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भारत में बेहिसाब भूजल दोहन, पृथ्वी झुक रही है

भारत में भूजल दोहन: अत्यधिक भूजल निकालने से पृथ्वी की धुरी खिसक रही है, जिससे जलवायु और खाद्य सुरक्षा पर गहरा असर पड़ सकता है।
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हाल के वर्षों में, वैज्ञानिक अध्ययनों ने एक चौंकाने वाले तथ्य का खुलासा किया है: मानव गतिविधि, विशेष रूप से भारत में भूजल का अत्यधिक दोहन, पृथ्वी की धुरी को शिफ्ट कर रहा है। यह प्रभाव, जो प्रारंभ में अमूर्त लग सकता है, वास्तव में वैश्विक जलवायु पैटर्न, समुद्र तल में वृद्धि, और जल तथा खाद्य सुरक्षा पर गहरे प्रभाव डाल सकता है। उपयोगकर्ता द्वारा प्रदान किए गए संदर्भ के अनुसार, भारत भूजल निकालने में चीन और अमेरिका से भी आगे है, और यह पृथ्वी की धुरी को खिसका रहा है, जिससे रात-दिन चक्र और खाद्य उत्पादन पर संभावित खतरे उत्पन्न हो सकते हैं।

भारत का भूजल निकालना: विस्तृत आंकड़े:

भारत प्रतिवर्ष 250–260 घन किलोमीटर भूजल निकालता है, जो अमेरिका और चीन के संयुक्त उपयोग (223 घन किलोमीटर, जिसमें चीन 112 घन किलोमीटर और अमेरिका 111 घन किलोमीटर शामिल हैं) से भी अधिक है। यह आंकड़ा भारत को विश्व के 10 शीर्ष भूजल उपयोगकर्ता देशों में पहले स्थान पर रखता है। यह भूजल निकालना मुख्य रूप से कृषि सिंचाई के लिए किया जाता है, विशेष रूप से गेहूं, चावल, और कपास जैसी फसलों के लिए। 2000-2020 के बीच, भूजल उपयोग में 22% की वृद्धि हुई, जो चीन और अमेरिका से अधिक है। हाल के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 2022 में यह आंकड़ा 239.16 घन किलोमीटर था, लेकिन उपयोगकर्ता द्वारा दिए गए आंकड़े 250–260 घन किलोमीटर संभवतः 2013-2017 जैसे पहले के वर्षों के लिए हैं, जब निकालने की दर अधिक थी।

मुख्य बिंदु:

  • शोध बताते हैं कि भारत हर साल 250–260 घन किलोमीटर भूजल निकालता है, जो अमेरिका और चीन के संयुक्त उपयोग से अधिक है।

  • भारत विश्व के 10 शीर्ष भूजल उपयोगकर्ता देशों में पहले स्थान पर है, उसके बाद चीन (112 घन किलोमीटर) और अमेरिका (111 घन किलोमीटर) आते हैं।

  • यह भूजल निकालना पृथ्वी की धुरी को प्रभावित कर सकता है, जिससे जलवायु और खाद्य सुरक्षा पर असर पड़ सकता है।

वैज्ञानिक साक्ष्य और पृष्ठभूमि:

वैज्ञानिक अनुसंधान, विशेष रूप से Geophysical Research Letters में प्रकाशित अध्ययनों से पता चला है कि 1993-2010 के बीच मानव ने लगभग 2,150 गीगाटन भूजल निकाला, जो समुद्र तल में 6 मिमी की वृद्धि के बराबर है यदि यह पानी समुद्र में डाला जाए (Earth's Axis Tilt Due to Groundwater Extraction)। इस भारी मात्रा में पानी के पुनर्वितरण ने पृथ्वी की धुरी को लगभग 80 सेमी (31.5 इंच) पूर्व की ओर शिफ्ट कर दिया, जिसमें वार्षिक शिफ्ट दर 4.36 सेमी प्रति वर्ष की गति से 64.16°E की दिशा में हुई। यह शिफ्ट ध्रुवीय गति (polar motion) के रूप में जानी जाती है, जो पृथ्वी की घूर्णन धुरी के सापेक्ष सतह के आंदोलन को मापती है।

अन्य अध्ययनों, जैसे Science Advances में प्रकाशित, ने यह भी संकेत दिया है कि जलवायु प्रक्रियाओं, जैसे हिमनदों के पिघलने और भूजल पुनर्वितरण, में पृथ्वी की धुरी पर प्रभाव पड़ता है, लेकिन भूजल पुनर्वितरण का प्रभाव सबसे बड़ा है (Climate-driven polar motion: 2003–2015)। यह प्रभाव न केवल भौगोलिक है, बल्कि नेविगेशन सिस्टम जैसे GPS पर भी असर डाल सकता है, जिससे तकनीकी चुनौतियां उत्पन्न हो सकती हैं।

भारत की भूमिका और क्षेत्रीय योगदान:

भारत भूजल निकालने में विश्व लीडर है, और इसकी वार्षिक निकालने की दर 250–260 घन किलोमीटर है, जो अमेरिका और चीन के संयुक्त उपयोग से अधिक है। विश्व के 10 शीर्ष भूजल उपयोगकर्ता देशों में भारत पहले स्थान पर है, जिसके बाद चीन (112 घन किलोमीटर) और अमेरिका (111 घन किलोमीटर) आते हैं। खासकर उत्तर-पश्चिमी भारत में, जहां कृषि गतिविधियां जैसे गेहूं, चावल, शक्कर की फसलें, मक्का, और कपास की खेती के लिए भारी मात्रा में सिंचाई की मांग होती है, भूजल दोहन का प्रभाव विशेष रूप से गंभीर है। 2000-2020 के बीच भूजल उपयोग में 22% की वृद्धि हुई, जो चीन और अमेरिका से अधिक है।

परिणाम और संभावित प्रभाव:

इस धुरी शिफ्ट के कई परिणाम हो सकते हैं। तत्काल स्तर पर, दिन-रात चक्र पर सीधा प्रभाव कम है, लेकिन भूवैज्ञानिक समय-सीमा पर, यह जलवायु पैटर्न को प्रभावित कर सकता है, जैसे मौसम प्रणालियों और कृषि उत्पादकता में परिवर्तन। Down to Earth के अनुसार, ध्रुवीय ड्रिफ्ट भूवैज्ञानिक समय-सीमा पर जलवायु पर प्रभाव डाल सकता है, और भूजल पुनर्वितरण का प्रभाव अन्य जलवायु-संबंधित कारणों से अधिक है (Groundwater extraction has tilted Earth’s spin; how likely is it to fuel climate change?)।

इसके अलावा, भूजल भंडारण में कमी जल सुरक्षा को खतरे में डालती है, विशेष रूप से भारत जैसे देशों में जहां सिंचाई के लिए भूजल पर निर्भरता अधिक है। Times of India के अनुसार, पिछले दो दशकों में पृथ्वी की धुरी 31.5 इंच शिफ्ट हुई, जो वैश्विक समुद्र तल में 0.24 इंच की वृद्धि के बराबर है, जो तटीय बाढ़ और कटाव को बढ़ा सकती है (Groundwater pumping has shifted Earth's axis by 31.5 inches in just two decades, study finds)।

यदि यह प्रवृत्ति जारी रही, तो भविष्य में खाद्य उत्पादन पर गंभीर असर पड़ सकता है, जिससे आर्थिक अस्थिरता और सामाजिक अशांति हो सकती है। उपयोगकर्ता द्वारा उल्लेखित संदर्भ के अनुसार, यदि यह चलता रहा तो रात-दिन चक्र और खाने-पीने पर बुरा असर पड़ेगा, जिससे बड़े संकट की आशंका है।

संभावित समाधान और भविष्य की दृष्टि:

इस समस्या से निपटने के लिए बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। Down to Earth के अनुसार, उत्तर-पश्चिमी भारत जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में भूजल कमी की दर को धीमा करना धुरी ड्रिफ्ट को बदल सकता है, लेकिन इसके लिए दशकों तक निरंतर प्रयास की आवश्यकता होगी (Groundwater extraction has tilted Earth’s spin; how likely is it to fuel climate change?)। संधारणीय जल प्रबंधन, जैसे सुधरी हुई सिंचाई तकनीक, वर्षा जल संचयन, और भूजल उपयोग को विनियमित करने वाली नीतियां, इस पर्यावरणीय चुनौती को कम करने के लिए आवश्यक हैं।

भविष्य में, वैश्विक सहयोग और वैकल्पिक जल स्रोतों तथा संरक्षण विधियों में अनुसंधान निवेश करना महत्वपूर्ण होगा। यह न केवल पृथ्वी की धुरी की स्थिरता बनाए रखने में मदद करेगा, बल्कि जल और खाद्य सुरक्षा को भी सुनिश्चित करेगा।

पृथ्वी की धुरी का झुकना भूजल दोहन के कारण एक गंभीर चेतावनी है, विशेष रूप से भारत जैसे देशों के लिए जहां भूजल उपयोग उच्च स्तर पर है। नीति निर्माताओं, वैज्ञानिकों, और जनता को इस गतिविधि के दीर्घकालिक प्रभावों को समझने और संधारणीय प्रथाओं को अपनाने की आवश्यकता है। संरक्षण और नवाचार के माध्यम से, हम अपने भूजल संसाधनों और पृथ्वी की घूर्णन गतिशीलता की स्थिरता को बनाए रख सकते हैं, जिससे एक अधिक टिकाऊ भविष्य सुनिश्चित हो सके।

मुख्य संदर्भ:

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