सड़क/राजमार्ग परियोजनाओं में जैवविविधता अध्ययन का महत्व (Importance of biodiversity study in road/highway projects)
सारांश:
Abstract
प्रस्तावना
जैवविविधता का महत्व
भारत में जैवविविधता की स्थिति
सारणी 1- विभिन्न प्रजातियों की जैवविविधता में भारत की तुलनात्मक स्थिति | |
समूह | वृहद जैव विविधता वाले देशों के मध्य स्थान |
उच्च पौधे (Higher Plant) | नौवां |
स्तनपायी (Mammalian) | सातवां |
पक्षी (Bird) | नौवां |
सरीसृप (Reptilian) | पाँचवा |
उभयचर (Amphibian) | नौवां |
मछली (Fishes) | प्रथम |
विश्व में जैवविविधता संरक्षण के लिये प्राकृतविद एवं प्रख्यात वैज्ञानिक नार्मन मायर ने ह्रास होती जैवविविधता से परिपूर्ण क्षेत्रों की पहचान की ताकि इनका अच्छी तरह से संरक्षण किया जा सके। इन क्षेत्रों को हॉट स्पॉट (Hot-Spot) कहा गया। हॉट स्पॉट वे क्षेत्र होते हैं जहाँ वास्कुलर (Vascular) पौधों की कम से कम 1500 स्थानिक (ईंडेमिक) प्रजातियाँ पायी जाती हों परन्तु उनके मूल आवास (Original habitat) का 70 प्रतिशत भाग नष्ट हो चुका है अभी तक विश्व में कुल 34 हॉट स्पॉट क्षेत्रों की पहचान की गई है जिनका विस्तार कुल भू-भाग के लगभग 15.70 प्रतिशत क्षेत्र में है।
वर्तमान स्थिति और भी चिंताजनक है क्योंकि सभी 34 हॉट स्पॉट क्षेत्रों के 86 प्रतिशत भाग पहले ही नष्ट हो चुके हैं। इस प्रकार वर्तमान में 34 हॉट स्पॉट का विस्तार कुल भू-भाग पर सिर्फ 2.3 प्रतिशत तक ही सीमित रह गया है। भारत में जैवविविधता से संबंधित चार हॉट स्पॉट के क्षेत्रों की पहचान की गई है जिनमें कि हिमालय क्षेत्र, इंडो-बर्मा क्षेत्र वेस्टर्न घाट क्षेत्र एवं सुंडालैंड क्षेत्र (निकोबार द्वीपसमूह) शामिल हैं (चित्र 1)
एशिया महाद्वीप के इन क्षेत्रों में पौधों की लगभग 54416 प्रजातियाँ पायी जाती हैं जिनमें से 28209 प्रजातियाँ स्थानिक (Endemic species) (सारणी 2)। स्तनपायी की कुल 1253 प्रजातियाँ पायी जाती हैं जिनमें से 275 प्रजातियाँ स्थानिक हैं।
सरीसृप (रेप्टाइल) एवं उभयचर (एम्फीबियन) की कुल 2230 प्रजातियाँ पायी जाती हैं जिनमें से 1191 प्रजातियाँ स्थानिक हैं। इसी प्रकार ताजे पानी की मछलियों की 2672 प्रजातियाँ पायी जाती हैं जिनमें से 1075 प्रजातियाँ स्थानिक हैं। भारत के जलक्षेत्र में 13 हजार लुप्तप्राय प्रजातियों की गणना की गई है।
जैवविविधता संरक्षण (Biodiversity Conservation)
सारणी 2- घोषित हॉट स्पॉट क्षेत्रों का विवरण जिनमें भारतीय क्षेत्र सम्मिलित हैं | ||||
| हिमालय क्षेत्र | इंडो-बर्मा क्षेत्र | वेस्टर्न घाट क्षेत्र | सुंडालैंड क्षेत्र (निकोबार द्वीप समूह) |
मूल क्षेत्र (किमी2.) | 741,706 |
| 2,373,057 | 189,611 |
शेष हरित क्षेत्र (किमी2.) |
| 185,427 |
| 118,653 |
स्थानिक पौधों की प्रजातियाँ | 3,160 | 7,000 | 3,049 | 15,000 |
स्थानिक पक्षियों की संकटग्रस्त प्रजातियाँ | 8 | 18 | 10 | 43 |
स्थानिक स्तनपायीयों की संकटग्रस्त प्रजातियाँ | 4 | 25 | 14 | 60 |
स्थानिक उभयचरों की संकटग्रस्त प्रजातियाँ | 4 | 35 | 87 | 59 |
विलुप्त प्रजाति | 0 | 1 | 20 | 4 |
जनसंख्या घनत्व (व्यक्ति/किमी.) | 123 | 134 | 261 | 153 |
संरक्षित क्षेत्र (किमी.2) | 112,578 | 235,758 | 26,130 | 179,723 |
संरक्षित क्षेत्र वर्ग I-IV* (किमी.2) | 77,739 | 132,283 | 21,259 | 77,408 |
सम्मेलन में इस तथ्य को उल्लेखित किया गया कि जैविविविधता सिर्फ पौधों, जानवरों एवं सूक्ष्म जीवों तक ही सीमित नहीं है अपितु वहाँ के नागरिक एवं उनके भोजन, सुरक्षा, दवाईयाँ, शुद्ध वायु एवं जल तथा शुद्ध एवं स्वस्थ पर्यावरण की आवश्यकता की भी पूर्ति करती है।
इन सम्मेलनों का प्रमुख उद्देश्य संबंंधित राष्ट्रों के अपने संसाधनों पर संप्रभु अधिकार की पुष्टि करना है। सम्मेलन का एक जिम्मेदार एवं महत्त्वपूर्ण भागीदार राष्ट्र होने के कारण भारत ने जैवविविधता संरक्षण के लिये जैवविविधता जैवविविधता अधिनियम (2002) और जैवविविधता नियम (2004) को लागू कर अपना उत्तरदायित्व निभाया है। इस तरह भारत जैवविविधता संरक्षण संबंधी नियम एवं कानून बनाने वाले चुनिन्दा राष्ट्र मंे से एक है। भारत ने जैवविविधता संरक्षण संबंधी नियम एवं कानून बनाने वाले चुनिन्दा राष्ट्रों में से एक है। भारत ने जैवविविधता अधिनियम (2002) के अंतर्गत चेन्नई में जैवविविधता प्राधिकरण को जैवविविधता अधिनियम एवं जैवविविधता नियम के प्रावधानों एवं नियमों को क्रियान्वयन/लागू करने का कार्य सौंपा गया। जैवविविधता की समग्र वृद्धि (Holistic growth) हेतु जैवविविधता नियम में यह सुनिश्चित किया गया है कि पारंपरिक जैवविविधता की बुद्धिमत्ता पूर्ण हस्तान्तरण (Intellectual transfer) की व्यवस्था की जाए। जैवविविधता से संबंधित परम्परागत ज्ञान पर नियंत्रण रखते हुए उनके प्रयोग से होने वाले लाभ को संबंधित लोगों के मध्य समान रूप से वितरित करने की व्यवस्था की गई है। इसी के तहत भारत सरकार ने कई महत्त्वपूर्ण फसलों एवं पौधों की प्रजातियों को संरक्षित करने के लिये दिल्ली में एक नेशनल जीन बैंक की भी स्थापना की है।
जैवविविधता से संबंधित संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के भागीदार देशों के मध्य पार्टी के सम्मेलन (Convention of Parties) का आयोजन किया जाता है। जिनमें जैवविविधता संरक्षण से संबंधित मुद्दों पर चर्चा की जाती है। पार्टी के सम्मेलन (Convention of Parties) की पहली बैठक 28 नवम्बर से 9 दिसम्बर 1994 को बहामास में संपन्न हुई थी। तब से अब तक उसकी कुल 11 बैठकें संपन्न हो चुकी हैं। जापान के आयेची (Aichi) प्रान्त के नागोया (Nagoyaa) में 18-29 अक्तूबर 2010 को संपन्न हुए पक्षकारों के सम्मेलन (Conference of Parties or COP) की दसवीं बैठक में जैवविविधता के लिये एक नई एवं संशोधित सामरिक (स्ट्रैटीजिक) योजना को अपनाने का निर्णय लिया गया। इसी के तहत वर्ष 2010 में अन्तरराष्ट्रीय जैवविविधता वर्ष एवं 2011-2020 को जैवविविधता दशक के रूप में घोषित किया गया है। साथ ही इस बैठक में 2011-2012 की अवधि के लिये आयेची जैवविविधता लक्ष्य (Aichi Bio-diversity target) को भी सम्मिलित किया गया है।
आयेनी जैवविविधता लक्ष्य के अनुसार, सभी प्राकृतिक निवास जिसमें जंगल भी शामिल हैं, की ह्रास की दर को जहाँ तक संभव हो न्यूनतम किया जाए या ह्रास की दर को कम से कम आधा किया जाय। स्थलीय एवं अंतर्देशीय जल क्षेत्र के 17 प्रतिशत और समुद्री एवं तटीय क्षेत्र के 10 प्रतिशत भाग के संरक्षण का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। साथ ही साथ संरक्षण एवं पुनर्स्थापना की सहायता से अवक्रमित (डीग्रेडेड) क्षेत्र के कम से कम 15 प्रतिशत भाग की पुनर्स्थापना का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। प्रवाल भित्तियों (Coral reef) पर से दबाव को न्यूनतम करने हेतु विशेष प्रयास करने की प्रतिबद्धता (Commitment) भी इसमें जताई गई है।
11वीं पार्टी का सम्मेलन (COP) हैदराबाद (भारत) में अक्तूबर, 2012 को संपन्न हुआ जिसमें निर्माण एवं विकास की अन्य परियोजनाओं (Other developmental project) के ई.आई.ए. में जैवविविधता के नए पैमाने को समाहित करने का निर्णय लिया गया। साथ ही वैश्विक समुदाय ने जैवविविधता ह्रास को रोकने के लिये वित्तीय सहायता पर भी चर्चा की। आयेची जैवविविधता लक्ष्य की समीक्षा की गई एवं इसके प्राप्ति के प्रति प्रतिबद्धता पुनः दुहराई गई।
सारणी 3 - जैवविविधता संरक्षण हेतु प्रमुख अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन एवं उनका उद्देश्य | ||
सम्मेलन | तिथि | उद्देश्य/विषय |
रामसर सम्मेलन | फरवरी 2, 1971 | वर्ष 1971 में संपन्न हुये अन्तरराष्ट्रीय महत्व की आर्द्र भूमि पर सम्मेलन को रामसर सम्मेलन कहते हैं। यह एक अन्तरशासकीय (Intergovernmental) संधि है। रामसर सम्मेलन का उद्देश्य आर्द्र भूमि एवं इसके संसाधनों (रिर्सोसेर्ज) का स्थानीय एवं राष्ट्रीय कार्य योजनाओं और अन्तररष्ट्रीय सहभागिता के द्वारा संरक्षण और बुद्धिमता पूर्ण उपयोग करते हुये सतत विकास हेतु एक ढाँचा उपलब्ध कराना है।
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विश्व विरासत सम्मेलन | नवम्बर 16, 1972 | वर्ष 1972 में यूनेस्कों की आम सम्मेलन में विश्व की प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक विरासत को सहेजने/संरक्षण पर एक अन्तरराष्ट्रीय संधि को स्वीकृति प्रदान की गई है। यह सम्मेलन इस तथ्य पर आधारित है कि पृथ्वी के कुछ स्थान उत्कृष्ट सार्वभौमिक महत्व के हैं एवं मानवजाति की साझी विरासत का हिस्सा है। अतः इनका संरक्षण देश की सीमाओं के परे अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर किया जाना चाहिए।
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वन्य जीव एवं पौधों की संकटग्रस्त प्रजातियों के अन्तरराष्ट्रीय व्यापार पर सम्मेलन | जुलाई 1, 1975 | वन्य जीव और वनस्पति की लुप्तप्राय प्रजातियों के अन्तरराष्ट्रीय व्यापार पर सम्मेलन एक संधि/सहमति है जो विश्व की विभिन्न सरकारों के मध्य वन्य जीवों और वनस्पतियों के अन्तरराष्ट्रीय व्यापार को नियंत्रित करने हेतु की गई है। इस संधि में यह सुनिश्चित किया गया है कि जीवों के अन्तरराष्ट्रिय व्यापार को नियंत्रित करने हेतु की गई है। इस संधि में यह सुनिश्चित किया गया है कि जीवों के व्यापार को सीमित या पूर्ण रूप से प्रतिबंधित किया जा सकता है। |
प्रवासी पक्षी पर सम्मेलन | जून 23, 1979 | प्रवासी पक्षी पर सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र संघ आधारित एक वैश्विक मंच तैयार करना था जिसके द्वारा प्रवासी जीवों की विभिन्न प्रजातियों का समुचित तरीके से संरक्षण एवं प्रबंधन सुनिश्चित किया जा सके। इस सम्मेलन पर जर्मनी के बोन शहर में हस्ताक्षर किये गये थे इसलिये इसे बोन कन्वेशन भी कहते हैं। |
जैविक विविधता पर सम्मेलन | दिसम्बर 29,1993 | इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य जैविक विविधता का संरक्षण करना एवं इसके अवयव का सतत तरीके से उपयोग करना है। विभिन्न आनुवंशिक स्रोतों से उत्पन्न लाभों का समान एवं न्यायपूर्ण तरीके से साझा करना है। साथ ही संबंधित तकनीकियों का उचित तरीके से हस्तानान्तरण करना भी शामिल है। |
खाद्य और कृषि के लिये पादप आनुवंशिक संसाधन पर अन्तरराष्ट्रीय संधि | नवम्बर 3, 2001 | इस संधि का मुख्य उद्देश्य विश्व के किसानों का फसलों की विविधता के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान की पहचान करना एवं किसानों, पौधों के प्रजनकों और वैज्ञानिकों को पौधों के आनुवंशिक सामग्री के उपयोग के लिये एक वैश्विक प्रणाली की स्थापना करना है। इस संधि में इस बात का आश्वासन दिया गया है कि आनुवंशिक सामग्री के उपयोग से प्राप्त हुये लाभ को उस देश के साथ साझा किया जाये जहाँ से वह आनुवंशिक सामग्री मूल रूप से प्राप्त की गई है। |
जैवविविधता संरक्षण हेतु भारत सरकार द्वारा किये गये महत्त्वपूर्ण उपाय
जैवविविधता संरक्षण में उपयोगी कुछ प्रमुख नियम एवं कानून
सारणी 4- भारत के जैवविविधता संरक्षण में उपयोगी प्रमुख नियम एवं कानून एवं उनके प्रमुख उद्देश्य/उपयोगिताएँ | ||
क्रमांक | नियम/कानून | उद्देश्य/उपयोगिताएँ |
1. | भारतीय वन अधिनियम (1927) | इस अधिनियम का उपयोग जंगल से संबंधित समेकित कानून बनाने में किया जाता है लकड़ी एवं अन्य वन से प्राप्त उत्पादों पर कर एवं शुल्क निर्धारण और इन उत्पादों का परिवहन भी इसी के तत्वाधान में किया जाता हैं।
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2. | वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम (1972), संशोधन (2003) | वन्य जीवों के संरक्षण एवं इनके अवैध शिकार को रोकने के प्रावधान इस अधिनियम में किये गए हैं। इस अधिनियम के तहत वन्य जीवों एवं वन्य जीवों के किसी भी अंग का व्यापार प्रतिबंधित है। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण संरक्षित क्षेत्रों एवं महत्त्वपूर्ण वनस्पतियों और जीवों को सुरक्षा प्रदान करना है। |
3 | वन (संरक्षण) अधिनियम (1980), संशोधन (1988) एवं (2003) | भारतवर्ष के वनों का संरक्षण इसी अधिनियम के तहत किया जाता है। वनों को नुकसान पहुँचाने वाले कार्यों को प्रतिबंधित एवं नियंत्रित किया जाता है। वन क्षेत्रों का उपयोग गैर-वन (Non-Forest) कार्य के लिये वन संरक्षण अधिनियम के तहत केन्द्र सरकार की अनुमति प्राप्त करना होता है। इससे संबंधित प्रक्रिया इसमें वर्णित की गई हैं। |
4 | पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम (1986), संशोधन (1991) | पर्यावरण संतुलन को बनाये रखने के साथ पर्यावरण संरक्षण/पर्यावरण गुणवत्ता एवं पर्यावरण प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये इस अधिनियम के तहत ही पर्यावरण एवं वन मंत्रालय औद्योगिक इकाइयों के कार्य को आवश्यकतानुसार किसी क्षेत्र में सीमित या प्रतिबंधित करता है, भाग-3(2)(V)। |
4.1 | पर्यावरण (संरक्षण) नियम (1986) | केंद्र सरकार औद्योगिक इकाइयों के कार्य या कार्य क्षेत्र को जैविक विविधता दुष्प्रभावित होने की स्थिति में (उपबंध-V) क्षेत्र में विभिन्न प्रदूषणकारी तत्वों की मात्रा स्वीकार्य सीमा से अधिकतम होने की स्थिति में (उपबंध-II), पर्यावरण के अनुकूल भूमि उपयोग होने पर (उपबंध-VI) एवं संरक्षित क्षेत्र से निकटता (उपबंध-VIII) के आधार पर पर्यावरण (संरक्षण) नियम (1986) के तहत सीमित या प्रतिबंधित करता है, भाग-5 (I) । |
5 | जैवविविधता अधिनियम (2002) एवं जैवविविधता नियम (2004) | जैवविविधता पर सम्मेलन द्वारा संबंधित राष्ट्रों के अपने संसाधनों पर संप्रभु अधिकार की मान्यता देती है। इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति हेतु भारत सरकार ने जैवविविधता अधिनियम (2002) एवं नियम (2004) को लागू किया है। इस अधिनियम के तहत जैवविविधता एवं इससे संबंधित ज्ञान का संरक्षण किया जाता है साथ ही सतत तरीके से इनके उपयोग को भी सुनिश्चित किया जाता है। जैवविविधता अधिनियम के अंतर्गत चेन्नई में राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण की स्थापना की गई है। |
6 | अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वनवासी (वन्य अधिकारों की मान्यता) अधिनियम (2006) | यह अधिनियम अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वनवासियों को उनके वन संबंधित अधिकारों को मान्यता देने का कार्य करता है।
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जैवविविधता अधिनियम (2002) राष्ट्रीय महत्व के संरक्षित पौधों एवं जीव-जंतुओं के संरक्षण के लिये एक वृहद एवं प्रभावशाली कानून के रूप में सामने आया है। जैवविविधता अधिनियम के तहत केन्द्र सरकार को जैवविविधता से परिपूर्ण क्षेत्रों की पहचान करना एवं मॉनीटर करने का कार्य निर्धारित किया गया है ताकि जैवविविधता का संरक्षण एवं संवर्धन किया जा सके एवं जरूरत पड़ने पर इसका सतत उपयोग भी किया जा सके।
जैवविविधता पर प्रतिकूल प्रभाव की संभावना वाली परियोजनाओं के प्रभाव निराकरण के लिये उपाय करने एवं नीति निर्धारण में जनता की भागीदारी को सुनिश्चित कराना साथ ही जैवविविधता से परिपूर्ण क्षेत्र में उनके दोहन एवं दुरुपयोग होने कि स्थिति में राज्य सरकारों को तत्काल सुधारक उपाय करने हेतु सहायता या निर्देश देने का कार्य केंद्र सरकार करती है। जैवविविधता के महत्व वाले क्षेत्र को विरासतीय क्षेत्र (Heritage site) करने का कार्य राज्य सरकार का है जिसे वह स्थानीय निकाय एवं आवश्यकता पड़ने पर केंद्र सरकार से विमर्श कर निर्धारित करता है। राज्य सरकार विलुप्त एवं विलुप्तिकरण के संभावित खतरे से प्रभावित जातियों एवं प्रजातियों के संरक्षण और पुनर्स्थापना हेतु केंद्र सरकार से विमर्श कर आवश्यक उपाय करती है। जैवविविधता से संबंधित गतिविधियों एवं जैविक संसाधनों के प्रयोग में सभी घटकों की संयुक्त सहभागिता एवं संपोषण के बारे में भारत सरकार को सलाह देना राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण का प्रमुख कार्य है।
सारणी 5- पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की प्रतिबंधित/नियंत्रित/मान्य गतिविधियाँ | |||||
क्र.सं. | कार्य | प्रतिबंधित | नियंत्रित | मान्य | विशेष |
1. | औद्योगिक खनन | हाँ | - | - | घरों की मरम्मत एवं निर्माण तथा घर के लिये ईंट बनाने में मिट्टी की खुदाई की अनुमति प्रदान की गई है |
2. | प्रदूषण करने वाले उद्योगों की स्थापना | हाँ | - | - | - |
3. | होटल एवं रिसार्ट्स की स्थापना | - | हाँ | - | - |
4. | वृहद पनबिजलीघर की स्थापना | हाँ | - | - | - |
5. | विदेशी प्रजातियों का आगमन | - | हाँ | - | - |
6. | जलाऊ लकड़ी का व्यापारिक उपयोग | हाँ | - | - | होटल एवं अन्य औद्योगिक स्थापना में इनके उपयोग होने की स्थितियों में |
7. | सड़क का चौड़ीकरण | - | हाँ |
| कार्य के पहले पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (ई.आई.ए.) और बचाव के उपाय को लागू करना आवश्यक है। |
8. | पेड़ों का काटना | - | हाँ |
| संबंधित विभागों से अनुमति प्राप्त करनी होगी |
9. | कृषि तंत्र में बड़ा परिवर्तन | - | हाँ | - | - |
10. | प्राकृतिक जल संसाधन एवं भूगर्भ जल का व्यापारिक उपयोग | - | हाँ | - | वन्य जीवों की गतिविधियों को नियंत्रण मुक्त एवं वहाँ के निवासियों का ध्यान रखते हुये प्राकृतिक जल एवं भूगर्भ जल संसाधन के उपयोग की अनुमति है। |
11. | स्थानीय समुदाय द्वारा की जा रही कृषि एवं बागवनी | - | - | हाँ | परन्तु कार्य का विस्तार अधिक होने इन परियोजनाओं को मास्टर प्लान के तहत नियंत्रित किया जाता है। |
12. | वर्षा जल संचयन | - | - | हाँ | अनुमोदित/सर्वमान्य |
13. | बिजली के तार बिछाना | - | हाँ | - | अंतरस्थलीय बिजली के तार बिछाने की प्रक्रिया अनुमोदित |
14. | रात्रि में वाहनों की गतिविधियाँ | - | हाँ | - | वाणिज्यिक उपयोग हेतु |
15. | हानिकारक पदार्थों का उपयोग एवं उत्पादन | हाँ | - | - | - |
16. | पहाड़ी ढलानों एवं नदी तटों का संरक्षण | - | हाँ | - | मास्टर प्लान के तहत नियंत्रित किया जाता है |
17. | वायु एवं वाहनों द्वारा प्रदूषण | - | हाँ | - | - |
18. | विदेशी/बाहरी प्रजातियों का आगमन | - | हाँ | - | - |
इको-सेंसिटिव जोन (Eco-sensitive Zone)
बफर जोन (Buffer zone)
सारणी 6- प्रस्तावित बफर जोन के लिये सुझाए गए मापदण्ड
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श्रेणियाँ | क्षेत्रफल (किमी)2 | प्रतिबंधित क्षेत्रों की संख्या | कुल क्षेत्रफल (किमी)2 | कुल संरक्षित क्षेत्र का प्रतिशत भाग | प्रस्तावित बफर जोन की दूरी (किमी) |
D | 500 एवं अधिक | 73 | 101389 | 63.4% | 2 |
B | 200-500 | 115 | 38942 | 24.37% | 1 |
C | 100-200 | 85 | 12066 | 7.55% | 0.5 |
A | 100 या कम | 344 | 7422 | 4.65% | 0.1 |
(केन्द्रीय उच्चाधिकार प्राप्त समिति CEC) 2012 |
सारणी 7- बफर जोन के अंतर्गत विभिन्न प्रतिबंधित/नियंत्रित गतिविधियाँ [(CEC), 2012] | |||
क्र.सं. | कार्य/गतिविधियाँ | प्रतिबंधित | नियंत्रित |
1. | खनन पट्टा नवीकरण/अनुदान | हाँ | - |
2. | पत्थर कंकड़ एवं नदी से बालू का उत्खनन | - | हाँ |
3. | हानिकारक उद्योग | हाँ | - |
4. | ईंट भट्टा | हाँ | - |
5. | लकड़ी आधारित उद्योग (एम.डी.फ./पार्टिकल बोर्ड को छोड़कर) | हाँ |
|
6. | होटल एवं रेस्टोरेंट (रिसोर्ट) | - | हाँ |
7. | सड़क निर्माण (5 मीटर से ज्यादा चौड़ाई) | - | हाँ |
8. | औद्योगिक हेलीकॉप्टर सेवा | - | हाँ |
9. | पनबिजलीघर परियोजना | - | हाँ |
10. | सिंचाई परियोजना, नहर परियोजना | - | हाँ |
11. | ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन लाइन (>33kv) | - | हाँ |
पार्क एवं सेंचुरी की सीमा के 10 किमी. के परिधि क्षेत्र को राष्ट्रीय वन जीव बोर्ड द्वारा इको-सेंसिटिव क्षेत्र घोषित करने के निर्णय पर आपतियों/सुझाव के कारण सर्वोच्च न्यायालय के तत्वाधान में केन्द्रीय उच्चाधिकार संपन्न समिति (Central Empowered commitee) ने इको-सेंसिटिव क्षेत्रों के लिये बफर जोन बनाने का सुझाव दिया है। केन्द्रीय उच्चाधिकार संपन्न समिति (CEC) ने भारत के 102 नेशनल पार्क एवं 515 वाइल्डलाइफ सेंचुरी के लिये, क्षेत्रफल के अनुसार वर्गीकृत कर बफर जोन के निर्धारण के लिये मापंदड बनाया है (सारणी 6)। प्रस्तावित बफर जोन में कुछ गतिविधियों प्रतिबंधित हैं एवं कुछ को नियंत्रण के साथ अनुमति प्रदान करने का प्रावधान किया गया है (सारणी 7)।
सड़क निर्माण परियोजनाओं का पर्यावरण पर प्रभाव
सड़क एवं राजमार्गों के निर्माण का जैवविविधता पर प्रभाव
सारणी 8 - सड़क परियोजनाओं की विभिन्न गतिविधियों का पर्यावरण एवं वन्यजीवों पर प्रभाव | ||
क्र.सं. | गतिविधियाँ एवं क्रियाकलाप | पर्यावरण एवं वन्यजीवों पर प्रभाव रूप रेख
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रूप-रेखा | ||
1. | सड़क मार्गों का चुनाव, पुलिया तथा सुरंग हेतु भूमि अधिग्रहण | जीवों के प्राकृतिक आवास का विलोपन एवं इनके कारोबार में वृद्धि
|
2. | स्थानीय निवासियों की खेती-बाड़ी एव उपजाउ भूमि का अधिग्रहण, परियोजना से विस्थापित होने वाले व्यक्तियों/ परिवारों में का पुनः स्थापना एवं पुनर्वास | पुनः स्थापना एवं पुनर्वास के लिये नई जमीन की आवश्यकता जिससे जीवों के प्राकृतिक आवास का विलोपन एवं विखंडन, जैविक विविधता में ह्रास और प्रजातियों की संरचना भिन्नता |
निर्माण कार्य | ||
3. | पेड़-पौधों एवं वनस्पतियों को काटना | वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास का विलोपन, वनाच्छादित क्षेत्र में कमी एवं प्राकृतिक सुंदरता में कमी |
4. | श्रमिक निर्माण शिविर एवं सहायक ढाँचे की स्थापना | परियोजना के मजदूरों द्वारा संसाधनों का उपयोग जिससे स्थानीय प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव एवं प्राकृतिक आवास में बदलाव, अवसादन के प्रति संवेदनशील प्रजातियों का विलोपन एवं पोषक तत्वों के चक्रण का बाधित होना और बाहरी प्रजातियों की घुसपैठ |
5. | नदी-नालों का पथान्तरण एवं विभक्तिकरण | स्थलीय एवं भूमिगत जल प्रवाह का रूपांतरण एवं संबंधित दुष्प्रभाव, जीवों का दैनिक एवं प्रवास मार्गों में परिवर्तन |
6. | तालाब एवं आर्द्र भूमि का भराव | तालाबों की जल संग्रहण की क्षमता में कमी, वर्षा जल में प्रदूषण एवं अवसादन से ग्रहण जल की गुणवत्ता में ह्रास, भूमिगत जल की गुणवत्ता एवं मात्रा में कमी। आर्द्र भूमिय जैवविविधता में कमी |
7. | निर्माण कार्य हेतु जल का उपयोग | सतही एवं भूमिगत जल की गुणवत्ता एवं मात्रा में कमी और जल संतुलन में बदलाव |
8. | कच्चे माल, मिटटी आदि की ढुलाई | मिटटी का संघनन, उपजाऊ मृदा का क्षय, मिट्टी संरक्षण क्षमता एवं जल की पारगम्यता में कमी। घने वन में मानव पहुँच एवं वन्यजीवों का शिकार और जंगली आग का भय |
9. | खुदाई एवं भराव | भूमि की उर्वरता में कमी और ढाल एवं मृदा क्षरण का असंतुलन। सतही वनस्पति का विलोपन और वन्य जीवों पर दबाव |
10. | विस्फोट, पत्थरों की कटाई एवं तुडाई या सुरंग निर्माण | पर्वतीय ढालों से मिट्टी का व्यापक बहाव। पहाड़ों के ढलान की स्थिरता पर दुष्प्रभाव जल के प्राकृतिक प्रवाह में परिवर्तन एवं जल भराव की आशंका। वन्य जीवों के संसाधनों का दोहन |
11. | सड़क का सतहीकरण और पुलिया एवं सुरंग का निर्माण | मिट्टी कटाव एवं भराव मात्रा में अंतर के कारण अनुपयोगी पदार्थ का संचय। पुलिया एवं सुरंग के निर्माण के कारण नदी किनारों एवं तलछट की नम भूमि के चरित्र में बदलाव |
12. | अनुपयोगी शेष पदार्थ का परिवहन | मिट्टी का संघनन, उपजाऊ मृदा का क्षय। अनुपयोगी शेष पदार्थ एवं मिट्टी वर्षाजल के द्वारा सतही जल भंडार में गाद के रूप में एकत्रित होता जाता है। |
प्रयोग काल | ||
13. | वाहनों की गतिविधियाँ | वाहनों से होने वाले प्रदूषण के कारण वन्यजीवों के स्वास्थ्य में ह्रास। वाहनों से सीधी टक्कर में वन्यजीवों की मौत एवं आवास का विखंडन जिसके कारण जनंसख्या में गिरावट एवं आनुवांशिकी विविधता में कमी। सीमित संसाधनों के उपभोग हेतु वन्यजीवों के मध्य टकराव। |
14. | वायु प्रदुषण | धूल कण NOx, Sox, PM10, CO, HC इत्यादि के उत्सर्जन के कारण वायु प्रदूषण में वृद्धि होना जिसका पौधों एवं जीवजंतुओं पर दुष्प्रभाव पड़ता है। |
15. | जल प्रदूषण | सड़क पर उपस्थित हानिकारक प्रदूषक वर्षाजल के प्रवाह के साथ सतही जल भंडार को प्रदूषित करते हैं साथ ही साथ भूजल पर भी दुष्प्रभाव डालते हैं। |
16. | ध्वनि प्रदूषण | वन्यजीवों का सड़क से दूर जाना एवं केन्द्रीकरण होना, गुटों का अलगाव जिसके फलस्वरूप उनके व्यवहार में परिवर्तन होता है। सड़क पार करते समय अक्सर हॉर्न की आवाज सुनकर जानवर डर जाते हैं एवं दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं वाहनों के ध्वनि प्रदूषण से जीव-जंतुओं एवं पछियों के मध्य संचार में गतिरोध होता है। जिसका उनके व्यवहार एवं प्रजनन पर दुष्प्रभाव पड़ता है। |
17. | सड़क का रख-रखाव | ईंधन से उत्पन्न कण एवं अनुपयोगी शेष पदार्थों के कारण प्रदूषण एवं उससे संबंधित दुष्प्रभाव। |
18. | सड़क सुरक्षा | वाहनों एवं जीवों के मध्य टक्कर में जीवों की मौत और वाहनों की दुर्घटनाओं में वृद्धि |
रोड ट्रेप (Road Trap)
सारणी 9- सड़क परियोजनाओं से प्रभावित क्षेत्र, प्रभाव एवं प्रभावित प्रजातियाँ
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क्र.सं. | रोड/प्रोजेक्ट | प्रभावित क्षेत्र | प्रभाव | प्रभावित प्रजातियाँ |
1 | दुधवा गोरिफानता और धुधवा चन्दनचवकी मार्ग | दुधवा टाइगर रिजर्व क्षेत्र, (उत्तर प्रदेश) | आवास का विखंडन एवं विलोपन, घास-भूमि का विलोपन | बाघ, बारहसिंघा (swamp deer) आदि |
2. | इंदिरा गांधी वन्यजीव अभयारण्य की सड़क (IGWS) | इंदिरा गांधी वन्यजीव अभयारण्य | रोड-कील एवं आवास का विखंडन एवं अनामालैस जंगल क्षेत्र (तमिलनाडु) | पैर विहीन उभयचर, शल्क पूछी सर्प, कांटेदार चूहा, स्मॉल किवेट कैट, व साम्भर |
3. | मुंबई-पुणे एक्सप्रेस | पश्चिमी घाट बंदरगाह का उष्ण कटिबंधीय वन (वेस्टर्न घाट, समुद्र, तट, डेक्केन, पठार) | संवेदनशील प्राकृतिक आवास का विखंडन एवं ह्रास | माउस डियर, बड़ी गिलहरी एवं स्थानिक प्रजातीय |
4. | पूर्वी-पश्चिमी व उत्तरी-दक्षिणी उच्च मार्ग, ग्रेट निकोबार द्वीप समूह | ग्रेट निकोबार द्वीप समूह का सागर तट | कछुओं के प्रजनन क्षेत्र का विलुप्तिकरण एवं उनका शिकार | सागरीय जीव जंतु एवं समुद्री कछुआ |
5. | राष्ट्रीय राजमार्ग (NH-7) (पेंच टाइगर रिजर्व) | मध्य भारत की सुदूर आर्द्र एवं शुष्क पर्णपाती वन और पेंच टाइगर रिजर्व वन क्षेत्र (म.प्र. और महाराष्ट्र) | संवेदनशील प्राकृतिक वन क्षेत्र और रोड-कील | बाघ एवं अन्य वन्य जीवों की सड़क दुर्घटना में मृत्यु |
6. | टाला – सड़क मार्ग परियोजना | बक्सा टाइगर रिजर्व वन क्षेत्र (BTR), अलीपुर द्वार, (पश्चिम बंगाल) | संवेदनशील प्राकृतिक वन आवास का विखंडन एवं विलोपन | बड़ी गिलहरी, बाघ, तेंदुआ एवं हाथी |
7. | देहरादून-दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग (NH-58) | राजाजी राष्ट्रीय पार्क एवं देहरादून के जंगल | प्राकृतिक आवास का विखंडन एवं हाथियों के कोरिडोर में रुकावट | हाथी एवं अन्य वन्य जीव |
भारत में सड़क/राजमार्ग परियोजनाओं का पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (Environmental Impact Assessment of Road/High-way Projects in India)
स्क्रीनिंग:
पूर्व पर्यावरणीय अनापत्ति की अपेक्षा वाले सड़क एवं राजमार्ग की परियोजनाओं की स्क्रीनिंग में फार्म- 1 से प्राप्त जानकारियाँ (जैसे-राइट ऑफ द वे (RoW ) , भूमि समतलीकरण, पेड़ों की कटाई, पुलों एवं सुरंगों की संख्या और भू-गर्भीय एवं स्थलीय जल के प्रवाह में बदलाव इत्यादि) एवं परियोजना क्षेत्र की पर्यावरणीय संवेदनशीलता और प्रभाव के आधार पर विशेषज्ञ आकलन समिति (एक्सपर्ट अप्रेजल कमेटी) या राज्य स्तरीय विशेषज्ञ आकलन समिति (जो भी लागू हो) द्वारा निर्धारित मानदंडों के अंतर्गत सड़क परियोजनाओं को विधिसम्मत रूप से प्रवर्ग ‘क’, ‘ख’ एवं ‘ख’2 में वर्गीकृत करती है। श्रेणी ‘ख’ में वर्णित सड़क परियोजनाओं के लिये पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन रिपोर्ट अनिवार्य होता है एवं श्रेणी ‘ख2’ के लिये पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन रिपोर्ट अनिवार्य नहीं होती है। सड़क परियोजनाओं के वर्गीकरण के समय परियोजनाओं के उन क्रिया-कलापों का भी ध्यान रखा जाता है। जिनका जैवविविधता पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दुष्प्रभाव पड़ता है। परियोजना के किसी कार्य का स्थानीय एवं प्रमुख पौधों या जीवों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दुष्प्रभाव पड़ने की स्थिति में उस परियोजना का विस्तृत पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन जरूरी हो जाता है।
विस्तारण (स्कोपिंग):
सड़क के आधुनिकीकरण या विस्तार एवं निर्माण के लिये विशेषज्ञ आकलन समिति अथवा राज्यस्तरीय विशेषज्ञ आकलन समिति (जो भी लागू हो) सभी प्रासंगिक पर्यावरणीय चिन्ताओं को ध्यान में रखते हुए ई.आई.ए. रिपोर्ट के लिये एक विस्तृत एवं व्यापक कार्य अवधारित (टर्म ऑफ रेफरेंस) का निर्धारण करती है। परियोजना के विभिन्न क्रिया-कलापों एवं उनके कारण पर्यावरण में होने वाले संभावित परिवर्तन के दुष्प्रभाव के प्रकार एवं परिमाण को ध्यान में रखते हुए व्यापक कार्य अवधारित (ToR) का निर्धारण किया जाता है परियोजनाओं के लिये ToR के आधार पर परियोजना का पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन किया जाता है। पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन के अंतर्गत जैविक विविधता का अध्ययन करते समय प्रभावित क्षेत्र में उपलब्ध जीवों की प्रजातियों के प्रकार, कौन सी प्रजाति बहुतायत में है एवं प्रमुख प्रजाति के विषय में जानकारी एकत्रित कि जाती है। साथ ही जीवों के मध्य आपसी संबंध भी ज्ञात किये जाते हैं। प्रभावित पारिस्थितिकी तंत्र के मूल्यांकन हेतु सर्वप्रथम यह अध्ययन किया जाता है कि उपलब्ध जीवों का जीवन-चक्र नयी सड़क की वजह से किस प्रकार प्रभावित हो रहा है।
लोक परमार्श (पब्लिक कंसल्टेशन):
लोक परामर्श पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन की महत्त्वपूर्ण एवं प्रभावी प्रक्रिया वर्ग ‘क’ एवं ‘ख1’ की सड़क आधुनिकीकरण या विस्तार एवं निर्माण से संबंधित सभी परियोजनाओं के लिये अनिवार्य है। इस चरण में प्रभावित एवं स्थानीय व्यक्तियों की आपत्तियों एवं सुझाव को सम्मिलित किया जाता है एवं उनके मत एवं संबंधित पर्यावरणीय मुद्दे को जाना जाता है। स्थानीय निवासी आस-पास की जैवविविधता से संबंधित मौलिक ज्ञान उपलब्ध कराते हैं जिनसे प्रजातियों की सूची एवं पारिस्थितिकी तंत्र की बनावट एवं कार्य की जानकारी प्राप्त होती है।
आकलन (अप्रेजल):
पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन रिपोर्ट में प्रभावित स्थानीय व्यक्तियों की आपत्तियों एवं सुझावों को सम्मिलित कर विस्तृत ई.आई.ए. रिपोर्ट को एक्सपर्ट अप्रेजल कमेटी आकलन करती है तथा ‘पूर्व पर्यावरण अनापत्ति’ प्रमाण-पत्र (एनवायर्नमेंटल क्लियरेंस) प्रदान करने की अनुशंसा करती है। परियोजना को सहमति प्रदान करने का अंतिम निर्णय राजनैतिक होता है। परियोजना को सहमति न मिलने की स्थिति में परियोजना के प्रारूप को परिवर्तित कर अनापत्ति प्रमाण-पत्र (एनवायर्नमेंटल क्लियरेंस) के लिये दोबारा प्रस्तुत किया जाता है परियोजना के ई.आई.ए. प्रक्रिया के दौरान आर्थिक, सामाजिक एवं पर्यावरणीय मुद्दों पर निर्णय प्रक्रिया में पारदर्शिता होती है तथा निर्णय प्रक्रिया के दौरान राष्ट्रीय अन्तरराष्ट्रीय, एवं स्थानीय कानूनों और नियमों का अनुपालन किया जाता है। निर्णय लेने की पूरी प्रक्रिया के दौरान जैवविविधता संरक्षण एक महत्त्वपूर्ण मुददा होता है। इसलिये परियोजना का निर्णय लेते समय जैवविविधता के मुद्दे पर सही एवं विस्तृत परिप्रेक्ष्य से विमर्श किया जाता है।
निष्कर्ष
आभार
संदर्भ
सम्पर्क
संजीव कुमार सिंहा, नीरज शर्मा, रजनी ध्यानी एवं अनिल सिंह, Sanjiv Kumar Sinha, Niraj Sharma, Rajni Dhyani & Anil Singh
पर्यावरण विज्ञान विभाग, सीएसआईआर-केन्द्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली 110025, Environmental Science Division, CSIR- Central Road Research Institute, New Delhi 110025