लखनऊ शहर में एक गन्दी नाली कचरे से पटा हुआ
लखनऊ शहर में एक गन्दी नाली कचरे से पटा हुआ

संदर्भ गंगा : लखनऊ शहर में गोमती के प्रदूषण-स्रोत (भाग 6)

लखनऊ की गोमती नदी में प्रदूषण का मुख्य स्रोत: नाले, सीवेज और औद्योगिक कचरा हैं। लखनऊ में गोमती नदी का प्रदूषण: खुली नालों, सीवेज, और उद्योगों का योगदान। पढ़ें कैसे मोहन मीकिन्स, पराग डेयरी और अन्य स्रोत नदी के पानी को जहरीला बना रहे हैं।
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लखनऊ शहर के अंदर प्रवेश करने के बाद गोमती को प्रदूषित करने में शहर के खुले नालों और सीवेज के अलावा मोहन मीकिन्स, पराग डेयरी के उत्प्रवाह श्मशान घाट और गाय भैंसों का योगदान सर्वाधिक है।

लखनऊ महानगर में गोमती नदी के दोनों तटों से गिरने वाले कुछ नालों की संख्या 36 है। 1983 में जल निगम द्वारा तैयार एक परियोजना की रूपरेखा में अनुमान किया गया था कि इनमें से 27 बड़े नालों से रोजाना औसतन 9 करोड़ लीटर मलजल तथा कचरा गोमती में गिरता है।

गऊघाट से आगे चलने पर सबसे पहले सरकटा नाला पड़ता है। इस नाले का पानी जहां गोमती में मिलता है, उससे पहले कुछ किसान इस गंदे पानी से सींचकर सब्जियां उगाते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए नुकसान करती है। इस नाले के बाद श्मशान घाट और खुनखुनजी कोठी के बाद चौक क्षेत्र की कई सौ भैसें गोमती में लेटी और टट्टी पेशाब करती मिलती है। कुड़िया घाट से आगे बढ़ने पर पाटा नाला है। पाटा नाला और गोमती के संगम पर कुछ-कुछ देर में रूककर नीचे से गैस बनकर काले बुल-बुले निकलते हैं। पाटा नाला के सामने दूसरी ओर खदरा नाला गिरता है। यहां काफी दुर्गंध भी पानी में आ जाती है।

सीतापुर रोड को जाने वाला हाईवे ब्रिज पार करने पर पंचवटी, शुक्लाघाट और रस्तोगी स्नान घाटों के सामने मोहन मीकिन्स का नाला गिरता है। उससे पहले धोबीघाट में चौक के चिकन वाले नये कपड़े काफी बड़ी तादाद में धुले जाते हैं।

मोहन मीकिन्स फैक्ट्री के प्रबंधक होशियारी में अपना उत्प्रवाह एक के बजाय दो नालों से गिराते हैं ताकि एक ही जगह उसका असर न दिखे। लाल और काला विषैला पानी लाने वाला दूसरा नाला जरा सा आगे बढ़कर एन.ई.आर. ब्रिज के नीचे पड़ता है। सामने दूसरी ओर मेडिकल कालेज से तीन नाले आते हैं। इन सबके गंदे पानी से यहां दुर्गन्ध बढ़ने के साथ ही गोमती के पानी की सफेदी भी खत्म हो चुकी होती है।

गोमती को प्रदूषित करने वाले कारखानों के रूप में मोहन मीकिन्स कुख्यात हो चुका है। 86 में बड़े पैमाने पर मछलियों के मरने के हादसे के बाद अदालती कारवाई और जनविरोध के दबाव से इस शराब कारखाने ने मार्च 1988 में लगभग पौने दो करोड रू० की लागत से उत्प्रवाह संशोधन संयंत्र लगवा लिया है। कारखाने के प्लांट मैनेजर का दावा है कि अब उनके उत्प्रवाह में कोई हानिकारक तत्व नहीं होता, किन्तु नदी में गिरने वाले उनके दो नाले इसकी पुष्टि नहीं करते। नदी के किनारे घाट पर रहने वाले लोग बताते हैं कि यह फैक्ट्री दिन में तो कम मात्रा में उत्प्रवाह छोड़ती है, पर रात में काफी तादाद में काला पानी दोनों नालों से गिराया जाता हैं, ताकि न कोई देख सके और न ही उसका असर जांच के लिए निकाले जाने वाले नमूने के पानी पर पड़े। पूछताछ में पता चला कि संयंत्र को चलाने में होने वाला ईधन व अन्य खर्च बचाने के लिए प्रायः उसे बंद भी रखा जाता है। प्रदूषण बोर्ड के अधिकारी यह शिकायत दूसरे कारखानों के बारे में भी करते हैं जहां इस तरह के संयंत्र लगे हैं। मिल की अपनी प्रयोगशाला में तैयार किये गये रिकार्ड से पता चलता है कि उसके संशोधित उत्प्रवाह में भी पी०एच०, तापमान सी०ओ०डी० और बी०ओ०डी० अधिक रहती है। अगर मोहन मीकिन्स द्वारा रात में चुपके से गिरायी जाने वाली गंदगी को नजरअंदाज कर दें तो भी दिन के उत्प्रवाह से ही नदी के स्वास्थ्य पर काफी प्रतिकूल असर पड़ता है। गऊघाट से चलकर मोहन मीकिन्स नाला पार करने में गोमती के पानी में घुलित आक्सीजन औसतन तीन से पांच मिग्रा० प्रति लीटर कम हो जाती है। प्रदूषण बोर्ड से प्राप्त आकड़ों के अनुसार दो मई 1988 को गऊघाट पर घुलित आक्सीजन 9.5 मि०ग्रा० प्रति लीटर थी तो मोहन मीकिन्स नाले के नीचे 6.5 और 30 मई को जब गऊघाट पर 7 मि०ग्रा. प्रतिलीटर थी तो यहां पर मात्र 2 मि०ग्रा० प्रतिलीटर। 4 मि०ग्रा० प्रति लीटर से कम घुलित आक्सीजन होने पर मछली जिन्दा रह नहीं सकती। मत्स्य निदेशालय की वैज्ञानिक जांच 1888-89 में पाया गया है कि मोहन मीकिन्स नाले के पास गोमती में कार्बन डाइआक्साइड, हाइड्रोजन, सल्फाइड, अमोनिया, एवं क्लोरिन गैसों की तादाद ज्यादा है। इन गैसों के स्थिरीकरण में बहुत अधिक ऑक्सीजन खप जाती है और फिर पानी में घुलित ऑक्सीजन कम होने से पौधे, कीड़े-मकोड़े, मछलियां नष्ट हो जाती है। इस तरह नदी का पारिस्थितिकी (इकोलॉजी) संतुलन चौपट हो जाता है। मोहन मीकिन्स के दोनों नालों के बाद डालीगंज का मुख्य नाला गिरता है। इसी के आगे लल्लूमल स्नान घाट हैं। 

शहर में ऐसे लोगों की संख्या हजारों में है, जिनका अपना घर नहीं। शौचालय और स्नानघर नहीं। फुटपाथ, रिक्शे या झोपड़ी में सोते हैं और नदी के किनारे दिशा मैदान करके लल्लूमल घाट पर कुल्ला-स्नान करके कपड़े धोते हैं। लल्लूमल घाट के सामने पानी इतना सड़ा, गंदा, बदबूदार और तमाम छोटे-छोटे कीड़ों से युक्त होता है कि साक्षात् नरक कुंड कहा जा सकता है। फिर भी लोग मजबूरी में नहाते हैं।

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने जून, 1985 में शहर के तीन स्नान घाटों-जसबीर सिंह स्वीमिंग क्लब, कुड़िया घाट और लल्लूमल घाट पर गोमती के पानी का परीक्षण किया था। बोर्ड ने सीवेज नालों को टेप करके साफ करने के साथ ही गोमती में नहाने और तैरने पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की थी, क्योंकि उसका पानी काफी हानिकारक प्रतीत हुआ। इस अध्ययन में चेतावनी दी गयी थी कि तीनों घाटों पर गोमती में अत्यधिक प्रदूषण के कारण चमड़ी में सूजन, खुजली, आंखों में बड़े पैमाने पर फूल कंजक्टिवाइटिस, डायरिया, आंतों में सूजन, अमीबियासिस, पतले दस्त और टायफाइड की बीमारियां हो सकती है।

लल्लूमल घाट से आगे चलकर वजीरगंज नाला पड़ता है और यहां भयंकर सड़ांध तथा दुर्गंध युक्त गैसें पानी से निकलकर बुलबुलों के रूप में दिखायी देती हैं। 

इसके बाद गोमती का शहीद स्मारक घाट पड़ता है। लखनऊ विकास प्राधिकरण ने सात-आठ साल पहले एक तैरता हुआ रेस्तरां बनवाया था जो टूटा पड़ा है। यहां लगभग दो दर्जन नावें लोगों को जल विहार कराने के लिए रहती हैं। शहर के लोग तो गोमती की हालत अच्छी तरह जानते हैं, इसलिए वे सैर-सपाटे के लिए नाव पर बैठने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। लेकिन बाहर के जो पर्यटक आते हैं। उनमें से ज्यादातर ऊपर से ही बदबू सूंघकर वापस चले जाते हैं। जो कुछ नीचे आकर नदी में घूमने के लिए नाव पर बैठते हैं, वे धारा में पहुंचते ही तौबा करके लौट लेते हैं। शहीद स्मारक के बगल में ही कचेहरी का नाला गिरता है, जिसे घसियारी मंडी का नाला भी कहते हैं। शहीद स्मारक से आगे चलने पर दो राष्ट्रीय वैज्ञानिक शोध संस्थाओं सी०डी०आर०आई० एवं आई०टी०आर०सी० की प्रयोगशालाओं का उत्प्रवाह आता है।

साप्ताहिक रविवार के 15 से 21 जून 1986 अंक में प्रकाशित आलोक की एक रपट में बताया गया है कि इन दोनों ही संस्थानों में जहरीले रसायनों का तथा रेडियोधर्मी पदार्थों का प्रयोग होता है। प्रयोगों के बाद जहरीले रसायनों को भी सिंक में बहा दिया जाता है जो पास ही बह रही गोमती नदी में मिलकर उसे प्रदूषित करते हैं। इसी साल प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया ने भी इस सिलसिले में एक खबर छापी तो सेफ्टी डिस्पोजल पिट बनाया गया। कुछ वकीलों ने यह मामला हाईकोर्ट में उठाया था। इसके अलावा 86 के आखिर में मछली कांड की कमिश्नरी जॉच में भी यह मुद्दा उठा। जवाब में आई०टी०आर०सी० व सी०डी०आर०आई, ने कहा कि उनकी प्रयोगशालाओं में इतनी कम मात्रा में रसायनों का उपयोग होता है कि उनसे नदी के प्रदूषित होने की संभावना नगण्य है। कमिश्नर ने यह जवाब "संतोषजनक" माना। हनुमान सेतु से पहले क्लार्क्स होटल के पीछे चाइना बाजार नाला शहर की काफी गंदगी लाकर गिराता है।

नदी के दूसरी ओर गोमतीघाट क्षेत्र से मदेयगंज, रुपपुर खदरा, टी०जी० हास्टल, बाबा वाली अली ड्रेन, आर्ट्स कॉलेज, अलीगंज हनुमान मंदिर सेतु, टी०जी० पी०एस०, केदारनाथ रोड, न्यू हैदराबाद निशातगंज तथा पेपर मिल नाला गिरते हैं।

इधर चाइना बाजार नाला से आगे बढ़ने पर लाप्लास नाला, शाहनजफ नाला और पराग डेयरी भैंसाकुड श्मशान घाट से पहले नदी में गिरते हैं। ये सभी नाले बैराज से पहले गिरते हैं। इन नालों से शहर के गंदेपानी के अलावा तमाम सीवर लाइनें भी जुड़ी हैं। लखनऊ शहर में इस्तेमाल होने वाला सारा डिटर्जेंट, अस्पतालों, दुकानों, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में काम आने वाले रसायन, आटोमोबाइल्स उद्योगों के तेल युक्त कचड़े अनेक भारी धातुएं आदि इन्हीं नालों से गोमती में आती हैं।

लखनऊ जल संस्थान के अधिकारियों के अनुसार सीवर लाइनों से लगभग 6 करोड़ लीटर मलजल निकलता है। पहले इसका आधा सीवेज पंपिंग स्टेशनों से पम्प करके भीखमपुर कालोनी के निकट बने सलेज फार्म में सिंचाई के लिए पहुंचा दिया जाता था, किन्तु अब गोमती नगर बन जाने से यह फार्म समाप्त प्राय है और यह तीन करोड़ ली० मलजल भी अब निशातगंज पुल के नीचे गोमती में डाला जा रहा है। शेष तीन करोड़ ली० मलजल पहले से ही नालों के जरिये गोमती में जाता था। सीवर लाइनों और नालों के रख-रखाव, मरम्मत एवं सफाई का जिम्मा पहले महापालिका का था। अब सीवर लाइनों का काम जल संस्थान को दे दिया है। लेकिन उसके पास सीवर लाइनों अथवा कनेक्शनों और नालों आदि का न तो कोई नक्शा है, न जानकारी। महापालिका में नालों की सफाई और मरम्मत के लिए हमेशा पैसे की कमी का रोना रहता है। दोनों संस्थाओं के पास इस कार्य के लिए आवश्यक तकनीकि ज्ञान नहीं है। जल संस्थान ने कभी यह अध्ययन भी नहीं कराया। शहर की पेयजल आपूर्ति की मुख्य स्रोत गोमती नदी में सीवर लाइनों एवं नालों से किस तरह की गंदगी गिरती है तथा वह कितनी हानिकारक है। 1971 में जल निगम ने 17 नालों का अध्ययन कराया था, जो अब पुराना पड़ा हुआ है। मंडलायुक्त की बहुचर्चित जांच रपट पर 22 जून, 1987 को राज्य सरकार ने निर्णय लिया था कि नगर पालिका, जल निगम और जल संस्थान नगर के नालों से गोमती में हुए प्रदूषण की तत्काल रोकथाम के उपाय करें और यदि इसमें व्यय अधिक हो तो इस बारे में भारत सरकार से तत्काल वित्तीय सहायता प्राप्त करने का प्रयास किया जाय। नदी में उत्प्रवाह गिराने वाले उद्योगों के नदी स्रोत पर परीक्षण तथा कठोर कारवाई का निर्णय लिया गया। पर ये निर्णय भी कियान्वित नहीं किये गये।

गोमती को प्रत्यक्ष प्रदूषित करने वाले शहर के उद्योगों में ऐशबाग स्थित एवरेडी फैक्ट्री और एच०ए०एल० शामिल है।

शहर में वायु प्रदूषण पिछले कुछ सालों में तेजी से बढ़ा हैं। बड़े कारखानों में मोहन मीकिंस सबसे प्रमुख है। मोहन मीकिंस के आसपास उसकी चिमनी के धुएं के साथ निकला कोयला बहुत कालिख फैलाता है। डालीगंज, खदरा व अन्य इलाकों के लोगों की शिकायत है कि वहां भारी वायु प्रदूषण से घरों में संदूक के अंदर रखे जेवर तक काले हो जाते हैं। लखनऊ में वायु प्रदूषण का दूसरा प्रमुख कारण पेट्रोल-डीजल चालित वाहन हैं।

प्रदूषण बोर्ड के एक अध्ययन में बताया गया है कि लखनऊ के हृदय स्थल हजरतगंज की हवाओं में कार्बन मोनों आक्साइड, सल्फर डाई आक्साइड, नाइट्रोजन डाई आक्साइड और सस्पेंडेड पाट्रिकुलेट खतरे की सीमा से अधिक हैं। इसी तरह आई०टी०आर०सी० के अध्ययनों में ध्वनि प्रदूषित अत्यधिक पाया गया है। ध्वनि और वायु प्रदूषण से मानव स्वास्थ्य को प्रत्यक्ष रूप में गंभीर क्षति के अलावा अंततः आकाश, जल और पृथ्वी तत्व भी प्रदूषित होते हैं।

लखनऊ शहर में नालों, सीवेज, स्लज, औद्योगिक उत्प्रवाह, रसायनों, डिटर्जेन्ट तथा भारी धातुओं का सामूहिक प्रभाव निशातगंज पुल से गोमती बैराज के बीच सर्वाधिक होता है। रात में निशातगंज पुल या गोमती बैराज की सड़क से गुजरते समय हवाओं में दुर्गन्ध अपने आप इस स्थिति का एहसास करा देती है।

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा 25 मई से 31 मई 88 तक पेपर मिल नाला के नीचे की गयी जांच में घुलित ऑक्सीजन प्रति लीटर क्रमशः 1.5, 2.5, 3.4, 3, 2.5, 0.2 और शून्य मि० ग्रा० पायी गयी। इन तिथियों में गऊघाट पर घुलित ऑक्सीजन की मात्रा क्रमशः 9, 7, 6, 10.5 और 7 मि०ग्रा० प्रति ली० पायी गयी। 24 जून, 1988 की जांच में गऊघाट पर घुलित आक्सीजन 10.5 मि० ग्रा० प्रति लीटर और पेपर मिल नाले के बाद मात्र 1.5 मि०ग्रा० पायी गयी। निर्धारित मानदंड के अनुसार पेयजल के लिए न्यूनतम 6 और मत्स्य पालने हेतु 4 मि०ग्ना० प्रतिलीटर घुलित आक्सीजन होनी चाहिए।

अर्थात गऊघाट से पेपर मिल नाला पार करते-करते गोमती में घुलित आक्सीजन सात से नौ मि.ग्रा. प्रति लीटर तक कम हो जाती हैं। जो इस बात का प्रमाण है कि गोमती में इस बीच नालों, सीवर लाइनों, तथा कारखानों से गिरने वाली गंदगी में जैविक एवं रासायनिक आक्सीजन मांग बहुत अधिक होती है, जिससे नदी और उसकी वनस्पतियां तथा जीव-जन्तुओं का दम घुट जाता है। इस गंदगी में मोहन मीकिन्स कारखाने के अलावा सबसे ज्यादा योगदान नालों, सीवर लाइनों की गंदगी में जैविक एवं रासायनिक मांग बहुत अधिक होती है, जिससे नदी और उसकी वनस्पतियां तथा जीव-जंतुओं का दमघुट जाता है। इस गंदगी में मोहन मीकिन्स कारखाने के अलावा सबसे ज्यादा योगदान नालों, सीवर लाइनों की गंदगी और डाउन स्ट्रीम में बैराज का बनाया जाना है। मोहन मीकिन्स में ट्रीटमेंट प्लांट लगने के बाद भी उसके उत्प्रवाह में प्रदूषणकारी तत्व रहते हैं और यह प्लांट ठीक से चलाया भी नहीं जाता। जहां तक महापालिका और जल संस्थान का सवाल है दोनों ने हाईकोर्ट के आदेश को पांच साल बीतने के बावजूद नालों और सीवर की गंदगी गोमती में गिराने से पहले साफ करने की परियोजना तक तैयार नहीं की। जिन दो बड़े नालों वजीरगंज एवं घसियारी मंडी को मोड़कर डाउन स्ट्रीम में गिराने के लिए पर्यावरण निदेशालय ने महापालिका को सवा सात लाख रूपये दिये थे, वह काम भी नहीं हुआ।

नगर महापालिका प्रशासक ने 5 फरवरी 1987 को आयुक्त लखनऊ मंडल को एक पत्र लिखकर कहा था कि गोमती नदी में गाजीउद्दीन हैदर कैनाल के अतिरिक्त 21 नाले और गिरते हैं। यह सभी पुराने नाले हैं। और खुले होने के कारण इनमें काफी मात्रा में दूषित जल एवं अन्य धातुएं भी प्रवाहित होती रहती है। इन नालों का निस्तारण गोमती में रोकने के लिए तत्काल कोई कार्यवाही किया जाना संभव नहीं है। शासन चाहे तो इस हेतु जल निगम से कोई योजना तैयार कराकर इसे क्रियान्वित करा सकता है।

महापालिका और शासन के बीच यह विवाद आज भी जारी है।

यह शोधपत्र 9 भागों में है -

1 - संदर्भ गंगा : गोमती में औद्योगिक प्रदूषण (भाग 1)

2 - संदर्भ गंगा : गोमती में औद्योगिक प्रदूषण (भाग 2)

3 - संदर्भ गंगा : गोमती की सहायक सरायन, पेरई, कठना, भैंसा नदी में औद्योगिक प्रदूषण (भाग 3)

4 - संदर्भ गंगा : गोमती में पीलीभीत, शाहजहांपुर और हरदोई का औद्योगिक प्रदूषण (भाग 4)

5 - संदर्भ गंगा : लखनऊ गोमती में औद्योगिक प्रदूषण (भाग 5)

6 - संदर्भ गंगा : लखनऊ शहर में गोमती के प्रदूषण-स्रोत (भाग 6)

7 - संदर्भ गंगा : लखनऊ में गोमती बैराज की प्रदूषण में भूमिका (भाग 7) 

8 - संदर्भ गंगा : गोमती में बाराबंकी, सुल्तानपुर, जौनपुर और उन्नाव का प्रदूषण (भाग 8)

9 - संदर्भ गंगा : गोमती में प्रदूषण का दुष्परिणाम (भाग 9)

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