विश्व पृथ्वी दिवस
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पृथ्वी दिवस पर विशेष: धीमी पड़ रही समुद्री धाराएं, धरती सोख नहीं पा रही गर्मी

सागरों के साथ ही धरती के वातावरण और जलवायु पर भी पड़ रहा समुद्री जल धाराओं की रफ्तार थमने का असर  - उत्तम सिंह गहरवार
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सागरों-महासागरों में बहने वाली जल-धाराएं पृथ्वी की जलवायु प्रणाली में काफी अहम भूमिका निभाती हैं। इन धाराओं के जरिये होने वाला जल-प्रवाह पृथ्वी के विभिन्न भागों के बीच गर्मी का आदान-प्रदान करके पूरी धरती के तापमान को संतुलित रखने में मदद करता है। चिंता की बात यह है कि जलवायु परिवर्तन के कारण ये समुद्री धाराएं धीमी पड़ती जा रही हैं, जिसके गंभीर परिणाम हमें आने वाले समय में मौसम में बदलाव और क्‍लाइमेट चेंज के रूप में देखने को मिल सकते हैं।

भूविज्ञानियों के मुताबिक अटलांटिक मेरिडियनल ओवरटर्निंग सर्कुलेशन (AMOC) नामक प्रमुख समुद्री धारा प्रणाली पिछले कुछ दशकों में कमजोर हुई है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियरों के पिघलने से समुद्र के पानी में मीठे पानी की मात्रा बढ़ रही है। इससे समुद्री जल का घनत्व प्रभावित होने से धाराओं का प्रवाह धीमा पड़ रहा है। यदि यह प्रवाह और धीमा होता है या रुक जाता है, तो यह पृथ्वी के मौसम पैटर्न को पूरी तरह से बदल सकता है। इससे उत्तरी गोलार्ध के कुछ हिस्सों में अचानक तापमान गिर सकता है, जबकि भूमध्य रेखा के आसपास के क्षेत्रों में गर्मी और भी बढ़ सकती है। इसके अलावा, मानसून चक्र बाधित हो सकता है, जिससे कृषि और पेयजल आपूर्ति पर काफी बुरा असर पड़ सकता है। 

'पृथ्‍वी' में क्‍या-क्‍या है शामिल

इस साल विश्व पृथ्वी दिवस (22 अप्रैल) की थीम  "हमारी शक्ति - हमारा ग्रह" रखी गई है। इसी ध्येय वाक्य के साथ अर्थ डे को पूरे विश्व में मनाया जाएगा। पृथ्वी यानी धरती का मतलब अकसर लोग केवल भूमि यानी धरती के भू-भाग से समझ लेते हैं। जबकि, वास्‍तव में पृथ्‍वी एक व्यापक शब्द है, जिसके दायरे में थल के साथ-साथ जल यानी हमारे सागर-महासागर और नभ यानी हमारा वायुमंडल भी आता है। क्‍योंकि इनके बिना पृथ्‍वी जीवंत नहीं रह सकती। इसलिए जल, थल, नभ, नदी, झीलें, तालाब, कुएं, भूमि, वन, वन्य प्राणी, सागर, महासागर जैसी सभी चीजों को पृथ्‍वी शब्‍द के साथ जोड़कर देखा जाना चाहिए। क्‍योंकि, यह सब इस धरती पर अस्तित्व में शामिल हैं। ऐसे में पृथ्वी दिवस पर धरती के भूभाग के संरक्षण के साथ ही अपने वायुमंडल और सागरों-महासागरों की स्थिति पर भी गंभीरता से ध्‍यान देने की जरूरत है। 

अंटार्कटिक सर्कम्पोलर करंट (ACC) का महत्व

आइए, अब लौटते हैं समुद्री जल-धाराओं के अपने अपने मूल विषय पर। ‘द कन्वरसेशन’ के एक अध्ययन के अनुसार, पृथ्वी की सबसे शक्तिशाली समुद्री धारा अंटार्कटिका के चारों ओर बहती है। इसे अंटार्कटिक सर्कम्पोलर करंट (ACC) कहते हैं। इसे वेस्ट विंड ड्रिफ्ट भी कहा जाता है। यह दुनिया की इकलौती ऐसी समुद्री जलधारा है, जिसका प्रवाह महाद्वीपों से बाधित नहीं होता। यह धरती के तीन सबसे बड़े महासागरों अटलांटिक, प्रशांत और हिंद महासागर के बीच पानी के आदान-प्रदान का मुख्‍य चैनल है। इस तरह यह धारा दुनिया के मौसम का मिजाज तय करने में काफी महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाती है और उसे ठीक रखने में मदद करती है। 

धीमी पड़ रही सबसे ताकतवर धारा ACC

एक हालिया रिसर्च में पता चला है कि ACC का प्रवाह अगले 25 सालों में धीमा पड़ सकता है। इससे समुद्री जीवन और समुद्र के बढ़ते जल स्तर के साथ-साथ धरती की वातावरण से गर्मी सोखने की क्षमता पर भी बुरा असर पड़ सकता है। गणितीय मॉडल बताते हैं कि 2050 तक ACC की रफ्तार में 20 फीसदी तक की कमी आ सकती है। रिपोर्ट के मुताबिक अगर ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बहुत ज्यादा होता है, तो 2050 तक इस धारा का प्रवाह मंद पड़ने के कारण अंटार्कटिक बर्फ की चादरों के पिघलने से समुद्र में मिलने वाला पानी सागर के खारे पानी को पतला कर देगा। इससे दुनिया की सबसे असरदार और महत्वपूर्ण समुद्री धाराओं में से एक ACC का प्रवाह बाधित हो सकता है।

अमेजन नदी से 100 गुना ताकतवर

रिसर्चरों के अनुसार ACC अमेजन नदी से 100 गुना ज्यादा शक्तिशाली है। यह दुनिया के महासागरों में गर्मी और पोषक तत्वों को फैलाती है। पर, चिंता की बात यह है कि ग्‍लोबल वॉर्मिंग के कारण दक्षिणी महासागर के हालात तेजी से बदल रहे हैं। ऐसे में अगर ACC के प्रवाह में कोई रुकावट आती है, तो महासागरों की गर्मी और कार्बन सोखने की क्षमता घट जाएगी। इससे जलवायु को नियंत्रित और बैलेंस करने की उनकी क्षमता कमजोर हो जाएगी।

वैज्ञानिकों की सख्‍त चेतावनी

ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे के एक समुद्र विज्ञानी माइकल मेरेडिथ के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग से होने वाली 90% से ज्यादा गर्मी समुद्र में जाती है। उन्होंने कहा कि अगर यह प्रक्रिया धीमी हो जाती है, तो ग्लोबल वार्मिंग से बचने के लिए हमारे पास जो सबसे बड़ा सहारा है, वह खत्म हो जाएगा। कई अन्‍य रिसर्च रिपोर्ट्स में भी ACC के धीमे पड़ने का पूरे महासागरीय प्रवाह सहित समूची धरती की जलवायु पर भी गहरा असर पड़ सकता है।

तेजी से पिघल सकती है अंटार्कटिका की बर्फ 

ACC धारा अगर कमजोर पड़ गई, तो गर्म पानी अंटार्कटिका पर जमी बर्फ की चादरों के करीब आ जाएगा। इससे अंटार्कटिक के ग्‍लेशियर तेजी से पिघल कर समुद्र में मिलने लगेंगे। रिसर्चरों के अनुसार बर्फ के तेजी से पिघलने से यह धारा और कमजोर हो सकती है। इससे तापमान में बदलाव और जलवायु परिवर्तन का एक बुरा चक्र शुरू हो जाएगा। अंटार्कटिक की बर्फ तेजी से पिघलने से समुद्र का जल-स्तर भी बढ़ जाएगा, जिससे धरती के कई निचले भूभागों के जल में समाने का खतरा पैदा हो जाएगा।

गर्मी बढ़ने की आशंका हुई 30 गुनी

वैज्ञानिक दुनिया भर में पड़ रही भीषण गर्मी को विनाश का संकेत मान रहे हैं। मौसम विशेषज्ञों के मुताबिक भौगोलिक तौर पर भारत के बहुत बड़े हिस्से को एक झटके में प्रभावित करने वाली हीट वेव (Heat Wave) यानी लू अब तक 100 साल में कभी एक बार चलती थी, पर अब इसमें बढ़ोतरी देखी जा रही है। अब तो यह लू भारत के अलावा दुनिया के कई देशों को प्रभावित कर रही है। यहां तक कि दुनिया के कई ठंडे देशों में भी भीषण गर्मी का अनुभव हो रहा है। समुद्री धाराओं में बदलाव के चलते हो रहे इस जलवायु परिवर्तन से गर्मी के बढ़ने की आशंका 30 गुना तक बढ़ी है।

बढ़ती गर्मी धरती को कर रही बीमार

हाल ही के कई शोध अध्‍ययनों के आधार पर वैज्ञानिक कहते हैं कि बीते कुछ दशकों में हुई तापमान वृद्धि से धरती रुग्ण होती जा रही है। धरती का तापमान सन् 1850-1900 की औद्योगिक क्रांति से पहले के औसत तापमान की तुलना में 1.5 से 2 डिग्री सेल्सियस ऊपर जाने की सीमा को पार करने के करीब है। तापमान में यह तेज बदलाव हम लोगों को गर्मी से होने वाले जलवायु परिवर्तन जैसी मुश्किलों की तरफ धकेल रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि बढ़ते तापमान के लिए इंसानी गतिविधियों के चलते मौसम में हो रहे बदलाव ही सबसे ज्‍यादा जिम्मेदार हैं। यह अस्थायी तौर पर अल-नीनो इफेक्‍ट को हवा दे रहा है।

पृथ्वी के संरक्षण में हम भी दें योगदान

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि पृथ्वी दिवस को लेकर देश और दुनिया में जागरूकता का भारी अभाव है। सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर इस दिशा में कोई खास महत्‍वपूर्ण कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। पहले पूरी दुनिया में साल में दो दिन - 21 मार्च और 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाया जाता था, लेकिन वर्ष 1970 से 22 अप्रैल को ही पृथ्वी दिवस मनाया जाना तय किया गया है। इस एक दिन भी धरती को बचाने के लिए हमें लोगों की ओर से कोई बड़ी पहल होती देखने को नहीं मिलती। ऐसे में हम सभी को इसमें कुछ न कुछ प्रयास करना पड़ेगा। तभी हम जिस धरती पर रह रहे हैं, उसे रहने लायक बनाए रख सकते हैं। 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस के मौके पर अमेरिका में वृक्ष दिवस मना कर लोग अपने घरों के आसपास पौध रोपण करते हैं। हमें भी अपनी ओर से इस तरह के छोटे-छोटे प्रयास करके धरती की सेहत को सुधारने की कोशिशें करनी चाहिए।

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