सिक्किम सरकार द्वारा पिछले साल पर्यटक वाहनों में गार्बेज बैग अनिवार्य करने के बाद सैलानी अब इधर-उधर कचरा फेंकने के बजाय उसे थैले में इकठ्ठा कर रहे हैं।
सिक्किम सरकार द्वारा पिछले साल पर्यटक वाहनों में गार्बेज बैग अनिवार्य करने के बाद सैलानी अब इधर-उधर कचरा फेंकने के बजाय उसे थैले में इकठ्ठा कर रहे हैं। स्रोत: vecteezy

सिक्किम के ‘गार्बेज बैग मॉडल’ से क्या सीख सकते हैं बाकी राज्य?

पिछले साल पर्यटक वाहनों में गार्बेज बैग रखना अनिवार्य करने के बाद सिक्किम में न सिर्फ पर्यटन के कारण होने वाली गंदगी में कमी आई है, पर्यटकों का व्‍यवहार में भी सकारात्‍मक बदलाव आया है।
Published on
9 min read

मानसून की बारिश पूर्वोत्‍तर राज्‍यों की खूबसूरती को और भी निखार देती है। ऐसे में बड़ी संख्‍या में देशी-विदेशी पर्यटक नॉर्थ-इस्‍ट की सैर पर निकल पड़ते हैं। सिक्किम अपने सांस्कृतिक और प्राकृतिक सौंदर्य के चलते हर साल लाखों पर्यटकों को आकर्षित करता है। स्थानीय अखबार सिक्किम एक्स्प्रेस के मुताबिक इस साल मई के महीने तक कुल 8.43 लाख सैलानी सिक्किम पहुंच चुके हैं। दोबारा सक्किम आए पर्यटकों को इस साल यहां का नज़ारा काफी बदला हुआ सा नज़र आ रहा है। इसकी वजह है पिछले साल राज्‍य सरकार द्वारा पर्यटन से बढ़ रहे कचरे पर लगाम कसने के लिए उठाया गया एक कारगर कदम। 

21 जुलाई 2024 को सिक्किम सरकार ने एक अहम फैसला लिया। इसके तहत, राज्य में आने वाले हर पर्यटक वाहन में एक बड़ा कचरे का थैला यानी "गार्बेज बैग" रखना अनिवार्य कर दिया गया। इस कदम के पीछे सरकार का मकसद यह है कि पर्यटकों द्वारा सड़क पर या इधर-उधर कचरा न फेंका जाए, बल्कि उसे गार्बेज बैग में एकत्र कर कूड़ेदान में फेंका जाए। सरकार की इस पहल का सकारात्‍मक असर देखने को मिल रहा है। 

यहां सैलानी न केवल अपनी गाडि़यों में गार्बेज बैग लेकर चल रहे हैं, बल्कि पैदल घूमने और यहां तक कि होटल और होम स्‍टे में रहने के दौरान इधर-उधर गंदगी फेंकने की गलती नहीं कर रहे हैं। हालांकि, गार्बेज बैग के नियम के बाद राज्‍य में कचरे में आई कमी को लेकर तो अबतक कोई ताजा आंकड़े या रिपोर्ट जारी नहीं की गई है, पर लोगों की आंखों देखी बता रही है कि यहां स्‍वच्‍छता के एक बड़े बदलाव की शुरुआत हो चुकी है, जिसने देसी से लेकर विदेशी पर्यटकों तक को खूब प्रभावित किया है। 

हाल ही में ट्रैवल ब्‍लॉगर सत्‍यजीत दहिया का एक ब्‍लॉग खूब वायरल हुआ है। इसमें वह सिक्किम की साफ-सफाई से इतने चकित और प्रसन्‍न दिख रहे हैं कि उन्‍होंने इसे 'पड़ोसी देश' तक कह डाला। India Today NE चैनल पर भी दहिया के इस वीडियो को शेयर किया गया है। कुछ ऐसा ही प्रशंसात्‍मक वीडियो Moonshine and Lemongrass नाम का यूटृयूब चैनल चलाने वाले विदेशी ट्रैवल ब्‍लॉगर न डाला है। वीडियो में वह अपने परिवार के साथ गंगटोक के एमजी रोड पर घूमते नज़र आ रहे हैं। यहां की सफाई से खुश हो कर वह इसकी जमकर तारीफ भी कर रहे हैं। 

इसके अलावा कानपुर के ट्रैवल ब्‍लॉगर दुष्‍यंत कटियार ने भी अपने यूट्यूब चैनल पर सिक्किम यात्रा का वीडियो डालते हुए यहां की सफाई की प्रशंसा की है। उत्तरी सिक्किम में युमथांग घाटी की यात्रा कर रहे दो डेनिश पर्यटकों का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें ये दोनों सिक्किम की स्‍वच्‍छता को बनाए रखने के लिए खुद सफाई के काम में जुटकर सड़क पर पड़े इक्‍का-दुक्‍का पैकेटों को अपने गार्बेज बैग में कलेक्‍ट कर रहे हैं। इसकी खबर NDTV इंडिया पर प्रकाशित हुई है।

साल 2016 में भारत और दुनिया के पहले पूरी तरह ऑर्गेनिक राज्य का दर्जा प्राप्‍त कर चुके सिक्किम का यह कदम पर्यटन आधारित अर्थव्‍यवस्‍था वाले देश के अन्‍य राज्‍यों के लिए भी एक मिसाल बन सकता है।

सिक्किम में पर्यटकों को ले जाने वाले वाहनों में गार्बेज बैग रखना अनिवार्य कर दिया गया है, जिसकी चेकिंग विभिन्‍न चेक प्‍वाइंट्स पर की जाती है।
सिक्किम में पर्यटकों को ले जाने वाले वाहनों में गार्बेज बैग रखना अनिवार्य कर दिया गया है, जिसकी चेकिंग विभिन्‍न चेक प्‍वाइंट्स पर की जाती है।स्रोत: prakharkhabar.com

सिक्किम मॉडल क्यों खास है?

सिक्किम का यह मॉडल इसलिए विशिष्ट है, क्योंकि इसमें पर्यटकों के राज्‍य में दाखिले के साथ ही उन्‍हें राज्‍य में कूड़ा-कचरा, गंदगी न फैलाने को लेकर सचेत करने की काशिश की गई है। पर्यटकों के सिक्किम की धरती पर कदम रखने से पहले उनके वाहनों में ही गार्बेज बैग रखने के नियम से उन्‍हें स्‍पष्‍ट संकेत दे दिया गया है कि आगे की यात्रा के दौरान उन्‍हें स्‍वच्‍छता बनाए रखने पर विशेष ध्‍यान देना होगा। अन्‍यथा, आमतौर पर स्वच्छता की ज़िम्मेदारी होटलों या नगर पालिकाओं पर डाली जाती है।

टिकाऊ पर्यटन से संबंधित द गुड टूरिज़्म ब्लॉग की जून 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2018 में भारत की जीडीपी में पर्यटन का योगदान 9.2% था। साथ ही इस सेक्टर ने 8.1% रोज़गार भी पैदा किए। हर साल यह क्षेत्र 6.9% की दर से बढ़ रहा है, जिसके चलते यहां निवेश भी बढ़ा है। हालांकि, पर्यटन के कारण पैदा होने वाले कचरे पर ज़रूरत भर डेटा उपलब्ध नहीं है, पर इसी रिपोर्ट की मानें तो कुछ माइक्रोस्टडी के मुताबिक देश में 30% कचरा पर्यटक पैदा करते हैं। अनुमान के मुताबिक साल भर में इसकी मात्रा करीब 620 लाख टन हो जाती है। ऐसे में पर्यटकों के कचरे को प्रबंधित करने की सिक्किम की पहल बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है।

यदि अन्य राज्य भी इस नीति को अपनाएं, तो पर्यटन परिदृश्‍य में एक बड़ा बदलाव आ सकता है। सिक्किम सरकार ने साफ निर्देश दिए हैं कि पर्यटकों के साथ आने वाले वाहन चालकों, टूर ऑपरेटरों और ट्रैवल एजेंसियों को यह सुनिश्चित करना है कि पर्यटकों को गार्बेज बैग अनिवार्यता की जानकारी राज्‍य में दाखिल होने से पहले ही दे दी जाए। सिक्किम सरकार के गार्बेज बैग मॉडल विभिन्‍न पहलुओं को बिन्‍दुवार तरीके से इस तरह से समझा जा सकता है -

गार्बेज बैग नीति के प्रमुख बिंदु :

  • ट्रैवल एजेंसियों को इस नियम की जानकारी अपने सोशल मीडिया, वेबसाइट और प्रमोशनल सामग्री में भी प्रमुखता से देनी है। टिकट या ईमेल में गार्बेज बैग के नियम का उल्लेख करना जरूरी है।

  • वाहनों के ड्राइवरों को यह जिम्मेदारी दी गई है कि वे यात्रा शुरू होने से पहले गाड़ी में गार्बेज बैग रखे जाने की व्‍यवस्‍था सुनिश्चित कर लें और यात्रियों को उसके उपयोग के लिए प्रेरित करें। 

  • सुरक्षा एवं पर्यावरण विभाग के अधिकारी राज्य की सीमा पर स्थित परिवहन चौकियों, पर्यटन स्थलों और लोकप्रिय ट्रैकिंग रूट्स पर पर्यटक वाहनों की आकस्मिक जांच करते हैं।

  • यदि किसी वाहन में गार्बेज बैग नहीं पाया गया, तो चालक के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है, जिसमें जुर्माना लगाना भी शामिल है। भले ही कचरा फेंका गया हो या नहीं।

  • डिजिटल ट्रैकिंग और रजिस्ट्रेशन की व्‍यवस्‍था लागू करते हुए पर्यटक वाहनों के प्रवेश बिंदुओं पर QR कोड आधारित सिस्टम लागू किया जा रहा है, जिससे यह ट्रैक किया जा सके कि किस वाहन में गार्बेज बैग था और किसमें नहीं। इस तरह पूरी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया गया है।

  • सिक्किम सरकार ने एक राज्यव्यापी स्वच्छता जन-जागरूकता अभियान भी शुरू किया है। इसके तहत रेडियो, पोस्टर, डिजिटल बोर्ड्स और सोशल मीडिया के माध्यम से राज्‍य के लोगों और पर्यटकों को इस बारे में जानकारी दी जा रही है।

  • स्कूलों और कॉलेजों में भी विद्यार्थियों को "पर्यावरण संरक्षक" के रूप में जोड़ा जा रहा है, ताकि वे पर्यटकों को गार्बेज बैग के उपयोग के लिए प्रेरित करें।

  • स्थानीय समुदायों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है कि वे इस बदलाव का हिस्सा बनें और बाहरी पर्यटकों को समझाएं कि क्यों यह नियम जरूरी है।

  • गार्बेज कलेक्शन और डिस्पोजल प्वाइंट्स की व्यवस्था के तहत सरकार ने प्रमुख पर्यटन स्थलों पर कचरा संग्रहण केंद्र (Garbage Collection Points) स्थापित किए हैं। यहां से यह कचरा बाद में स्रोत के आधार पर छंटाई (source segregation) और रीसाइक्लिंग के लिए भेजा जाता है।

  • इस पहल के पीछे सिक्किम सरकार का दीर्घकालिक लक्ष्य राज्य के प्रमुख स्थलों को “गार्बेज फ्री टूरिज्म जोन” घोषित करना है। इसके लिए एक प्रमाणन प्रणाली (certification system) भी विकसित की जा रही है।

  • स्‍वच्‍छता की इस पहल में होमस्टे और होटल मालिकों की भागीदारी सुनिश्चित करते हुए, स्थानीय होमस्टे, लॉज और होटल मालिकों को भी निर्देश दिया गया है कि वे पर्यटकों को प्लास्टिक कचरा न फैलाने और गार्बेज बैग का उपयोग करने के लिए जागरूक करें। 

इस प्रकार यह कदम केवल कचरे को रोकने का नहीं, बल्कि पर्यटन संस्कृति को जिम्मेदार और संवेदनशील बनाने की एक वैचारिक पहल भी है।

गार्बेज बैग मॉडल को अपनाने के बाद सिक्किम में पर्यटन से फैलने वाली गंदगी में काफी कमी आई है। इससे कचरे का निपटान भी आसान हो गया है।
गार्बेज बैग मॉडल को अपनाने के बाद सिक्किम में पर्यटन से फैलने वाली गंदगी में काफी कमी आई है। इससे कचरे का निपटान भी आसान हो गया है। स्रोत: Freepic

अन्य राज्यों में भी हुए ऐसे प्रयास

नीलगिरी (तमिलनाडु): प्लास्टिक पर कड़ा नियंत्रण : टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक तमिलनाडु के नीलगिरी ज़िले में प्रशासन 2001 में ही पर्यावरण के प्रति सजगता का दृष्टिकोण अपनाना शुरू कर चुका है। यहां सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पर सख्त प्रतिबंध लागू किया गया है, विशेषकर ऊटी और कुन्नूर जैसे प्रमुख हिल स्टेशनों में। राज्य सरकार ने 2019 में व्यापक रूप से 19 प्रकार की प्लास्टिक सामग्री पर प्रतिबंध लगाया और पर्यटक स्थलों पर चेकिंग के साथ-साथ वैकल्पिक व्यवस्था भी बनाई गई।

मामल्लापुरम में "बॉटल रीफिल स्टेशन" बनाने की तैयारी : तमिलनाडु के मामल्लापुरम में सप्ताहांत में 10,000 से ज्यादा पर्यटक आते हैं। आने वाले वर्षों में यहां प्लास्टिक बोतलों पर प्रतिबंध लगाने की योजना बनाई जा रही है। इस बारे में प्रकाशित मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक यहां चेकपोस्ट पर पर्यटकों को स्टील या कांच की बोतलें दी जाएंगी, जिन्हें लौटाने पर राशि वापस मिलेगी। इस मॉडल को "बॉटल रीफिल स्टेशन" और "डिपॉजिट रिटर्न सिस्टम" के साथ जोड़ा जा रहा है।

केरल उच्च न्यायालय ने सिंगल-यूज़ बोतलों पर लगाई रोक : केरल उच्च न्यायालय ने जून 2025 में राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह मुनार, वायनाड, तेक्कडी जैसे हिल स्टेशनों और सभी सरकारी आयोजनों में सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध लगाए। एक रिपोर्ट के मुताबिक कोर्ट के इस निर्णय की एक खास बात यह रही कि इसमें कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि पानी की सिंगल यूज बोतलों के स्थान पर रियूज़ेबल का इस्‍तेमाल किया जाए।

Also Read
जैविक में है दम, सिक्किम बना प्रथम
सिक्किम सरकार द्वारा पिछले साल पर्यटक वाहनों में गार्बेज बैग अनिवार्य करने के बाद सैलानी अब इधर-उधर कचरा फेंकने के बजाय उसे थैले में इकठ्ठा कर रहे हैं।

राष्ट्रीय स्तर पर उठाए गए कदम

स्वच्छ भारत मिशन (SBM) : 2014 में शुरू हुआ स्वच्छ भारत मिशन न केवल खुले में शौच से मुक्ति को लेकर था, बल्कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन को भी इसमें लक्ष्‍य किया गया था। इसके दूसरे चरण यानी SBM-2.0 के तहत विशेष रूप से कचरा संग्रहण, प्रोसेसिंग और रीसाइक्लिंग पर जोर दिया गया है। SBM-2.0 का मकसद सिर्फ सफाई नहीं बल्कि "स्वच्छ, स्वस्थ और सतत शहर" बनाना है। इसमें मटीरियल रिकवरी फैसिलिटी (MRF), कम्पोस्टिंग यूनिट, कचरा मुक्त शहर रैंकिंग, और जन भागीदारी अभियान जैसे आयाम जुड़े हुए हैं। टूरिज्म हॉटस्पॉट्स को कचरा मुक्त बनाए जाने की विशेष योजनाएं भी इसी के अंतर्गत चलाई जा रही हैं।

सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पर राष्ट्रीय प्रतिबंध : केंद्र सरकार ने 2016 से सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पर विभिन्न स्तरों पर प्रतिबंध लगाए हैं। 1 जुलाई 2022 से 50 माइक्रोन से कम की प्लास्टिक थैलियों पर पूर्ण प्रतिबंध लागू किया गया। प्लास्टिक स्ट्रॉ, कप, प्लेट्स, बैनर्स, कटलरी और स्टाइरोफोम जैसे उत्पादों पर पूर्ण रोक लगाई गई। कई राज्यों ने इस नीति को और सख्ती से लागू किया, जैसे महाराष्ट्र, तमिलनाडु और सिक्किम ने स्थानीय अधिनियम के तहत जुर्माना और जब्ती की कार्यवाही भी शुरू की। इसके समानांतर, EPR (Extended Producer Responsibility) जैसी नीति को भी लागू किया गया, जिसके तहत प्लास्टिक उत्पाद बनाने वालों को उसकी रीसाइक्लिंग और वेस्ट मैनेजमेंट की जिम्मेदारी दी गई।

न्यायिक दखल और ग्रीन टैक्स की पहल : पर्यावरणीय प्रदूषण को लेकर भारतीय न्यायपालिका भी लगातार सक्रिय रही है। विशेषकर पर्यटक स्थलों पर फैलने वाले कचरे और प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल (NGT) और उच्च न्यायालयों ने ग्रीन टैक्स या वेस्ट मैनेजमेंट शुल्क लगाने जैसे सख्त सुझाव दिए हैं।

हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, और गोवा जैसे राज्यों में यह विचार गंभीरता से चर्चा में है कि पर्यटकों से प्रवेश के समय ही एक नाममात्र शुल्क लिया जाए, जिसका उपयोग सफाई, कचरा निस्तारण और पर्यावरणीय प्रबंधन पर किया जा सके। मनाली और रोहतांग जैसे इलाकों में कुछ समय के लिए यह टैक्स लागू भी किया गया है। इसके अलावा, कई अदालती आदेशों के बाद राज्यों को प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2016 और सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2016 को प्रभावी ढंग से लागू करने की कानूनी बाध्यता भी बढ़ी है।

विस्तारित उत्पादक जिम्मेदारी (Extended Producer Responsibility : EPR) : इस पहल को केंद्र सरकार ने एक महत्वपूर्ण वेस्ट मैनेजमेंट उपकरण के रूप में अपनाया है। इसके तहत प्रदूषण नियंत्रण में उत्पादकों की जवाबदेही तय की गई है। इसमें प्लास्टिक, ई-वेस्ट, टायर और बैटरियों के निर्माता, ब्रांड ओनर और आयातकों को यह सुनिश्चित करना होता है कि उनके उत्पादों के उपयोग के बाद उसका इकठ्ठा करना, सेग्रेगेट करना और रीसायकल करना उनकी जिम्मेदारी है।

साल 2022 में लागू किए गए नए नियमों के अनुसार सभी बड़े ब्रांड्स को वार्षिक लक्ष्य के अनुरूप रीसाइक्लिंग सुनिश्चित करनी होगी। उन्हें CPCB के ई-पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य है। नियमों का उल्लंघन करने पर जुर्माना और लाइसेंस रद्द करने की कार्यवाही की जा सकती है। EPR नीति का उद्देश्य यह है कि कचरे की पूरी जीवनचक्र जिम्मेदारी केवल उपभोक्ताओं या सरकार पर न रहे, बल्कि उत्पादकों को भी जिम्मेदार ठहराया जाए।

राष्ट्रीय स्वच्छ सर्वेक्षण और प्रतिस्पर्धी सुधार : 2016 से शुरू किया गया राष्ट्रीय स्वच्छ सर्वेक्षण हर साल होता है, जिसमें देश के शहरों को स्वच्छता के प्रदर्शन की रैंकिंग दी जाती है। इस पहल ने शहरों में साफ-सफाई को लेकर स्थानीय प्रशासन को काफी सक्रिय किया है, जिससे कई शहरों में "कचरा मुक्त शहर" बनने की होड़ शुरू हुई है।

साल 2023 तक इंदौर, सूरत, नवी मुंबई, और विशाखापत्तनम जैसे शहरों ने कई वर्षों तक शीर्ष रैंकिंग बनाए रखी है। खासतौर पर इंदौर ने लगातार कई बार अव्‍वल रह कर सफाई के मामले में राष्‍ट्रीय स्‍तर पर अपनी पहचान बनाई है। इसमें नागरिक भागीदारी, डोर-टू-डोर वेस्ट कलेक्शन, पब्लिक टॉयलेट्स की स्थिति, और नवाचारों को भी देखा जाता है। इस प्रतियोगिता ने होटल, बाजार और पर्यटक स्थलों पर भी सफाई को एक नई प्राथमिकता में शामिल कर दिया है।

दूर हो संसाधनों और जागरूकता की कमी

कचरे के प्रबंधन संबंधी नियमों को लागू करने की व्‍यवस्‍था और प्रशासनिक ढांचे में अकसर कमजोरी देखने को मिलती है, क्‍योंकि कई जगहों पर स्थानीय निकायों के पास कचरा प्रबंधन के लिए आवश्यक संसाधनों की कमी है। इसके अलावा पर्यटकों में जागरूकता की कमी भी एक बड़ी बाधा है, जिसके चलते वे अकसर नियमों को गंभीरता से नहीं लेते। ट्रैवल एजेंसियां और होटल बुकिंग पोर्टल भी उन्हें यात्रा से पहले जरूरी निर्देश नहीं देते, जिससे नीति का पालन अधूरा रह जाता है।

इस स्थिति से निपटने के लिए कानूनी प्रवर्तन को सख्त बनाने की जरूरत है, ताकि उल्लंघन पर प्रभावी कार्रवाई हो सके। साथ ही, यात्रा से पूर्व जानकारी देने की व्यवस्था, जैसे टिकट या बुकिंग कंफर्मेशन में नियमों का उल्लेख, अनुपालन को बेहतर बना सकती है।

स्थानीय समुदायों की भागीदारी इन पहलों को ज़मीनी समर्थन दे सकती है, जबकि एनजीओ और निजी क्षेत्र की साझेदारी से सरकार को संसाधन और तकनीकी सहयोग मिल सकता है। इस तरह एक बहुस्तरीय और समन्वित प्रयास ही टिकाऊ समाधान की दिशा में कारगर हो सकता है। बीते एक साल की प्रगति देखकर साफ तौर पर लग रहा है कि सिक्किम का गार्बेज बैग नियम पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक व्यावहारिक और क्रांतिकारी कदम है, जो अन्य राज्यों के लिए भी एक मिसाल बन सकता है।

Also Read
प्लास्टिक बैग की जगह इस इको फ्रेंडली ग्रीन बैग का करे इस्तेमाल
सिक्किम सरकार द्वारा पिछले साल पर्यटक वाहनों में गार्बेज बैग अनिवार्य करने के बाद सैलानी अब इधर-उधर कचरा फेंकने के बजाय उसे थैले में इकठ्ठा कर रहे हैं।

संबंधित कहानियां

No stories found.
India Water Portal - Hindi
hindi.indiawaterportal.org