के डले विकास है, पाणी नहीं तो विकास किसा

दम तोड़ते गुड़गांव के परंपरागत तालाबदिल्ली के नजफगढ़, महिपालपुर या महरौली रोड से जैसे ही कोई दुनिया भर में विकास का मॉडल बने दूध इही के खाणे वाले हरियाणा में घुसता है तो सबसे पहले जो दो चीजें आपका स्वागत करती हैं वे हैं सस्ती शराब और बोतलबंद पानी। जिन जगहों पर अब शराब और पानी बिकता है, किसी जमाने इनके इर्द-गिर्द पानी की प्याऊ होती थी, जो अब नहीं हैं।

पिछले डेढ़ दशक में गुड़गांव ने कथित विकास की सारी सीमाएं तोड़ दी हैं। गुड़गांव के इस विकास का सबसे पहले अगर किसी गांव का लाभ मिला तो वह है सुखराली। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी जब समीप के गांव डूंडाहेड़ा में मारुति फैक्ट्री लेकर आए तो सुखराली की तस्वीर भी बदलने लगी।

इसी दौर में इफको ने यहां अपना अंतरराष्ट्रीय कारपोरेट कार्यालय बनाया। आज सुखराली में बने कई हजार घरों में किराए पर हजारों लोग रहते हैं। शहर की सबसे मंहगी बस्तियों में से एक हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण का सेक्टर 16 यहीं है।

प्रबंधन की पढ़ाई कराने वाले देश के सर्वाधिक प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक प्रबंधन विकास संस्थान (मैनेजमेंट डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट) इसी गांव में है। जनसंख्या लगातार बढ़ रही है।

यह अलग बात है कि मनुष्य जीवन के आधार पानी का आज तक यहां कोई प्रबंध नहीं है। हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण और जन स्वास्थ्य विभाग यहां जलापूर्ति करता है, गांव में सैकड़ों सबमर्सिबल पंप भी लगे हैं। लेकिन पानी के लिए दिन भर मारामारी रहती है। पानी 400 फुट नीचे चला गया है।

परपंरा के मुताबिक पहले यहां नवविवाहित जोड़ों, नवजात शिशुओं की जात लगती थी। इस परपंरा के तहत मुख्य कार्य जोहड़ से मिट्टी निकालना होता था ताकि इसकी सफाई होती रहे। ग्रामीण इस तालाब से मनोकामना मांगते थे, जब कामना पूरी हो जाती थी तो सबसे पहला काम तालाब से मिट्टी निकालने यानी छंटाई का होता था। रूपाशाही नामक तालाब पर अब कब्जे हो गए हैं। इसे पूरी तरह पाट दिया गया है।

संस्थान से 100 मीटर से कम दूरी पर स्थित गांव के 20 फुट गहरे एकमात्र जोहड़ में पानी की एक बूंद तक नहीं है। इसके दो किनारों पर बहुमंजिला मकानों की भरमार हो गई है। कुछ दबंगों ने कब्जे भी कर लिए हैं।

बाऊ जी आपके गांव में तो बहुत विकास हो गया है, लेखक की टिप्पणी पर गांव के 90 बरस के एकदम कड़क बुजुर्ग बलबीर सिंह गुस्साकर पलटवार करते हैं, के डले विकास है, पाणी नहीं तो विकास किसा? (क्या पत्थर विकास किया है, पानी नहीं तो विकास कैसा?) आपके यहां तो मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट भी है। पर साथ बैठे 60 साल के रणधीर सिंह कहते हैं, सुणा है, अमरीका अर सिंगापुर म्ह मैनेजमेंट करैं सैं यहां पढ़ने वाले, पर आज तक म्हारा तो पाणी का मैंनेजमेंट भी ना कर्या। (सुना है कि यहां पढ़ने वाले अमेरिका और सिंगापुर में मैनेजमेंट करते है, पर हमारे गांव में तो पानी का मैनेजमेंट भी नहीं किया।)

सुखराली से कुछ ही दूरी पर है, गुरु द्रोणचार्य के नाम पर बसा गांव गुरुग्राम यानी गुड़गांव। अब यह गांव चारों ओर से तेजी से नवोदित नियोजित और अनियोजित बस्तियों ने घेर लिया है। सो पानी की मांग कई गुना बढ़ गई है। भूजल स्तर की हालत बहुत खराब हो गई है।

यहां शीतला माता का मंदिर है। इस मंदिर में लाखों लोग हर साल मां शीतला के दर्शन के लिए आते हैं, लेकिन माता मंदिर के साथ स्थित पांच एकड़ में फैला तालाब अब बस कहने भर को है। इसमें पानी के नाम पर एक बूंद नहीं है। जिन रास्तों से इस तालाब में पानी आता था, अब उन पर विशालकाय भवन बन गए हैं।

परपंरा के मुताबिक पहले यहां नवविवाहित जोड़ों, नवजात शिशुओं की जात (तालाब की पूजा परंपरा) लगती थी। इस परपंरा के तहत मुख्य कार्य जोहड़ से मिट्टी निकालना होता था ताकि इसकी सफाई होती रहे। ग्रामीण इस तालाब से मनोकामना मांगते थे, जब कामना पूरी हो जाती थी तो सबसे पहला काम तालाब से मिट्टी निकालने यानी छंटाई का होता था। रूपाशाही नामक तालाब पर अब कब्जे हो गए हैं। इसे पूरी तरह पाट दिया गया है।

यह जोहड़ अब नहीं है। सो जात लगे भी तो कैसे। राज्य सरकार ने बाकायदा शीतला माता मंदिर बोर्ड बनाया है। यह मंदिर की देखभाल करता है। तालाब मंदिर परिसर से सटा है। सरकार मंदिर के रख रखाव पर हर साल मोटी राशि खर्च करती है। मंदिर में भेंट और दान के नाम पर हर वर्ष करोड़ों रुपया आता है, लेकिन तालाब किसी के एजेंडे में नहीं हैं।

.शिवपुरी में छोटी सी जोहड़ी है। तालाब में अब प्रकृति जैसा कुछ नहीं है। यह पक्का हो गया है। इसे सबमर्सिबल या जन स्वास्थ्य विभाग के पानी से भरा जाता है। गुरू द्रोणाचार्य मंदिर के निकट स्थित पिंछोकरा तालाब की स्थिति भी यही है।

ग्रामीण ओमप्रकाश कटारिया के मुताबिक, पिंछोकरा का नाम पांच पांडवों के नाम पर था। पिंछोकरा यानी पांच छोकरे यानी पांच पांडव। इसके भी प्रवेश रास्तों पर लगभग कब्जे हो गए हैं। पूरे गांव के मीठे पानी का एकमात्र स्रोत रविदत्त का कुंआ अब सूख गया है। मौजी वाला कुंआ भी अब नहीं रहा, मौजी वाला कुंआ मार्ग के नाम पर गांव में राजनीति खूब हुई, धरने-प्रदर्शन भी, लेकिन कुंआ कैसे बचे इसके बारे में किसी ने सोचा तक नहीं।

क्रमश:

 

नरक जीते देवसर

(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिए कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें)

क्रम

अध्याय

1

भूमिका - नरक जीते देवसर

2

अरै किसा कुलदे, निरा कूड़दे सै भाई

3

पहल्यां होया करते फोड़े-फुणसी खत्म, जै आज नहावैं त होज्यां करड़े बीमार

4

और दम तोड़ दिया जानकीदास तालाब ने

5

और गंगासर बन गया अब गंदासर

6

नहीं बेरा कड़ै सै फुलुआला तालाब

7

. . .और अब न रहा नैनसुख, न बचा मीठिया

8

ओ बाब्बू कीत्तै ब्याह दे, पाऊँगी रामाणी की पाल पै

9

और रोक दिये वर्षाजल के सारे रास्ते

10

जमीन बिक्री से रुपयों में घाटा बना अमीरपुर, पानी में गरीब

11

जिब जमीन की कीमत माँ-बाप तै घणी होगी तो किसे तालाब, किसे कुएँ

12

के डले विकास है, पाणी नहीं तो विकास किसा

13

. . . और टूट गया पानी का गढ़

14

सदानीरा के साथ टूट गया पनघट का जमघट

15

बोहड़ा में थी भीमगौड़ा सी जलधारा, अब पानी का संकट

16

सबमर्सिबल के लिए मना किया तो बुढ़ापे म्ह रोटियां का खलल पड़ ज्यागो

17

किसा बाग्गां आला जुआं, जिब नहर ए पक्की कर दी तै

18

अपने पर रोता दादरी का श्यामसर तालाब

19

खापों के लोकतंत्र में मोल का पानी पीता दुजाना

20

पाणी का के तोड़ा सै,पहल्लां मोटर बंद कर द्यूं, बिजली का बिल घणो आ ज्यागो

21

देवीसर - आस्था को मुँह चिढ़ाता गन्दगी का तालाब

22

लोग बागां की आंख्यां का पाणी भी उतर गया

 

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