खूँटी (रैटुन) ईख की वैज्ञानिक खेती (sugarcane farming)

9 Oct 2017
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ईख (गन्ने) की खेती
ईख (गन्ने) की खेती

ईख (गन्ने) की खेतीईख की खेती में खूँटी फसल का बहुत ही योगदान है। मुख्य फसल की तुलना में खेती करना आसान होता है एवं उत्पादन खर्च करीब 30 प्रतिशत कम होता है। क्योंकि जब हम खूँटी फसल लेते हैं तो खेत की तैयारी, बीज एवं रोपनी का खर्च बच जाता है। मुख्य फसल को काटने के बाद पौधे के निचले हिस्से में स्थित आँखे फिर नए पौधे के रूप में निकल आती है उसे ही खूँटी फसल कहते हैं। वैज्ञानिक विधि से खेती कर हम खूँटी फसल से मुख्य फसल के बराबर पैदावार ले सकते हैं।

अच्छी खूँटी फसल लेने के उपाय


1. प्रभेद का चुनाव


खूँटी फसल लेने के लिये प्रभेद का सही चुनाव बड़ा ही आवश्यक है। मुख्य फसल जिसे खूँटी फसल के लिये रखना है बीमारी रहित हो एवं कीड़े-मकोड़े का प्रकोप नहीं हाना चाहिए साथ ही पौधों की समुचित संख्या होनी चाहिए। मुख्य फसल काटने के बाद कई कारणों से पौधों की संख्या कम हो जाती है। खूँटी फसल में कम-से-कम 27,000 झुड़/हेक्टयर होना चाहिए। उसी प्रभेद का चुनाव करना चाहिए जिसकी अंकुरण क्षमता अच्छी हो एवं कल्ले ज्यादा फुटते हों। झारखण्ड राज्य के लिये बी.ओ. 147 खूँटी फसल के लिये अनुकूल है।

2 सही समय पर मुख्य फसल की कटाई


अच्छी खूँटी फसल के लिये मुख्य फसल की समय पर कटाई आवश्यक है। आमतौर पर ईख की कटाई नवम्बर से लेकर अप्रैल महीने तक होती है, किन्तु फरवरी-मार्च में काटी गई मुख्य फसल से अच्छी खूँटी प्राप्त होती है। शरदकाल में काटी गई ईख अधिक ठंड की वजह से अच्छी खूँटी नहीं देती है तथा कल्ले भी कम निकलते हैं। बसन्त कालीन खूँटी में कल्लों की समस्या नहीं होती है बल्कि अधिक कल्ले प्राप्त होते हैं। देर से काटी गई मुख्य फसल (अप्रैल-मई) भी खूँटी फसल के लिये उपयुक्त नहीं होती, क्योंकि खूँटी फसल को वृद्धि के लिये समय कम मिल पाता है। खूँटी फसल में खाद एवं सिंचाई जितनी जल्दी हो कर देनी चाहिए।

3. सूखी पत्तियों को जलाना


मुख्य फसल की कटाई के बाद सूखी पत्तियों को बिछाकर जला देना चाहिए, क्योंकि बहुत से कीड़े-मकोड़े खूँटी फसल में इसी माध्यम से आ जाते हैं। सूखी पत्तियों को जलाने से एक खास लाभ यह होता है कि ईख की खूँटी लगी आँख झुलस जाती है तथा नया अंकुरण जमीन के अन्दर पड़ी आँख से होगा जो आगे चलकर अच्छी खूँटी फसल का रूप धारण करेगा। इसके साथ-साथ खेत में खरपतवार एवं कीट भी नष्ट हो जाते हैं।

4 खूँटी की छँटाई एवं मेड़ तोड़ना


जहाँ तक सम्भव हो मुख्य फसल की कटाई जमीन की सतह से ही करनी चाहिए तथा बाद में मेड़ों को तोड़ देना चाहिए उसके बाद खूँटियों को तेज धार वाले यंत्र से काट देना चाहिए। इस प्रक्रिया से आँखों का अंकुरण समान रूप से हो पाता है एवं कल्ले भी स्वस्थ एवं एक साथ निकलते हैं।

5 मिट्टी एवं खूँटी उपचार


मेड़ तोड़ने के बाद पंक्तियों के बीच 10-15 टन सड़े गोबर की खाद या कम्पोस्ट को समान रूप से छिटकर देशी हल से जोतकर मिला दें। साथ ही 10 किलोग्राम फोरेट प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डाल दें। इससे खूँटी फसलों को कीटों से सुरक्षा मिलती है। खूँटी के कटे भाग पर इमीसान 0.25 प्रतिशत घोल का छिड़काव भी कर सकते हैं।

6. खाली जगहों को भरना


ईख की खूँटी की पंक्तियों में प्रति मीटर की दूरी पर तीन झुड़ होने चाहिए। इस प्रकार एक हेक्टेयर की खूँटी फसल में लगभग 38000 से 38500 झुड़ होना चाहिए। अगर झुड़ों की संख्या 27000 से 33000 प्रति हेक्टेयर के बीच है तब खूँटी फसल की उपज पर कुप्रभाव नहीं पड़ता है। खाली स्थानों की संख्या अधिक होने पर ईख के ऊपर भाग के तीन आँख वाले अंकुरित टुकड़ों की रोपाई कर देनी चाहिए। यह कार्य खेत की पहली जुताई के समय करना लाभप्रद है। अगर तीन आँख वाले जमें हुए टुकड़े न प्राप्त हों तो ईख के उस खेत से जिससे खूँटी नहीं ली जानी है, ईख के झुड़ों को जमीन से खोदकर खाली स्थानों की भरपाई कर दें। इसके तुरन्त बाद सिंचाई कर देनी चाहिए।

7 उर्वरक की मात्रा


खूँटी फसल में खूँटियों की छँटाई के तीन सप्ताह बाद ही रासायनिक उर्वरक का व्यवहार करें। तीन सप्ताह के बाद ईख के कल्लों में तीन-चार पत्तियाँ आ जाती है। खूँटी फसल में जीवाणु की सक्रियता जड़ों के सड़ने के कारण अधिक होती है, इस वजह से इसे नाइट्रोजन की अधिक आवश्यकता होती है। खूँटी फसल में 150 किलोग्राम नाइट्रोजन एवं पूरा फास्फेट तथा पोटैशियम खुँटार की छँटाई के तीन सप्ताह बाद एवं शेष बचा भाग मिट्टी चढ़ाते समय जून के अन्त में व्यवहार करना चाहिए।

8 सिंचाई


खूँटी फसल की करीब तीन सप्ताह के अन्तराल पर मानसून की वर्षा के पहले तक जरूर सिंचाई करते रहना चाहिए। पहली सिंचाई सूखी पत्तियों को जलाने तथा खूँटियों की छँटाई करने के बाद करनी चाहिए। बाद की सिंचाई तीन-चार सप्ताह के अन्तराल पर करें। इस तरह कुल 4-5 सिंचाई देना आवश्यक है। प्रत्येक सिंचाई के बाद निकाई-गुड़ाई अवश्य करें जिससे खरपतवार नियंत्रित रहे। मानसून की वर्षा के समय खेत में जल जमाव की स्थिति से जल निकास का उचित प्रबन्ध होना चाहिए।

9 स्तम्भन (बाँधना)


अगर अच्छी तरह खाद दी जाये एवं सिंचाई की जाये तो फसल की बहुत अच्छी वृद्धि होती है। बरसात के समय तेज हवा चलने से इसके गिरने का काफी डर रहता है। इसलिये अगस्त से मध्य सितम्बर तक खूँटी फसल के बाँधने का काम अवश्य कर देना चाहिए। इसके लिये दो समानान्तर पत्तियों के झुड़ों को एकान्तर शृंखला में पत्ती रस्सी विधि से बाँधना चाहिए। पत्ती रस्सी विधि में ईख की ही कुछ सूखी एवं कुछ हरी पत्तियों को मिलाकर रस्सी बना ली जाती है।

10 कीट एवं बीमारी से बचाव


खूँटी फसल को कीट एवं बीमारी से बचाने के लिये खूँटी के कटाई के बाद प्रति हेक्टेयर 50 w.p. वेबिस्टीन 500 ग्राम दवा 500 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें। साथ ही कीटनाशी फोरेट 10 जी 10 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से खूँटियों की छटाई के सप्ताह भर के अन्दर प्रयोग करें।

इस प्रकार उपरोक्त बातों का अगर हम ध्यान रखें तो हम मुख्य फसल की तरह खूँटी फसल से उपज प्राप्त कर सकते हैं।

 

पठारी कृषि (बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की त्रैमासिक पत्रिका) जनवरी-दिसम्बर, 2009


(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।)

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