पुस्तकें
पानी की जिंदा किंवदंती
...असीरगढ़ का किला! फौजियों का ठिकाना!
यह किला फारुखी, मुगल, अंग्रेजों, मराठों आदि शासकों की छावनी रह चुका है।
असीरगढ़ के किले के नीचे की ओर मुख्य दीवार व सुरक्षा की दूसरी दीवार के बीच में अनेक स्थानों पर अभी भी पुरातनकालीन गड्ढे जीर्ण-शीर्ण अवस्था में देखने को मिलते हैं। इनमें अब मिट्टी भर गई है। ये इस बात का संकेत देते हैं कि छत की दीवार, बाहरी ढलान या ओवर-फ्लो पानी को भी इन कुण्डियों में सहेजा जाता होगा। किले की पूर्वी-दक्षिण दिशा में पानी निकासी की दो छोटी-छोटी नहरें दिखाई देती हैं। स्थानीय लोग इन्हें गंगा-जमुना के नाम से जानते हैं।
“यहाँ के तालाब कभी सूखते नहीं हैं। बरसात के दिनों में ये लबालब हो जाते हैं, जबकि गर्मी के दिनों में भी इनमें पानी रहता है। एक तालाब में पृथक से बीच में कुण्ड भी बना हुआ है। इसमें भी गर्मी में पानी रहता है। तालाबों की रचना व उनमें जल संचय की पद्धति भी काफी रोचक है।”
“असीरगढ़ की समग्र जल संचय पद्धति बताती है कि सैकड़ों साल पहले पानी का प्रबंध पूरी तरह से तकनीकी और विज्ञान सम्मत रहा है। इसकी योजना पूरी तरह से बेहतर रूप से सुनियोजित की गई थी। पूरे पहाड़ पर पानी की एक बूँद को भी बेकार नहीं जाने दिया जाता था। यह जल संचय आज सर्वाधिक प्रासंगिक और सीख देने वाला है।”
“यहाँ चार स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था थी। यह उस काल की सबसे मजबूत सुरक्षा व्यवस्था मानी जाती थी। हजारों सैनिक यहाँ रहा करते होंगे। हर स्तर पर नजदीक में पीने के पानी की व्यवस्था होगी। यह बात हमें जीर्ण-शीर्ण कुण्डों और नहरों की नेटवर्किंग से आसानी से समझ में आ जाती है।”
मध्य प्रदेश में जल संरक्षण की परम्परा (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।) | |
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