मैंगलोर के नालों में ट्रैश-बूम: प्लास्टिक प्रदूषण रोकने की स्थानीय पहल
तटीय शहरों का कचरा और प्लास्टिक बारिश में काफ़ी बड़ी मात्रा में नालों से बहकर नदियों और फिर समुद्र में पहुंच जाता है। इस समस्या के समाधान के लिए मैंगलोर में हाल ही में एक कारगर कमद उठाया गया है। इसके तहत बारिश के पानी को तेजी से बहाकर सड़क और बस्तियों से होते हुए नदियों या अन्य जल-निकास तंत्रों में पहुंचाने वाले शहर के कुछ प्रमुख स्टॉर्म-वॉटर नालों पर ट्रैश-बूम बैरियर लगाया गया है। नगर निगम के इस प्रयास को नदियों, बैकवाटर्स और समुद्र में बढ़ते प्लास्टिक प्रदूषण पर लगाम लगाने और शहर के जल-परिस्थितिकी तंत्र को सुरक्षित रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
मंगलोर में ट्रैश-बूम: कौन कर रहा है और क्यों शुरू किया गया
मैंगलोर में ट्रैश-बूम पहल की शुरुआत और उसकी तैयारी करीब एक दशक से चल रही है। 2015 में शहर के 60 वार्ड रोजाना लगभग 226 टन ठोस कचरा पैदा करते थे, जिसमें प्लास्टिक की मात्रा भी काफी थी। उस समय नगर निगम रोजाना 27-28 टन प्लास्टिक अलग करके रीसाइकल के लिए भेजती थी। साल 2022 में, उडुपी जिले में ट्रैश-बूम बैरियर का पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया। इस व्यवस्था से लगभग 5,296 किलो तैरता हुआ कचरा इकट्ठा किया गया जिसमें ज़्यादातर प्लास्टिक ही था। इस प्रोजेक्ट से ही इस तकनीक के असर पर लोगों का ध्यान गया और इसका प्रभा वही स्पष्ट हुआ।
इसके बाद साल 2023 में, मैंगलोर नगर निगम ने कचरा प्रबंधन और उसके बजट का मूल्यांकन किया। उसी साल तय किया गया कि शहर के प्रमुख नालों के मुहानों पर फ्लोटिंग ट्रैश-बूम लगाए जाएंगे। साथ ही सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पर सख्ती करने और कचरे को अलग करने को अनिवार्य बनाने की तैयारी शुरू हुई।
2024 में, सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध और कचरा विभाजन नियमों की समीक्षा की गई। इस दौरान देखा गया कि कुछ जगह नियम पूरी तरह लागू नहीं हो रहे थे, जिससे सुधार की ज़रूरत स्पष्ट हुई।
अप्रैल 2025 से कचरा विभाजन को सख्ती से लागू किया गया। अब गीला, सूखा, स्वच्छता-संबंधी और अजैविक कचरा अलग डब्बों में जमा किया जा रहा है। इसी दौरान, प्रमुख स्टॉर्म-वॉटर नालों के मुहानों पर ट्रैश-बूम बैरियर लगाए जा रहे हैं। इस पहल में स्थानीय इंजीनियरिंग टीम और नगर निगम का पर्यावरण सेल सक्रिय रूप से काम कर रहा है।
ट्रैश-बूम तकनीक की ख़ूबियां: इस तकनीक का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह कम खर्चीली है, जल्दी लग जाती है और स्थानीय स्तर पर तुरंत असर दिखाती है। बूम का डिजाइन भले ही देखने में साधारण लगे, लेकिन इसे इस तरह बनाया गया है कि पानी के बहाव और दबाव के अनुसार यह स्थिर रहे और कचरे को मजबूती से रोक पाए।
सफलता की संभावना और उदाहरण
रिपोर्ट के अनुसार उडुपी जैसे ज़िलों में साल 2022 में ही इस व्यवस्था को लागू कर उसमें एक हद तक सफलता हासिल की जा चुकी है।
इसी रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि बारिश के साथ बहने वाले 70 से 90 फ़ीसद तक फ्लोटिंग प्लास्टिक को इस बैरियर के माध्यम से रोका जा सकता है। स्थानीय नदी-किनारों, मछली पकड़ने वाले क्षेत्रों और बैकवाटर में जमा होने वाले कचरे की मात्रा में कमी आने के साथ ही तटीय प्रदूषण का दर भी घटता है। मैंगलोर के अधिकारियों का भी मानना है कि अगर इन बूम अवरोधों का नियमित रखरखाव होता है, तो 1-2 मौसमों में ही नदी में पहुंचने वाले प्लास्टिक की मात्रा में कई गुना कमी आ सकती है।
प्लास्टिक कचरे का पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर असर
जब प्लास्टिक की थैलियां, बोतलें, पैकेजिंग आदि नदी और समुद्र में पहुंचते हैं, तो ये तैरते कचरे के रूप में होते हैं जिसे फ़्लोटिंग वेस्ट भी कहा जाता है। ऐसे में यह खतरा बढ़ जाता है कि पूरा पारिस्थितिकी तंत्र इसकी बुरे प्रभाव की चपेट में आ जाए। इसके कई तरह के प्रभाव होते हैं:
जलीय जीवन पर प्रभाव
तैरते प्लास्टिक मछलियों, कछुओं, शैवाल, शंख और मैंग्रोव जैसी जलीय प्रजातियों के लिए बाधा बन सकते हैं।
जलीय जीव इन्हें निगल सकते हैं, जिससे उनके स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ता है और ये खाद्य शृंखला के माध्यम से मनुष्यों के शरीर में भी पहुंच सकते हैं।
तटीय पारिस्थितिकी पर प्रभाव:
संवेदनशील तटीय और दलदली क्षेत्रों जैसे बैकवाटर, मैंग्रोव और दलदल की संरचना और जैव विविधता प्रभावित हो सकती है।
पानी की गुणवत्ता, ऑक्सीजन स्तर और प्रवाल व शैवाल पौधों का जीवन संकट में पड़ सकता है।
मानव स्वास्थ्य और आजीविका पर प्रभाव:
नदी और तटीय क्षेत्रों में रहने वाले समुदायों की आजीविका प्रभावित हो सकती है, जैसे मछली पकड़ना, जलीय कृषि और पर्यटन।
प्लास्टिक प्रदूषण से स्वास्थ्य समस्याएं और आर्थिक बोझ बढ़ सकता है।
दीर्घकालिक और स्थायी असर:
प्लास्टिक बायोडिग्रेडेबल नहीं होता, इसलिए यह लंबे समय तक पर्यावरण में मौजूद रहता है।
माइक्रो और नैनोप्लास्टिक को हटाना कठिन है।
रिपोर्ट बताती है कि भारत के तटों पर समुद्री कचरे का लगभग 74 फ़ीसद हिस्सा प्लास्टिक है।
ट्रैश-बूम क्या होता है, कैसे करता है काम?
बारिश के साथ बहकर आने वाले प्लास्टिक, पैकेजिंग का कचरा, बोतलें और थैलियों को नदियों और समुद्र में जाने से रोकने के लिए ट्रैश-बूम को नाले या ड्रेन के मुहाने पर लगाया जाता है। इसमें तैरने वाले पाइप, मजबूत तार, एंकर और मजबूत जाली जैसी संरचना होती है, जिसमें कचरा फंस जाता है और नदी तक नहीं पहुंच पाता। इस पूरे सिस्टम का डिजाइन पानी के बहाव और उसके दबाव को ध्यान में रखकर बनाया जाता है, यानी पानी किस दिशा में और कितनी ताकत से बहता है, उसके अनुसार बूम को स्थिर रखा जाता है।
ट्रैश-बूम बैरियर प्रोजेक्ट की कुछ महत्वपूर्ण बातें
इस तकनीक का उपयोग प्लास्टिक फिशर नामक जर्मनी-बेस्ड सोशल एंटरप्राइज द्वारा मैंगलोर की स्थानीय स्थितियों और ज़रूरतों के मुताबिक किया जा रहा है, जिसमें कम-लागत और सरल तकनीक को तरज़ीह दी गई है।
ट्रैश-बूम बैरियर को मैंगलोर में पहली बार कुड्रोली इलाके के स्टॉर्म ड्रेन के पास एक ट्रैश-बूम स्थापित किया गया था, जो नेत्रावती और गुरुपुरा (फाल्गुनी) नदी और समुद्र में कचरे के प्रवेश को रोकता है।
आंकड़ों के अनुसार लगभग 99 फ़ीसद तैरते कचरे (फ्लोटिंग वेस्ट) को ट्रैश-बूम के ज़रिये रोका जा सकता है, जिससे नदियों और समुद्र के प्रदूषण में काफ़ी कमी आती है।
ट्रैश-बूम बैरियर के ज़रिये रोके गए कचरे को रोज़ाना निकाल कर अलग-अलग करने के बाद री-साइकलिंग और रीयूज़ (पुन:उपयोग) के लिए भेजा जाता है। बाकी बचे अनुपयोगी कचरे को सुरक्षित तरीके से निपटाया जाता है।
मैंगलोर नगर निगम ने इस प्रोजेक्ट के लिए भूमि उपलब्ध करा कर सहयोग दिया है, ताकि ट्रायल की सफलता के बाद इस व्यवस्था को शहर के अन्य इलाक़ों में व्यापक स्तर पर लागू किया जा सके।
मैंगलोर में ट्रैश-बूम बैरियर की पहल दिखाती है कि स्थानीय स्तर पर सरल तकनीकी उपायों से नदियों और तटीय पारिस्थितिकी को प्लास्टिक प्रदूषण से बचाया जा सकता है। हालांकि, यह इस दिशा में केवल पहला कदम है। स्थायी और प्रभावी असर के लिए कचरा संग्रहण, पुनर्चक्रण और नागरिक जागरूकता जैसी नीतिगत और सामुदायिक भागीदारी जरूरी है। अगर ये उपाय नियमित और समन्वित रूप से लागू हों, तो शहर की जल-परिस्थितियों और तटीय पारिस्थितिकी दोनों में लंबी अवधि में सकारात्मक बदलाव संभव है।

