क्या बाकी शहर सीखेंगे बेंगलुरू की तरह एरेटर लगाकर पानी बचाना?
जल संरक्षण यानी पानी बचाने का एक बड़ा और कारगर उपाय है घरों में पानी खपत घटाना और उसकी बर्बादी रोकना। जलसंकट के लिए अकसर चर्चा में रहने वाली आईटी नगरी बेंगलुरु में इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है, जिसके सुखद नतीजे भी सामने आए हैं। यह कदम है घरों की टोंटियों में एरेटर लगाने का, जिसके ज़रिये टैप से बहने वाले पानी की मात्रा पर लगाम लगाकर पानी की बर्बादी रोकी जा रही है।
इस तकनीक का इस्तेमाल कर घरों में पानी की बर्बादी रोकने के लिए बेंगलुरू जल आपूर्ति एवं सीवरेज बोर्ड (बीडब्ल्यूएसएसबी) ने पिछली गर्मियों से अब तक बेंगलुरु में 15 लाख नलों में एरेटर लगाए हैं। इससे हर रोज़ लगभग 10 करोड़ लीटर पानी की बचत हो रही है, जो शहर की दैनिक जलपूर्ति का लगभग 5% है।
बीडब्ल्यूएसएसबी ने वाणिज्यिक स्थानों (कॉमर्शियल स्पेस) और रिहायशी अपार्टमेंट परिसरों में नलों में एरेटर अनिवार्य करने की जिस पहल को प्रयोग के रूप में शुरू किया, उसके बेहतरीन नतीजों से बोर्ड न सिर्फ़ संतुष्ट, बल्कि हैरान भी है।
डेकन हेराल्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, इसपर बीडब्ल्यूएसएसबी के अध्यक्ष रामप्रसाद मनोहर वी. का कहना है, "दस करोड़ लीटर केवल न्यूनतम बचत है, जिसकी हमने गणना की है। यह कोई छोटी संख्या नहीं है। हमें लगता है कि प्रतिष्ठानों के आकार और उपयोग के आधार पर, इससे काफ़ी ज़्यादा पानी की बचत की जा सकती है। लंबे समय की बात करें, तो इससे और बड़ी मात्रा में पानी की बर्बादी रोकी जा सकेगी, जिससे करोड़ों रुपये की भी बचत होगी। पान की बर्बादी रोकने का पर्यावरण पर भी गहरा और सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।"
उन्होंने बताया कि पिछले साल (2024) गर्मियों में जल संकट गहराने पर बीडब्ल्यूएसएसबी ने पानी की बर्बादी रोकने के लिए कई उपाय सुझाए थे। इसमें सभी सार्वजनिक नलों, अपार्टमेंट परिसरों, रेस्तरां, औद्योगिक और वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों के लिए टेटियों में एरेटर लगाने को अनिवार्य करना शामिल था। उसके बाद से अब तक करीब पांच लाख अपार्टमेंट, 4,000 सरकारी कार्यालयों और 32,000 घरों में एरेटर लगाए जा चुके हैं। इससे पेयजल की अच्छी खासी बचत देखने को मिल रही है।
हालांकि, बीडब्ल्यूएसएसबी के प्रयासों और बेहतर नतीजों के बावज़ूद अभी बड़ी संख्या में घरों और कॉमर्शियल भवनों में एरेटर नहीं लग पाए हैं। इसकी वजह लागों में जागरूकता व जानकारी का अभाव और कुछ व्यावहारिक दिक्कतें हैं। येलहंका इलाके के एक होटल व्यवसायी ने बताया, ''हमारे होटल के नल में फिलहाल तो एरेटर नहीं लगा हुआ है। पिछले साल मई में एरेटर लगवाया था, लेकिन कुछ दिनों बाद ही उसने काम करना बंद कर दिया। हमारे नल बहुत से लोग बेतरतीब ढंग से इस्तेमाल करते हैं, इसलिए नलों की बार-बार मरम्मत करनी पड़ती है। इसलिए मुझे लगा कि बार-बार नया लगवाने का कोई मतलब नहीं है।"
क्या होता है एरेटर, कैसे करता है काम
एरेटर एक छोटा उपकरण है, जो नल के सिरे पर लगाया जाता है। जैसाकि इसके नाम से ही पता चलता है, यह पानी के प्रवाह में हवा (एयर) मिलाकर टोंटी से बहने वाले पानी की मात्रा को कम कर देता है, जिससे पानी की बचत होती है।साथ ही पानी में दबाव (प्रेशर) भी बना रहता है। एरेटर पानी को पतली, हवादार धाराओं में विभाजित करने का काम करता है, जिससे पानी का प्रवाह तो घटता है, पर यह निकलता ताकत के साथ है। इससे पानी की धार फैलकर छींटेरहित हो जाती है। यह नल से पानी की सप्लाई को किफ़ायती बनाता है। इस तरह, एरेटर नल से बहने वाले पानी की मात्रा को नियंत्रित करके खपत को 60% तक कम करने में मदद करते हैं।
एरेटर की कार्यप्रणाली सीधी और सरल है। जब पानी एरेटर से होकर गुजरता है, तब उसमें लगी जाली की परतें अपने छिद्रों के माध्यम से पानी की धार को कई पतली धाराओं में बांट देती हैं। इन पतली धाराओं के बीच का स्थान हवा ले लेती है। इस तरह हवा पानी के साथ मिल जाता है। इससे पानी की कम मात्रा का उपयोग करते हुए नल से पानी का थोड़ा फैला हुआ स्थिर प्रवाह बनता है। इस तरह एरेटर पानी के बहाव को घटाकर भी उसके दबाव को बनाए रखने का काम करता है, जिससे नल से कम मात्रा में पानी बहने पर भी, आपको प्रदर्शन में कोई अंतर महसूस नहीं होता।
नल के मुंह (जहां से पानी निकलता है) पर लगे जालीदार डिस्क जैसे एरेटर को देखकर आमतौर पर लोगों को गलतफ़हमी होती है कि यह पानी की गंदगी या बालू-मिट्टी को छानने के लिए लगाई गई जाली या फ़िल्टर है, जिसे नल में लगाने से साफ़ पानी मिलता है। लेकिन, एरेटर का मुख्य काम पानी के दबाव और प्रवाह को नियंत्रित करना है, जिससे पानी की बचत होती है।
अलग-अलग तरह की ज़रूरतों के हिसाब से कई तरह के एरेटर उपलब्ध हैं। कुछ एरेटर में पानी के प्रवाह की दर को घटाया या बढ़ाया जा सकता है। इनमें जालियों को घुमा कर आप अपने काम के हिसाब से ज़्यादा या कम या ज़्यादा पानी की सेटिंग कर सकते हैं। इससे हाथ धोने, बर्तन साफ़ करने, नहाने, ब्रश करने या धुलाई जैसी अलग-अलग ज़रूरतों के मुताबिक पानी नल से प्राप्त किया जा सकता है।
चरणबद्ध योजना पर काम कर रहा बीडब्ल्यूएसएसबी
बीडब्ल्यूएसएसबी ने चरणबद्ध तरीके से पूरे शहर के नलों में एरेटर लगवा कर अनअकाउंटेड वाटर (यूएफडब्ल्यू) यानी पानी की बर्बादी को कम करने की योजना पर काम कर रहा है। यह परियोजना 2018 में 600 करोड़ रुपये की लागत से शुरू हुई थी। अभी यह अपने दूसरे चरण में है, जिसकी लागत 200 करोड़ रुपये है। बोर्ड का मानना है कि बेंगलुरु में हर साल होने वाले जलसंकट का एक बड़ा कारण पानी की बर्बादी है।
यह दो तरह से होती है। एक तो, गैरज़रूरी इस्तेमाल से। दूसरे, पाइपों में रिसाव (लीकेज) के कारण। बोर्ड के अध्यक्ष का कहना है कि 40-50 साल पहले बिछाई गई पुरानी पाइपों में लीकेज को खत्म करने के लिए पाइपों को बदलने का काम चरणबद्ध तरीके से ही किया जा सकता है। यह जटिल, खर्चीला और समय लेने वाला काम है, क्योंकि पाइपलाइनों को बदलने के लिए खुदाई करने से जनता को जलापूर्ति में बाधा, यातायात जाम और अन्य असुविधाओं का सामना करना पड़ सकता है।
इस काम के होने तक नलों में एरेटल लगा कर भी पानी की बर्बादी को काफ़ी हद तक कम किया जा सकता है। बोर्ड इसपर तेज़ी से काम कर रहा है। इसके अलावा बोर्ड अवैध कनेक्शनों का पता लगा कर उन्हें काटने का काम भी कर रहा है। इसके लिए एक ‘ब्लू फोर्स’ का गठन किया गया है।
इंजीनियर दंपति ने निजी स्तर पर शुरू किया अभियान
बंगलौर मिरर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पानी की बचत के लिए बेंगलुरु में 'ए बिलियन टैप्स' और ‘10-एमएलडी’ नाम से अभियान की शुरुआत करने वाले जल संरक्षण विशेषज्ञ इंजीनियर माधवन राव और उनकी इंजीनियर पत्नी परिमला ने इस अभियान के तहत अपार्टमेंट, कार्यालयों, कॉर्पोरेट्स और कई घरों के लोगों को नलों में एरेटर लगाने के लिए प्रेरित किया।
इस अभियान के ज़रिये पिछले कुछ वर्षों में 12 लाख लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) की बचत दर हासिल की है। उन्होंने बताया कि एरेटर लगाने के अभियान में सबसे बड़ी दिक्कत यह पेश आई कि ज़्यादातर जगहों पर लगे नल एरेटर फिटिंग के अनुकूल नहीं थे। ऐसे में नलों को बदलना ज़रूरी था, जिसकी लागत उठाने के लिए लोग तैयार नहीं थे। इस समस्या के समाधान के लिए हमने एक कम लागत वाला इनबिल्ट एरेटर एडप्टर विकसित किया, जो इन सादे टोंटी वाले स्टील के नलों और प्लास्टिक टोटियों में भी पर फिट हो जाता है। इससे समस्या हल हो गई।
अपने अभियान की शुरुआत के बारे में माधवन ने बताया कि सात-आठ साल पहले उन्होंने और उनकी पत्नी परिमला ने पानी की खपत कम करने के लिए अपने घर में एरेटर लगवाया था। इससे इन्होंने प्रतिदिन करीब 100 लीटर पानी की बचत देखी। इसके बाद इन्होंने शहर के जल संकट के समाधान के लिए 'ए बिलियन टैप्स' अभियान की शुरुआत की। उन्होंने बताया कि अभियान की सफलता से उन्हें शिक्षा क्षेत्र को भी अपनी इस पहल में शामिल करने की प्रेरणा मिली। क्योंकि उनका मानना है कि जल संसाधन के प्रति जागरूक नागरिकों की एक पीढ़ी तैयार करने के लिए स्कूल सबसे उपयुक्त जगह हैं।
इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए उन्होंने मल्लेश्वरम के एक स्कूल के 83 में से 79 नलों में एरेटर लगवाए हैं। लगभग एक हज़ार छात्र और कर्मचारी प्रतिदिन इन सुविधाओं का उपयोग कर रहे हैं। इससे स्कूल में प्रतिदिन करीब 10,000 लीटर पानीकी बचत हो रही है, जो लगभग तीन लाख लीटर प्रतिमाह है। राव ने बताया कि स्कूलों के बाद हमारी योजना कन्वेंशन सेंटर, मैरिज हॉल आदि को अपने अभियान से जोड़ने की है।
इससे कुल मिलाकर 100 एमएलडी पानी की बचत होने की उम्मीद है। उनका कहना है कि पानी की बचत के लिए एरेटर लगाना अन्य विकल्पों की तुलना में कम खर्चीला, आसान और तेज़ तरीका है, क्योंकि एरेटर को नल में लगाने के साथ ही इसके परिणाम दिखने लगते हैं।
एरेटर इस्तेमाल करने के फ़ायदे
पानी की बचत करने के साथ ही एरेटर के इस्तेमाल से कई तरह के फायदे मिलते हैं। इसके लाभों को संक्षेप में इस प्रकार समझा जा सकता है-
काम करने में आसानी: एरेटर पानी की धारा को ज़्यादा नियंत्रित और एक समान बनाते हैं। इससे बर्तन व कपड़े धोने, हाथ धोने या ब्रश करने जैसे कामों में पानी की बचत के साथ ही छींटे भी कम पड़ते हैं। इससे काम करना आसान और सुविधाजनक हो जाता है।
पानी और पर्यावरण का संरक्षण: एरेटर के इस्तेमाल का पहला और सबसे बड़ा फ़ायदा पानी की खपत में कमी आना है। कम पानी में काम निपटा कर यह जल संरक्षण का काम करता है, जो पर्यावरण के लिए भी फ़ायदेमंद साबित होता है।
बिजली की बचत: जिन घरों में गर्म पानी का अकसर इस्तेमाल होता है, वहां एरेटर बिजली की खपत घटाने में मददगार साबित होता है, क्योंकि यह नल से बहने वाले गर्म पानी की मात्रा कम करके दोबारा से पानी गर्म करने की ज़रूरत को घटा देता है। इससे वॉटर हीटर या गीज़र को बार-बार या लगातार चलाने की ज़रूरत में कमी आती है और बिजली की बचत होती है।
पैसों की बचत: पानी का उपयोग कम होने से वाटर टैक्स के बिल में कमी आती है। साथ ही पानी के लिए मोटर या पंप चलाने की ज़रूरत घटने से बिजली की खपत में आने वाली कमी से भी पैसों की बचत होती है। इसके अलावा पानी गर्म करने में भी कम बिजली खर्च होने से भी बिजली के बिल में कमी आती है।
सस्ता रख-रखाव: एरेटर के रख-रखाव (मेंटेनेंस) की लागत बहुत कम या नगण्य होती है। नल से पानी का बहाव या दबाव कम होने पर एरेटर को खोल कर आसानी से साफ़ किया जा सकता है। यह काम बिना किसी खर्च के खुद ही किया जा सकता है।
नल में कैसे लगाएं एरेटर
नल एरेटर लगाना एक आसान काम है़, जिसे कुछ ही मिनटों में आप खुद भी कर सकते हैं। कुछ बातों का ध्यान रखते हुए इसे इस प्रकार नल में लगाया जा सकता है-
जान लें सही साइज़: एरेटर कई साइज़ में आते हैं। नल के लिए एरेटर खरीदने से पहले, अपने टोंटी का आकार ज़रूर जांच लेना चाहिए। आपको अपने नल के लिए उपयुक्त आकार का एरेटर लाना होगा, जो उसमें फिट हो जाए।
नल साफ़ करें : एरेटर लगाने से पहले नल की सफ़ाई कर लेनी चाहिए। पानी में माज़ूद खनिजों के कारण अकसर नल के मुहाने पर एरेटर लगाने के लिए बनी चूडि़यों में सेडिमेंट की परत जमा हो जाती है, जो एरेटर फि़ट करने में दिक्कत पैदा कर सकती है। इसलिए इसे साफ़ कर लें। इसके अलावा कई बार पानी में मौजूद रेत भी टोंटी में जम जाती है, जो एरेटर को जाम कर सकती है। इसे भी पेंचकस या किसी पतली, नुकीली चीज़ से साफ़ कर लें।
एरेटर के वॉशर की जांच करें: नल में एरेटर लगाने से पहले एरेटर की जांच करें। आमतौर पर इसमें वॉशर लगा हुआ ही आता है। अगर नहीं लगा है तो पानी का रिसाव को रोकने के लिए, एरेटर में वॉशर लगा लें।
एरेटर को ठीक से कसें: एरेटर को नल में ठीक ढंग से कसना ज़रूरी है। वर्ना, वह पानी के बहाव के साथ निकल सकता है। अच्छी तरह से फिट करने के बाद दो-चार बार पानी को चालू और बंद करके सुनिश्चित कर लें कि एरेटर सही तरह से काम कर रहा है। एक बार टोंटी को पूरा खोलकर पानी पूरी तरह से चालू कर के देख लें कि ज़्यादा पानी आने पर अगर एरेटर के आसपास पानी रिस तो नहीं रहा है। अगर ऐसा है, तो इसे और कसने या वॉशर को ठीक से बैठाने की ज़रूरत हो सकती है।
पानी की धार देखें: ऐरेटर लगाने के बाद अगर आपको नल से कम पानी निकलता दिख रहा है, तो एरेटर के फिल्टरों (जालियों) को हिला-डुलाकर एडजस्ट करने की ज़रूरत है। इसके अलावा एरेटर में गंदगी जमा होने से भी बहाव घट जाता है। इसलिए समय-समय पर एरेटर को खोलकर उसकी सफ़ाई करके दोबारा लगा दें।
कई तरह के होते हैं एरेटर
नलों में लगाने के लिए बाज़ार में कई प्रकार के एरेटर उपलब्ध हैं। इनको अलग-अलग ज़रूरतों और प्राथमिकताओं के अनुसार डिज़ाइन किया गया है। सबसे ज़्यादा प्रचलित तीन प्रकार के एरेटर हैं, जिनका चुनाव अपनी आवश्यकतानुसार किया जा सकता है:
मिस्ट एरेटर : मिस्ट एरेटर सबसे ज़्यादा पानी की बचत करने वाला एरेटर है। यह साधारण एरेटर के मुकाबले 87% ज़्यादा पानी बचाता है। जैसा कि नाम से स्पष्ट है कि यह पानी की धार को फुहार में बदल कर पानी की खपत को काफ़ी कम कर देता है। इसे कॉर्पोरेट कार्यालयों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों जैसे पानी की ज़्यादा खपत वाले स्थानों पर वॉशबेसिन के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। इसको एरेटर लगाने के विकल्प वाले मौजूदा नलों में लगाया जा सकता है। मिस्ट एरेटर रेत, तलछट (सेडिमेंट) और सूक्ष्म कणों को छानने के लिए एंटी-क्लॉगिंग फ़िल्टर स्क्रीन के साथ आते हैं।
स्प्रे या शावर एरेटर: स्प्रे या शॉवर एरेटर पानी की धार को स्प्रे रूप में बदल कर पानी की बचत करता है। इससे 75% तक पानी की बचत होती है। स्प्रे या शावर एरेटर की रेंज 2 लीटर प्रति मिनट (एलएमपी) से 4 एलएमपी तक होती है। यह शावर की तरह पानी देकर उसे पूरे धुलाई क्षेत्र में समान रूप से फैला देते हैं, जिससे पानी की जरूरत घट जाती है। यह मिस्ट एरेटर की तुलना में अधिक समय तक चलते हैं।
फ़ोम फ़्लो वॉटर एरेटर: फ़ोम फ़्लो वाटर एरेटर पानी के साथ हवा को इस प्रकार मिलाता है कि नल से बिना छींटों के पानी बाहर निकालता है। आमतौर पर 22 से 24 मिलीमीटर व्यास वाले ये वॉटर एरेटर सभी नलों के लिए उपयुक्त होते हैं। इनकी रेंज 4 एलएमपी से 8 एलएमपी तक होती है।
एरेटर की तरह लो फ़्लो शॉवरहेड भी बचाते हैं पानी
नलों में लगने वाले एरेटरों की तरह कम प्रवाह वाले शावरहेड का इस्तेमाल करके भी पानी बचाया जा सकता है। साधारण शावरहेड जहां पांच से आठ गैलन प्रति मिनट (जीपीएम ) पानी इस्तेमाल करते हैं, वहीं लो फ़्लो शॉवरहेड प्रति मिनट केवल 2.5 गैलन या उससे कम पानी का उपयोग करते हैं। यानी इनसे 68.7% तक पानी की बचत होती है।
साधारण शावरहेड से अगर आप पांच मिनट का भी शॉवर लेते हैं, तो आपको 25 से 45 गैलन (1 गैलन में 3.78 लीटर) यानी करीब 94.5 से 170 पानी की भारी खपत होती। इसके विपरीत लो फ़्लो शॉवरहेड का इस्तेमाल करने पर केवल 65 से 117 लीटर पानी में ही काम चल जाता है। घरेलू स्तर पर होने वाली बचत को जानने के लिए इसे अपने घर में रहने वाले लोगों और उनके नहाने की अवधि की संख्या से गुणा करें। आप देखेंगे कि लो फ़्लो शॉवरहेड के इस्तेमाल से काफ़ी अच्छी मात्रा में पानी की बचत होती है।

