गोमती संरक्षण अभियान,Pc-लोक सम्मान 
गोमती संरक्षण अभियान,Pc-लोक सम्मान 

नदियों के पुनरुद्धार का प्रकल्प 'गोमती गौरव अभियान' का संकल्प

लखनऊ गोमती नदी के किनारे पर बसा है। उत्तर प्रदेश मे गोमती नदी पीलीभीत से प्रारम्भ होकर गाजीपुर में गंगा नदी में मिल जाती है। गोमती नदी में जल गंगा-यमुना आदि की तरह किसी पहाड में बर्फ के पिघलने से नहीं आता है बल्कि तमाम सहायक नदियों और नालों का जल गोमती में गिरता है और नदी में शामिल होकर बडा आकार ले लेता है।
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लोक भारती अनेक वर्षों से गोमती संरक्षण हेतु प्रतिबद्ध है। गोमती पुनरुद्धार के प्रयासों को गति देते हुए लोक भारती ने अब लखनऊ में 'गोमती गौरव अभियान' प्रारम्भ करने का संकल्प लिया है। 26 फरवरी को लखनऊ स्थित मनकामेश्वर मन्दिर, अलीगंज में महन्त देव्यागिरि की अध्यक्षता में लोक भारती द्वारा लखनऊ में गोमती संरक्षण के लिए व्यापक रूप से 'गोमती गौरव अभियान' चलाने का निश्चय किया गया है। इस अभियान के संयोजन का दायित्व शची सिंह और सह संयोजन का दायित्व हाई कोर्ट के वरिष्ठ एडवोकेट कृष्ण दत्त त्रिपाठी को सौंपा गया है। इस अभियान का प्रारम्भ 'गोमती गौरव जागरूकता यात्रा' से होगा जिसका संयोजन कुकरैल नदी के भागीरथ अनिल कुमार सिंह करेंगे। यात्रा के संयोजन में उनका सहयोग राकेश रावत, अंकुर सिंह एवं राजेश कुमार करेंगे। इसके अतिरिक्त इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का दायित्व रितेश श्रीवास्तव एवं आकाश कुमार ने स्वीकार किया। नदी संरक्षण अभियान में प्रिंट मीडिया की महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है, अतः उससे संपर्क एवं संवाद का दायित्व शिव सागर सिंह चौहान को सौंपा गया। बैठक में डॉ. अम्बेडकर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. वेंकटेश दत्ता, लोक भारती के संपर्क प्रमुख श्रीकृष्ण चौधरी, सह संगठन मंत्री गोपाल उपाध्याय एवं संगठन मंत्री बृजेंद्र पाल सिंह उपस्थित रहे। इस अभियान की टोली में अनेकानेक लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी। नदियों के संरक्षण का विशय मानव सहित समस्त चराचर जगत के लिए अस्तित्व का प्रश्न है।

मानव जीवन वनस्पति और अन्य जीव-जन्तुओं पशु एवं पक्षियो का अस्तित्व जल के बिना सम्भव नहीं है। प्रकृति द्वारा वर्षा जल के रूप में धरती पर जगह-जगह जल की बारिश की जाती है। वही जल पृथ्वी में रिचार्ज होकर संरक्षित होता है जिसका आवश्यकतानुसार उपयोग मानव द्वारा हैण्डपम्प, नलकूप, समर्सेबिल के सहारे जल निकाल कर पेयजल और खेती आदि के लिए किया जाता है। अत्यधिक रासायनिक खादों का उपयोग होने के कारण धरती में पानी रिचार्ज करते की शक्ति कम हो गई है। धरती की सतह पर और धरती में संरक्षित जल से ही मानव, वनस्पति, पशु-पक्षियों का जीवन चलता है। हमारे पूर्वजों ने नदी, तालाब, झील, कुआं आदि के संरक्षण को आस्था और परंपरा से जोड़ने की व्यवस्था इसी उद्देश्य से की है। अधिकतर बडे महानगर किसी न किसी नदी के किनारे होने का कारण भी यही है।

लखनऊ गोमती नदी के किनारे पर बसा है। उत्तर प्रदेश मे गोमती नदी पीलीभीत से प्रारम्भ होकर गाजीपुर में गंगा नदी में मिल जाती है। गोमती नदी में जल गंगा-यमुना आदि की तरह किसी पहाड में बर्फ के पिघलने से नहीं आता है बल्कि तमाम सहायक नदियों और नालों का जल गोमती में गिरता है और नदी में शामिल होकर बडा आकार ले लेता है। गोमती नदी के किनारे जो गांव और शहर बसे है उनमें भी पानी रिचार्ज होकर मानव जीवन के लिए उपयोगी होता है। इस प्राकृतिक व्यवस्था को आम आदमी समझने का प्रयास नहीं करता है। कभी-कभी बरसात कम होती है तो गोमती की सहायक नदियां सूख जाती है और मनुष्य अपने निजी स्वार्थ मे उनको पाटकर फसलें आदि बो लेता है और उन सहायक नदियों में जल प्रवाह रुक जाता है और उनके जलस्रोत भी बंद हो जाते हैं जिसके कारण गोमती नदी में पर्याप्त पानी नहीं आता है तथा पानी का प्रवाह बहुत कमजोर हो जाता है। यही स्थिति गोमती नदी के साथ हुई और आज गोमती नदी में पानी की कमी हो गयी है। जब नदी में पानी की कमी हो जाती है उसमें गंदगी रुक कर सड़ने लगती है और जलकुम्भी जमने लगती है। इससे बचा खुचा जल भी दूषित हो जाता है।

अगर हम शीघ्र ही सचेत न हुए तो गोमती नदी के अस्तित्व पर संकट खडा हो जायेगा तथा हमारे पूर्वजो द्वारा दी गई प्राचीन धरोहर जो हमारे जीवन के लिए उपयोगी है, नष्ट हो जायेगी। इस जीवनदायिनी जल धरोहर को बचाने के लिए गोमती के किनारे बसे हुए मानव समाज को प्रयास करना चाहिए। लोक भारती द्वारा जनजागरण, नदी स्वच्छता एवं श्रमदान अभियान चलाकर इस दिशा में प्रयास किये भी गये हैं और उनमें आंशिक सफलता भी मिली है। जैसे सीतापुर में कठिना नदी गोमती की सहायक नदी है। उसे लोक भारती के प्रयास एवं जनसहयोग से लगभग चालीस किलोमीटर खुदाई करके साफ किया गया है तथा कठिना नदी से पर्याप्त जल गोमती नदी में आने लगा है। इसी प्रकार शाहजहांपुर जिले में भैंसी गोमती की सहायक नदी है उसे भी खुदाई करके साफ किया गया है। लेकिन इस तरह से गोमती नदी में पर्याप्त पानी लाने में बहुत अधिक समय लग जायेगा। लखनऊ में आज कुकरैल नदी, जो गोमती में गिरती है, सूख गयी है जबकि एक समय था कि कुकरैल नदी से भी गोमती में सालभर पानी का प्रवाह रहता था। इसी तरह बाराबंकी में गोमती की एक सहायक नदी कल्याणी आज सूख गयी है तथा उसके प्रवाह क्षेत्र में जगह-जगह फसलें बोयी हैं। जिसके कारण गोमती नदी में जल निरन्तर कम हो रहा है। इन सहायक नदियो को प्रवाहमान बनाने के शासन की बहुत बडी भूमिका हो सकती है लेकिन ऐसा लगता है कि शासन का ध्यान अभी इस समस्या के समाधान के लिए नहीं गया है। इसका बहुत बड़ा कारण जनजागरूकता का अभाव है।

तालाबों की खुदाई आदि का काम ग्राम प्रधानो द्वारा मनरेगा से प्रतिवर्ष कराया जाता है। जिन ग्रामों से गोमती की सहायक नदियां निकली है और वह मिट्टी पट जाने के कारण बाधित हैं उसे मनरेगा बजट से खुदाई कराया जा सकता है। इसके लिए जिन जनपदों से गोमती नदी निकली है अथवा गोमती की सहायक नदियां या नाले हैं, उनके जिलाधिकारियों को शासन स्तर से निर्देश जारी कर वृक्षारोपण अभियान के समय ग्राम सभाओं के माध्यम से पीपल, बरगद, पाकड, आंवला अशोक एवं सेमल आदि के पेड सहायक नंदियो के किनारे लगा देना चाहिए ताकि वहां छाया के साथ-साथ जल संरक्षित भी रहे। शासन द्वारा वन विभाग को निर्देश देकर गोमती नदी के दोनों किनारों पर सघन वृक्षारोपण करा देना चाहिए ताकि नदियों के किनारे पर्याप्त छाया रहे एवं जल भी रुके। उद्यान विभाग के माध्यम से शहरी इलाकों में जहां गोमती नदी है वहां पर्यावरणीय उद्यान विकसित करा देना चाहिए। इसी प्रकार सिचाई विभाग और पर्यटन विभाग के माध्यम से सुन्दर घाट एवं पार्क भी गोमती नदी के किनारे शहरो में बनवा देना चाहिए।

शाहजहांपुर, लखनऊ महानगर तथा सुल्तानपुर, जौनपुर जैसे नगरों में नगर विकास विभाग के माध्यम से शहरों में गोमती नदी पर पड़ा हुआ कूडा हटवाया जाय। स्वच्छता की व्यवस्था की जाय तथा गन्दे नालों का पानी शुद्ध करने बाद ही नदी में भेजा जाए। इसके अतिरिक्त नदियों मे पूजा सामग्री डालने के बजाय नदियों के किनारे विसर्जन कुंड बनाये जाय। उसी कुंड में विसर्जन सामग्री डाली जाय। नदी के घाटों की देखभाल और स्वच्छता के लिए नगर निगम और नगर पालिका द्वारा वहां कर्मचारी तैनात किये जाय। शहरों में नदी के घाटों पर छाया आदि के लिए पर्याप्त पेड़ लगाये जाएं।

लोक भारती ने गोमती नदी वाले जनपदों में गोमती मित्र मंडल का गठन किया ताकि उनके सहयोग से जनजागरण द्वारा नदी संरक्षण के विशय से समाज को जोड़ा जाय। इस कम में जिन-जिन ग्रामों में गोमती की सहायक नदियां हैं, वहां भी ग्राम प्रधानों के साथ एक-एक टीम का गठन किया जाय, जिनके माध्यम से विभिन्न कार्यों की देखरेख की जाय तथा सूचनाओं का आदान-प्रदान शीघ्रता से हो सके। उपरोक्त बिंदुओ पर यदि कार्ययोजना बनाकर कार्य हो तो आने वाले दो-तीन वर्षों में गोमती नदी को स्वच्छ, अविरल और प्रवाहमान रूप में हम देख सकते हैं। मानवता की प्रसन्नता तथा लखनऊ और उत्तर प्रदेश की शान और सौन्दर्य के लिए गोमती नदी का पुनरुद्धार अपरिहार्य है। बिना गोमती को स्मार्ट किये लखनऊ का स्मार्ट होना सम्भव नहीं है। इसके लिए स्थानीय बुद्धिजीवी वर्ग के सक्रिय सहयोग की बहुत बडी आवश्यकता है। लोक भारती ने गोमती गौरव अभियान के माध्यम से इस दिशा में एक नई पहल की है। अभियान से जुड़ने के लिये सम्पूर्ण समाज का, विशेशकर लखनऊ के लोगों का स्वागत है। पिछले कुछ महीनों में शासन स्तर पर जिस प्रकार नाला बना दी गई कुकरैल नदी को पुनर्जीवित करने की इच्छाशक्ति परिलक्षित हुई है, वह नदियों के पुनरुद्धार की दृश्टि से बहुत शुभ संकेत है। यही समय है कि हम अपने प्रयासों की गति बढ़ाएं और यथाशीघ्र गोमती को निर्मल बनाने के संकल्प को सिद्ध करें।

-लेखक लोक भारती के अध्यक्ष हैं।
स्रोत - लोकसम्मान पत्रिका, फरवरी 2024, लखनऊ संस्करण

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