कब पानीदार होंगे हम
जल नीति में जल आयोग का गठन व बढ़ती हुई शहरी आबादी की जरूरत को ध्यान में रखते हुए शहरों के पास जलाशयों के निर्माण पर जोर दिया गया है। जल के उपयोग की प्राथमिकता के तहत पशुधन सहित मानव के पीने, स्वच्छता और सफाई जैसी आवश्यकताओं को सबसे ऊपर रखा गया है। विभाग स्वयं स्वीकारते हैं कि जिस सेक्टर को जितना पानी दिया जाना चाहिए उतना नहीं दिया जा पा रहा है। औसतन 1400 मिमी वर्षा होने के बावजूद राज्य पानीदार नहीं हो पा रहा है। वर्षा का पानी नालों में बह जा रहा है। मैग्सेसे पुरस्कार विजेता राजेंद्र सिंह भी कहते हैं कि यदि झारखंड में पानी पर आत्मनिर्भरता नहीं बढ़ती है तो यहाँ स्थिति विस्फोटक हो सकती है।
शहरी-ग्रामीण क्षेत्र में पानी की स्थिति :
कृषि उपलब्धता:
उद्योग की आवश्यकता:
भू-गर्भ जल का हो रहा अंधाधुंध दोहन :
झारखंड राज्य जल नीति-2011 : पानी पर पहला हक मनुष्य व पशु का
राज्य जल योजना :
विविध जल उपयोगों के बीच समुचित समन्वय स्थापित करते हुए सन्तुलित विकास को बढ़ावा देने के लिये सरकार विभिन्न नदी बेसिनों अभिकरणों द्वारा विकसित जल संसाधन विकास तथा प्रबंधन योजनाओं के आधार पर राज्य जल संसाधन योजना तैयार करेगी।
अन्तरराज्यीय जल भागीदारी :
सभी अन्तरराज्यीय जल भागीदारी समझौते के प्रदर्शन का मूल्यांकन होगा ताकि राज्य के हित संरक्षण के लिये जरूरी कदम उठाए जा सकें।
राज्य के जल संसाधन :
राज्य के अंतर्गत सतह या उपसतह पर उपलब्ध कुल जल अथवा राज्य से गुजरने वाले सभी नालों तथा राज्य के भीतर के जलस्रोत राज्य के जल संसाधन के रूप में परिभाषित होंगे। अनुमानित जल संसाधन की औसत वार्षिक उपलब्धता सतह जल 27.726 किलोमीटर तथा उपसतह के 5,251 किमी में विद्यमान है। इस औसत वार्षिक उपलब्धता का 50 प्रतिशत से अधिक राज्य के 16 नदी बेसिनों में से पाँच प्रमुख नदी बेसिनों (स्वर्णरेखा, दामोदर, बराकर, उत्तरी कोयल, गुमानी व दक्षिणी कोयल) में पाया जाता है।
कृषि योग्य भूमि के लिये सिंचाई :
दस वर्ष के भीतर राज्य के प्रत्येक कृषि योग्य भूखंड में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने के लिये प्रत्येक नदी बेसिन में एग्रो क्लाइमेटिक जोन के आधार पर चरणबद्ध ढंग से एक योजना अपनाई जाएगी। इस योजना का प्रारम्भिक कार्य राज्य में उपलब्ध सभी कृषि योग्य भूखंड तथा सिंचाई संसाधन-परियोजना का कम्प्यूटरीकृत डेटा बेस तैयार करना होगा।
सिंचाई पद्धति के लिये कृषक प्रबंधन :
सिंचाई प्रबंधन में जल उपभोक्ता संघ के माध्यम से कृषकों की भागीदारी को अनिवार्य किया जाएगा। महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी। लघु सिंचाई के लिये पारम्परिक जलस्रोतों के प्रबंधन एवं संवर्धन का कार्य पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से किया जाएगा।
घरेलू उपयोग के लिये जल :
घरेलू उपयोग के लिये शहरी तथा ग्रामीण दोनों क्षेत्रों की सम्पूर्ण आबादी को पर्याप्त मात्रा में जल सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। किसी उपलब्ध जल संसाधन की पहली प्राथमिकता पर्यावरण विज्ञान एवं मानव और पशुओं के लिये पेयजल की आवश्यकता होगी। नहर तथा नदी जल को बर्बादी से बचाने के लिये यथासम्भव जलाशयों से पेयजलापूर्ति प्राप्त करने के लिये पाइपलाइन बिछाई जाएगी।
विशेष योजना :
शहरी क्षेत्रों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में आबादी बढ़ने के कारण पेयजल की माँग में वृद्धि हुई है। 1991-2001 तथा 2001-2011 दशक के दौरान राज्य की जनसंख्या दशकीय वृद्धि का क्रमशः 24.55 व 22.34 प्रतिशत पहुँच गया है। राज्य में स्वच्छ पेयजल की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिये गाद की सफाई तथा अन्य तकनीकी उपायों को अपनाकर पेयजलापूर्ति वाले विद्यमान जलाशयों की क्षमता में टिकाऊ वृद्धि के लिये एक समयबद्ध कार्ययोजना तैयार की जायेगी। अल्प उपायों के तहत पेयजलापूर्ति पाइपलाइनों में रिसाव को रोकना शामिल है, जबकि दीर्घकालिक उपायों के तहत अन्य उपाय तलाशे जाएँगे।
औद्योगिक उपयोग के लिये जल :
प्राथमिकता के अधीन रखे गए क्षेत्रों की आवश्यकता की पूर्ति के बाद नदी बेसिन में उपलब्ध जल उद्योगों को आवंटित किया जाएगा। प्रदूषण फैलाने वाले सभी उद्योगों को वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाना होगा। उपचारित बेकार जल के पुनःचक्रण या पुनरुपयोग को बढ़ावा दिया जाएगा।
निजी क्षेत्र की भागीदारी :
राज्य के प्रत्येक नदी बेसिन में निजी उद्योगपतियों, व्यावसायिक उद्यम तथा जल सेवा प्रदाताओं की सम्पूर्ण एवं प्रभावी भागीदारी अपेक्षित होगी।
जल की गुणवत्ता :
राज्य के सतह जल एवं उपसतह जल में प्रदूषित बहिःस्राव के नियंत्रण के लिये जल अधिनियम के अधीन राज्य सरकार किसी प्राधिकृत एजेन्सी द्वारा एक कार्यक्रम चलाया जाएगा। राज्य के जल संसाधन में प्रदूषण फैलाने वालों, प्रदूषण में सहायक या प्रदूषण को उकसाने वालों को राज्य की विधि एवं विनियम के उपबन्ध के अनुसार सुसंगत राज्य अभिकरण द्वारा दंडित किया जाएगा।
सूखा प्रबंधन :
राज्य के सर्वाधिक सूखाग्रस्त क्षेत्रों में सूखे की स्थिति का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने के लिये सूखा पूर्वानुमान तथा मूल्यांकन के लिये एक व्यवस्थित दृष्टिकोण अपनाया जाएगा। उपलब्धता में कमी के दौरान जल प्रयोक्ताओं के विविध क्षेत्रों के बीच बराबर की हिस्सेदारी होगी, चाहे वह ऊँचाई वाले क्षेत्र में हो या नीचे वाले क्षेत्र में। जल संसाधन विकास कार्यों में सूखे से बचाव के उपायों को प्राथमिकता दी जाएगी।
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जल, जंगल व जमीन | |
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खनन : वरदान या अभिशाप | |
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