उर्गम घाटी में हर साल लगता है पर्यावरण एवं प्रकृति-पर्यटन मेला
चिपको आंदोलन की चर्चित महिला नेत्री गौरा देवी ने सन 1974 में अपने गांव के जंगल का व्यवसायिक दोहन रुकवाया था। उस समय वह पहली महिला थीं, जिन्होंने अपने रैणी गांव की दर्जन भर से अधिक महिलाओं का नेतृत्व करके सरकार द्वारा काटे जा रहे बहुमूल्य प्रजाति के पेड़ों को बचाया था। वनों के संरक्षण के लिए उनका यह अहम योगदान दुनिया भर के लोग आज भी आदर्श उदाहरण के रूप में याद करते हैं।नके जन्म व कर्मक्षेत्र चमोली में भी गौरा देवी को पिछले 25 सालों से पर्यावरण एवं प्रकृति-पर्यटन मेले के बहाने याद किया जा रहा है। जून के प्रथम सप्ताह में लगने वाले इस मेले में हजारों महिलाएं एकत्रित होकर वन एवं पर्यावरण की रक्षा का संदेश देती हैं। स्कूलों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राएं पर्यावरण के विषय पर प्रतियोगिताएं करते हैं, स्थानीय गढ़वाली और हिंदी भाषा में लिखे अनेक लोकगीत, लोकनृत्य, संगीत व नाटक आदि प्रस्तुत किये जाते हैं। मेले में लोगों द्वारा अपने वन एवं कृषि उत्पादों की प्रदर्शनी लगाई जाती है। इसके अलावा घर-घर पकने वाली खाद्य सामग्री के स्टॉल भी मेले में सजे रहते हैं।
जिले के सरकारी विभागों द्वारा भी किसानों के लिए प्रदर्शनी लगाई जाती है और उनके द्वारा प्रकाशित साहित्य, पर्चे, पोस्टर भी उपलब्ध करवाए जाते हैं। सरकारी और गैर-सरकारी क्षेत्र में स्वास्थ्य के काम में लगे कार्यकर्ता एवं डॉक्टर मेले में लोगों की स्वास्थ्य जाँच करने के लिए पहुंचते हैं। वे बीमार लोगों को उचित स्थान पर पहुंचाने के लिए मार्ग-निर्देशन करते हैं। स्वच्छ भारत अभियान और जैविक-अजैविक कचरे का प्रबंधन कैसे हो, इस पर भी कार्यक्रम किये जाते हैं व प्रदर्शनी लगाई जाती है। महिलाएं अपने रंग-बिरंगे परिधानों में गढ़वाली लोक नृत्य करती हैं। दो तीन दिन तक चलने वाले इस मेले में गौरा देवी के कार्यों पर चर्चा होती हैं। क्षेत्रीय विधायक और पंचायत प्रतिनिधि अपने कार्यों का विवरण जनता के सामने रखते हैं। स्थानीय लोगों की मांग के अनुसार जनप्रतिनिधियों द्वारा जो काम भविष्य में किए जाने हैं, उनकी घोषणाएं भी की जाती हैं।
उर्गम घाटी में लगने वाले इस मेले की शुरुआत यहां के स्थानीय नौजवानों ने सन 1998 से प्रारंभ की थी। सामाजिक कार्यकर्ता लक्ष्मण सिंह नेगी इसमें प्रमुख भूमिका निभाते आ रहे हैं। ये युवा सन 1992 में इंटरमीडिएट पास करने के बाद से ही गौरा देवी के काम को जमीन पर उतारने के प्रयास में जुट गए थे। इस काम को करने के लिए ‘जनदेश’ नामक संगठन बनाया गया, जिसमें कई नौजवान शामिल हुए और सबने साथ मिलकर सबसे पहले गांव-गांव में पदयात्राएं कीं। फलस्वरूप क्षेत्र के सामाजिक व राजनैतिक दोनों तरह के लोग जुड़कर साथ काम करने लगे। पिलखी गांव में गौरा देवी के नाम पर एक वन तैयार किया गया, जिसमें दर्जन भर प्रजातियों के वृक्ष फल-फूल रहे हैं। इसी से सीख लेकर आस-पास के आधा दर्जन गांवों में महिला संगठनों ने भी अपना जंगल लगाया है। पर्यावरण सुधार और आजीविका संरक्षण के काम में लगे हुए इन युवकों में अधिकांश गांव के प्रधान, ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत के सदस्य भी निर्वाचित हुए हैं, ये युवा जन-प्रतिनिधि उर्गम घाटी में रोड, नेटवर्क, बिजली, पानी की आपूर्ति और इको टूरिज्म के विषय पर मिलकर काम कर रहे हैं।
गौरा देवी की स्मृति में हर वर्ष यह जो मेला लगता है, उसमें उन लोगों को गौरा देवी स्मृति सम्मान भी दिया जाता है, जो पर्यावरण के क्षेत्र में अहम भूमिका निभा रहे हैं। काबिले गौर है कि गौरा देवी सम्मान देने वाले मौजूदा नवयुवकों ने भले ही गौरा देवी को नहीं देखा है, लेकिन जब वे उनके विषय में बोलते हैं, तो गौरा देवी की एक से एक सच्ची और अनसुनी कहानियां सुनने को मिलती हैं। इस मेले की एक और विशेषता है कि यहां उपस्थित जन समूह के लिए सामूहिक भोजन की व्यवस्था रहती है, जहां सभी वर्गों के लोग आपसी भेदभाव भुलाकर एक साथ भोजन करके सामाजिक समरसता का उदाहरण भी पेश करते हैं।
उर्गम घाटी मध्य हिमालय की एक खूबसूरत जगह है, जहां से नंदीकुंड, वंशीनारायण, मदमहेश्वर, रूद्रनाथ आदि पर्वत मालाओं तक पहुंचने का ट्रैकिंग रूट मिलता है। सोना शिखर ग्लेशियर से आ रही कल्पगंगा, हेलंग के पास पवित्र अलकनंदा में मिलती है। इसी के किनारे बने हुए रास्तों से होकर साहसी पर्वतारोही दल उच्च पर्वत शिखरों तक पहुंचते हैं। इसी बात को ध्यान में रखकर सन 2002 में जनदेश संगठन ने स्थानीय युवकों को रोजगार देने के लिए इको टूरिज्म का प्रशिक्षण दिलाया था, जिसके फलस्वरूप यहां के दर्जनों लोगों की रोजी रोटी चल रही है और वे यहां पर आ रहे सैकड़ों पर्यटकों को रास्ता दिखा रहे हैं। यहां के युवा विकास, पर्यावरण, पर्यटन और रोजगार के बीच एक सृजनात्मक संबंध मजबूत करने के लिए गौरा देवी की स्मृति में पर्यावरण एवं प्रकृति-पर्यटन जैसे अहम मुद्दों पर एक दूसरे का हाथ थामकर गौरा देवी की राह पर अग्रसर हैं।
स्रोत - सर्वोदय जगत