पृथ्वी दिवस : हमारी धरा, हमारी जिम्मेदारी
22 अप्रैल यानी धरती का दिन। धरती, जिसे हम अपनी मां सरीखा मानते हैं, उसका दिन। बढ़ते प्रदूषण, सूखते जलस्रोत, अंधाधुंध कटते जंगल, खानों-खदानों की बेहिसाब खुदाई और ज़हरीली होती जा रही हवा के बीच धरती के इस खास दिन की अहमियत और भी बढ़ जाती है। साल में कम से कम एक दिन जब ‘पृथ्वी दिवस' के नाम पर हम अपनी ‘धरती मां’ की दुदर्शा के बारे में सोचें और इसके लिए कुछ करने की ठानें।
मकसद और लक्ष्य
पृथ्वी दिवस मनाने का मकसद अपनी धरती के प्रति हमें हमारी जिम्मेदारियों की याद दिलाना है। इसलिए इसे केवल एक रस्म अदायगी भर समझ कर केवल पर्यावरणविदों, वैज्ञानिकों और प्रकृति प्रेमियों तक सीमित रखने के बजाय इसे धरती पर रह रहे हर शख्स से जोड़ने की जरूरत है। यह हर किसी को यह समझाने का दिन है कि धरती किस तरह हमें हवा, पानी, भोजन और आश्रय जैसी हर वह चीज प्रदान करती है, जिसकी हमें जिंदा रहने के लिए जरूरी है। इसलिए अगर हम यूं ही धरती को नुकसान पहुंचाते रहे, तो इसका खामियाजा आखिरकार हमें ही भुगतना पड़ेगा। अपना जीवन दुष्कर बना कर या अपना जीवन गंवा कर। हमें समझना होगा कि धरती के साथ हमारा यह गंभीर खिलवाड़ समय रहते बंद नहीं हुआ, तो हो सकता है कि भविष्य में हम मनुष्यों का नाम भी डायनासोर की तरह विलुप्त प्राणियों की सूची में शामिल हो जाए। अच्छी बात यह है कि पृथ्वी दिवस यानी Earth Day मनाने के रूप में इस ओर एक छोटी, मगर महत्वपूर्ण शुरुआत हो चुकी है। हालांकि इसे मनाने की उपयोगिता तभी है, जब हम इसके मकसद या लक्ष्य को समझ पाएं, जोकि इस प्रकार हैं-
1. पर्यावरण से जुड़े मुद्दों के प्रति जागरूकता फैलाना।
2. प्राकृतिक संसाधनों के विवेकपूर्ण इस्तेमाल और इसके संरक्षण को बढ़ावा देना।
3. स्वच्छ ऊर्जा और पर्यावरण-अनुकूल जीवनशैली को अपनाने के लिए लोगों को प्रेरित करना।
4. संसाधनों के अंधाधुंध दोहन पर रोक लगाकर भविष्य की पीढ़ियों के लिए धरती की संपदाओं को सुरक्षित रखना।
इन हादसों से दहल उठी धरती
जरा सोचिए, आज धरती को बचाने की बातें करने की जरूरत आखिर हमें क्यों पड़ रही है? क्यों हमें धरती की खातिर एक दिन ‘पृथ्वी दिवस' के रूप में मनाना पड़ रहा है, जबकि धरती पर रह रहे मनुष्यों के लिए तो हर दिन धरती का ही दिन है। वजह बड़ी आसानी से समझी जा सकती हैं, हमें बस अपनी उन कारगुजारियों पर एक नज़र डालने की जरूरत है, जिन्होंने समय-समय पर हमारी धरती के दामन को छलनी किया है। हाल के दशकों में पृथ्वी की सेहत को गंभीर नुकसान पहुंचाने वाली कुछ सबसे भयंकर घटनाओं की बानगी कुछ इस प्रकार है-
सांता बारबरा तेल रिसाव (1969, अमेरिका)
1969 में अमेरिका के कैलिफोर्निया तट के पास एक तेल कंपनी के तेल भंडार में हुए बड़े रिसाव से लाखों गैलन कच्चा तेल समुद्र में फैल गया था। Santa Barbara Oil Spill नाम से मशहूर इस भयंकर हादसे से न केवल कई वर्ग किलोमीटर के दायरे में समुद्री जल प्रदूषित हुआ, बल्कि हज़ारों की संख्या में समुद्री जीव मारे गए और एक बड़े इलाके के समुद्री इको सिस्टम को भारी नुकसान हुआ। इस घटना ने लोगों को पर्यावरणीय नियमों को सख्त बनाने के लिए प्रेरित किया, जिसके बाद 22 अप्रैल 1970 को पहला पृथ्वी दिवस मना कर धरती की दुर्दशा के प्रति लोगों को सचेत करने की शुरुआत हुई।
भोपाल गैस त्रासदी (1984,भारत)
भोपाल गैस त्रासदी की यादें लाखों भारतीयों के लिए आज भी जीवन की सबसे भयानक यादों में से हैं। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में यूनियन कार्बाइड कारखाने से आधी राहत जहरीली गैस लीक होने से हज़ारों लोग देखते ही देखते मौत की नींद सो गए। जो, बचे उनकी जिंदगी भी पहले जैसी नहीं रह गई, क्योंकि ज़हरीली गैस ने उनकी सेहत को काफी बुरी तरह प्रभावित कर कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर दीं। भोपाल और आसपास के इलाकों में लाखों लोग मानवीय चूक से हुए इस भयंकर हादसे से बुरी तरह प्रभावित हुए। इस हादसे ने पूरे देश को झकझोरने के साथ ही औद्योगिक प्रदूषण के खतरों को उजागर किया और पर्यावरण सुरक्षा कानूनों को सख्त बनाने की मांग को मजबूती से उठाने की जरूरत महसूस कराई।
अमेज़न जंगलों की आग (2019, ब्राजील)
2019 में ब्राजील के अमेज़न वर्षावन में लगी भीषण आग ने "पृथ्वी के फेफड़े" कहे जाने वाले जंगलों के एक बड़े हिस्से को देखते ही देखते नष्ट कर दिया। इस भीषण दावानल ने जलवायु परिवर्तन और जंगलों के घटते आकार के गंभीर परिणामों की एक सचेत करने वाली झलक दिखाई। इसके बाद दुनिया भर में जंगलों को संजोने और पर्यावरण के संरक्षण की मुहिम तेज हुई। पृथ्वी के दामन पर दाग लगाने वाली ऐसी घटनाएं हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर जीने का संदेश देती हैं और अपनी आबोहवा को दुरुस्त बनाए रखने की जिम्मेदारी हमें याद दिलाती हैं।
कुछ इस तरह हुई पृथ्वी दिवस की शुरुआत
पृथ्वी दिवस पहली बार अमेरिकी सीनेटर गेलॉर्ड नेल्सन की पहल पर 22 अप्रैल 1970 को मनाया गया था। नेल्सन ने बेलगाम होती औद्योगिक गतिविधियों के कारण पर्यावरण को तेजी से हो रहे नुकसान के प्रति सरकारों और जनता को जागरूक करने की जरूरत महसूस की। नेल्सन ने लोगों को जागरूक करने के लिए पृथ्वी दिवस के आयोजन को एक राष्ट्रीय आंदोलन का रूप दिया, जिसमें 20 मिलियन से अधिक लोगों ने भाग लिया। धीरे-धीरे यह अभियान वैश्विक स्तर पर फैल गया और 1990 से इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाने लगा। आज दुनिया के 190 से अधिक देशों में इस दिन पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए तरह-तरह के कार्यक्रमों और गतिविधियों का आयोजन किया जाता है। इस मौके पर लोग अपनी धरती को स्वच्छ एवं स्वस्थ बनाए रखने का संकल्प लेते हैं।
आज भी धरती पर मंडरा रहा खतरा
बर्बादी के दर्जनों बड़े हादसों के बावजूद मानव ने इनसे कोई खास सबक नहीं सीखा है। यही वजह है आज भी धरती पर कई तरह के खतरों का साया मंडरा रहा है। इनमें से कुछ प्रमुख खतरे इस प्रकार हैं:
जलवायु परिवर्तन : पिछले कुछ दशकों में वैश्विक तापमान में तेजी से वृद्धि हुई है, जिसे 'ग्लोबल वॉर्मिंग' कहा जाता है। इसका मुख्य कारण ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन है। ये गैसें कारखानों, वाहनों और जीवाश्म ईंधन जलाने से निकल रही हैं। इसका नतीजा ग्लेशियरों का पिघलना, समुद्र का जलस्तर बढ़ना, मौसम में अप्रत्याशित बदलाव के चलते जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि के रूप में देखने को मिल रहा है।
जंगलों की कटाई : जंगल हमारे पारिस्थितिकी तंत्र के लिए फेफड़े जैसे हैं। वन हमारे वातावरण को शुद्ध और तरोताजा रखने का काम करते हैं। वे कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर वायुमंडल में ऑक्सीजन जैसी प्राणदायी गैसों की मात्रा को संतुलित रखने का काम करते हैं। आज अंधाधुंध कटाई के कारण जंगल खत्म होते जा रहे हैं। इससे न केवल वायु प्रदूषण बढ़ रहा है, बल्कि जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता पर संकट जैसी समस्याओं का भी सामना करना पड़ रहा है।
बढ़ता प्लास्टिक कचरा : धरती पर हर साल करोड़ों टन प्लास्टिक कचरा फेंका जा रहा है। यह हमारी मिट्टी के साथ ही झीलों, नदियों और यहां तक कि समुद्रों तक को प्रदूषित कर रहा है। इस तरह प्लास्टिक धरती और जल दोनों ही के लिए एक बड़ी समस्या बन गई है, जो थल और जलचर जीवों के जीवन को संकट में डाल रही है। प्लास्टिक हमारे भोजन और पानी में मिलकर हमारे स्वास्थ्य के लिए भी खतरा बनता जा रहा है।
गहराता जल संकट : आज विश्व में कई देश पानी की भारी कमी से जूझ रहे हैं। भूजल स्तर लगातार गिरता जा रहा है और नदियों का पानी भी प्रदूषित हो रहा है। यदि हमने जल संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया, तो आने वाले समय में पानी के लिए संघर्ष और अधिक बढ़ सकता है।
जैव विविधता खतरे में : प्रकृति में संतुलन बनाए रखने के लिए सभी जीव-जंतु महत्वपूर्ण हैं, लेकिन धरती पर मंडराते खतरों के चलते जैव विविधता खतरे में पड़ गई है। वनों की लगातार कटाई, प्रदूषण और अवैध शिकार के कारण जीवों की सैकड़ों प्रजातियों के विलुप्त होने की बात पुरानी हो चुकी है। अब तो हमारी धरती का समूचा पारिस्थितिक तंत्र यानी पूरा इको सिस्टम ही बिगड़ने और बिखरने के कगार पर पहुंचता जा रहा है।
आदतें बदलें, बदलेंगे हालात
धरती को बर्बादी से बचाने की शुरुआत हम अपने घर-परिवार से और खुद से कर सकते हैं। सरकारों और संस्थाओं के बड़े कदमों का इंतज़ार किए बिना अगर हम अपनी कुछ छोटी-मोटी आदतों को बदल लें, तो धरती का काफी भला कर सकते हैं। ज़रूरत केवल इच्छा शक्ति और संकल्प की है। यदि प्रत्येक व्यक्ति संकल्प ले कि वह अपनी ओर से पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा, तो धरती के हालात तेजी से सुधर सकते हैं। इसके लिए हम कुछ इस तरह के कदम उठा सकते हैं:
आसपास पेड़ लगाएं, हरियाली बढ़ाएं।
प्लास्टिक का कम से कम इस्तेमाल करें।
पानी की बर्बादी रोकें, जल संरक्षण को बढ़ावा दें।
स्वच्छ ऊर्जा यानी क्लीन एनर्जी की ओर कदम बढ़ाएं।
पेड़-पौधों और जीवों की रक्षा कर जैव विविधता को बढ़ावा दें।
अंत में, पृथ्वी दिवस पर हम आपसे बड़ी-बड़ी बातें करने और ऊंचे लक्ष्य देने के बजाय बस इतनी सी बात समझने की गुज़ारिश करेंगे कि अपने निहित स्वार्थों और लापरवाहियों से अगर हम धरती की सेहत को चोट पहुंचाते रहे, तो हम खुद भी स्वस्थ नहीं रह सकेंगे और हमारा भविष्य अंधकारमय हो जाएगा। इसलिए आज हम सबको यह समझना होगा कि धरती और उसके पर्यावरण की रक्षा केवल सरकारों की नहीं, बल्कि हम सबकी जिम्मेदारी है। हम सब मिलकर अगर छोटे-छोटे प्रयास करने तो शुरू कर दें, तो निश्चित रूप से हमारी धरती हरी-भरी और खुशहाल रहेगी। आइए, आज इसका संकल्प लें।
लेखक परिचय - लेखक राजेंद्र कुमार शर्मा पेशे से अध्यापक हैं और राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय, रामपुरा, सांगानेर, जयपुर में पदस्थ हैं।