चिपको आन्दोलन की जन्मदाता गौरा देवी
गौरा देवी का प्रारंभिक जीवन और पारिवारिक पृष्ठभूमि
गौरा देवी का जन्म 1925 के आसपास नंदा देवी अभयारण्य के अंतिम गाँव लाता (जिला चमोली) में हुआ था। उनके पिता का नाम नारायण सिंह था। मात्र 11-12 वर्ष की अल्पायु में ही उनका विवाह रैणी गाँव के मेहरबान सिंह के साथ हो गया। रैणी गाँव तोल्छा जाति के भोटिया समुदाय का गाँव था, जहाँ पशुपालन, ऊनी हस्तशिल्प और सीमित खेती होती थी।
वैधव्य और संघर्ष का दौर
दुर्भाग्य से, मात्र 21 वर्ष की उम्र में ही पति का निधन हो जाने से उन पर दुःखों का पहाड़ टूट पड़ा। उस समय उनका एकमात्र पुत्र चन्द्र सिंह सिर्फ ढाई वर्ष का था। कठिनाइयों के बावजूद, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और 1972 में रैणी गाँव की महिला मंगल दल की अध्यक्ष चुनी गईं।
पर्यावरणीय चुनौतियाँ और चिपको आंदोलन की शुरुआत
1969 में अलकनंदा नदी में आई भीषण बाढ़ और 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद पर्वतीय क्षेत्र में सड़क निर्माण शुरू हुआ, जिससे पर्यावरणीय क्षति होने लगी। जब रैणी के जंगल में 2,451 पेड़ों की कटाई के लिए बोली लगने वाली थी, तब गाँव के पुरुष गोपेश्वर गए हुए थे। केवल महिलाएँ ही गाँव में थीं।
26 मार्च 1974: ऐतिहासिक प्रतिरोध
26 मार्च 1974 को गौरा देवी ने महिलाओं के साथ जंगल की रक्षा के लिए ठेकेदारों का सामना किया। उन्होंने मजदूरों से कहा:
"भाइयो, यह जंगल हमारा मायका है। इसे हम जड़ी-बूटियाँ, फल-लकड़ी पाते हैं। यदि जंगल काटोगे, तो बाढ़ आएगी और हमारे खेत बह जाएँगे।"
जब ठेकेदारों ने बंदूक तानी, तो गौरा देवी ने अडिग रहते हुए कहा:
"मारो गोली! काट लो हमारा मायका!"
उनके साहस के आगे ठेकेदारों को पीछे हटना पड़ा।
आंदोलन का प्रभाव और सरकारी कार्रवाई
इस घटना के बाद 27 और 31 मार्च को रैणी गाँव में सभाएँ हुईं और जंगल की निगरानी शुरू हुई। डॉ. वीरेन्द्र कुमार की अध्यक्षता में जाँच समिति बनी, जिसके बाद अलकनंदा की सहायक नदियों के जलग्रहण क्षेत्रों की सुरक्षा सुनिश्चित की गई। सरकार ने ठेका प्रणाली समाप्त कर उत्तर प्रदेश वन निगम की स्थापना की।
सम्मान और विरासत
1981 में केंद्र सरकार ने उन्हें पद्मश्री देने का प्रस्ताव रखा, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया। उन्हें "चिपको वुमन" और "वृक्ष मित्र" के नाम से जाना जाता है। 1986 में उन्हें वृक्ष मित्र पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 4 जुलाई 1991 को उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी विरासत आज भी पर्यावरण आंदोलनों को प्रेरित करती है।
चिपको आंदोलन का प्रसिद्ध नारा
"क्या हैं जंगल के उपकार?
मिट्टी, पानी और बयार।
यही हैं जिंदा रहने के आधार!"