पानी के मुद्दे ने ही बदल दी थी संविधान-शिल्पी डॉ. अंबेडकर की जिंदगी
14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती के मौके पर देश भारतीय संविधान के शिल्पी माने जाने वाले बाबा साहब के योगदान को याद कर रहा है। लोग भारतीय संविधान के निर्माण में उनकी भूमिका और डॉ. अंबेडकर के जीवन संघर्ष से आए सामाजिक बदलावों का जिक्र कर रहे हैं। ऐसे में गौर करने वाली एक महत्वपूर्ण बात यह है कि खुद डॉ. अंबेडकर के जीवन में सबसे बड़ा बदलाव लाने वाली घटना पानी के मुद्दे से ही जुड़ी हुई थी। दरअसल, स्कूल में पानी पीने से रोके जाने की पीड़ा ने ही उनके भीतर छुआछूत और जाति-प्रथा के विरुद्ध संघर्ष की प्रेरणा को जन्म दिया था। इस तरह, पानी के सवाल ने ही उनकी जिंदगी को बदल कर रख दिया था।
आज जब हम पानी की बात करते हैं, तो अक्सर इसे केवल एक प्राकृतिक संसाधन या जीवन की मूलभूत आवश्यकता के रूप में देखते हैं। लेकिन, भारत में पानी का सवाल एक सामाजिक न्याय, बराबरी और गरिमा का प्रश्न भी रहा है। इसे देखते हुए, 14 अप्रैल को पड़ने वाली डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती को ‘राष्ट्रीय जल दिवस’ के रूप में भी मनाया जाना और भी अधिक अर्थपूर्ण हो गया है।
स्कूल के दिनों की प्यास ने पैदा किया संघर्ष का जज़्बा
डॉ. अंबेडकर ने अपने स्कूल के दिनों में हुई घटना का उल्लेख दर्जनों बार अपने लेखन और भाषणों में किया है। स्कूल के दिनों में जब अंबेडकर प्यासे होते थे, तो उन्हें पानी पीने की इजाजत नहीं दी जाती थी, क्योंकि वे 'अछूत' माने जाते थे। इसलिए, स्कूल में उन्हें घड़े से पानी देने के लिए यदि कोई 'ऊंची जाति' का व्यक्ति मौजूद न हो, तो उन्हें घंटों प्यासा रहना पड़ता था। यह सिर्फ एक बच्चे की प्यास की कहानी नहीं थी, बल्कि उस समय के सामाजिक ढांचे की अमानवीयता की गवाही थी। इसी कारण डॉ. अंबेडकर ने यह अनुभव किया कि यह केवल उनके प्यासे रह जाने की बात नहीं है, बल्कि यह समाज के एक बड़े वर्ग के सामाजिक अधिकार, सम्मान और समानता का भी सवाल है।
महाड़ सत्याग्रह: पानी के हक़ के लिए पहला आंदोलन
1927 में डॉ. अंबेडकर ने महाराष्ट्र के महाड़ में पानी के मुद्दे को लेकर एक ऐतिहासिक आंदोलन का नेतृत्व किया, जिसे ‘महाड़ सत्याग्रह’ के नाम से जाना गया। इस आंदोलन का उद्देश्य ‘अछूत’ माने जाने वाले लोगों को सार्वजनिक जल स्रोतों से पानी पीने का अधिकार दिलाना था। इस आंदोलन की शुरुआत करते वक्त उन्होंने कहा था, “हम पानी पीने आए हैं, पर साथ ही हम यह भी बताने आए हैं कि हम इंसान हैं।” यह सत्याग्रह भारतीय इतिहास में वह पहली संगठित क्रांति थी, जिसमें पानी को सामाजिक समानता का केंद्र बना दिया गया।
बड़े सामाजिक बदलाव का जरिया बना पानी का मुद्दा
डॉ. अंबेडकर ने पानी को सिर्फ एक संसाधन नहीं, बल्कि एक ऐसी मूलभूत आवश्यकता माना, जिस तक समाज के हर वर्ग की समान पहुंच होनी चाहिए। उनके लिए यह केवल अधिकार का नहीं, बल्कि सामाजिक गरिमा का भी सवाल था। उनका कहना था कि यदि समाज के किसी हिस्से को स्वच्छ और सुलभ जल से वंचित रखा गया, तो वह समाज में बराबरी से कैसे खड़ा हो पाएगा? इसलिए, आज जब हम जल संरक्षण और जल की उपलब्धता की बात करते हैं, तो यह समझना भी उतना ही जरूरी है कि हम पानी की सामाजिक उपलब्धता और समता के पहलू को भी उतनी ही तवज्जो दें।
संविधान में जल और समानता की झलक
डॉ. अंबेडकर भारतीय संविधान के प्रमुख वास्तुकार थे। उन्होंने संविधान के जरिए समाज के हर वर्ग को बराबरी का अधिकार दिलाने की कोशिश की। संविधान के अनुच्छेद 15 और 17 के तहत भेदभाव और अस्पृश्यता पर रोक लगाने जैसे प्रावधान, पानी जैसे बुनियादी संसाधनों तक समान पहुंच का संवैधानिक आधार बनाते हैं। अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) में सुप्रीम कोर्ट ने साफ पानी को भी शामिल किया है। यह विचार भी अंबेडकर की समता की दृष्टि से मेल खाता है।
आज के संदर्भ में जल और सामाजिक न्याय
वर्तमान दौर में जब भारत में जल संकट बढ़ता ही जा रहा है, तब समाज के वंचित तबकों को स्वच्छ और सुरक्षित जल उपलब्ध कराना और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। जल नीतियों, योजनाओं और अभियानों के ज़रिए यह सुनिश्चित करना ज़रूरी हो गया है कि स्वच्छ पेयजल तक समाज के हर वर्ग और हर व्यक्ति की समान रूप से पहुंच हो। वास्तव में, डॉ. अंबेडकर के विचारों को यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी। अंबेडकर जयंती को ‘राष्ट्रीय जल दिवस’ के रूप में मान्यता देना इसी दिशा में उठाया गया एक सार्थक कदम है। हमें याद रखना होगा कि पानी का हक़ हर नागरिक का अधिकार है, और यही विचार सामाजिक बदलाव की असली शुरुआत है।
हमारे देश के कई इलाकों में आज भी दलित और आदिवासी बस्तियों को सार्वजनिक जल स्रोतों से वंचित रखा जाना, टैंकर से सप्लाई में भेदभाव, या कुओं/हैंडपंप पर छुआछूत जैसी समस्याएं सामने आती हैं। राष्ट्रीय जल दिवस के मौके पर हम सबको अपने आसपास दिखने वाली इस असमानता को जड़ से खत्म करने का संकल्प लेने की ज़रूरत है। इसके लिए जल जागरूकता, शिक्षा और सामाजिक योजनाओं व कार्यक्रमों से जुड़ना भी जरूरी है। पानी को केवल एक पर्यावरणीय समस्या नहीं, बल्कि एक सामाजिक मुद्दा मानकर इस दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।