सूख चुके है सदियों से प्यास बुझाने वाले तालाब,Pc-Iwpflicker
सूख चुके है सदियों से प्यास बुझाने वाले तालाब,Pc-Iwpflicker

सूख चुके है सदियों से प्यास बुझाने वाले तालाब

छावनी क्षेत्र चकराता से 12 किमी दूरी पर स्थित रामताल गार्डन (पौराणिक नाम-चौलीयात) में बना तालाब पूरी तरह सूख चुका है। कभी यह तालाब सैलानियों की पसंदीदा जगह हुआ करता था। लेकिन दो साल पूर्व यह तालाब पूरी तरह से सूख गया
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सैकड़ों-हजारों तालाब अचानक शून्य से प्रकट नहीं हुए थे। इनके पीछे एक इकाई थी बनवाने वालों की, तो दहाई थी बनाने वालों की। यह इकाई, दहाई मिलकर सैकड़ा, हजार बनती थी। पिछले दो सौ बरसों में नए किस्म की थोड़ी सी पढ़ाई पढ़ गए समाज ने इस इकाई, दहाई, सैकड़ा, हजार को शून्य ही बना दिया।" जल पुरुष अनुपम मिश्र की पुस्तक 'खरे हैं तालाब' में लिखी ये पंक्तियां आज के मनुष्य पर चोट करती हैं, जो आधुनिकता की अंधी दौड़ में इन तालाबों को भूल बैठा है। उनकी ये पंक्तिया मनुष्य की इस भूल से अपना अस्तित्व खो चुके तालाबों की भी पीड़ा बयां करती हैं। कुछ यही पीड़ा जनजातीय क्षेत्र और पछवादून में सदियों पूर्व प्राकृतिक रूप से अस्तित्व में आए और राजा-महाराजाओं के बनवाए सैकड़ों तालाबों (सरोवर) की है जो सरकार, प्रशासन और स्थानीय निवासियों की बेरुखी से पूरी तरह सूख चुके हैं।

 यूं तो भू अभिलेखों में विकासनगर तहसील अंतर्गत 25 तालाब दर्ज हैं। जिनके किनारों पर पहले पशु पक्षियों के साथ ही ग्रामीण भी अपनी प्यास बुझाया करते थे। यहां मेलों का आयोजन होता था। लेकिन बीते करीब 15 साल से ये तालाब पूरी तरह से सूखे हैं। सरकार मनरेगा के तहत गांव-गांव तालाब निर्माण को करोड़ों की धनराशि स्वीकृत कर रही है, लेकिन सदियों से संजोकर रखे गए इन तालाब की सुध लेने वाला कोई नही है  हमने जब इन बदहाल तालाबों की पड़ताल की तो कड़वी सच्चाई सामने आई। सूखे पड़े इन सरोवरों में अब या तो बच्चे क्रिकेट खेलते नजर आते हैं या चरते हुए पशु दिख जाते हैं। 

छावनी क्षेत्र चकराता से 12 किमी दूरी पर स्थित रामताल गार्डन (पौराणिक नाम-चौलीयात) में बना तालाब पूरी तरह सूख चुका है। कभी यह तालाब सैलानियों की पसंदीदा जगह हुआ करता था। लेकिन दो साल पूर्व यह तालाब पूरी तरह से सूख गया यह तालाब कितना पुराना है और कब इसका निर्माण हुआ यह क्षेत्र के लोगों को नहीं पता। लेकिन पुरखों का कहना है कि यह तालब  500 साल से भी पुराना है। कभी पहाड़ों पर मैदानी इलाकों से आने वाले लोगों ने तालाब का निर्माण किया था। दो साल पूर्व तक यहां बिस्सू मेले का भी आयोजन होता था। जो आज पूरी तरह से समाप्त हो चुका है। साथ ही आसपास के गांवों में रहने वाले लोगों के सामने भी पेयजल का संकट खड़ा हो गया है।  

 दूसरा तालाब हैं,लांगा पोखरी स्थित छिंडा तालाब, यह तालाब बहुत लंबा हुआ करता था। लेकिन अनदेखी के चलते यह करीब 4 या पांच साल पहले पूरी तरह से सूख गया है । यह तालाब भी 500 साल पुराना बताया जाता है। यहां भी तालाब के किनारे बिस्सू मेले का आयोजन होता था। लेकिन अब समय के साथ वह भी पूरी तरह से सूख चुका है। पहाड़ों पर मवेशियों को चराने जाने वाले पशुपालकों का यह मुख्य पड़ाव था। इसी के आसपास वह अपने डेरे लगाया करते थे। लेकिन तालाब के सूखने के साथ ही वह भी अब दूसरे इलाकों का रुख करने लगे हैं इसके अलावा  भया डांडा (गिरतिया डाडा), चुराड़ी डांडा, मोइला टॉप, रिखाणी डाडा, कनासर, मानलथात, सुनाड़ी पानी लाइन जीवनगढ़, सहसपुर कालसी जोहड़, रसूलपुर, बरोटीवाला समेत 20-30 तालाब बीते करीब 15 साल में पूरी तरह से सूख चुके है।

विकासनगर से सटा पश्चिमीवाला स्थित तालाब भी कभी आसपास के क्षेत्र में अपनी भव्यता के लिए प्रसिद्ध था। आसपास के कई परिवार इस तालाब से अपनी प्यास बुझाया करते थे लेकिन समय के साथ- साथ घरों में पेयजल लाइन का निर्माण हुआ तो लोग तालाब को भूलते चले गए। रखरखाव के अभाव में तालाब धीरे-धीरे सूखने लगा है। यहां बड़ी-बड़ी घास उग आई है। यहां कुछ लोग अब इस तालाब के किनारे कब्जा भी करने लगे है, लेकिन प्रशासन के अफसरों को यह सब दिखाई नहीं दे रहा है ।अगर हालात ऐसे ही रहे तो आने वाले समय में जौनसार-बावर इलाकों में पानी की स्थिति और विकट हो जाएगी। इसलिए जरुरी है प्रशासन समय रहते तालाबों के संरक्षण के लिए कोई ठोस और बेहतर कदम उठाए।

  

  

 

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