त्रिपुरा में बारिश के पानी को सोख्‍ता गड्ढे के ज़रिये ज़मीन में पहुंचा कर भूजल को रीचार्ज करने की कोशिश।
त्रिपुरा में बारिश के पानी को सोख्‍ता गड्ढे के ज़रिये ज़मीन में पहुंचा कर भूजल को रीचार्ज करने की कोशिश। स्रोत: उत्‍तर त्रिुपरा ज़िला प्रशासन

2 दिन में 50 हज़ार सोख्ता गड्ढे: त्रिपुरा कुछ ऐसे बचा रहा है भूजल

'उत्तर जल संचय यात्रा' के ज़रिये वर्षा जल संरक्षण के लिए किया लोगों को जागरूक। बह कर बर्बाद हो रहे बारिश के पानी को रोक कर भूजल स्‍तर में लाया जा रहा सुधार।
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जलवायु परिवर्तन के चलते बारिश के पैटर्न में हुए बदलावों, प्राकृतिक जल स्रोतों के खत्‍म होने और भूजल के अंधाधुंध दोहन के चलते पूर्वोत्‍तर के राज्‍य आज जल संकट से जूझ रहे हैं। त्रिपुरा में इस समस्या से उबरने के लिए, पहाड़ी इलाकों में सोख्‍ता गड्ढे बनाकर बारिश के पानी से भूजल को रीचार्ज करने का अनूठा अभियान शुरू किया गया है। 

इस पहल के तहत उत्तरी त्रिपुरा ज़िले में 50 हज़ार सोखता गड्ढे बनाए जा रहे हैं। साथ ही, जल संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने और जनसहभागिता के ज़रिये अभियान को सफल बनाने के लिए 3 और 4 नवंबर, 2025 को दो दिवसीय 'उत्तर जल संचय यात्रा' का आयोजन भी किया गया। इस यात्रा का मकसद लोगों को बारिश के बह जाने वाले पानी का इस्‍तेमाल भूजल को रीचार्ज करने के लिए प्रेरित करना था।

सरकारी आंकड़े के मुताबिक, त्रिपुरा में सालाना वर्षा का औसत 2100 मिलीमीटर है। राज्‍य में सबसे अधिक वर्षा कमलपुर में 2800 मिलीमीटर और सबसे कम सनामुरा में औसतन 1811 मिलीमीटर होती है। राज्‍य की भूजल संपदा की बात करें, तो एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2023 में राज्य में उपलब्ध भूजल लगभग 1.063 अरब घनमीटर (बीएमसी) था, जो 2024 में बढ़कर 1.18 अरब घनमीटर हो गया।

हालांकि, पहाड़ी राज्‍य होने के कारण और हाल के वर्षों में बारिश के पैटर्न में हुए बदलावों के चलते  पूर्वोत्‍तर के अन्‍य राज्‍यों की तरह यहां भी भूजल रीचार्ज को लेकर चिंताएं उठ रही हैं।

उत्तरी त्रिपुरा की ज़िला मजिस्ट्रेट चांदनी चंद्रन ने ज़िला प्रशासन के फेसबुक पेज पर  'उत्तर जल संचय यात्रा' के बारे में जानकारी देते हुए लोगों को ज्‍़यादा से ज्‍़यादा संख्‍या में इसमें भाग लेने की अपील की। उन्‍होंने बताया कि पहाड़ी इलाकों में तेज़ बहाव के कारण करीब 90% बारिश का पानी बह जाता है। इसके कारण निचले इलाकों में बाढ़ आती है। 

बारिश का केवल 10% पानी ही भूगर्भ में जाकर भूजल को रिचार्ज कर पाता है। इसे देखते हुए ज़िला प्रशासन ने 3 और 4 नवंबर को पूरे उत्तरी त्रिपुरा ज़िले में 50 हज़ार सोखता गड्ढे यानी पेर्कुलेशन पिट्स बनाकर बारिश के पानी से भूजल को रीचार्ज करने का प्रयास किया है। ज़िला मजिस्ट्रेट ने इस अभियान को भूजल पुनर्भरण को बढ़ावा देने और पानी की बर्बादी को कम करने की दिशा में एक मील का पत्थर है बताते हुए लोगों से व्‍यक्तिगत स्‍तर पर भी ऐसे सोख्‍ता गड्ढे तैयार करने का आग्रह किया है।

एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक ज़िला मजिस्ट्रेट चंद्रन ने बताया कि सोख्‍ता गड्ढे, डिज़ाइन में सरल हैं। यह भूजल का पुनर्भरण करने के साथ ही बाढ़ के खतरे को कम करते हैं। ये मिट्टी की सेहत को सुधार कर कृषि उत्पादकता को बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस तरह प्रत्येक सोख्‍ता गड्ढा न्यूनतम लागत और प्रयास के साथ स्थायी जल प्रबंधन में महत्वपूर्ण योगदान देता है। 

सोख्‍ता गड्ढे बनाने और इनके काम करने का तरीका समझाने के लिए अतिरिक्त ज़िला मजिस्ट्रेट (पीपी) सहित ज़िला प्रशासन के अधिकारियों और स्वच्छ भारत मिशन टीम ने ज़िला मजिस्ट्रेट के आवास पर सोख्ता गड्ढे के निर्माण का प्रदर्शन भी किया। इस प्रदर्शन का वीडियो बनाकर उसे सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से साझा किया जा रहा है, ताकि लोगों को अपने घर के आसपास, गांवों में और संस्थानों में पेर्कुलेशन पिट बनाने का मार्गदर्शन और प्रेरणा मिल सके।

ज़िला प्रशासन ने नागरिकों, पंचायतों, स्कूलों और संगठनों से उत्तर जल संचय यात्रा में सक्रिय रूप से भाग लेने का आग्रह किया है, ताकि इसे सामूहिक रूप से सफल बनाया जा सके और पर्यावरण संरक्षण के लिए एक नया मानदंड स्थापित किया जा सके।

उत्तर जल संचय यात्रा और सोख्‍ता गड्ढों का निर्माण सिर्फ एक सरकारी कार्यक्रम नहीं है। यह पर्यावरणीय स्थिरता और जल संरक्षण की दिशा में एक बड़ा कदम। यह ‘सुरक्षित जल-सुरक्षित कल’ के लिए शुरू किया गया एक आंदोलन है। यह जल संरक्षण में सामुदायिक भागीदारी के महत्व को रेखांकित करता है। इस अभियान का मुख्य संदेश है- 'वर्षा को वहीं एकत्रित करो जहां वह गिरती है।

चांदनी चंद्रन, ज़िला मजिस्ट्रेट (उत्तरी त्रिपुरा)

ढेढ़ से दो फीट गहरे गड्ढे खोद कर पर्कुलेशन पिट बनाया जाता है, जो बारिश के पानी को ज़मीन के नीचे मौज़ूद जलभृतों तक पहुंचा कर भूजल स्‍तर को बढ़ाता है।
ढेढ़ से दो फीट गहरे गड्ढे खोद कर पर्कुलेशन पिट बनाया जाता है, जो बारिश के पानी को ज़मीन के नीचे मौज़ूद जलभृतों तक पहुंचा कर भूजल स्‍तर को बढ़ाता है। स्रोत: उत्‍तर त्रिपुरा ज़िला प्रशासन
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त्रिपुरा में बारिश के पानी को सोख्‍ता गड्ढे के ज़रिये ज़मीन में पहुंचा कर भूजल को रीचार्ज करने की कोशिश।

कैसे काम करते हैं सोख्‍ता गड्ढे

पेर्कुलेशन पिट आसानी से तैयार की जा सकने वाली एक साधारण संरचना हैं। इसे बनाने के लिए एक गड्डा खोदकर गड्ढे के अंदर नीचे की ओर बजरी, रेत और मोटे पत्थरों की परतें बिछा दी जाती हैं, ताकि पानी धीरे-धीरे छनकर नीचे जमीन में समा सके। यह छनने की प्रक्रिया मिट्टी की ऊपरी परत को साफ रखती है और भूजल को रिचार्ज करती है। आमतौर पर ये 1 से 2.5 मीटर गहरे और लगभग 1 मीटर चौड़े बनाए जाते हैं।  

इस तरह जो पानी पहले बहकर नालों या सड़कों में बेकार चला जाता था, वह अब धरती में जाकर जलस्रोतों को फिर से भरने का काम करता है। ये बारिश के पानी को बहकर बेकार होने (जल-अपवाह को कम करने) से बचाकर उसे ज़मीन में रिसने में मदद करता है, बाढ़ को रोकने और मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 

इनसे खेती को भी फायदा होता है। बारिश के पानी को धरती के भीतर समाहित करने के लिए इन गड्ढों को घरों, खेतों या सार्वजनिक स्थानों के आसपास इस तरह बनाया जाता है कि वर्षा का जल बहकर इनमें इकट्ठा होता है और धीरे-धीरे रिस कर ज़मीन में समा जाता। इस तरह ये साधारण से गड़ढे भूजल के स्तर को बढ़ा कर स्थानीय जल चक्र को भी मज़बूत बनाते हैं।

यह गांवों और शहरों दोनों जगह वर्षा जल संचयन यानी रेन वाटर हार्वेस्टिंग का एक टिकाऊ और ईको-फ्रेंडली उपाय हैं। पानी सोखने के कारण इनके आसपास की मिट्टी में भी काफ़ी समय तक नमी बनी रहती है। इनसे कुओं, हैंडपंपों और बोरवेल का जल स्तर स्थिर रहता है। साथ ही, जल-अपवाह (रन-ऑफ) से होने वाले मिट्टी के कटाव में कमी आती है और पहाड़ी इलाकों में अचानक बाढ़ यानी फ्लैश फ्लड की संभावना भी घटती है। 

सोख्‍ता गड्डों का उपाय खासकर उन इलाकों में बहुत उपयोगी साबित होता है, जहां बारिश तो होती है, लेकिन पानी को सहेजने की व्यवस्था नहीं होती यानी बारिश का पानी बह जाता है। बेहतर रीचार्ज के लिए इन्‍हें समय-समय पर साफ करना भी ज़रूरी होता है, ताकि रेत या कचरा जमा न हो और पानी का रिसाव ठीक से होता रहे।

केंद्रीय भूजल बोर्ड और नेशनल वाटर मिशन ने पर्कुलेशन पिट या पर्कुलेशन टैंक बनाने की एक विस्तृत गाइड बुक और देश के विभिन्‍न इलाकों में किए गए इनके प्रयोगों की क्षेत्रीय केस-स्टडी प्रकाशित की हैं। इनमें ग्रामीण और शहरी, दोनों ही इलाकों में सोख्‍ता गड्ढों के सफलतापूर्वक चलाए गए प्रोजेक्‍टृस की जानकारी दी गई है। 

मिसाल के तौर पर टीओआई की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि किस तरह कर्नाटक के बीदर ज़िले में हजारों सोख्ता गड्ढे बनाकर भूजल पुनर्भरण का मॉडल तैयार किया गया। इस काम के लिए ज़िले को राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला। इसी तरह, रिसर्च गेट की एक रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण गुजरात में पर्कुलेशन पिट के डिज़ाइन पर शोध और परिक्षण किए गए। नतीजनतन, पर्कुलेशन पिट के ऐसे डिज़ाइन सामने आए जो चिकनी मिट्टी वाले इलाकों में भी प्रभावी हो सकते हैं।

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