किसा बाग्गां आला जुआं, जिब नहर ए पक्की कर दी तै


तालाबों के मामले में जुआं से अधिक बड़े तालाब कहीं नहीं है। यहां हरियाणा का सबसे बड़ा तालाब था। इसे ग्रामीण पुराना जोहड़ कहते थे। राजस्व रिकार्ड के मुताबिक यह कदीमी झील है। यह 55 एकड़ से अधिक में फैला था। राज्य में हुए जमीन के बंदोबस्त के बाद इसका बड़ा हिस्सा किसानों के पास खेती की जमीन के रूप में चला गया। गांव के पश्चिम में अब यह तालाब 20 एकड़ में है, लेकिन इसमें 6 महीने ही पानी रहता है। शेष 6 माह यह सूखा रहता है। हरियाणा के सोनीपत जिले का जुआं बागों वाले गांव के नाम से जाना जाता है। आर्य समाज के गृहस्थ संत धर्मपाल और खजान सिंह के इस गांव की पहचान दो दशक पहले तक आम के बागों वाले गांव के रूप में थी। अस्सी के दशक तक यहां 100 से अधिक आम के बाग थे।

सोनीपत से जुआं जाते हुए हमने माच्छरी गांव के मोड़ पर बस का इंतजार करते हुए लोगो से जुआं का रास्ता पूछा। स्वभाव के मुताबिक सब लोग रास्ता बताने लगे। एक ने बीच से आवाज लगाई बाग्गा आले गाम म्ह जाणा सै रै, बता दे रास्ता। तभी जुआं की बुजुर्ग महिला सत्यवती (73) ने प्रतिक्रिया में कहा, किसा बाग्गां आला, जिब नहर ए पक्की कर दी तै। माच्छरी से जुआं तक अपने वाहन से पंहुचने में हमें 15 मिनट लगे। गांव के अंदर घुसते ही हमारा सामना प्राचार्य जितेंद्र छिक्कारा से हुआ। गांव में पानी की बात शुरू होते ही जितेंद्र कहते हैं, तीन दशक में हमारे गांव में भूजल स्तर 130 फुट तक चला गया है। पहले 20 फुट चोआ था।

आम के 100 से अधिक बागों में से अब एक भी बाग नहीं बचा है। सारे बाग खत्म हो गए हैं। गांव की नहर के दोनों तरफ आम के घने बाग थे। आज इनमें से एक भी नहीं बचा। बकौल जितेंद्र 90 के दशक के शुरूआत में जब गांव के साथ से निकलने वाली सिंचाई का प्रमुख स्रोत नहर के पक्की हुई तो आम के बागों पर मानो मुसीबत टूट गई। नहर के दोनों तरफ बाग थे। नहर पक्की हुई तो भूजल स्तर गिर गया और एक के बाद एक बाग खत्म होते चले गए। आज इस गांव में एक भी बाग नही है। कहीं-कहीं पेड़ बचे है। वह भी धीरे-धीरे दम तोड़ते जा रहे हैं।

86 साल के जागेराम आज भी पूरे कड़क हैं। बताते हैं कि गांव के भीतर के 15 कुओं में से अब मात्र दो कुएं जुगाण मोहल्ले में बचे हैं। यहां रोज पनघट का मेला जरूर लगता है। शेष सब कुएं खत्म हो गए हैं। कुछ पर सबमर्सिबल लगा दिए गए हैं।

तकरीबन 45 साल के हितेंद्र को अफसोस है कि कालंद वाला कुआं भी नहीं रहा। इस कुएं का पानी बहुत मीठा और शीतल था। हितेंद्र के मुताबिक जुआं में बाहर से आने वाले आर्य समाजी या दूसरे संत आग्रहपूर्वक पीने के लिए इस कुएं का पानी मांगते थे। राजकीय प्राथमिक धर्मशाला के साथ स्थित ब्राह्मणों वाला कुआं भी अब नहीं रहा।

तालाबों के मामले में जुआं से अधिक बड़े तालाब कहीं नहीं है। यहां हरियाणा का सबसे बड़ा तालाब था। इसे ग्रामीण पुराना जोहड़ कहते थे। राजस्व रिकार्ड के मुताबिक यह कदीमी झील है। यह 55 एकड़ से अधिक में फैला था। राज्य में हुए जमीन के बंदोबस्त के बाद इसका बड़ा हिस्सा किसानों के पास खेती की जमीन के रूप में चला गया।

गांव के पश्चिम में अब यह तालाब 20 एकड़ में है, लेकिन इसमें 6 महीने ही पानी रहता है। शेष 6 माह यह सूखा रहता है। इसमें 8 से 10 फुट तक पानी रहता है। यह तालाब भी गांव के पश्चिम है।

नरक जीते देवसरदूसरा तालाब नया तालाब से जाना जाता है। इस तालाब का क्षेत्र भी 12 एकड़ है। इसमें भी 6 फुट तक पानी रहता है। तीसरा तालाब गालिल मोहल्ले में है। यह गांव के पूर्व में है। पानी का स्तर इस तालाब में भी लगभग दूसरे तालाबों जितना है। गांव के पूर्व में गुहली के नाम से एक जोहड़ी है। गांव का सारा गंदा पानी इस जोहड़ी में जाता था। इस जोहड़ी को अब लड़कियों के खेल स्टेडियम में तबदील कर दिया गया है। शायद जुआं हरियाणा का इकलौता गांव है, जहां जोहड़ी को भरने से पूर्व गांव के गंदे पानी की निकासी की समुचित व्यवस्था की गई है।

सारा गंदा पानी अब जुआं वेस्ट के नाम से यहीं से शुरू होने वाली ड्रेन में डाला जाता है। अपनी जिंदगी के 77 बसंत देख चुके बुजुर्ग रामचंद्र के मुताबिक निश्चित रूप से कुओं के खत्म होने, बारिश कम होने और नहर पक्की होने से गांव का भूजल स्तर गिरा है। इससे किसानों की आर्थिक स्थिति भी प्रभावित हुई है। अब पानी निकालने के लिए उन्हें कई गुना पानी खींचना पड़ता है। हरियाणा सरकार के कर्मचारी ग्रामीण आनंद के मुताबिक पानी कम हुआ तो बाग गए। बागों की समृद्ध परंपरा के साथ भाईचारा भी गया।

 

नरक जीते देवसर

(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिए कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें)

क्रम

अध्याय

1

भूमिका - नरक जीते देवसर

2

अरै किसा कुलदे, निरा कूड़दे सै भाई

3

पहल्यां होया करते फोड़े-फुणसी खत्म, जै आज नहावैं त होज्यां करड़े बीमार

4

और दम तोड़ दिया जानकीदास तालाब ने

5

और गंगासर बन गया अब गंदासर

6

नहीं बेरा कड़ै सै फुलुआला तालाब

7

. . .और अब न रहा नैनसुख, न बचा मीठिया

8

ओ बाब्बू कीत्तै ब्याह दे, पाऊँगी रामाणी की पाल पै

9

और रोक दिये वर्षाजल के सारे रास्ते

10

जमीन बिक्री से रुपयों में घाटा बना अमीरपुर, पानी में गरीब

11

जिब जमीन की कीमत माँ-बाप तै घणी होगी तो किसे तालाब, किसे कुएँ

12

के डले विकास है, पाणी नहीं तो विकास किसा

13

. . . और टूट गया पानी का गढ़

14

सदानीरा के साथ टूट गया पनघट का जमघट

15

बोहड़ा में थी भीमगौड़ा सी जलधारा, अब पानी का संकट

16

सबमर्सिबल के लिए मना किया तो बुढ़ापे म्ह रोटियां का खलल पड़ ज्यागो

17

किसा बाग्गां आला जुआं, जिब नहर ए पक्की कर दी तै

18

अपने पर रोता दादरी का श्यामसर तालाब

19

खापों के लोकतंत्र में मोल का पानी पीता दुजाना

20

पाणी का के तोड़ा सै,पहल्लां मोटर बंद कर द्यूं, बिजली का बिल घणो आ ज्यागो

21

देवीसर - आस्था को मुँह चिढ़ाता गन्दगी का तालाब

22

लोग बागां की आंख्यां का पाणी भी उतर गया

 

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