दावे कितने सच साबित होते हैं।”

एसएमसी ने अचन में जमा कचरे से 5 मेगावाट बिजली बनाने के लिए एक अपशिष्ट-ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने की योजना बनाई है।
एसएमसी ने अचन में जमा कचरे से 5 मेगावाट बिजली बनाने के लिए एक अपशिष्ट-ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने की योजना बनाई है।चित्र: राशिद अल्ताफ़
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संदर्भ गंगा : लखनऊ शहर में गोमती के प्रदूषण-स्रोत (भाग 6)
अचन लैंडफ़िल, जहां लगातार कचरा इकट्ठा तो हो रहा है, लेकिन इसका उपचार नहीं किया जा रहा है।

क्या हैं उपाय

स्रोत स्तर पर ही कचरे का पृथक्करण (सेग्रीगेशन) 

पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि सबसे पहले कचरे को उसके स्रोत पर अलग करना चाहिए।

  • गीले और सूखे कचरे को अलग करने के लिए नागरिकों को जागरूक किया जाना चाहिए।

  • डुअल-बिन सिस्टम के तहत घरों में दो अलग कूड़ेदान रखने से मिश्रित कचरे की मात्रा कम हो सकती है।

  • इससे रीसाइक्लिंग और कम्पोस्टिंग को बढ़ावा मिलेगा।

आधुनिक कचरा प्रबंधन तकनीक और वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट

  • शहर में आधुनिक प्रणालियां और तकनीक स्थापित करने से कचरे के डीकंपोज़िंग और निपटान में सुधार संभव है।

  • 2017 में जम्मू-कश्मीर कैबिनेट ने 5 मेगावाट क्षमता वाले वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट की स्वीकृति दी थी।

  • विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि इसे पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल के तहत दोबारा शुरू किया जाए।

बायो-माइनिंग तकनीक

  • नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, श्रीनगर और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, जम्मू के साथ मिलकर अपनाई जा रही बायो-माइनिंग तकनीक पुराने कचरे को हटाने और ज़मीन को पुनः उपयोग में लाने में मदद करती है।

  • यह पर्यावरणीय नुकसान को कम करने और टिकाऊ समाधान प्रदान करने में प्रभावी है।

तात्कालिक राहत के उपाय

  • एनजीटी की 2024 की विशेषज्ञ समिति ने गंध-रोधी रसायन (anti-odour chemicals) और लीचेट ट्रीटमेंट सिस्टम के उपयोग से निवासियों को तत्काल राहत देने की सिफ़ारिश की।

  • स्थायी समाधान मिलने तक, प्रदूषण और दुर्गंध को वैज्ञानिक तरीकों से सीमित करना ज़रूरी है।

लैंडफ़िल के लिए नई जगहें

  • पर्यावरण नीति विशेषज्ञों का इस बात पर ज़ोर है कि सरकार को श्रीनगर की भौगोलिक चुनौतियों के बावजूद नए लैंडफ़िल स्थलों की तलाश करनी चाहिए।

  • स्मार्ट सिटी परियोजना के अंतर्गत ठोस कचरा प्रबंधन को सतत शहरी विकास (Sustainable Urban Development) के ढांचे में शामिल करना चाहिए। इससे न केवल कचरा प्रबंधन में पारदर्शिता बढ़ेगी बल्कि शहर का पर्यावरणीय संतुलन भी मज़बूत होगा।

प्रशासनिक जवाबदेही और जन-जागरूकता

अचन लैंडफिल और इसके आसपास की यह कहानी सिर्फ़ पर्यावरणीय विफलता या कुछ लोगों के गिरते जीवन स्तर की कहानी नहीं है, बल्कि यह प्रशासनिक जवाबदेही और जन-जागरूकता की कमी की कहानी भी है।

श्रीनगर शहर सुंदरता से जुड़े अपने पुराने गौरव को हासिल करने के लिए छटपटा रहा है। लेकिन, यह तभी मुमकिन है जब यहां रहने वाले लोग रोज़ पैदा किए जा रहे लाखों टन कचरे के साथ व्यवस्थित तरीक़े से जीना सीखें। इसके लिए ज़रूरी है कि सरकारें लोगों को कचरा-प्रबंधन और पृथक्करण को लेकर प्रशिक्षित करें और समय-समय पर जागरूकता अभियान चलाएं।

अगर शहर के कचरा प्रबंधन में, कानूनी स्तर की सख्ती और आम लोगों की भागीदारी को शामिल करने में सफलता मिल जाती है, तो अचन और इसके आसपास के इलाके और आंचर झील सहित पानी के दूसरे स्रोतों के भी फिर से ज़िंदा होने की उम्मीद की जा सकती है।

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