8 मार्च अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस : पानी-पर्यावरण बचाने में अहम भूमिका निभा रही हैं महिलाएं
प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग और जल संरक्षण जैसे मुद्दों को अंतरराष्ट्रीय स्तर की समस्या माना जाता है। इन्हें लेकर राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चर्चाएं और विचार-विमर्श तो देखने को मिलता है, पर इस सबमें अखरने वाली बात यह है कि अकसर इस सब में महिलाओं की भागीदारी बहुत कम ही देखने को मिलती है। इसकी वजह शायद सदियों से चली आ रही हमारे समाज और दुनिया की वह रूढ़िवादी सोच है, जिसमें महिलाओं की भूमिका को घर-गृहस्थी, चूल्हे-चौके तक ही सीमित माना जाता है। पर, ज़रा गहराई से विचार करें, तो हम पाएंगे कि वास्तव में महिलाएं प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और जल संरक्षण के लिए अपनी रसोई से ही इतना कुछ कर सकती हैं, जितना कि इन पर ज्ञान देने वाले बुद्धिजीवी बड़े-बड़े मंचों से भाषण देकर या इन समस्याओं का विश्लेषण करके भी नहीं कर सकते।
जी हां, ज़मीनी हकीक़त यह है कि प्रदूषण और जल संकट जैसी समस्याओं का महिलाओं से गहरा नाता है और धरती को इससे बचाने के लिए प्रदूषण नियंत्रण से लेकर जल संरक्षण की असरदार और कारगर कोशिशें महिलाएं हमारे घर के किचन से ही कर सकती है, क्योंकि किचन की बागडोर महिलाओं के हाथ में ही होती है।
आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर आज हम इन चीजों के महिलाओं से जुड़े पहलुओं पर विचार करने के साथ ही उन उपायों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्हें महिलाएं घरेलू स्तर पर अपना कर प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग और जल संकट जैसी विकट होती समस्याओं के समाधान में अहम भूमिका निभा सकती हैं।
जल संकट का महिलाओं के जीवन पर असर
जल संकट की समस्या पर विचार करते समय अक्सर हमारा ध्यान इसके भौगोलिक, आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभावों पर ही केंद्रित रहता है। इस बात को अक्सर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है कि जल संकट का सबसे पहला और प्रत्यक्ष प्रभाव महिलाओं के जीवन पर ही पड़ता है। भारत समेत दुनिया के ज्यादातर विकासशील देशों में जल संग्रहण यानी घर की जरूरतों के लिए पानी लाने की जिम्मेदारी मुख्य रूप से औरतों और लड़कियों पर ही होती है। कई इलाकों में तो वे काफी लंबी दूरी तय करके पीने और घरेलू इस्तेमाल के लिए पानी लाती हैं। इसके चलते अकसर उनकी सेहत, शिक्षा, रोजगार और सामाजिक जीवन पर असर पड़ता है। यदि इस जल संकट का समाधान किया जा सके और जल संरक्षण पर ध्यान दिया जाए, तो दुनिया भर में करोड़ों महिलाओं की यह मेहनत और जद्दोजहद कम हो सकती है।
प्रदूषित जल से महिलाओं की बिगड़ती सेहत
जल प्रदूषण जहां खेती-बारी से लेकर मछुआरों तक करोड़ों लोगों की आजीविका तक को प्रभावित कर रहा है, वहीं प्रदूषित जल का सीधा असर जल जनित बीमारियों के रूप में महिलाओं पर भी देखने को मिलता है। दूषित पानी से होने वाली कई बीमारियां जैसे कि डायरिया, टाइफाइड, पीलिया और त्वचा संबंधी रोग महिलाओं के जीवन को कठिन बना देते हैं। स्थिति तब और विकट हो जाती है, जब बच्चों को दूध पिलाने वाली माताएं इन बीमारियों की चपेट में आती है, क्योंकि कई बार उनके जरिये यह बीमारी उनके बच्चों में भी फैल जाती है। इसलिए जल स्रोतों को प्रदूषण मुक्त रखना और साफ-सुथरे पानी की उपलब्धता महिलाओं के साथ ही उनके पूरे परिवार के स्वास्थ्य को सुनिश्चित कर सकती है।
जलवायु परिवर्तन और महिलाओं की स्थिति
जलवायु परिवर्तन के कारण सूखा, बाढ़ और जल स्रोतों की कमी जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं। इसका सबसे अधिक प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं पर पड़ता है, क्योंकि वे कृषि और घरेलू कामकाज और गृहस्थी के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। जल स्रोतों की कमी से उन्हें परिवार के लिए पेयजल की व्यवस्था करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। बाढ़ और सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं में भी गृहस्थी चलाने में महिलाओं की मुश्किलें काफी बढ़ जाती हैं। दोनों ही स्थितियों में खाद्यान्न और खाने-पीने की अन्य चीजों की कमी के चलते महिलाओं के लिए अपना व परिवार के लोगों का पेट भरना मुश्किल हो जाता है।
पर्यावरण संरक्षण में महिलाओं की भूमिका
पर्यावरण के संरक्षण और जल संचयन में महिलाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। कई मामलों में तो वे समूह या समाज की अगुवाई करती भी दिखाई देती हैं। विश्व भर में कई जगहों पर महिलाएं जल संरक्षण अभियानों में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं। उदाहरण के लिए भारत में 'जल सहेलियां' कार्यक्रम महिलाओं के योगदान की बेहतरीन मिसाल पेश करता है। यह कई दशकों से गंभीर जल संकट से जूझ रहे उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके की महिलाओं का समूह है। जल सहेलियां कुएं, तालाब, पोखर जैसे सूखे जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने में लगी हुई हैं। यह महिलाएं अशिक्षित या अर्ध-शिक्षित होने के बावजूद जल संकट जैसी गंभीर समस्या के समाधान के लिए गंभीर प्रयास कर रही हैं। उनके कठिन प्रयासों के चलते बुंदेलखंड क्षेत्र के दर्जनों गांवों में पेयजल की समस्या का समाधान हुआ है। जल सहेली कार्यक्रम के जरिये जल संरक्षण की मुहिम चलाने में स्वयंसेवी संस्था ‘परमार्थ’ जमीनी स्तर पर काम करके महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
भारत की इन जल सहेलियों की तरह ही अफ्रीका में महिलाएं 'वाटर कीपर्स' जैसे कार्यक्रम चला रही हैं। साउथ अफ्रीका और उसके आसपास के देशों में 'वाटर कीपर्स' जैसे कार्यक्रमों के जरिये जन समुदायों में जल संरक्षण, स्वच्छता और स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता फैलाने में महिलाएं सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। इन कार्यक्रमों में महिलाएं जल स्रोतों की देखभाल, वर्षा जल संचयन, और जल प्रबंधन की पारंपरिक तकनीकों का उपयोग करती हैं, जिससे स्थानीय समुदायों को स्वच्छ जल की उपलब्धता सुनिश्चित होती है।
'वाटर कीपर्स' कार्यक्रम की तरह ही उत्तरी अफ्रीका के केन्या, युगांडा और घाना जैसे देशों में जल संरक्षण अभियानों में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका देखने को मिलती है। केन्या में महिलाएं 'वॉटरशेड मैनेजमेंट' में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं, जिससे जल स्रोतों का संरक्षण हो रहा है। इसी तरह युगांडा में महिलाएं 'वॉटर यूज़र कमेटीज़' के माध्यम से जल प्रबंधन में योगदान दे रही हैं। घाना में भी महिलाएं 'कम्युनिटी वाटर एंड सैनिटेशन एजेंसी' के साथ मिलकर जल संरक्षण के प्रयास कर रही हैं। इन उदाहरणें से स्पष्ट है कि दुनिया के जल संकट वाले देशों में महिलाएं जल संरक्षण में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं।
ग्रीन एनर्जी और महिलाओं का योगदान
महिलाएं सौर ऊर्जा, बायोगैस और अन्य स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को अपना कर ग्रीन एनर्जी यानी हरित ऊर्जा पर्यावरण संरक्षण में योगदान दे रही हैं। इसमें महिलाएं जैविक खेती और टिकाऊ जीवनशैली को बढ़ावा देकर जल और भूमि के अति-शोषण को रोक रही हैं। मिसाल के तौर पर भारत के कई ग्रामीण इलाकों में "सोलर सखी" (Solar Sakhi) कार्यक्रम के तहत महिलाएं सोलर लैम्प, क्लीन कुकिंग स्टोव और छोटे सौर उपकरण बेचकर न केवल हरित ऊर्जा को बढ़ावा दे रही हैं। यह कार्यक्रम सेल्को इंडिया और अन्य संगठनों द्वारा चलायाजा रहा है। इसी तरह पड़ोसी देश नेपाल में "नेशनल बायोगैस प्रोग्राम" के तहत महिलाएं बायोगैस संयंत्र लगाने में अहम भूमिका निभा रही हैं, जिससे लकड़ी पर निर्भरता घट रही है और पर्यावरण को भी बचाया जा रहा है।
अफ्रीका के तंजानिया में महिलाएं "मामा सोलर" (Mama Solar) परियोजना के तहत सोलर पैनल इंस्टॉलेशन और रिपेयरिंग का प्रशिक्षण लेकर अपने गाँवों को सौर ऊर्जा से रोशन कर रही हैं। दुनिया के सबसे विकसित देशों में गिने जाने वाले अमेरिका भी क्लाइमेट लीडरशिप में महिलाएं अहम भूमिका निभा रही हैं। सिंथिया रोजर्स (Cynthia Rogers) की अगुवाई में विंड एनर्जी लीडर प्रोग्राम के तहत पवन ऊर्जा परियोजनाओं को सफलतापूर्वक संचालित करने में कई महिलाएं तकनीकी विशेषज्ञता और नेतृत्व प्रदान करके एक अग्रणी भूमिका निभा रही हैं।
प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने में महिलाओं की भागीदारी
महिलाएं घरेलू स्तर पर प्लास्टिक मुक्त जीवनशैली को अपना कर बड़े बदलाव लाने की दिशा में भी कदम बढ़ाती दिख रही हैं। कई महिला उद्यमी अब बांस के ब्रश, सूती बैग और अन्य इको-फ्रेंडली उत्पादों को बढ़ावा देकर प्लास्टिक कचरे को कम करने में योगदान दे रही हैं। इसके उदाहरणों की बात करें, तो केरल की महिलाएं "कुडुम्बश्री मिशन" के तहत कपड़े के थैले बनाकर प्लास्टिक बैग की जगह उन्हें बढ़ावा दे रही हैं। दिल्ली और महाराष्ट्र में महिलाओं के समूह "पर्यावरण मित्र" अभियान के तहत महिला समूह प्लास्टिक वेस्ट को इकट्ठा कर उसे रिसाइकिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इसी तरह इंडोनेशिया में "बैग फॉर बैग" इनिशिएटिव के जरिये मेलती और इसाबेल विजसेन नाम की दो बहनें "Bye Bye Plastic Bags" कैंपेन चला रही हैं। इस पहल के तहत स्थानीय महिलाएं पारंपरिक सामग्री से बैग बनाकर लोगों को प्लास्टिक बैग की जगह इस्तेमाल करने के लिए दे रही हैं।
अफ्रीकी देश केन्या में प्लास्टिक अपसाइक्लिंग से रोजगार मुहैया कराने का एक कारगर कदम उठाते हुए लैटर डूअर (Lorna Rutto) नामक महिला उद्यमी ने "EcoPost" नाम की कंपनी शुरू की है। यह कंपनी प्लास्टिक कचरे को इकट्ठा कर उससे फर्नीचर और अन्य उपयोगी चीजें बना रही है। घाना में भी महिलाओं के नेतृत्व में प्लास्टिक बैंक बनाए गए हैं, जहां लोग प्लास्टिक कचरा लाकर बदले में पैसे या सामान ले सकते हैं।
आगे का रास्ता
इन उदाहरणों के जरिये हमने देखा कि महिलाएं किस तरह पर्यावरण को बचाने और जल संकट के समाधान में महिलाएं काफी अहम भूमिका निभा रही हैं। इसलिए जल संकट और पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान के लिए महिलाओं में शिक्षा और जागरूकता बढ़ाना बेहद जरूरी है। महिलाओं को खासतौर पर पर्यावरण संरक्षण और जल प्रबंधन से जुड़ी शिक्षा दी जानी चाहिए। इसके साथ ही इन मुद्दों से जुड़ी नीतियों के निर्माण और उन्हें लागू करने में भी महिलाओं की भागीदारी बढ़ाई जानी चाहिए। इस दिशा में व्यावसायिक स्तर पर काम करने के लिए महिला उद्यमियों को बढ़ावा देने की भी जरूरत है। इसके तहत पर्यावरण से जुड़े स्टार्टअप्स और सामाजिक उद्यमों में महिलाओं को विशेष अवसर दिए जाने चाहिए। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर सिर्फ महिलाओं के सशक्तिकरण की बड़ी-बड़ी बातें करने के बजाय, इसे महिलाओं द्वारा किए जा रहे जल और पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों को सराहने और उन्हें इसमें और आगे बढ़ाने के उपाय भी किए जाने चाहिए। वास्तव में जल संकट और पर्यावरणीय समस्याओं को हल करने के लिए हमें महिलाओं की भूमिका को समझना होगा और उनके प्रयासों को समर्थन देना होगा। महिलाएं सशक्त होंगी, तो हमारा पर्यावरण और समाज भी सुरक्षित रहेगा।