Haryana-Punjab Water Dispute: हरियाणा-पंजाब के बीच जल विवाद गहराया, पंजाब सरकार ने नंगल डैम पर की पुलिस तैनात
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पंजाब-हरियाणा जल विवाद: SYL नहर, भूजल संकट और BBMB जल बंटवारा

जानिए पंजाब-हरियाणा जल विवाद के ऐतिहासिक कारणों से लेकर मौजूदा SYL नहर, BBMB फैसलों और भूजल संकट के चलते जल बंटवारे की चुनौतियां। भाखड़ा बांध से जल बंटवारे को लेकर पंजाब-हरियाणा में पुराना टकराव; SYL नहर, BBMB फैसले और बढ़ता भूजल संकट इसे और जटिल बना रहे हैं।
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पंजाब और हरियाणा के बीच जल विवाद (Punjab-Haryana water dispute) दशकों पुराना है, लेकिन हाल के महीनों में भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (BBMB) के फैसले, नेताओं की तीखी बयानबाजी और भूजल संकट (groundwater crisis) ने इसे और जटिल बना दिया है। यह विवाद सतलुज-यमुना लिंक नहर (SYL canal) के अधूरे निर्माण और ब्यास, रावी व सतलुज नदियों के पानी के बंटवारे को लेकर है। BBMB द्वारा हरियाणा को अतिरिक्त पानी देने के आदेश ने पंजाब में तीव्र विरोध को जन्म दिया है। इस बीच, दोनों राज्यों में भूजल की गंभीर स्थिति ने इस जल संकट को और गंभीर बना दिया है।

विवाद की शुरुआत: 1966 का पुनर्गठन

पंजाब और हरियाणा के बीच जल बंटवारे का विवाद (water sharing dispute) 1966 में शुरू हुआ, जब हरियाणा को पंजाब से अलग कर एक नया राज्य बनाया गया। इस पुनर्गठन के बाद हरियाणा ने ब्यास, रावी और सतलुज नदियों के पानी में अपने हिस्से की मांग की, जो 1960 की इंडस जल संधि (Indus Water Treaty) के तहत भारत को आवंटित थीं। इस मांग को पूरा करने के लिए सतलुज-यमुना लिंक नहर (SYL canal) प्रस्तावित की गई, जिसका उद्देश्य दोनों राज्यों के बीच पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करना था। लेकिन, कानूनी और राजनीतिक अड़चनों के कारण यह नहर आज तक पूरी नहीं हो सकी, जिससे पंजाब-हरियाणा जल विवाद और गहरा गया।

BBMB का ताज़ा फैसला

1 मई, 2025 को भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (BBMB) ने हरियाणा को 8,500 क्यूसेक अतिरिक्त पानी देने का फैसला किया। इस फैसले ने पंजाब में तीव्र प्रतिक्रिया को जन्म दिया। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने इसे "पंजाब के पानी के अधिकारों की लूट" करार देते हुए कहा, "हमारी एक बूंद पानी भी हरियाणा को नहीं देंगे। हमारे किसान पहले ही जल संकट से जूझ रहे हैं।" (The Economic Times)

इसके जवाब में हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने पंजाब पर तंज कसते हुए कहा, "पंजाब सरकार गंदी राजनीति कर रही है। वे किसानों के हितों को नजरअंदाज कर अपनी सियासी रोटियां सेंक रहे हैं। हरियाणा को उसका हक़ मिलना ही चाहिए।" (Hindustan Times) पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वारिंग ने भी इस मुद्दे पर तीखा हमला बोला और कहा, "हरियाणा को पहले ही उसका हिस्सा मिल चुका है। अब और पानी की मांग पंजाब के साथ अन्याय है।" (Prokerala)

हरियाणा के जल संसाधन मंत्री ने SYL नहर का मुद्दा उठाते हुए कहा, "जब तक SYL नहर पूरी नहीं होती, हरियाणा अपने हिस्से के पानी के लिए लड़ता रहेगा। पंजाब की आपत्तियां केवल समय की बर्बादी हैं।" (The Tribune) इन बयानों ने दोनों राज्यों के बीच तनाव को और गहरा कर दिया।

2 मई, 2025 को केंद्र सरकार ने हस्तक्षेप करते हुए पंजाब को भाखड़ा बांध से हरियाणा के लिए आठ दिनों तक 4,500 क्यूसेक अतिरिक्त पानी छोड़ने का निर्देश दिया। (The Hindu) इस फैसले के बाद BBMB के भागीदार राज्यों—पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान—के बीच एक उच्च-स्तरीय बैठक बुलाई गई, लेकिन राजनीतिक बयानबाजी ने सहमति की राह को और मुश्किल बना दिया। (Daily Pioneer)

कहां गया हरियाणा और पंजाब का भूजल

पंजाब और हरियाणा, जो कभी ग्रीन रिवॉल्यूशन के केंद्र थे, अब भूजल संकट (groundwater crisis) का सामना कर रहे हैं। केंद्रीय भूजल बोर्ड (Central Ground Water Board) के आंकड़ों के अनुसार, पंजाब के 80% और हरियाणा के 60% ब्लॉकों में भूजल स्तर खतरनाक रूप से कम हो चुका है। धान की गहन खेती, अक्षम सिंचाई प्रथाएं और ट्यूबवेलों का अत्यधिक उपयोग इसकी प्रमुख वजह हैं। पंजाब में प्रतिवर्ष औसतन 1.5 मीटर भूजल स्तर गिर रहा है, जबकि हरियाणा में यह 1.2 मीटर है। (Economic and Political Weekly) दोनों राज्यों में भूजल पुनर्भरण की दर मांग से काफी कम है, जिससे किसान नदी जल पर अधिक निर्भर हो गए हैं। यह स्थिति पंजाब-हरियाणा जल विवाद को और जटिल बनाती है, क्योंकि दोनों राज्य न केवल नदी जल के लिए, बल्कि सीमित भूजल संसाधनों के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं।

भूजल संकट (groundwater depletion) पंजाब और हरियाणा के बीच जल विवाद में एक गंभीर आयाम जोड़ रहा है। पंजाब का दावा है कि भूजल की कमी के कारण उसके पास नदी जल का अतिरिक्त हिस्सा हरियाणा को देने की गुंजाइश नहीं है। दूसरी ओर, हरियाणा का तर्क है कि SYL नहर के अभाव में उसे भूजल पर अत्यधिक निर्भर रहना पड़ता है, जिससे उसका जल संकट बढ़ रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर दोनों राज्य भूजल प्रबंधन (groundwater management) और जल उपयोग की दक्षता पर ध्यान दें, तो नदी जल पर निर्भरता कम हो सकती है। उदाहरण के लिए, ड्रिप इरिगेशन और वर्षा जल संचयन जैसे उपाय भूजल पुनर्भरण को बढ़ा सकते हैं। लेकिन, राजनीतिक बयानबाजी और आपसी अविश्वास ने इन समाधानों को लागू करने में बाधा डाली है, जिससे पंजाब-हरियाणा जल विवाद और गहरा रहा है। (Economic and Political Weekly)

भूजल के अत्यधिक दोहन से उपजी पर्यावरण और आर्थिक चुनौतियां

पंजाब और हरियाणा दोनों ही ग्रीन रिवॉल्यूशन के बाद से भूजल के अत्यधिक दोहन का सामना कर रहे हैं। धान की खेती और सिंचाई की भारी मांग ने जल संकट को और गहरा दिया है। एक अध्ययन के अनुसार, अगर पानी के उपयोग में 15-20% की दक्षता लाई जाए, तो दोनों राज्यों की मांग पूरी हो सकती है। लेकिन, राजनीतिक बयानबाजी और आपसी अविश्वास ने इन समाधानों को लागू करने में बाधा डाली है। पंजाब का दावा है कि उसके पास अतिरिक्त पानी नहीं है, जबकि हरियाणा SYL नहर के पूरा होने तक अपने हिस्से की मांग पर अड़ा है। इस बीच, पंजाब में किसान संगठनों ने BBMB के फैसले के खिलाफ प्रदर्शन शुरू कर दिए हैं, और हरियाणा में भी किसान SYL नहर के निर्माण की मांग को लेकर सड़कों पर उतर रहे हैं।

आगे की राह

पंजाब और हरियाणा के बीच जल विवाद (Punjab-Haryana water conflict) का समाधान आसान नहीं है। शोध बताता है कि द्विपक्षीय वार्ता सबसे कारगर रास्ता हो सकता है, लेकिन नेताओं की उग्र बयानबाजी, भूजल संकट और जनता की भावनाएं इस रास्ते को मुश्किल बना रही हैं। पर्यावरणीय चुनौतियों, जैसे भूजल की कमी और अक्षम जल प्रबंधन, को हल करने के लिए दोनों राज्यों को मिलकर काम करना होगा। ड्रिप इरिगेशन, वर्षा जल संचयन और फसल विविधीकरण जैसे कदम भूजल संकट को कम कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए राजनीतिक सहमति जरूरी है।

केंद्र सरकार की भूमिका भी अहम है। BBMB के फैसले और केंद्र के हस्तक्षेप से यह साफ है कि तीसरे पक्ष का दखल बढ़ रहा है, लेकिन बिना राजनीतिक सहमति के यह दखल स्थायी समाधान नहीं दे सकता।

हरियाणा और पंजाब के बीच जल विवाद केवल नदी जल के बंटवारे का मसला नहीं है; यह राजनीति, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था का एक जटिल मिश्रण है। BBMB का ताज़ा फैसला, नेताओं की बयानबाजी और भूजल का गहराता संकट इस विवाद को और गंभीर बना रहे हैं। अगर दोनों राज्य और केंद्र सरकार मिलकर ठोस कदम नहीं उठाते, तो यह जल संकट न केवल किसानों के लिए, बल्कि पूरे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था और सामाजिक ताने-बाने के लिए खतरा बन सकता है। क्या भविष्य में सहमति की कोई राह निकलेगी, या यह संकट और गहराएगा? यह सवाल अभी अनुत्तरित है।

स्रोत और संदर्भ:

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