बोहड़ा में थी भीमगौड़ा सी जलधारा, अब पानी का संकट
गांव के अधिकांश किसान नकदी फसलें बोते हैं। दिल्ली की आजादपुर सब्जी मंडी को सर्वाधिक गोभी इसी गांव से जाती है। गोभी पर कीटों का हमला बहुत तेजी से होता है। और यह लगातार होता रहता है। परिणामत: किसान इस पर दबादब कीटनाशकों का छिड़काव करते हैं और खाद डालते हैं। रासायनिक खादों और कीटनाशकों से फसल न झुलसे और न जले इसके लिए पानी की अधिक जरूरत पड़ती है। पानी के अत्यधिक इस्तेमाल से भूजल स्तर तेजी से गिर रहा है तो रासायनिक खाद और कीटनाशकों ने पानी में जहर घोल दिया है। गुड़गांव के राजपूत बाहुल्य बोहड़ा गांव में पानी की उपलब्धता इतनी अधिक थी कि ग्रामीण मुक्का मारकर जमीन से पानी निकाल लेते थे। एक दशक पहले तक आधी दिल्ली को गोभी खिलाने वाले इस गांव में अब पानी की समस्या खड़ी हो रही है।
गांव के बाहर स्थित महाकाल मंदिर में हमारी मुलाकात 59 साल के रामफूल प्रधान से हुई। यहां के पानी की ऐतिहासिक कथा वर्तमान व्यथा और भविष्य को वह ऐसे बताते हैं जैसे यह उनके अध्ययन का विषय रहा हो। आपने गांव के पानी पर कोई अध्ययन किया है क्या? सवाल के जवाब में कहते हैं, मैंने यहां का पानी जीया है।
तालाबों, जोहड़ों में कितनी हजार बार गोते मारे होंगे और कुओं से कितनी बाल्टी पानी निकाला होगा, इसका कोई हिसाब नहीं है। और इसीलिए आपको यह बता पा रहा हूं। हम जमीन में मुक्का मारकर पानी निकाल लेते थे और कहते थे, हम भी भीम हैं। लेकिन सच सही है कि यहां भीमगौड़ा सी जलधारा थी।
बोहड़ा की चारों दिशाओं में चार कोनों पर एक तालाब और तीन जोहड़ थे। चारों दिशाओं में जनसंख्या का घनत्व तो था ही गांव को बाढ़ से बचाने के लिए भी ऐसा किया गया था। यहां के पंचबीर तालाब की गहराई 70 फुट थी। पांच पीरों के ठिकाने से यह पंचपीर हो गया और बाद के समय में लोग इसे पंचबीर कहने लगे।
अब पीरों, फकीरों के इस तालाब में गांव का सारा गंदा पानी जाता है। बगीची वाला जोहड़ के पास बगीची थी। और इसी लिए इसे बगीची वाला कहने लगे। अब बगीची तो रही ही नहीं तालाब भी नहीं रहा। यही स्थिति बाघानाथ तालाब की है। इस तालाब के किनारे गांव में अत्यंत प्रतिष्ठित दिवंगत बाबा बाघानाथ का डेरा है। अब इसकी स्थिति भी जस-की-तस है।
गांव के चारों ओर मीठा पानी था। तारावाली कुईं, मीमा वाली कुईं, चीघड़ वाला और फूलवाला कुओं में मीठा पानी था। पूरा गांव इन्हीं कुओं, कुईयों का पानी पीता था। लाव चिरस का बहुत इस्तेमाल होता था।
खेतों में फसलों की सिंचाई की दृष्टि से तकरीबन 13 बड़े कुएं थे। प्रत्येक कुएं पर कम-से-कम 10 किसान सांझीदार होते थे। गांव में तीन प्याऊ चलते थे। बबनवाली और नीम के पेड़ के नीचे चलने वाली प्याऊ बहुत चलती थी। बाहर से सामन खरीदने और बेचने के लिए आने वाले लोगों में ये दोनों प्याऊ बहुत लोकप्रिय थी।
अब गांवों में न ताला हैं और न कुएं। कहने को पेयजल आपूर्ति की आधुनिक और सरकार व्यवस्था भी है, लेकिन तब भी सबमर्सिबल के बिना काम नहीं चलता है। सबमर्सिबल खेतों और गांव दोनों में है। तब भी पानी की हालत खराब है। चोआ अब 130 फुट पर चला गया है।
खंड पचायत समिति के पूर्व अध्यक्ष देवेंद्र सिंह राजपूत बताते हैं, पहले खेतों में 20-20 फुट के दो पाइप दबाते थे। एक दशक पहले तक 12 घंटे में तीन हार्स पावर की मोटर से अढ़ाई एकड़ की सिंचाई होती थी। अब पाइप 300 फुट की गहराई तक ले जाते हैं। 7.5 हार्स पावर की मोटर के बिना पानी उठता ही नहीं और 12 घंटे में एक एकड़ भरता है। कई जगह तो 15 हार्स पावर की मोटर लगी हुई हैं।
गांव के अधिकांश किसान नकदी फसलें बोते हैं। दिल्ली की आजादपुर सब्जी मंडी को सर्वाधिक गोभी इसी गांव से जाती है। गोभी पर कीटों का हमला बहुत तेजी से होता है। और यह लगातार होता रहता है। परिणामत: किसान इस पर दबादब कीटनाशकों का छिड़काव करते हैं और खाद डालते हैं। रासायनिक खादों और कीटनाशकों से फसल न झुलसे और न जले इसके लिए पानी की अधिक जरूरत पड़ती है।
पानी के अत्यधिक इस्तेमाल से भूजल स्तर तेजी से गिर रहा है तो रासायनिक खाद और कीटनाशकों ने पानी में जहर घोल दिया है। रामफूल खुद से ही सवाल करते हैं कि आखिर पान कब तक? यहां के किसानों को फसल चक्र और रासायनिक खादों, कीटनाशकों के असंतुलित इस्तेमाल और जल कुप्रबंधन को लेकर जागरूक करने की जरूरत है।
महाकाल मंदिर के महन्त महामंडलेश्वर ज्योतिगिरी का यहां व्यापक प्रभाव है। उन्होंने प्रदूषण रोकने के लिए मंदिर परिसर में भक्तों के थैली में प्रसाद या कोई दूसरी सामग्री लाने पर प्रतिबंध लगाया है। उनका इशारा किसानों पर जादू का सा काम कर सकता है। फिर संतों का असली काम तो समाज को बुराइयों के प्रति सचेत करना ही है।
रोहतक के भैंसरू कलां गांव से आए विनोद कौशिक कहते हैं, तो क्या हम मैले और रसायन युक्त पानी से महाकाल का जलाभिषेक कर रहे हैं। रामफूल फसलों के विविधिकरण में गिरते भूजजल स्तर और इसके रसायनमुक्त होने का समाधान देखते हैं।
धारुहेड़ा में बांध बनने के बाद से इन गांवों में पानी का संकट पैदा हुआ है। पहले साहबी नदी और छोटी नदी इंदौरी से यहां खूब पानी आता था। अहीरवाल में पानी जैसे सवालों पर काम करने वाले रघुविंदर यादव कहते हैं, निश्चित रूप से पिछले दो दशक में वर्षा कम हुई है, लेकिन पानी का सदुपयोग और समुचित जल प्रबंधन कर हम इस समस्या से मुक्ति पा सकते हैं। फिर बोहड़ा का संकट रेवाड़ी, गुड़गांव मेवात से बड़ा नहीं है।
नरक जीते देवसर (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिए कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें) | |
क्रम | अध्याय |
1 | |
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3 | पहल्यां होया करते फोड़े-फुणसी खत्म, जै आज नहावैं त होज्यां करड़े बीमार |
4 | |
5 | |
6 | |
7 | |
8 | |
9 | |
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11 | जिब जमीन की कीमत माँ-बाप तै घणी होगी तो किसे तालाब, किसे कुएँ |
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16 | सबमर्सिबल के लिए मना किया तो बुढ़ापे म्ह रोटियां का खलल पड़ ज्यागो |
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19 | |
20 | पाणी का के तोड़ा सै,पहल्लां मोटर बंद कर द्यूं, बिजली का बिल घणो आ ज्यागो |
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