पाणी का के तोड़ा सै,पहल्लां मोटर बंद कर द्यूं, बिजली का बिल घणो आ ज्यागो


गांव के चारों ओर शहरी विकास प्राधिकरण और निजी कालोनाइजरों ने बहुमंजिला इमारतें खड़ी कर दी हैं। ग्रामीणों ने भी किराए के चक्कर में अब बहुमंजिला भवन बना दिए हैं। पशुपालन का धंधा अब 5 प्रतिशत से भी कम लोग करते हैं। इसीलिए लोगों ने पशुबाड़ों पर भी किराएदारों के लिए बहुमंजिला भवन खड़े कर दिए हैं। एक दशक पहले तक पशुपालन यहां का प्रमुख कारोबार था। हालांकि अब यह न के बराबर रह गया है, लेकिन जनसंख्या बढ़ने के चलते पानी की खपत कई गुना बढ़ गई है। नवउदारीकरण के चलते गत डेढ़ दशक में हुए भौतिक विकास में कृष्ण का कन्हई गुड़गांव के एकदम बीच में आ गया है। यहां के लोग अब इसे गुड़गांव का दिल कहते हैं। यदुवंशी बहुल इस गांव के लोग कन्हई का कन्हैया यानी कृष्ण से रिश्ता बताते हैं।

एक दशक पहले तक कन्हई इलाके का सबसे अधिक हरा-भरा गांव था। यह तालाबों और कुओं का ही कमाल था कि भयंकर सूखे के वर्षों में भी इस गांव में हरियाली रहती थी।

नरक जीते देवसर23 एकड़ गौचारान भूमि में साल भर कई जगह पानी खड़ा रहता था, हरे-भरे पेड़ थे सो भूजल स्तर का संकट कभी नहीं हुआ। यहां के राव रामसिंह पब्लिक स्कूल के प्रबंधक जगदीश यादव के मुताबिक, 1997 में हमारे गांव में अच्छी बारिश नहीें हुई, लेकिन पानी की पर्याप्त उपलब्धता और मिठास के चलते हमने टमाटर की खेती से एक एकड़ में 2.50 लाख रुपए कमाए।

बकौल, जगदीश पानी इतना ताकतवर और मीठा था कि खाद तक की जरूरत नहीं पड़ती थी।

कन्हई के तालाबों में से एक पर रामलीला मैदान बन गया है तो एक अन्य पर पार्क। ग्रामीण सज्जन सिंह बताते हैं, बाबा मनीराम का जोहड़ 5 एकड़ में था। यह जोहड़ इतना गहरा था कि अपने आप में अकेला पूरे गांव के भूजलस्तर को ऊंचा बनाए रखता था। हालांकि इसे अब समतल कर दिया गया है यही स्थिति छोटी जोहड़ी की भी हो गई है। गांव के चारों ओर शहरी विकास प्राधिकरण और निजी कालोनाइजरों ने बहुमंजिला इमारतें खड़ी कर दी हैं।

ग्रामीणों ने भी किराए के चक्कर में अब बहुमंजिला भवन बना दिए हैं। पशुपालन का धंधा अब 5 प्रतिशत से भी कम लोग करते हैं। इसीलिए लोगों ने पशुबाड़ों पर भी किराएदारों के लिए बहुमंजिला भवन खड़े कर दिए हैं। एक दशक पहले तक पशुपालन यहां का प्रमुख कारोबार था। हालांकि अब यह न के बराबर रह गया है, लेकिन जनसंख्या बढ़ने के चलते पानी की खपत कई गुना बढ़ गई है। कन्हई के पास बसी साउथ सिटी फेज 1, हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण के सेक्टर 45, आरडी सिटी आदि में भी पीने और यहां तक कि नहाने के पानी का संकट कई बार बन जाता है। आसपास के इलाके में प्रॉपर्टी का कारोबार करने वाले अवतार भी बताते हैं कि पानी की समस्या का पता चलने के बाद कई बार उनके ग्राहक बिदक जाते हैं।

एक दशक पहले यहां चोआ 50 फुट पर होता था, अब 110 से 120 पर चला गया है। गांव और आसपास गिरते भूजल स्तर की फिक्र शायद किसी को नहीं है। गुड़गांव में पानी को समझाने के लिए मैं सुबह 7 बजे कन्हई पंहुचा। एक महिला अपने घर का भारी-भरकम चबूतरा साफ कर, पड़ोस में रहने वाली अपनी सहेली से बातचीत में मशगूल थी। इधर, सबमर्सिबल चालू था और गली में पानी बहा जा रहा था। हमारे साथ चल रहे एक ग्रामीण युवक ने महिला को कहा, बात पाच्छै कर लियो, पाणी बर्बाद हो रह्या सै। महिला झट से संभली और बोली, पाणी का के तोड़ा सै, पहल्लां मोटर बंद कर द्यूं, बिजली का बिल घणो आ ज्यागो। यानी पानी की कोई कमी नहीं है, मोटर इसलिए बंद कर रही हूं कि बिजली का बिल ज्यादा आ जाएगा। 80 साल के बुजुर्ग सिमरत सिंह, 70 के चरण सिंह के साथ तकरीबन पांच-छह बुजुर्गों और इतने ही युवाओं की धमाचौकड़ी जमी है।

हरियाणा विधानसभा के चुनाव से लेकर, रक्षा राज्य मंत्री राव इंद्रजीत सिंह के राजनीतिक भविष्य से लेकर मोदी सरकार का बजट तक इनके चर्चा के एजेंडे में हैं। पानी की बात शुरू होते ही एक बुजुर्ग कहते हैं, इन छोरटां न्ह तो पाणी तै कोए मतलब नहीं, अर म्हारी ना सरकार सुणती अर ना ए बीरबानी। पाणी आले मोटर चलाकै सो ज्या सैं या उर-परै हो ज्या सैं। बिना मतलब पाणी बहे जा सै। हालांकि नगर निगम, शहरी विकास प्राधिकरण और जनस्वास्थ्य विभाग ने पीने के पानी की व्यवस्था गांव और आसपास में बसी कालोनियों और बहुमंजिला इमारतों के लिए की है। छोटे से गांव में प्रशासन ने 10 सबमर्सिबल लगाए हैं, लेकिन तब भी ठीक-ठाक आर्थिक स्थिति वाले हर ग्रामीण के घर में सबमर्सिबल लगा है। सरकारी पंप वाले इलेक्ट्रिक फेज की बिजली चली जाए तो महिलाएं दूसरे फेज से मोटर चालू कर लेती हैं।

तकरीबन साठ कुओं में से एक भी चालू नहीं है। दो कुओं से पूरा गांव समाज पानी पीता था। बकौल बुजुर्ग चरण सिंह तब पानी नीरोगी था, अब रोगी हो गया है। कई रहट चलते थे, लेकिन भौतिक विकास के रहट में कुएं खत्म हो गए। पानी के प्रयोग और उपयोग को लेकर बेहद संवेदनशाील जगदीश कहते हैं, कुछ वर्षों बाद शायद गुड़गांव देश का पहला वह शहर होगा जो पानी के संघर्ष की रणभूमि बनेगा।

कालोनाइजरों, नेताओं और प्रशासन की साठगांठ के चलते भूमंडलीय तत्व स्थानीय तत्वों को किस प्रकार प्रभावित करता है, इसके अध्ययन के लिए गुड़गांव के कन्हई जैसे गांव सबसे अधिक उर्वरा हैं।

 

नरक जीते देवसर

(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिए कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें)

क्रम

अध्याय

1

भूमिका - नरक जीते देवसर

2

अरै किसा कुलदे, निरा कूड़दे सै भाई

3

पहल्यां होया करते फोड़े-फुणसी खत्म, जै आज नहावैं त होज्यां करड़े बीमार

4

और दम तोड़ दिया जानकीदास तालाब ने

5

और गंगासर बन गया अब गंदासर

6

नहीं बेरा कड़ै सै फुलुआला तालाब

7

. . .और अब न रहा नैनसुख, न बचा मीठिया

8

ओ बाब्बू कीत्तै ब्याह दे, पाऊँगी रामाणी की पाल पै

9

और रोक दिये वर्षाजल के सारे रास्ते

10

जमीन बिक्री से रुपयों में घाटा बना अमीरपुर, पानी में गरीब

11

जिब जमीन की कीमत माँ-बाप तै घणी होगी तो किसे तालाब, किसे कुएँ

12

के डले विकास है, पाणी नहीं तो विकास किसा

13

. . . और टूट गया पानी का गढ़

14

सदानीरा के साथ टूट गया पनघट का जमघट

15

बोहड़ा में थी भीमगौड़ा सी जलधारा, अब पानी का संकट

16

सबमर्सिबल के लिए मना किया तो बुढ़ापे म्ह रोटियां का खलल पड़ ज्यागो

17

किसा बाग्गां आला जुआं, जिब नहर ए पक्की कर दी तै

18

अपने पर रोता दादरी का श्यामसर तालाब

19

खापों के लोकतंत्र में मोल का पानी पीता दुजाना

20

पाणी का के तोड़ा सै,पहल्लां मोटर बंद कर द्यूं, बिजली का बिल घणो आ ज्यागो

21

देवीसर - आस्था को मुँह चिढ़ाता गन्दगी का तालाब

22

लोग बागां की आंख्यां का पाणी भी उतर गया

 

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