गोमती में गिर रहा दर्ज़नों नालों का अनट्रीटेड सीवेज नदी को बुरी तरह प्रदूषित कर रहा है।
गोमती में गिर रहा दर्ज़नों नालों का अनट्रीटेड सीवेज नदी को बुरी तरह प्रदूषित कर रहा है। स्रोत : जागरण

लखनऊ में ही गिरते हैं 13 गंदे नाले, बिना सीवेज उपचार के कैसे मिलेगा गोमती को पुनर्जीवन?

हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने गोमती को साफ़ करने के लिए गोमती पुनर्जीवन मिशन की शुरूआत की है।पर मौजूदा हालत को देखते हुए डर है कि माकूल इंतज़ामों के बिना 'नमामि गंगे' की तरह यह मिशन भी सफ़ेद हाथी बनकर न रह जाए।
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“गोमती केवल नदी नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक चेतना और जीवनधारा की प्रतीक है। इसी भावना को साकार करने के लिए ‘गोमती पुनर्जीवन मिशन’ शुरू किया जा रहा है, जो आस्था, पर्यावरण और विकास के संगम का प्रतीक बनेगा।” उत्‍तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इन उद्गारों के साथ 13 अक्‍तूबर को  उत्तर प्रदेश की जीवन-रेखा कही जाने वाली गोमती नदी को स्वच्छ, अविरल और निर्मल बनाकर पुनर्जीवित करने के अभियान की शुरुआत की। 

राजधानी लखनऊ में गोमती टास्क फ़ोर्स की बैठक की अध्यक्षता करते हुए सीएम योगी ने ‘गोमती पुनर्जीवन मिशन’ की कार्य योजना पर चर्चा की। इसमें गोमती के पुनरुद्धार के लिए अल्पकालिक और दीर्घकालिक रणनीतियां बनाकर पीलीभीत से गाज़ीपुर तक गोमती को स्वच्छ, अविरल और निर्मल बनाने के निर्देश दिए गए। 


बैठक में योगी ने कहा, “गोमती में सीवरेज की एक भी बूंद नहीं जानी चाहिए।” सीएम का यह सख्‍त निर्देश गोमती नदी की सफ़ाई को लेकर राज्‍य सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है, पर कुछ गंभीर और अहम सवाल भी लेकर आता है। पहला सवाल यह है कि नालों के ज़रिये गोमती में गिर रहे करोड़ों लीटर दूषित पानी को कैसे रोका जाएगा?  क्‍या इतना बड़ा आदेश देने से पहले सरकार ने इसके लिए ज़रूरी कदम उठाए हैं? 

सवाल यह भी है कि माकूल इंतज़ाम किए बिना, केवल बड़ी-बड़ी घोषणाएं कर देने से गोमती साफ़ हो जाएगी? या फिर सरकार के लोक-लुभावन घोषणाओं वाले इस हवा-हवाई रवैये से ‘गोमती पुनर्जीवन मिशन’ भी 'नमामि गंगे' और 'यमुना सफाई अभियान' की तरह महज़ एक ‘सफेद हाथी’ बनकर रह जाएगा।

821 में से 628 किलोमीटर प्रदूषण का शिकार है गोमती 

गोमती नदी केवल लखनऊ में ही प्रदूष‍ित नहीं होती है, बल्कि यह सिलसिला सीतापुर से ही शुरू हो जाता है। मोंगाबे की एक रिपोर्ट के मुताबिक गोमती के प्रदूष‍ित होने की शुरुआत सीतापुर से होती है जो लखनऊ में आकर सबसे खराब स्‍थ‍िति में पहुंच जाती है। अपने 821 किलोमीटर के बहाव में गोमती सीतापुर से लेकर जौनपुर तक करीब 628 किलोमीटर तक प्रदूषण का दंश झेल रही है। 

सीतापुर, लखीमपुर में चीनी मीलों, प्लाईवुड फैक्ट्रियों का कचरा, लखनऊ, सुल्तानपुर एवं जौनपुर का नगरीय अपशिष्ट गोमती का बुरा हाल कर देता है। गोमती में सर्वाधिक प्रदूषण लखनऊ, सुल्तानपुर और जौनपुर में होता है, जहां कारखानों के अलावा, नालों का पानी व ठोस अपशिष्ट नदी में डाला जा रहा है। साथ ही कस्बों व शहरों के नालों द्वारा मानव अपशिष्ट भी सीधे गोमती में पहुंचता है। 

हालांकि, सहायक नदियों के साफ जल के गोमती में मिलने से सीतापुर में नैमिषारण्य के पास इसके जल की गुणवत्‍ता और जल स्तर में कुछ सुधार दिखता है। पर, वनों की अंधाधुंध कटाई की वजह से भूजल रिचार्ज में कमी आने से भूजल स्तर में आई कमी के कारण आगे चलकर इसकी गुणवत्ता फिर गिर जाती है।

इसके अलावा, गोमती बैराज में पानी रोकने की वजह से हुए ठहराव और गाद के जमाव से नदी के अंदरूनी यानी भूमिगत जलस्त्रोत भी बंद हो गए हैं। गाद भरने के कारण नदी की खुद को प्राकृतिक रूप से साफ करने की क्षमता खत्‍म हो गई है, क्‍योंकि पानी को साफ करने वाली जलीय वनस्‍पतियां और सूक्ष्‍म जीव गाद की वजह से पनप नहीं पाते। 

एक रिपोर्ट के अनुसार, लखनऊ में करीब तीन दर्ज़न नालों के अलावा जौनपुर में 14 नाले, सुल्‍तानपुर में 7 नाले, बाराबंकी में 2 नाले गोमती में गिरते हैं। इस तरह अलग-अलग ज़िलों में कुल 68 नाले गोमती में गिर कर उसे प्रदूषित कर रहे हैं। इन नालों से 86.5 करोड़ लीटर सीवेज और इंडस्‍ट्री का खराब पानी गोमती में रोजाना बहाया जा रहा है। इसमें 83.5 करोड़ लीटर सीवेज है और करीब तीन करोड़ लीटर इंडस्‍ट्री का गंदा पानी है। 

वहीं, इसमें से केवल 44.3 करोड़ लीटर गंदा पानी ही सीवेज ट्रीटेमेंट प्‍लांट से होकर गोमती में गिर रहा है। ये आंकड़े नेशनल ग्रीन ट्र‍िब्‍युनल (एनजीटी) के सामने रखे गए थे, जो गोमती सफाई को लेकर ‘यूपी पॉल्‍युशन कंट्रोल बोर्ड’ के एक्‍शन प्‍लान (2019) में शामिल किए गए हैं। यूपी पॉल्‍युशन कंट्रोल बोर्ड, गोमती सहित राज्‍य की नदियों की गुणवत्ता की जांच करता है। 

गोमती के पानी की गुणवत्ता सीतापुर, लखनऊ और जौनपुर में जांची जाती है। जनवरी 2021 में जारी की गई बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक गोमती को लखनऊ के डाउनस्‍ट्रीम में ‘ई’ कैटेगरी में रखा गया, जो कि सबसे खराब कैटेगरी है। यहां गोमती में डिज़ॉल्‍व ऑक्‍सीजन 1.4 मिलीग्राम प्रति लीटर और बायो केमिकल ऑक्सीजन डिमांड 14.0 मिलीग्राम प्रति लीटर पाया गया। इसके चलते गोमती के पानी का उपयोग इंसानों के पीने और नहाने के लिए पूरी तरह असुरक्षित पाया गया। पानी में कई तरह के ज़हरीले तत्‍वों के पाए जाने के कारण इसमें जलीय जीव भी जिंदा नहीं रह सकते।

गाद के जमाव और पानी का प्रवाह घटने से कई जगहों पर गोमती नदी का बहाव इस क़दर सिमट गया है कि यह किसी नाले या पतली धारा सी नज़र आती है।
गाद के जमाव और पानी का प्रवाह घटने से कई जगहों पर गोमती नदी का बहाव इस क़दर सिमट गया है कि यह किसी नाले या पतली धारा सी नज़र आती है।स्रोत : जागरण

लखनऊ में 13 नाले रोज़ाना गिरा रहे करोड़ों लीटर अनट्रीटेड सीवेज

‘गोमती पुनर्जीवन मिशन’ को लेकर ये सवाल, इससे जुड़ी रिपोर्टों और आंकड़ों से ही निकलते हैं। गोमती प्रदूषण नियंत्रण इकाई की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक गोमती के नाला बनते जाने के पीछे, करीब 15 शहरों से इसमें गिरने वाले 68 नालों का गंदा पानी है।

जागरण की एक रिपोर्ट के मुताबिक, केवल राजधानी लखनऊ में ही गोमती में गिरने वाले 39 नालों में से 13 नाले रोज़ाना करोड़ों लीटर अनट्रीटेड सीवेज गोमती में उड़ेल रहे हैं। हालांकि, हिन्‍दुस्‍तान की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि लखनऊ में गोमती में कुल 33 नाले गिरते हैं, जिनमें से 26 नालों के गंदे पानी को गोमती में गिरने से रोक दिया गया है। अब शेष 7 नालों के लिए एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) तैयार किए जा रहे हैं, ताकि आने वाले महीनों में गोमती पूरी तरह प्रदूषण मुक्त हो सके। 

जल शक्ति मंत्रालय की 'नमामि गंगे' परियोजना से जुड़ी एक एक हालिया राज्‍य स्‍तरीय रिपोर्ट में लखनऊ ज़िले के लिए कुल नालों की संख्या 33 बताई गई है। इस रिपोर्ट में लखनऊ में कुल 34 नाले बताए गए हैं, जिनमें से 33 सीधे गोमती में और एक गोमती की सहायक सई नदी में गिरता है। रिपोर्ट के अनुसार गोमती में गिरने वाले 33 नालों का टोटल डिस्‍चार्ज 550.98 एमएलडी (मिलियन लीटर प्रतिदिन) और सई नदी में 54.78 एमएलडी का डिस्‍चार्ज होता है। 

गोमती के 33 नालों में से 10 टैप्‍ड ड्रेन्‍स हैं, जिनसे 49.72 एमएलडी पानी नदी में गिरता है। जबकि, 7 अनटैप्‍ड ड्रेन्‍स से कुल 51.56 एमएलडी पानी गिरता है। यानी 7 अनटैप्‍ड ड्रेन्‍स से गिरने वाला पानी 10 टैप्‍ड ड्रेन्‍स के मुकाबले ज्‍़यादा है। इसके अलावा, 15 पार्शियली टैप्‍ड ड्रेन्‍स से 449.70 एमएलडी पानी गिरता है। रिपोर्ट में एक नाला ‘नॉट टू बी टैप्‍ड’ श्रेणी में बताया गया है, जिससे गिरने वाले पानी की मात्रा नहीं बताई गई है। 

यहां टैप्‍ड नाले का मतलब मोटे तौर पर उन नालों से है, जिनका पानी ट्रीटमेंट प्‍लांट में ट्रीट किया जा रहा है। अनटैप्‍ड का मतलब बिना ट्रीटमेंट के नदी में पानी गिराने वाले नालों से है। नॉट टू बी टैप्‍ड श्रेणी का मतलब ऐसे नालों से होता है, जिन्हें तकनीकी, भौगोलिक या पर्यावरणीय कारणों से सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) से जोड़ना संभव नहीं है। इसलिए उन्हें टैप नहीं किया जाएगा। इसके अलावा टीओआई की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक लखनऊ में प्रतिदिन उत्पन्न होने वाले 730 एमएलडी सीवेज में से केवल 600 एमएलडी का ही उपचार (ट्रीटमेंट) किया जाता है, जबकि 130 एमएलडी पानी बिना उपचार के नदी में गिर रहा है। गोमती नदी में कचरा जाने से रोकने के लिए गोमती नदी में गिरने वाले सभी नालों पर ग्रिल लगाने का आदेश दिया गया है।

लखनऊ में जगह-जगह पर गोमती नदी में गिरने वाले तकरीबन तीन दर्ज़न नाले नदी को किस प्रकार प्रदूषित कर रहे हैं, इसका जायजा आप इंडिया वाटर पोर्टल की इस रिपोर्ट से ले सकते हैं। इसमें बताया गया है कि सीवेज और औद्योगिक कचरा किस तरह गोमती नदी में ज़हर घोल रहा है।

राजधानी लखनऊ में गोमती नदी में गिरने वाले कुछ प्रमुख नाले
हैदर केनाल, गऊघाट नाला, सरकटा नाला, टीजी नाला, मोहन मीकिन्स नाला, चाइना बाज़ार नाला, बारीकला नाला, महेशगंज नाला, गोमती नगर एक्सटेंशन नाला, बिंदावा नाला, मटारिया–सैदपुर नाला, इमलीबन्धन नाला, सकरेला नाला, पांझरिया–हरिहरपुर नाला, टिकवा नाला, नगारियन नाला, स्ट्रीम-17, कुकरैल नाला, बेहटा नाला, लोनी नाला, अखाड़ी नाला, झिलिंगी नाला, गोमती नगर ड्रेन।
गोमती नदी में सबसे ज्‍़यादा प्रदूषण लखनऊ में देखने को मिलता है, जहां इसका पानी किसी गंदे नाले की तरह काला और बदबूदार हो गया है।
गोमती नदी में सबसे ज्‍़यादा प्रदूषण लखनऊ में देखने को मिलता है, जहां इसका पानी किसी गंदे नाले की तरह काला और बदबूदार हो गया है। स्रोत : स्‍टोरी मैप

गोमती की सफ़ाई के लिए क्‍या-क्‍या किया गया

गोमती पुनर्जीवन मिशन’ की शुरुआत के लिए आयोजित गोमती टास्क फ़ोर्स की बैठक में बताया गया कि राज्‍य सरकार की ओर से गोमती की सफाई के लिए हाल के वर्षों में क्‍या-क्‍या कदम उठाए गए हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक गोमती टास्क फोर्स द्वारा अब तक नदी तटों पर पैदल और नौका गश्त, एक हजार टन से अधिक जलकुंभी की सफाई, नालों का सर्वेक्षण कर प्रदूषण स्रोतों की पहचान, 100 से अधिक जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से 70,000 से ज़्यादा नागरिकों को गोमती सफाई अभियान से जोड़ा गया है। 

‘नदी योग अभियान’ के तहत  21 अप्रैल से 21 जून 2025 तक लखनऊ में गोमती के प्रमुख घाटों पर प्रतिदिन योग, घाट-सफाई और जनसंवाद कार्यक्रम आयोजित हुए, जिनमें 50,000 से अधिक नागरिकों ने भाग लिया और 300 टन से अधिक जलकुंभी हटाई गई। बैठक में मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि टास्क फोर्स की मासिक बैठकें नियमित रूप से आयोजित की जाएं और त्रैमासिक प्रगति रिपोर्ट मुख्यमंत्री कार्यालय भेजी जाए। साथ ही, इस मिशन में हर स्तर पर पारदर्शिता व जनसहभागिता सुनिश्चित की जाए। 

मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि गोमती पुनर्जीवन मिशन के लिए ट्रैक बोट, फ्लोटिंग बैरियर, एक्सकेवेटर और अन्य उपकरण जैसे संसाधनों की उपलब्धता में सरकार कोई कमी नहीं रहने देगी।

ढाई हज़ार करोड़ खर्च कर भी साफ नहीं हुई गोमती

जागरण में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2010 से 2025 तक करीब 2,500 करोड़ रुपये खर्च करने के बाद भी गोमती का पानी काला और बदबूदार बना हुआ है। इसकी वजह है कई नालों से कचरा और अनट्रीटेड सीवेज का सीधे नदी में गिरना। दो सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) होने के बावजूद स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। 

गोमती में गिरने वाले बरसाती नालों को सीवर निस्तारण का माध्यम बना दिया गया है। साथ ही, नगर निगम नदी किनारे कहीं-कहीं तट के स्‍तर को ऊपर उठाने के लिए नदी की कोख में कूड़ा डालता (डंप) रहा है। घैला में कूड़ा बारिश में बहकर सीधे गोमती में आता है। बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के प्रमुख प्रो.वेंकटेश दत्ता और गोमती टास्क फोर्स के कंपनी कमांडर मेजर केएस नागी के नेतृत्व में गोमती में गिरने वाले नालों के सर्वेक्षण में पाया गया कि हैदर कैनाल, कुकरैल नाला, घसियारी मंडी नाले में पाया कूड़ा-कचरे के साथ सीवेज भी सीधे गोमती में पहुंच रहा है। नालों पर पंप काम नहीं कर रहे और न ही सीवेज पंपिंग स्टेशन से सीवेज एसटीपी को भेजा जा रहा था। 

साल 2011 में 500 करोड़ से अधिक धनराशि खर्च कर भरवारा में 345 एमएलडी और दौलतगंज में 56 एमएलडी का एसटीपी बनाया गया। सीवेज लाइन डालने के लिए तकरीबन आधे शहर की सड़कों को खोद डाला गया। इस सबपर बीते 15 साल मे तकरीब ढाई हज़ार करोड़ रुपये खर्च किए जाने के बावज़ूद गोमती की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। 

मानसूनी बारिश के बाद गोमती नदी के जलस्‍तर में कुछ समय के लिए बढ़ोतरी देखने को मिलती है, जिससे कई जगह बाढ़ जैसी स्थिति भी उत्‍पन्‍न हो जाती है।
मानसूनी बारिश के बाद गोमती नदी के जलस्‍तर में कुछ समय के लिए बढ़ोतरी देखने को मिलती है, जिससे कई जगह बाढ़ जैसी स्थिति भी उत्‍पन्‍न हो जाती है। स्रोत : टीओआई

सीवेज ट्रीटमेंट के लिए पर्याप्त सुविधा की कमी

गोमती नदी गंगा की सहायक नदियों में से एक है। पर, गंगा में मिलने से पहले गोमती किस कदर प्रदूष‍ित होती है इसका अंदाजा लखनऊ के रबर डैम के पास गोमती के पानी पर तैरते गाज (झाग) से लगाया जा सकता है।  लखनऊ रिवर फ़्रंट के आखिरी छोर पर बने इस डैम के पास नदी सफेद झाग से पूरी तरह ढक जाती है। 

इसके चलते अपनी भैसों को नदी किनारे चराने और नदी में नहलाने वाले ग्‍वालों को अब अपने पशुओं को नदी में भेजने से भी डर लगता है कि इस प्रदूषित पानी से भैंसों को पता नहीं कौन सा रोग हो जाए। गोमती का यह प्रदूषण गंगा नदी की सफाई के दावों की पोल भी खोलता है। 

एक रिपोर्ट के मुताबिक, गोमती नदी की सफाई के लिए लखनऊ में दो सीवेज ट्रीटमेंट प्‍लांट हैं। पहला 34.5 करोड़ लीटर प्रतिदिन का भरवारा प्‍लांट और दूसरा दौलतगंज में 5.6 करोड़ लीटर प्रतिदिन का प्‍लांट है। इस तरह इन दोनों की क्षमता 40.1 करोड़ लीटर की है और यह पूरी क्षमता पर काम कर रहे हैं। जबकि, लखनऊ में गंदे पानी का डिस्‍चार्ज 60 करोड़ लीटर से ज्‍यादा है, ऐसे में 20 करोड़ लीटर से अधिक गंदा पानी बिना ट्रीट किए ही गोमती में जा रहा है। 

सरकार की योजना थी कि 2022 तक गोमती नदी में जाने वाले सभी नालों का गंदा पानी ट्रीटमेंट प्‍लांट से साफ होकर ही नदी में जाए। इसके लिए दो साल पहले (2019) ‘नमामि गंगे’ के तहत तीन सीवेज ट्रीटमेंट प्‍लांट बनाने का प्रस्‍ताव केंद्र सरकार को भेजा गया। इसमें से एक पर मंजूरी मिली, लेकिन वह कोर्ट केस में फंस गया और बाकी के दो प्‍लांट को मंजूरी नहीं मिली है। इसके अलावा हैदर केनाल नाले पर 12 करोड़ लीटर का का ट्रीटमेंट प्‍लांट बन रहा था, पर वह भी फंड की कमी के चलते आधा बनकर ही रुका पड़ा है।

गोमती बेसिन का विस्‍तार और इसका मानचित्र।
गोमती बेसिन का विस्‍तार और इसका मानचित्र। स्रोत: जेजेएम-नमामि गंगे रिपोर्ट

एक नज़र गोमती नदी के सफर पर

गोमती नदी का सफर लगभग 960 किलोमीटर का है। आमतौर पर इसका उद्गम पीलीभीत ज़िले के माधोटांडा के पास फुलहर झील (गोमत ताल) से माना जाता है, जहां यह पहली बार सतह पर दिखाई देती है। हालांकि, गोमती का वास्‍तविक उद्गम फुलहर झील से लगभग 55 किलोमीटर उत्तर में भाभर में स्थित है, जोकि भूमिगत है। यानी भाभर में अपने उद्गम से फुलहर झील तक गोमती सतह पर नहीं, बल्कि भूमिगत जल धारा के रूप में बहती है। 

पीलीभीत ज़िले में लगभग 45 किमी तक नदी की धारा पुनः भूमिगत हो जाती है। पीलीभीत के ही एकोत्तरनाथ में गोमती की जल धारा दोबारा सतह पर आती है। इस तरह, पीलीभीत से शुरू होकर गाज़ीपुर ज़िले में कैथी नामक जगह पर गंगा नदी में मिल जाती है। इस यात्रा के दौरान, गोमती उत्तर प्रदेश के 15 ज़िलों से होकर बहती है, जिसमें लखनऊ, सुल्तानपुर और जौनपुर जैसे प्रमुख शहर शामिल हैं। 

शुरुआत में यह एक संकरी धारा के रूप में बहती है, जोकनाई नदी के मिलने के बाद यह एक स्थायी जल प्रवाह बन जाती है। रास्ते में इसमें कई सहायक नदियां मिलती हैं, जिनमें प्रमुख है सई नदी, जो जौनपुर के पास इसमें मिलती है। रास्ते में इसमें कई सहायक नदियाँ मिलती हैं, जिनमें प्रमुख है सई नदी, जो जौनपुर के पास इसमें मिलती है। लखनऊ में इसमें कुकरैल, रैथ, बेहटा, नगवा, अकराडी और कडू जैसी बहुत छोटी और नालेनुमा सहायक नदियां मिलती हैं।

इन 15 ज़िलों से होकर बहती है गोमती
गोमती पीलीभीत, शाहजहांपुर, लखीमपुर खीरी, हरदोई, सीतापुर, लखनऊ, बाराबंकी, सुल्तानपुर, अमेठी, रायबरेली, जौनपुर, गाजीपुर, प्रतापगढ़, फैज़ाबाद (अयोध्या), वाराणसी।
गोमती नदी से जुड़े पौराणिक आख्‍यानों और इसके धार्मिक महत्‍व के चलते इसके किनारे बड़ी संख्‍या में मंदिर बने दिखाई देते हैं।
गोमती नदी से जुड़े पौराणिक आख्‍यानों और इसके धार्मिक महत्‍व के चलते इसके किनारे बड़ी संख्‍या में मंदिर बने दिखाई देते हैं। स्रोत: दैनिक भास्‍कर

गोमती का पौराणिक व ऐतिहासिक महत्‍व

गोमती नदी का सबसे प्राचीन उल्‍लेख ऋग्‍वेद के ऋग्वेद के अष्टम एवं दशम मंडल में मिलता है, जहां इसके सदानीरा स्वरुप का बखान कुछ इस प्रकार किया गया है-

ततो गोमती प्राप्त नित्य सिद्ध निषेविताम,राजसूयं प्राप्नोति वायुलोकं च गच्छति।

पुराणों में इसे "आदिगंगा" कहते हुए गंगा से भी प्राचीन नदी बताया गया है। गोमती को ऋषि वशिष्ठ की पुत्री माना गया है। गोमती के उद्भव की कथा के अनुसार वशिष्ठ मुनि ने तपस्‍या कर भगवान विष्‍णु से धरती पर एक ऐसी नदी बहाने का वरदान मांगा, जिसमें स्‍नान करने से मनुष्‍यों के पाप धुल जाएं। इसके फलस्‍वरूप विष्‍णु के आदेश से स्‍वर्ग में विराजमान गोमाता की आंखों से आंसू की बूंद धरती पर गिरी। इस बूंद से ही गोमती नदी का जन्‍म हुआ। 

मान्‍यता के अनुसार अहल्या से मिले श्राप के पश्चात इंद्र देव ने गोमती नदी के तट पर ही अपने पाप का प्रयश्चित किया था। इसके लिए इंद्र ने गोमती के तट पर 1001 शिवलिंग निर्मित किये थे। इसी कारण, आज भी गोमती के तटों पर शिव मन्दिर बहुतायत मिलते हैं। 

शिव पुराण के अनुसार गोमती को स्‍वयं नारायण ने आदेश दिया था कि वह मां बनकर सबका लालन पालन करें। तुलसीदास कृत श्रीरामचरितमानस में भी गोमती का उल्‍लेख देखने को मिलता है। बालकाण्ड में बताया गया है कि मनु-सतरूपा ने इसी नदी के किनारे यज्ञ किया था और इसी नदी के किनारे नैमिषारण्य में 33 करोड़ देवी-देवताओं ने तपस्या की थी-

पहुंचे आई धेनुमति तीरा, हरषि नहाने निरमल नीरा।

इसके अलावा अयोध्या काण्ड में  वन गमन व अयोध्या लौटने के समय गोमती के किनारे ही भरत और राम से के मिलन का वर्णन इस प्रकार मिलता है- 

तमसा प्रथम दिवस करि वासू, 

दूसर गोमति तीर निवासू।

सई उतरि गोमति नहाए, 

चौथे दिवस अवधपुर आए।

इसके अलावा श्रीमद्भागवत महापुराण (दशम स्कंध) में प्रभु श्री कृष्ण के अग्रज बलराम द्वारा ब्राह्मणों के वध के पाप का प्रायश्चित गोमती में स्नान करने का उल्‍लेख भी मिलता है। गोमती का बौद्ध धर्म में भी महत्‍व माना गया है, क्‍योंक बुद्ध ने गोमती के तट पर विश्राम करने के बाद धम्म पद के उपदेश संसार को दिए। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी धम्म सभा में सम्मानित होने के बाद गोमती के तटों से गुज़रने का जि़क्र अपने यात्रा विवरण में किया है। 

मध्‍यकालीन इतिहास में राजपूत राजा जयचंद ने अपने प्रसिद्ध वीर सैनिकों आल्हा- उदल को इसी गोमती के किनारे पर पासियों की सेना का दमन करने के लिए भेजा था। मुगल सम्राट अकबर द्वारा गोमती के तट पर वाजपेय यज्ञ कराने का भी उल्‍लेख उनके दरबारी इतिहासकार अबुल फ़ज़ल की पुस्‍तक आइन-ए-अकबरी में मिलता है।

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