प्रतिमत: केन-बेतवा नदी परियोजना से जुड़ी चुनौतियाँ और भविष्य की राह
भारत में जल संसाधनों का असमान वितरण देश की आर्थिक और सामाजिक प्रगति में बाधा बनता रहा है। कुछ क्षेत्र पानी की प्रचुरता का सामना करते हैं, तो कुछ क्षेत्र जल संकट से जूझते हैं। इस समस्या के समाधान की दिशा में नदियों को जोड़ने की परियोजना एक दूरदर्शी कदम है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 25 दिसंबर, 2024 को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 100वीं जयंती पर खजुराहो में केन-बेतवा नदी लिंक प्रोजेक्ट की आधारशिला रखी गई है। इसके साथ ही भारत में नदियों को जोड़ने की योजना का पहला चरण शुरू हो गया है। इस परियोजना के माध्यम से यह प्रयास किया जा रहा है कि देश के जल संसाधनों का समुचित उपयोग हो सके और सूखा-प्रभावित क्षेत्रों को राहत दी जा सके।
केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना की विशेषताएं
केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना देश की पहली ऐसी योजना है, जो दो नदियों को जोड़ने के लिए एक व्यापक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाती है। इस योजना का उद्देश्य जल सुरक्षा सुनिश्चित करना, कृषि उत्पादकता बढ़ाना और जल संकट से प्रभावित क्षेत्रों में समृद्धि लाना है। केन नदी (जो मध्य प्रदेश में बहती है) से पानी को बेतवा नदी में स्थानांतरित किया जाएगा, दोनों नदियाँ यमुना की सहायक नदियों हैं। इस परियोजना के तहत् 221 किमी लम्बी नहर का निर्माण किया जाएगा, जिसमें 2 किमी की सुरंग भी शामिल होगी। परियोजना का लक्ष्य मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के 13 जिलों में जल संकट को दूर करना है। इस परियोजना से 10.62 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाएगी, जिसमें 8.11 लाख हेक्टेयर भूमि मध्य प्रदेश में और 2.51 लाख हेक्टेयर भूमि उत्तर प्रदेश में है। साथ ही, लगभग 65 लाख लोगों को पीने का पानी उपलब्ध कराया जाएगा। परियोजना से 103 मेगावाट जलविद्युत् और 27 मेगावाट सौर ऊर्जा का उत्पादन भी होगा। इसके अलावा, बुंदेलखण्ड क्षेत्र (जो सूखे और पानी की कमी के लिए जाना जाता है) को इसका विशेष लाभ मिलेगा। उल्लेखनीय है कि केन नदी मध्य प्रदेश के कैमूर की पहाड़ियों से निकलकर 427 किमी बहने के बाद उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में चिल्ला गाँव में यमुना में जा मिलती है। बेतवा नदी मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के कुम्हारगाँव से निकलकर 576 किमी की दूरी तय करने के बाद उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में यमुना में जा मिलती है।
जल संकट का समाधान
भारत में जल संकट एक गंभीर समस्या है। जो बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन के कारण और भी विकट हो गई है। नदियों को जोड़ने की परियोजना इस समस्या का एक प्रभावी समाधान प्रस्तुत करती है। यह परियोजना बाढ़ और सूखे जैसी दोहरी समस्याओं को हल करने के लिए पानी का सन्तुलित वितरण सुनिश्चित करती है। भारत में जहाँ कुछ क्षेत्र जल की अधिकता के कारण बाढ़ का सामना करते हैं, वहीं अन्य क्षेत्र पानी की कमी से जूझते हैं। नदियों को जोड़ने से अतिरिक्त जल को उन क्षेत्रों में स्थानांतरित किया जा सकता है, जहाँ इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है। केन-बेतवा परियोजना इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है यह परियोजना बुंदेलखंड जैसे जल संकटग्रस्त क्षेत्र में पानी की स्थायी आपूर्ति सुनिश्चित करेगी। जल संकट से जूझ रहे बुंदेलखण्ड क्षेत्र के लिए यह परियोजना विशेष रूप से लाभकारी होगी, क्योंकि यह सूखे और जल की कमी के कारण कृषि और पशुपालन जैसे आर्थिक गतिविधियों पर पड़े प्रतिकूल प्रभाव को कम करेगी। जल संकट का समाधान केवल पानी की उपलब्धता बढ़ाने तक सीमित नहीं है; यह लोगों की आर्थिक स्थिति और जीवन स्तर में सुधार के लिए भी महत्वपूर्ण है।
कृषि और ग्रामीण विकास
कृषि भारतीय समाज की रीढ़ मानी जाती है और कृषि क्षेत्र में विकास देश की समग्र प्रगति के लिए आवश्यक है, लेकिन जल संकट और सिंचाई सुविधाओं की कमी ने भारतीय किसानों के लिए कृषि को चुनौतीपूर्ण कार्य बना दिया है। केन-बेतवा नदी जोड़ने की परियोजना से सिंचाई की सुविधा से लाखों किसानों के जीवन में सुधार आएगा जिन क्षेत्रों में पहले पानी की भारी कमी थी, अब वहाँ सिंचाई की सुविधा मिलेगी, जिससे किसानों को समय पर पानी मिलेगा और उनकी फसलें सूखा और अन्य जल संकट से प्रभावित नहीं होंगी। इससे किसानों को उनकी भूमि पर अधिक उत्पादन प्राप्त होगा, जिससे उनकी आय में भी वृद्धि होगी। सिंचाई की बेहतर व्यवस्था के कारण अब किसानों को सूखे के दौरान भी कृषि के अवसर मिलेंगे, जिससे उनके जीवन स्तर में सुधार होगा। इसके अतिरिक्त, पानी की अधिक उपलब्धता से किसानों को अपनी खेती में विविधता लाने का अवसर मिलेगा वे विभिन्न प्रकार की फसलें उगा सकेंगे, जो उनकी आय बढ़ाने में मदद करेंगी इसके अलावा, जल संसाधनों की पर्याप्तता से पशुपालन और डेयरी उद्योग को भी बढ़ावा मिलेगा, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में अतिरिक्त रोजगार के अवसर पैदा होंगे। पशुपालन को बढ़ावा मिलने से दूध, मांस और अन्य उत्पादों का उत्पादन बढ़ेगा, जिससे न केवल किसानों को अतिरिक्त आय मिलेगी, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भी मजबूती आएगी।
पर्यावरणीय चिन्ताएं
नदियों को जोड़ने की परियोजना का उद्देश्य देश के जल संकट को हल करना और कृषि उत्पादकता को बढ़ाना है, लेकिन इसके पर्यावरणीय प्रभावों को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। केन-बेतवा नदी जोड़ने की परियोजना विशेष रूप से पन्ना टाइगर रिजर्व को प्रभावित कर सकती है। कहा जा रहा है कि इस परियोजना के तहत् पन्ना टाइगर रिजर्व का 10 प्रतिशत से अधिक मुख्य क्षेत्र जलमग्न होगा। टाइगर रिजर्व में बाघों की एक पुनर्जीवित आबादी है और यह परियोजना इन बाघों के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है।
विशेष रूप से बाघों की प्रवृत्तियों, उनके शिकार के क्षेत्रों और प्रजनन स्थलों को नुकसान हो सकता है। इसके अलावा, परियोजना के लिए भूमि के बड़े हिस्से पर वनों की कटाई की आवश्यकता होगी, जिससे क्षेत्र की जैव-विविधता पर भी नकारात्मक असर पड़ सकता है। पन्ना टाइगर रिजर्व और इसके आस-पास के वन्य क्षेत्र में कई दुर्लभ और संकटग्रस्त प्रजातियाँ पायी जाती हैं और इनका संरक्षण अब खतरे में पड़ सकता है। जलवायु परिवर्तन के सन्दर्भ में नदियों को जोड़ने की परियोजना के दीर्घकालिक पर्यावरणीय प्रभावों का आकलन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न असमान वर्षा पैटर्न, मौसम की अनिश्चितता और जलवायु संकट के प्रभावों को देखते हुए इस तरह की परियोजनाओं के पर्यावरणीय प्रभावों का समग्र अध्ययन किया जाना चाहिए। यदि इस परियोजना के चलते जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र पर नकारात्मक असर पड़ता है, तो यह पहले से मौजूद पर्यावरणीय संकट को और बढ़ा सकता है।
सामाजिक और आर्थिक चुनौतियां
केन-बेतवा नदी लिंक परियोजना सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से भी कई चुनौतियां प्रस्तुत करती है। इनमें से एक प्रमुख चुनौती प्रभावित परिवारों का पुनर्वास और मुआवजा है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, इस परियोजना के तहत् छतरपुर और पन्ना जिलों के लगभग 6,628 परिवारों को विस्थापित किया जाएगा, क्योंकि पानी के जलाशयों में डूबने वाले क्षेत्र में इनकी जमीनें एवं घर स्थित हैं। विस्थापन के कारण इन परिवारों की आजीविका, उनके सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इन विस्थापित परिवारों के लिए उचित मुआवजा और पुनर्वास योजना का क्रियान्वयन बेहद आवश्यक है। यह सुनिश्चित करना कि ये परिवार अपने नए स्थानों पर आत्मनिर्भर हो सकें, एक चुनौती है। मुआवजे के वितरण में पारदर्शिता, उचित मूल्यांकन और प्रभावित लोगों के लिए नए आवास, शिक्षा और रोजगार के अवसरों की व्यवस्था सुनिश्चित करना जरूरी है। इसके अलावा, परियोजना की आर्थिक व्यवहार्यता को लेकर भी सवाल उठाए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट की केन्द्रीय अधिकार प्राप्त समिति ने इस परियोजना के लागत-लाभअनुपात की जाँच की सिफारिश की है। इस परियोजना के निर्माण और रखरखाव की लागत अत्यधिक हो सकती है और इसके लाभ, जैसे-सिंचाई सुविधा, जल आपूर्ति और ऊर्जा उत्पादन, दीर्घकालिक रूप से सुनिश्चित नहीं हो सकते। जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय अस्थिरता के कारण यह भी सम्भव है कि जिन क्षेत्रों को जल आपूर्ति की जा रही है, वहाँ जल के संकट का स्थायी समाधान न हो पाए। यह महत्वपूर्ण है कि नदियों को जोड़ने की परियोजना के आर्थिक दृष्टिकोण को सन्तुलित और व्यवस्थित तरीके से देखा जाए। वैकल्पिक सिंचाई साधनों और जल पुनर्चक्रण जैसी तकनीकों की सम्भावना को भी इस परियोजना में शामिल किया जाना चाहिए। इसके साथ ही, सरकार को इस परियोजना की दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता और लाभ को सुनिश्चित करने के लिए एक व्यापक आर्थिक मूल्यांकन करने की भी आवश्यकता है।
दीर्घकालिक प्रभाव और संभावनाएं
केन-बेतवा परियोजना में जलविद्युत् और सौर ऊर्जा का उत्पादन होने से ग्रामीण क्षेत्रों में ऊर्जा की उपलब्धता सुनिश्चित हो सकेगी, जिससे उद्योगों और अन्य आवश्यकताओं के लिए ऊर्जा की आपूर्ति में स्थिरता आएगी। ग्रामीण विकास और रोजगार सृजन के मामले में भी इस परियोजना के सकारात्मक दीर्घकालिक प्रभाव हो सकते हैं। नहरों और जल संरचनाओं के निर्माण, रखरखाव और संचालन से बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर उत्पन्न होंगे। इसके अलावा, परियोजना के कारण बुनियादी ढाँचे में सुधार और बेहतर परिवहन व्यवस्था से पूरे क्षेत्र का सामाजिक और आर्थिक विकास होगा। हालाँकि, यह सभी सम्भावनाएं तभी साकार हो सकती हैं जब परियोजना के निष्पादन में प्रभावी प्रबन्धन किया जाए। परियोजना से जुड़े पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों का प्रबन्धन करना अत्यन्त आवश्यक है। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि परियोजना से होने वाले लाभों को अधिकतम किया जाए और इसके पर्यावरण पीय तथा सामाजिक नुकसान को न्यूनतम किया जाए। तभी यह परियोजना देश के लिए एक स्थायी और समृद्ध भविष्य की नींव बन पाएगी।