विनाशकारी भूकम्प
विनाशकारी भूकम्प

भूकंप कब आता है और क्यों आता है? (When does an earthquake occur and why does it occur? In Hindi)

विनाशकारी भूकम्प इतिहास में काली तारीखों के रूप में दर्ज हैं। वैसे तो हर वर्ष दुनिया भर में करीब 50,000 छोटे बड़े भूकम्प आते हैं लेकिन उनमें से 100 विनाशकारी होते हैं। कम से कम एक भूकम्प भयानक विनाश करता है। मानव जीवन के इतिहास में सबसे अधिक तबाही मचाने वाला भूकंप 23 जनवरी 1556 को चीन में आया था,जिसमें लगभग 8 लाख से भी अधिक लोग मारे गये थे। 1 नवम्बर 1755 को लिस्बन, पुर्तगाल में आया भयंकर भूकम्प संभवत: पहला ऐसा भूकम्प था, जिसके विस्तृत अध्ययन के रिकार्ड आज भी सुरक्षित हैं। यह रिकार्ड तत्कालीन पादरियों के प्रेक्षणों पर आधारित थे तथा इनमें पहली बार भूकम्प तथा इसके प्रभावों की सुव्यवस्थित जांच पड़ताल की गई थी।
Published on
8 min read

लातूर और उस्मानाबाद जिलों में तीस सितम्बर 1993 को प्रातः का समय अचानक धरती के थरथरा उठने से वहां के निवासियों पर जो कहर ढला, उससे अभी तक वहां के निवासी उबर नहीं पाये हैं। इसके पूर्व 20 अक्टूबर 1991 को उत्तरकाशी तथा निकटवर्ती जिलों में प्रकृति की यह विनाश लीला देखने को मिली थी। इस भयंकर विनाश का कारण था - भूकम्प, जिसने देश के विभिन्न भागों को झकझोर दिया था।

आखिर कितना पुराना है भूकम्पों का इतिहास, क्या कारण है जो स्थिर एवं शांत दिखने वाली धरती के भीतर असहनीय कंपन पैदा कर देता है, वैज्ञानिकों की पहुंच भूकम्पों के कारण व उसके प्रभाव से बचने के क्या उपाय सुझा पाई है प्रस्तुत है इन्हीं सब प्रश्नों के उत्तर पर एक दृष्टिपात।

विनाशकारी भूकम्प इतिहास में काली तारीखों के रूप में दर्ज हैं। वैसे तो हर वर्ष दुनिया भर में करीब 50,000 छोटे बड़े भूकम्प आते हैं लेकिन उनमें से 100 विनाशकारी होते हैं। कम से कम एक भूकम्प भयानक विनाश करता है। मानव जीवन के इतिहास में सबसे अधिक तबाही मचाने वाला भूकंप 23 जनवरी 1556 को चीन में आया था,जिसमें लगभग 8 लाख से भी अधिक लोग मारे गये थे। 1 नवम्बर 1755 को लिस्बन, पुर्तगाल में आया भयंकर भूकम्प संभवत: पहला ऐसा भूकम्प था, जिसके विस्तृत अध्ययन के रिकार्ड आज भी सुरक्षित हैं। यह रिकार्ड तत्कालीन पादरियों के प्रेक्षणों पर आधारित थे तथा इनमें पहली बार भूकम्प तथा इसके प्रभावों की सुव्यवस्थित जांच पड़ताल की गई थी।

इस भूकम्प द्वारा उत्पन्न झटके लगभग सारे विश्व में अनुभव किये गये थे। इस सदी के सर्वाधिक तीव्रता वाले भूकम्पों में से कुछ हैं- इटली में 1908, चीन में 1920, 1927, 1932, 1976, जापान में 1923, भारत में 1935, तुर्की में 1939, सोवियत संघ में 1948 व 1988, पेरू में 1970 तथा मैक्सिको में 1985 में आये भूकम्प इन सब भूकम्पों की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 7.3 या उससे अधिक थी। भारत में भारी तबाही मचाने वाले भूकम्पों में 1737 में कलकत्ता, 1897 और 1950 में आसाम, 1905 में जम्मू और कश्मीर 1988 में बिहार और 1991 में उत्तरकाशी में आये भूकम्प हैं। इनमें से सर्वाधिक भयंकर भूकम्प 8.7 की तीव्रता वाला 1897 में आसाम में आया था।

भूकम्प के वैज्ञानिक अध्ययन का इतिहास अधिक पुराना नहीं है। लगभग 18 वीं सदी के पूर्व तक लोग उसे देवताओं द्वारा दिया गया एक दंड मानते थे। भूकम्प के विषय में जानकारी को वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर प्रस्तुत करने में राबर्ट मैले का मुख्य योगदान माना जाता है। सन् 1846 में उन्होंने आईरिश अकादमी के सम्मुख भूकम्प की गतिकी पर एक प्रपत्र प्रस्तुत किया। उसके बाद तो अनेकों देशों में भूकम्प पर वैज्ञानिक अध्ययनों का सिलसिला प्रारम्भ हो गया।

जैसा कि नाम से ही विदित है भूकम्प धरती के भीतर होने वाली हलचल है जिससे उसकी सतह कांप उठती है। भूकम्प के कारणों के विषय में वैज्ञानिकों के कई मत हैं जिनमें सर्वाधिक मान्य सिद्धान्त है प्लेट-टेक्टोनिक्स का। चट्टानों की परत मेंटल में हलचल मचती रहती है। पृथ्वी के अंदर गति करती प्लेटें जब आपस में रगड़ खाती हैं। या टकराती हैं तो प्लेटों की चट्टानों पर उनकी सहनशीलता से अधिक बाह्य दबाव पड़ता है और चट्टानें टूटने लगती हैं। तरंगें बनती हैं और धरती को कंपाती हुई सतह तक पहुंचती है। इन तरंगों को सीजमिक तरंग कहते हैं। यह तरंगे फोकस के नाम से जाने जाने वाले भूकम्प के स्रोत स्थल से निकलकर सतह तथा पृथ्वी के अंदर दूर स्थानों तक जाती हैं। यह तरंगें भूकम्प स्थल पर कंपन समाप्त हो जाने के बाद भी संचरण करती रहती हैं और सम्पूर्ण विश्व को लगभग 20 मिनट में पार कर सकती हैं। भूकम्प के कारण सबसे अधिक नुकसान फोकस के ठीक ऊपर पृथ्वी की सतह पर होता है। इस बिन्दु को उपरिकेन्द्र कहते हैं।

सीजमिक तरंगें दो प्रकार की होती हैं पृष्ठ तरंगें तथा काय तरंगें । भूकम्प द्वारा होने वाले विध्वंस के लिये मुख्यतः सतह पर चलने वाली शक्तिशाली पृष्ठ तरंगें जिम्मेदार होती हैं। काय तरंगें धरती के भीतर पैदा होती हैं और इन्हें प्राथमिक या पी तरंग और द्वितीयक या एस तरंग में बांटा जा सकता है।

अधिकतर भूकम्पों के फोकस भू-पर्पटी तथा ऊपरी प्रावार या मेंटल में ही स्थित होते हैं। प्रायः बड़े भूकम्पों का फोकस भू सतह से 700 किमी की गहराई तक हो सकता है जबकि हल्के भूकम्पों की फोकस गहराई प्रायः 60 किमी तक होती है।

उपरोक्त कारणों के अतिरिक्त ज्वालामुखी के विस्फोट अथवा मानव द्वारा किये गये कृत्रिम विस्फोट के कारण भी भूकम्प आ सकते हैं। बांधों के निर्माण के कारण आये भूकम्पों की संख्या लगभग 70 है जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका में कोलोराडो नदी के मीड़ जलाशय पर बने हूवर बांध क्षेत्र में आया भूकम्प उल्लेखनीय है। भारत में महाराष्ट्र में स्थित कोयना बांध के कारण भी भूकम्प आ चुका है। इसलिए भूकम्प के लिये संवेदनशील इलाकों में बांधों का निर्माण बहुत सोच समझकर करना चाहिये।

भूकम्प को दो पैमानों पर मापा जाता है तीव्रता और परिमाण यह एक दूसरे पर निर्भर नहीं होते हैं। भूकम्प की तीव्रता का मापदण्ड इसके द्वारा किसी स्थान पर भूविज्ञानी तथा मानव द्वारा बनाई गई संरचनाओं पर पड़ने वाला प्रभाव है। इसे प्राय: आशोधित मरकैली पैमाने पर मापा जाता है। इस पैमाने पर रोमन में लिखे 12 खाने या डिग्री मात्र प्रतिबोधित भूकम्प से लेकर पूर्ण विनाश वाले भूकम्प को दर्शाते हैं। भूकम्प की तीव्रता उपरिकेन्द्र की दूरी के साथ बदलती है तथा यह परिवर्तन चट्टानों के प्रकार तथा अन्य कई कारणों पर निर्भर करता है। अतः एक भूकम्प के कारण विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न तीव्रतायें हो सकती हैं।

इसके विपरीत भूकम्प का परिमाण स्थान के साथ परिवर्तित नहीं होता है। यह भूकम्प के दौरान फोकस पर मुक्त कुल ऊर्जा का अनुपाती होता है। इसे कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलोजी के डा० चार्ल्स एफ0 रिक्टर के नाम पर रिक्टर पैमाने द्वारा व्यक्त किया जाता है जो एक लघुगणक पैमाना है। एक छोटे भूकम्प का रिक्टर पैमाने पर मान शून्य के निकट तथा बड़े भूकम्प का मान 7 से 8 के बीच में होता है। 8 या इससे अधिक मान वाले भूकम्प को सर्वनाशी भूकम्प माना जाता है।

भूकम्पों की स्थिति सर्वाधिक भूकम्प प्रधान क्षेत्र प्रशान्त सागर से घिरे क्षेत्र हैं। अग्नि वलय नाम से जाने जाने वाले इस परि प्रशान्त पट्टी के अन्तर्गत उत्तरी व दक्षिणी अमेरिका के प्रशान्त समुद्र तट, एल्यूटिन द्वीप, जापान, दक्षिण पूर्व एशिया तथा आस्ट्रेलिया आते हैं। इसके अतिरिक्त अल्पाइन हिमालय पट्टी में भी भूकम्पों की सम्भावना काफी है। इंडोनेशिया से स्पेन तक फैली इस पट्टी में बर्मा, भारत, मध्य-पूर्व व दक्षिण यूरोप आते हैं। तीसरी मध्य अटलांटिक रिज पट्टी, मुख्य रूप से समुद्री तट के भीतर की सीजमिक सक्रियता के लिये जिम्मेदार है।

भारत में भूकम्प प्रवण क्षेत्र मुख्यतया उत्तर, उत्तर-पश्चिम तथा उत्तर-पूर्व में हैं। इसकी प्रवणता हिमालय की पर्वत श्रेणियों या उसकी घाटियों में सर्वाधिक है। भारतीय मानक आई0एस0 1893 में भारत को मरकैली तीव्रता पैमाने के आधार पर 5 सीजमिक जोन में बांटा गया है। तीव्रता 9 या अधिक वाली जोन में लगभग 12 प्रतिशत क्षेत्र, तीव्रता 8 वाली जोन 4 में 18 प्रतिशत, तीव्रता 6 वाली जोन 3 में लगभग 26 प्रतिशत क्षेत्र आता है।

भूकम्प के प्रभाव उसकी तीव्रता पर निर्भर करते हैं। इन विध्वंसकारी प्रभावों में से मुख्य हैं भवनों पर प्रभाव, - भूस्खलन, आपूर्ति तथा संचार पर प्रभाव आदि लगभग 90 प्रतिशत मृत्यु तथा कुल सम्पत्ति नाश में आधे से अधिक का कारण भवन संरचनाओं का कमजोर होना है। दोषयुक्त निर्माण भूकम्प के झटकों को सहन नहीं कर पाते हैं। कई घनी बस्तियों में लोग मकानों में प्रायः कमजोर चिनाई का प्रयोग करते हैं, जो भूकम्प क्षेत्रों के लिये घातक है। भूकम्प के दौरान खुले गैस पाइपों, रसोई घर के चूल्हों तथा लैम्पों से आग लगने की भी संभावना प्रबल होती है। गैस, तेल तथा गैसोलीन की पाईप लाइनें फट सकती हैं। भूकम्प के कारण पड़ने वाली दरारें तथा भूस्खलन भी लोगों के लिये भयंकर खतरे हैं। दूरवर्ती स्थानों तक गैस तथा तेल की आपूर्ति एवं रेल, सड़कों द्वारा यातायात तथा तार एवं दूर संचार व्यवस्थायें ठप्प हो जाती हैं। भूकम्प सरीखी आपदा सामाजिक व्यवस्था के साथ-साथ देश की आर्थिक व्यवस्था को भी प्रभावित करती है और विकास को धीमा कर देती है।

भूकम्प के इन प्रभावों को कम करने के लिये कुछ सावधानियां बरती जा सकती हैं। भूकम्प प्रवण क्षेत्रों में भवनों का निर्माण भारतीय मानक संस्थान द्वारा 1976 के आई0एस0-4326 तथा 1984 में चौथी बार संशोधित आई०एस० 1893 मानक की अनुशंसा के आधार पर करना चाहिये। इनके अनुसार हल्के, संहत, अग्नि प्रतिरोधक तथा प्रक्षेपी भागों रहित भवनों पर भूकम्प का असर कम पड़ता है। कंकरीट के स्थान पर लकड़ी के बने मकान ऐसे क्षेत्रों के लिये अधिक उपयोगी हैं। भूकम्प के कारण बांधों में दरार पड़ जाने से जलाशयों में भरा पानी उस क्षेत्र में बाढ़ की स्थिति पैदा कर सकता है। इससे बचने के लिये बांधों की बनावट को उपलब्ध सीजमिक डिजाइन के आधार पर मजबूत बनाया जाना चाहिये। भूकम्प के कारण लगने वाली आग से बचाव के लिये भूकम्प प्रवण क्षेत्रों में आकस्मिक जलाशयों को स्थापित किया जाना चाहिये। भूस्सखलन के खतरे को इन क्षेत्रों के भू वैज्ञानिक अध्ययन द्वारा पहले से ही जाना जा सकता है।

भूकम्प के दौरान व उसके बाद हम कुछ सावधानियां बरत सकते हैं। भूकम्प आने पर शांत और संयत रहें। यदि आप घर के अंदर हों तो इधर-उधर भागने के बजाय मेज, डेस्क या बेंच के नीचे बैठ जायें या कमरे के कोने में खड़े हो जायें। खिड़की, चिमनियों या फिज, मशीन जैसी भारी चीजों से दूर रहें अन्यथा वह आप पर गिर सकती हैं। यदि आप बहुमजलीय इमारत में हो तो सीढ़ियों या एलीवेटर की ओर न भागकर अपने स्थान पर ही सुरक्षा ढूंढें । भूकम्प के समय बिजली चले जाने, आग लगने शीशों के टूटने दीवार चटकने अथवा वस्तुओं के गिरने की आवाज से भयभीत न हों। यदि आप किसी ऊंची इमारत के किनारे चल रहे हों तो छत में पहुंचकर इमारत के गिरते हुये मलबे से बच सकते हैं। खुले मैदान में होने पर बिजली की पावर लाइनों से दूर रहें। भूकम्प के समय यदि आप किसी बस में हों तो कोशिश कर उसे ऊँची इमारतों व पुल से दूर रोक दें और उसके अन्दर रहें। यदि आप भूकम्प का एक से अधिक झटका महसूस करते हों तो अचरज में न पड़ें। यह झटका उस भूकम्प से आने वाली विभिन्न सीजमिक तरंगों के कारण हो सकता है। ध्यान रखें कि यह मुख्य झटके से नुकसान पहुंची इमारतों को और कमजोर बना सकता है।

भूकम्प के बाद बचाव कार्यों में क्षेत्र को खाली कराने, शरणार्थियों को आश्रय देने, उनके लिये प्राथमिक चिकित्सा तथा खाने-पीने की व्यवस्था करने की तुरन्त जरूरत पड़ती है। इसमें सरकार के साथ-साथ स्वयंसेवी संस्थाओं को भी सूचना मिलते ही तुरन्त मिल जुल कर तन-मन-धन से मदद के लिये आना चाहिये। स्वयंसेवी संस्थायें समय-समय पर भूकम्प प्रवण क्षेत्रों में जाकर आडियो-विजुवल कार्यक्रमों तथा सेमिनारों द्वारा जनता के बीच भूकम्प के प्रभाव से बचने के प्रति जागरूकता पैदा कर सकती हैं।

अब प्रश्न उठता है कि क्या भूकम्प आने की पूर्वसूचना प्राप्त की जा सकती है? वैज्ञानिकों के अथक प्रयास के बावजूद भी अभी तक भूकम्पों की निश्चित भविष्यवाणी करने में पूर्ण सफलता नहीं मिली है। उपलब्ध आंकड़ों को कम्प्यूटर द्वारा प्रोसेस कर सांख्यकीय संभावनाओं के आधार पर भूकम्प के पूर्वानुमान की दिशा में विचारणीय प्रगति हुई है। भूकम्प के पूर्व पशु-पक्षियों के असामान्य व्यवहार द्वारा भूकम्प की पूर्वसूचना पर भी कार्य हुआ है। ऐसा देखा गया है कि भूकम्प आने के पूर्व पक्षी चिचियाते हुये अपने घोंसले से उड़ जाते हैं, चूहे व सांप अपने बिलों में नहीं घुसते हैं तथा कुछ अन्य जानवर भी बेचैन हो जाते हैं। चीन ने पेरिस में एक अंतरराष्ट्रीय बैठक में 4 फरवरी 1975 को ल्योनिंग प्रांत में 7.3 परिमाण के भूकम्प की भविष्यवाणी के विषय में बताया, जो पशुओं के असामान्य व्यवहार पर आधारित थी तथा जिसमें आक्रान्त लोगों को बचा लिया गया था सौरमंडल में नक्षत्रों की स्थिति के आधार पर भूकम्प की भविष्यवाणी करने का भी वैज्ञानिकों ने प्रयास किया है।

भूगर्भ वैज्ञानिकों के अनुसार भारतीय भूखंड प्रतिवर्ष 5 सेमी की गति से पूर्वोत्तर दिशा में यूरेशियाई भूखंड की ओर बढ़ रहा है। साथ ही यूरेशियाई भूखंड भी धीरे-धीरे भारतीय भूखंड की ओर खिसक रहा है। इसके दबाव से हिमालय पर्वत श्रृंखला की ऊंचाई बढ़ रही है। इस कारण हिमालय क्षेत्र भूकम्प के लिये बेहद संवेदनशील क्षेत्र है। 1 इस क्षेत्र में आगामी वर्षों में बड़े भूकंप आ सकते हैं। यह सच है कि भूकम्प सरीखी आपदा को हम रोक नहीं सकते, परन्तु बचाव के तरीके अपना कर हम अपनी जान माल की रक्षा अवश्य कर सकते हैं।

सम्बंधित कहानिया

No stories found.
India Water Portal - Hindi
hindi.indiawaterportal.org